Kya insan Zameen ki Makhlooq Hai ?

"क्या इंसान पृथ्वी का निवासी नहीं है? अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. एलिस सिल्वर के हैरान कर देने वाले दावे और वैज्ञानिक शोध के अनुसार, इंसान का पृथ्वी पर होना एक सज़ा का हिस्सा हो सकता है। जानिए इंसान के एलियन होने के 11 चौंकाने वाले वैज्ञानिक प्रमाण"

 Kya insan Zameen ki Makhlooq Hai?

✍️ By: Mohib Tahiri | 🕋 islamic article|Qur'an aur Science|Zameen par insan ki takhleeq Aur Zindagi 🕰 updated:15 Nov 2025
Insan zameen ka makhlooq nahi theory by Dr Ellis Silver Aur Qur'an se saboot
Humans are not from Earth”—ek aisa nazriya jo duniya ko hila gaya


अक्सर ज़हन में ये सवाल उठता है कि Kya insan Zameen ki Makhlooq Hai? यह सवाल हाल ही में तब चर्चा में आया जब अमेरिका के प्रसिद्ध एकोलॉजिस्ट डॉ. एलिस सिल्वर ने अपनी किताब “Humans are not from Earth” में एक चौंकाने वाला दावा किया।
इंसान की उत्पत्ति और उसकी असली जगह को लेकर आज तक कई सिद्धांत दिए गए हैं।लेकिन डॉ. एलिस सिल्वर का एक दावा ऐसा है जिसने दुनिया भर में सोचने पर मजबूर कर दिया।
डॉ. सिल्वर के अनुसार, इंसान पृथ्वी का नहीं बल्कि किसी और ग्रह का बाशिंदा है — एक ऐसी जगह का, जहां जीवन बेहद आरामदायक और लग्जरी था। इंसान को वहाँ से किसी गलती की सज़ा में पृथ्वी पर भेजा गया।

📘 कौन हैं डॉ. एलिस सिल्वर?

डॉ. सिल्वर एक अमेरिकी वैज्ञानिक और पर्यावरणविद (Ecologist) हैं, जो किसी धर्म को नहीं मानते और पूरी तरह वैज्ञानिक तथ्यों व विश्लेषणों पर विश्वास करते हैं। उन्होंने मानव जीवन के बारे में कई ऐसी बातें सामने रखी हैं जो चौंकाने वाली हैं — और कहीं न कहीं धार्मिक विचारों से मेल खाती भी दिखती हैं।


डॉ. एलिस सिल्वर का दावा 

🌿 इंसान की पहली मंज़िल — एक वीवीआईपी ग्रह

डॉ. एलिस सिल्वर का दावा है कि इंसान को सबसे पहले जिस जगह पर बनाया गया था और जहाँ वह शुरू में रहता था, वह जगह बहुत ही आरामदेह, शांत और रहने के लिए बिल्कुल सही थी — इतनी बेहतरीन कि उसे “वीवीआईपी जगह” कहा जा सकता है।

उनका कहना है कि इंसान बहुत नाज़ुक और आराम पसंद मख़लूक़ (जीव) है।इससे लगता है कि शुरू में इंसान को अपनी रोज़ी-रोटी के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती थी।वह कोई बहुत प्यारी और खास मख़लूक़ थी, जिसे ज़िंदगी की हर सुविधा मिली हुई थी।

वह जगह ऐसी थी जहाँ न ज़्यादा गर्मी थी, न सर्दी, बल्कि हमेशा बसंत जैसा मौसम रहता था।वहाँ सूरज की तेज़ धूप या हानिकारक किरणें (अल्ट्रावायलेट रेज़) नहीं थीं,जो इंसान को तकलीफ़ देती हैं और उसकी सहनशक्ति से बाहर होती हैं।



⚡ फिर क्या हुआ — इंसान से बड़ी भूल

लेकिन फिर इंसान से कोई बड़ी गलती या भूल हो गई।उस गलती की वजह से उसे उस आराम और सुकून भरी जगह से निकालकर पृथ्वी पर भेज दिया गया। और जिसने ऐसा किया, वह कोई बहुत ताक़तवर सत्ता (शक्ति) लगती है,जो सारे ग्रहों और तारों पर हुकूमत करती है —वही यह तय करती है कि किसे कहाँ भेजना है, सज़ा या इनाम के तौर पर।वह शक्ति मख़लूक़ को पैदा करने की भी पूरी क़ुदरत रखती है।


🌍 क्या पृथ्वी एक “कैदखाना” है?

डॉ. सिल्वर का कहना है कि शायद पृथ्वी एक तरह की “कैदखाना” (जेल) हो —एक ऐसी जगह जहाँ गलती करने वालों को सज़ा के तौर पर भेजा गया हो।क्योंकि पृथ्वी की बनावट भी कुछ वैसी ही है —चारों तरफ़ से समुद्रों से घिरी हुई, जैसे “काला पानी” की जेल होती थी।और इसी टुकड़े पर इंसान को रहने के लिए भेज दिया गया।


🧠 वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शोध

डॉ. एलिस सिल्वर एक जानी-मानी वैज्ञानिक और शोधकर्ता (scientist & researcher) हैं।
वह कोई कल्पना या कहानी नहीं गढ़तीं, बल्कि पर्यवेक्षण (observation) और वैज्ञानिक प्रमाणों (scientific evidence) के आधार पर बातें करती हैं।
उनकी किताब में इतने सारे ठोस प्रमाण दिए गए हैं कि उन्हें नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं है।उनके कई दावों की बुनियाद ऐसे ठोस बिंदुओं पर रखी गई है जिन्हें आधुनिक विज्ञान भी मान चुका है।



 डॉ. एलिस सिल्वर के प्रमुख तर्क — क्या इंसान वाक़ई इस धरती का नहीं?

डॉ. एलिस सिल्वर एक ऐसी वैज्ञानिक हैं जिन्होंने इंसान की शारीरिक बनावट, मानसिक प्रवृत्ति और पृथ्वी के वातावरण के बीच गहरा अध्ययन किया।उनके अनुसार इंसान शायद इस ग्रह (धरती) का नहीं, बल्कि किसी और ग्रह से आया हुआ जीव है।
आइए जानते हैं उनके प्रमुख तर्कों को विस्तार से 👇

1️⃣ गुरुत्वाकर्षण की समस्या

डॉ. सिल्वर का कहना है कि पृथ्वी का गुरुत्व बल उस ग्रह की तुलना में बहुत ज़्यादा है जहाँ से इंसान आया था। वहां का गुरुत्व बल बहुत कम थी ,जिसकी वजह से इंसान के लिए चलना फिरना ,बोझ उठाना बहुत आसान था। यही कारण है कि इंसान को अक्सर कमर दर्द, जोड़ों का दर्द और थकान जैसी परेशानियाँ होती हैं —क्योंकि उसका शरीर पृथ्वी के भारी गुरुत्व के अनुकूल नहीं है।


2️⃣ लगातार बीमारियाँ

पृथ्वी के अन्य जीवों में गंभीर और स्थायी बीमारियाँ नहीं होतीं, लेकिन इंसान शायद ही ऐसा कोई हो जिसे कोई बीमारी न हो।जैसे कि यह वातावरण उसके लिए पूरी तरह उपयुक्त नहीं है। यह दिखाता है कि इंसान इस वातावरण में फिट नहीं बैठता।


3️⃣ धूप में असहनीयता

इंसान सूर्य की धूप में ज्यादा देर नहीं रह सकता, जबकि जानवर घंटों धूप में रहते हैं और कोई बीमारी नहीं होती। इंसान की त्वचा सूर्य की किरणों से झुलस जाती है।उसकी त्वचा सूर्य की किरणों (UV rays) को सहन नहीं कर पाती।
यह भी एक संकेत है कि इंसान का शरीर किसी कम तीव्र प्रकाश वाले ग्रह के लिए बना था।


4️⃣ अजनबीपन और बेचैनी की भावना

डॉ. सिल्वर कहती हैं —
“हर इंसान कभी न कभी यह महसूस करता है कि वह इस दुनिया का नहीं है।”
बिना किसी कारण उदासी, अकेलापन या परायापन महसूस करना शायद इसी बात की निशानी है।


5️⃣ तापमान से असहजता

जानवरों का शरीर अपने आप मौसम के अनुसार एडजस्ट कर लेता है, लेकिन इंसान को जरा सी ठंड या गर्मी में बुखार या कमजोरी हो जाती है।इससे पता चलता है कि इंसान का शरीर मौसमी बदलावों के लिए तैयार नहीं है।


6️⃣ डीएनए में असमानता

इंसान का डीएनए और जेनेटिक ढांचा पृथ्वी पर मौजूद किसी भी जीव से मेल नहीं खाती। यह बहुत बड़ा वैज्ञानिक संकेत है कि इंसान की उत्पत्ति कहीं और से हुई है।


7️⃣ खाना पकाना और पाचन तंत्र

धरती के सभी जानवर कच्चा भोजन खाते हैं,लेकिन इंसान को खाना पकाकर खाना पड़ता है। यह बताता है कि उसका पाचन तंत्र इस ग्रह के भोजन के लिए स्वाभाविक रूप से तैयार नहीं है।


8️⃣ नींद और आराम की ज़रूरत

जानवर ज़मीन पर कहीं भी आराम से सो सकते हैं,जबकि इंसान को नरम गद्दे, आरामदायक माहौल और तापमान नियंत्रण चाहिए।
यह उसकी नाज़ुक प्रकृति और पुराने ग्रह के आरामदेह जीवन की याद का इशारा करता है।


9️⃣ विकासवाद (Evolution) पर सवाल

डॉ. सिल्वर कहती हैं कि इंसान का किसी बंदर से विकसित होना संभव नहीं दिखता,क्योंकि इंसान की चलने की शैली, हड्डियों की संरचना और बुद्धि —
सब पृथ्वी के जीवों से बिल्कुल अलग हैं।


🔟 नाज़ुक त्वचा और आराम की तलाश

इंसान की त्वचा सूरज की रोशनी में जल जाती है,जबकि जानवरों की त्वचा मजबूत होती है।साथ ही इंसान हमेशा आरामदायक और विलासी जीवन चाहता है —
जैसे वह पहले से ऐसी दुनिया में रह चुका हो जहाँ सब कुछ सहज और सुखद था।

1️⃣1️⃣ शांति, कला और सुंदरता की चाह

इंसान की स्वभाविक प्रवृत्ति शांति, सुंदरता, कला और प्रेम की ओर है।
वह लड़ाई और हिंसा से थक जाता है,
जैसे उसके भीतर की आत्मा किसी और शांत दुनिया की याद में बेचैन है।
डॉ. सिल्वर के अनुसार, जब इंसान पृथ्वी पर आया,
तो यहाँ के जानवरों और हालात को देखकर धीरे-धीरे उसने भी कठोरता और हिंसा सीख ली।


🌍 अंतिम बात — इंसान की कोशिश अपनी “पुरानी दुनिया” फिर से बनाने की

डॉ. एलिस सिल्वर का कहना है कि इंसान की अक़्ल, तकनीक और तरक़्क़ी
इसी बात का सबूत है कि वह अपनी ज़िंदगी को फिर से
उसी आरामदायक और खूबसूरत दुनिया जैसा बनाना चाहता है —
जहाँ से शायद वह आया था।


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 यह सब विज्ञान कह रहा है — और इस्लाम पहले से बता चुका है

डॉ. एलिस सिल्वर की बातें पहली नज़र में अजीब लग सकती हैं,लेकिन अगर गहराई से देखा जाए तो इस्लाम हज़ारों साल पहले ही वही बातें बता चुका है,जो आज विज्ञान अपने प्रयोगों से साबित करने की कोशिश कर रहा है।
इस्लामी मान्यता के अनुसार,अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अ.स. को जन्नत में पैदा किया,जहाँ का जीवन आराम, सुकून और नेमतों से भरा हुआ था।वहाँ न गर्मी थी, न सर्दी, न मेहनत की ज़रूरत —
हर चीज़ इंसान की ख़िदमत में थी।
लेकिन जब हज़रत आदम अ.स. से लग़ज़िश (खता) हो गई,तो अल्लाह तआला ने उन्हें धरती पर भेज दिया,जहाँ की ज़िंदगी इम्तिहान और मेहनत की ज़िंदगी है।

यानी धरती वह जगह है जहाँ इंसान को आज़माया जा रहा है —कौन अपने रब को पहचानता है, कौन उसके हुक्मों पर चलता है,और कौन अपने नफ़्स और ग़रूर में खो जाता है।


📖 क़ुरआन में अल्लाह फरमाता है:

وَقُلْنَا يَا آدَمُ اسْكُنْ أَنتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ
"और हमने कहा, ऐ आदम! तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो..."— सूरह अल-बक़रह 2:35
قُلْنَا اهْبِطُوا مِنْهَا جَمِيعًا
"फिर हमने कहा, तुम सब यहाँ से नीचे (धरती पर) उतर जाओ.., तुम एक-दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हें एक ख़ास वक़्त तक ज़मीन में ठहरना और वहीं गुज़र-बसर करना है।”."— सूरह अल-बक़रह 2:38

इन आयतों से साफ़ होता है कि इंसान की असली पैदाइश जन्नत में हुई,लेकिन धरती पर उसे एक इम्तिहान और एक मुद्दत तक के लिए भेजा गया।


🌍 दुनिया — एक परीक्षा की जगह

क़ुरआन कहता है:
الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا
"जिसने मौत और ज़िंदगी को इसलिए पैदा किया ताकि वो तुम्हें आज़माए कि तुम में कौन बेहतर अमल करता है।"— सूरह अल-मुल्क 67:2

यानी धरती वह जगह है जहाँ इंसान को आज़माया जा रहा है —कौन अपने रब को पहचानता है, कौन उसके हुक्मों पर चलता है,और कौन अपने नफ़्स और ग़रूर में खो जाता है।

🌟 हदीस में क्या कहा गया 

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“यह दुनिया मोमिन के लिए कैदखाना है और काफ़िर के लिए जन्नत।”— सहीह मुस्लिम, हदीस: 2956

इस हदीस से भी साफ़ होता है कि धरती एक इम्तिहान की जगह है,जहाँ सच्चे मोमिन अपने रब की रज़ा के लिए सब्र करते हैं,जबकि आख़िरत में उन्हें जन्नत का असली आराम मिलेगा।

🕌 विज्ञान और ईमान का संगम

अगर डॉ. सिल्वर का कहना है कि इंसान इस धरती पर “भेजा गया” है,
तो इस्लाम इसे अल्लाह की हिकमत और फैसला कहता है।कुरआन कहता है कि इंसान को भेजा गया ताकि वह अपने रब को पहचाने, उसकी इबादत करे और अपनी ज़िंदगी का मक़सद पूरा करे।

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ

“मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया।”
सूरह अज़-ज़ारियात 51:56


📉 क्या अब "विकासवाद" खत्म हो रहा है?

डॉ. सिल्वर जैसे वैज्ञानिकों की रिसर्च से "Darwin के Evolution" के सिद्धांत पर सवाल उठने लगे हैं।
अब वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं कि इंसान बंदर से नहीं आया, बल्कि कहीं और से आया है।


🔚 Conclussion:

इंसान पृथ्वी का निवासी नहीं लगता — न उसकी बॉडी फिट है, न उसका स्वभाव।विज्ञान अब उसी दिशा में बढ़ रहा है जो धर्म पहले से बता चुका है। यह दुनिया असली घर नहीं है — यह एक "टेस्ट सेंटर" है।
इस्लाम के मुताबिक़, इंसान की असली सरज़मीन जन्नत है,और धरती एक अस्थायी ठिकाना — एक परीक्षा का मैदान।विज्ञान आज जिस “अजनबीपन” या “असहजता” को समझने की कोशिश कर रहा है,
वह असल में इंसान की फितरी याद है —जन्नत की, अपने असली घर की।

और अंततः:
"विज्ञान अल्लाह की तरफ़ चल पड़ा है " – अब विज्ञान भी उस सच की तरफ बढ़ रहा है, जिसे पैग़म्बरﷺ हज़ारों साल पहले बता चुके हैं। यह लेख Kya insan Zameen ki Makhlooq Hai ? कैसा लगा अपनी राय comment box में ज़रूर दें। 


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FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1.Que: क्या इंसान वास्तव में पृथ्वी का निवासी नहीं है?
Ans: डॉ. एलिस सिल्वर के अनुसार, इंसान को किसी और ग्रह पर बनाया गया था और गलती के कारण उसे पृथ्वी पर भेजा गया, जो संभवतः एक सज़ा स्थल है।

Que: डॉ. एलिस सिल्वर कौन हैं?
Ans: डॉ. एलिस सिल्वर एक प्रसिद्ध अमेरिकी एकोलॉजिस्ट (पर्यावरण वैज्ञानिक) हैं, जिन्होंने अपनी किताब “Humans are not from Earth” में यह विवादित दावा किया है।

Que: इंसान के पृथ्वी पर एलियन होने के क्या प्रमाण हैं?
Ans: उनकी पीठ दर्द, सूरज की किरणों से नुकसान, मौसम में जल्दी बीमार होना, दो पैरों पर चलना और दूसरों से भिन्न DNA जैसी बातें यह संकेत देती हैं कि इंसान पृथ्वी का मूल निवासी नहीं हो सकता।

Que: क्या यह बात इस्लाम के दृष्टिकोण से मेल खाती है?
Ans: हाँ, इस्लाम में आदम (अ.स.) और हज़रत हव्वा (अ.स.) को जन्नत से पृथ्वी पर भेजा जाना बताया गया है, जो इस सिद्धांत से मेल खाती है कि इंसान को पृथ्वी पर दंडस्वरूप भेजा गया।

Que: क्या विज्ञान धीरे-धीरे धर्म के सिद्धांतों की ओर बढ़ रहा है?
Ans: जी हाँ, जैसे-जैसे वैज्ञानिक खोजें आगे बढ़ रही हैं, कई सिद्धांत धर्मों की सच्चाई की ओर संकेत कर रहे हैं, जिसे पहले केवल आस्था माना जाता था।




انسان اپنی زندگی کو اپنے پرانے سیارے کی طرح لگژری بنانے کے لئے بھرپور کوشش کر رہا ہے، کبھی گاڑیاں ایجاد کرتا ہے، کبھی موبائل فون اگر اسے آئے ہوئے چند لاکھ سال بھی گزرے ہوتے تو یہ جو آج ایجادات نظر آ رہی ہیں یہ ہزاروں سال پہلے وجود میں آ چکی ہوتیں، کیونکہ میں اور تم اتنے گئے گزرے نہیں کہ لاکھوں سال تک جانوروں کی طرح بیچارگی اور ترس کی زندگی گزارتے رہتے

کیا انسان زمین کی مخلوق ہے؟ | ڈاکٹر ایلس سلور کی تحقیق، قرآن و حدیث اور سائنسی دلائل کے ساتھ مکمل جائزہ

(ایک چونکا دینے والی مگر غور طلب حقیقت)|🧬 انسان زمینی مخلوق نہیں ہے
Humans are not from Earth kitab ka khulasa Roman Urdu
Deen aur Science dono ek hi sach ki taraf  


انسان کی تخلیق، اس کی ابتدا اور اس کی اصل منزل, اس کی اصل حیثیت اور اس کا حقیقی گھر کیا ہے؟ اس کے بارے میں ہمیشہ سوالات اٹھتے رہے ہیں۔یہ سوال ہمیشہ سے انسانیت کے ذہن میں گردش کرتا رہا ہے۔ آج بھی بہت سے لوگوں کے ذہن میں یہ سوال گونجتا ہے کہ "Kya Insan Zameen Ki Makhlooq Hai "
یہ سوال اس وقت پوری دنیا میں بحث کا موضوع بن گیا جب امریکہ کی مشہور ماہر ماحولیات ڈاکٹر ایلس سلور (Dr. Ellis Silver) نے اپنی کتاب "Humans Are Not From Earth" میں انسان کی تخلیق کے بارے میں ایک نیا اور چونکا دینے والا نظریہ پیش کیا۔ 
زمانے بھر میں انسان کی پیدائش اور اس کی اصل جگہ کے بارے میں کئی نظریات پیش کیے گئے ہیں،
لیکن ڈاکٹر اَیلس سلور کا دعویٰ ایسا تھا جس نے پوری دنیا کو سوچنے پر مجبور کر دیا۔Kya insan Zameen ki Makhlooq Hai 



 ڈاکٹر اَیلس سلور کون ہیں؟

ڈاکٹر اَیلس سلور ایک معروف ماہرِ ماحولیات American Ecologist ہیں۔ وہ کسی مذہب کو نہیں مانتیں، صرف سائنسی مشاہدات، تجزیوں اور شواہد پر یقین رکھتی ہیں۔انہوں نے انسانی جسم، اس کی کمزوریوں اور زمین کے ماحول کے ساتھ انسان کی ناہمواری پر بہت تحقیق کی ہے۔

ان کی تحقیق کا مقصد یہ جاننا ہے کہ کیا انسان واقعی زمین کے لیے قدرتی طور پر ڈیزائن ہوا ہے؟ یا کہیں ایسا تو نہیں کہ انسان کی اصل کسی اور سیارے سے جڑی ہوئی ہے؟ ان کے کئی دلائل نہ صرف حیران کن ہیں، بلکہ کئی جگہوں پر مذہبی نظریات سے حیرت انگیز طور پر ملتے بھی ہیں۔

🌍 کیا انسان کسی اور سیارے کا باشندہ تھا؟

ڈاکٹر سلور کے مطابق انسان کی جسمانی بناوٹ اور زمین کے ماحول کے ساتھ عدم مطابقت ثابت کرتی ہے کہ:“انسان زمین کی مخلوق نہیں تھا، اسے یہاں لایا گیا ہے۔وہ کسی اور سیارے سے آیا ہوا "مہمان" ہے!
وہ کہتی ہیں کہ:
انسان بہت نازک مخلوق ہے۔ زمین کے سخت ماحول کو برداشت کرنا اس کے لیے مشکل ہے۔ سورج کی روشنی انسان کے لیے نقصان دہ ہے۔ کئی بیماریاں انسان کے ڈی این اے میں غیر فطری طور پر پائی جاتی ہیں۔ انسان میں قدرتی دفاع (natural defense) کم ہے۔ کمر درد، تھکن، ذہنی دباؤ— سب بتاتے ہیں کہ انسان زمین کے لیے قدرتی نہیں۔ یہ دلائل انسان کے "غیر زمینی" ہونے کی طرف اشارہ کرتے ہیں۔

یہ بات ایک مذہبی عالم نہیں بلکہ ایک سائنٹسٹ نے کہی، جس کا کہنا ہے کہ“انسان کو ایک انتہائی آرام دہ اور پرسکون ماحول میں تخلیق کیا گیا تھا،جہاں نہ سردی تھی نہ گرمی، اور وہاں کا موسم ہمیشہ بہار کی مانند معتدل رہتا تھا۔وہاں سورج کی تیز روشنی اور نقصان دہ شعاعیں نہیں تھیں۔لیکن ایک بڑی غلطی کے بعد انسان کو وہاں سے نکال کر زمین پر بھیج دیا گیا۔”


 انسان کی پہلی منزل — ایک VVIP مقام

ڈاکٹر سلور کہتی ہیں کہ انسان کو سب سے پہلے ایک ایسی جگہ پر پیدا کیا گیا تھا:
جہاں ہمیشہ بہار جیسا موسم تھا
وہاں نہ گرمی تھی نہ سردی
نہ زہریلے کیڑے تھے
نہ سورج کی خطرناک UV شعاعیں
زندگی مکمل آرام اور سکون سے بھرپور تھی
رزق بغیر محنت کے میسر تھا
انسان ایک خاص اور نرم مزاج مخلوق کے طور پر رہتا تھا
یعنی انسان کا پہلا گھر ایک VVIP جنت نما سیارہ تھا۔
اب آئیے تھوڑی وضاحت کے ساتھ سمجھتے ہیں ڈاکٹر سلور کے سائنسی دلائل کی روشنی میں 


 ڈاکٹر سِلور کے 11 سائنسی دلائل

1️⃣ کششِ ثقل (Gravity) کا فرق

زمین کی کش ثقل اور جہاں سے انسان آیا ہے اس جگہ کی کشش ثقل میں بہت زیادہ فرق ہے۔ جس سیارے سے انسان آیا ہے وہاں کی کشش ثقل زمین سے بہت کم تھی، جس کی وجہ سے انسان کے لئے چلنا پھرنا بوجھ اٹھا وغیرہ بہت آسان تھا۔ انسانوں کے اندر کمر درد کی شکایت زیادہ گریوٹی کی وجہ سے ہے۔

2️⃣ مستقل بیماریاں

انسان میں جتنے دائمی امراض پائے جاتے ہیں وہ باقی کسی ایک بھی مخلوق میں نہیں جو زمین پر بس رہی ہے۔
ڈاکٹر ایلیس لکھتا ہے کہ آپ اس روئے زمین پر ایک بھی ایسا انسان دکھا دیجئیے جسے کوئی ایک بھی بیماری نہ ہو تو میں اپنے دعوے سے دستبردار ہوسکتا ہوں جبکہ میں آپ کو ہر جانور کے بارے میں بتا سکتا ہوں کہ وہ وقتی اور عارضی بیماریوں کو چھوڑ کر کسی ایک بھی مرض میں ایک بھی جانور گرفتار نہیں ہے۔

3️⃣ دھوپ میں کمزوری

ایک بھی انسان زیادہ دیر تک دھوپ میں بیٹھنا برداشت نہیں کر سکتا بلکہ کچھ ہی دیر بعد اس کو چکر آنے لگتے ہیں اور سن سٹروک کا شکار ہوسکتا ہے۔
جبکہ جانوروں میں ایسا کوئی ایشو نہیں ھے مہینوں دھوپ میں رھنے کے باوجود جانور نہ تو کسی جلدی بیماری کا شکار ہوتے ہیں اور نہ ہی کسی اور طرح کے مر ض میں مبتلا ہوتے ہیں جس کا تعلق سورج کی تیز شعاعوں یا دھوپ سے ہو۔

4️⃣ اجنبیت کا احساس

 ہر انسان کبھی نہ کبھی یہ محسوس کرتا ہے کہ وہ یہاں کا نہیں ہے۔ یہ ایک "پردیسی احساس" ہے جو زمین پر اجنبیت کو ظاہر کرتا ہے۔

5️⃣ جسمانی درجہ حرارت کی کمزوری

زمین پر رہنے والی تمام مخلوقات کا ٹمپریچر آٹومیٹک طریقے سے ہر سیکنڈ بعد ریگولیٹ ہوتا رہتا ہے یعنی اگر سخت اور تیز دھوپ ھے تو ان کے جسم کا درجہ حرارت خود کار طریقے سے ریگولیٹ ہو جائے گا،
جبکہ اسی وقت اگر بادل آ جاتے ہیں تو ان کے جسم کا ٹمپریچر سائے کے مطابق ہو جائے گا جبکہ انسان کا ایسا کوئی سسٹم نہیں بلکہ انسان بدلتے موسم اور ماحول کے ساتھ بیمار ھونے لگ جائے گا۔ موسمی بخار کا لفظ صرف انسانوں میں ھے۔

6️⃣ ڈی این اے میں فرق

 انسان کا DNA زمین پر کسی بھی جاندار سے میل نہیں کھاتا،یہ ایک بڑا سائنسی ثبوت ہے کہ انسان کی اصل "پیدائش" کہیں اور ہوئی۔

7️⃣ کھانا پکا کر کھانے کی عادت

زمین کے اصل رہائشی (جانوروں) کو اپنی غذا حاصل کرنا اور اسے کھانا مشکل نہیں، وہ ہر غذا ڈائریکٹ کھاتے ہیں، جبکہ انسان کو اپنی غذا کے چند لقمے حاصل کرنے کے لیے ہزاروں جتن کرنا پڑتے ہیں، پہلے چیزوں کو پکا کر نرم کرنا پڑتا ھے پھر اس کے معدہ اور جسم کے مطابق وہ غذا استعمال کے قابل ھوتی ھے، اس سے بھی ظاہر ھوتا ھے کہ انسان زمین کا رہنے والا نہیں ھے۔
جب یہ اپنے اصل سیارے پر تھا تو وہاں اسے کھانا پکانے کا جھنجٹ نہیں اٹھانا پڑتا تھا بلکہ ہر چیز کو ڈائریکٹ غذا کیلیئے استعمال کرتا تھا۔
مزید یہ اکیلا دو پاؤں پر چلنے والا ھے جو اس کے یہاں پر ایلین ھونے کی نشانی ھے۔

8️⃣ نرم بستر کی ضرورت

انسان کو گدے دار بستر کے بغیر نیند نہیں آتی،جبکہ جانور زمین پر کہیں بھی سکون سے سو جاتے ہیں۔
انسان کو زمین پر رہنے کیلیے بہت نرم و گداز بستر کی ضرورت ھوتی ھے جبکہ زمین کے اصل باسیوں یعنی جانوروں کو اس طرح نرم بستر کی ضرورت نہیں ھوتی۔ یہ اس چیز کی علامت ھے کہ انسان کے اصل سیارے پر سونے اور آرام کرنے کی جگہ انتہائی نرم و نازک تھی جو اس کے جسم کی نازکی کے مطابق تھی۔

9️⃣ ارتقاء (Evolution) کی تردید

انسان زمین کے سب باسیوں سے بالکل الگ ھے لہذا یہ یہاں پر کسی بھی جانور (بندر یا چمپینزی وغیرہ) کی ارتقائی شکل نہیں ھے۔  انسان کا کسی بندر یا حیوان سے ارتقاء ہونا ممکن نہیں،کیونکہ وہ ساختی اور ذہنی لحاظ سے مکمل مختلف ہے۔ 

🔟 نازک جلد اور آرام پسندی

انسان کو جس اصل سیارے پر تخلیق کیا گیا تھا وہاں زمین جیسا گندا ماحول نہیں تھا، اس کی نرم و نازک جلد جو زمین کے سورج کی دھوپ میں جھلس کر سیاہ ہوجاتی ہے اس کے پیدائشی سیارے کے مطابق بالکل مناسب بنائی گئی تھی ۔ یہ اتنا نازک مزاج تھا کہ زمین پر آنے کے بعد بھی اپنی نازک مزاجی کے مطابق ماحول پیدا کرنے کی کوششوں میں رھتا ھے۔ جس طرح اسے اپنے سیارے پر آرام دہ اور پرتعیش بستر پر سونے کی عادت تھی وہ زمین پر آنے کے بعد بھی اسی کے لئے اب بھی کوشش کرتا ھے کہ زیادہ سے زیادہ آرام دہ زندگی گزار سکوں۔
جیسے خوبصورت قیمتی اور مضبوط محلات مکانات اسے وہاں اس کے ماں باپ کو میسر تھے وہ اب بھی انہی جیسے بنانے کی کوشش کرتا ہے۔ جبکہ باقی سب جانور اور مخلوقات اس سے بے نیاز ہیں۔

1️⃣1️⃣ حسن و سکون کی فطرت 

یہاں زمین کی مخلوقات عقل سے عاری اور تھرڈ کلاس زندگی کی عادی ہیں جن کو نہ اچھا سوچنے کی توفیق ہے نہ اچھا رہنے کی اور نہ ہی امن سکون سے رھنے کی۔ انسان ان مخلوقات کو دیکھ دیکھ کر خونخوار ہوگیا۔ جبکہ اس کی اصلیت محبت فنون لطیفہ اور امن و سکون کی زندگی تھی۔

 پھر کیا ہوا؟ — انسان سے ایک بڑی غلطی

ڈاکٹر سلور کے مطابق:
انسان سے کوئی بڑی غلطی ہو گئی تھی۔
اسی غلطی کی سزا کے طور پر اسے اس آرام دہ مقام سے نکال کر زمین پر بھیج دیا گیا —
جو نسبتاً سخت، خطرناک اور کم آرام دہ جگہ ہے۔

اور جس ہستی نے انسان کو یہاں بھیجا، وہ:

بہت طاقتور
کائنات پر مکمل اختیار رکھنے والی
مخلوقات کی خالق
سزا و جزا کے فیصلے کرنے والی
ایک عظیم قوت ہے۔

یہ نظریہ انسان کو "بھیجے جانے" کے تصور کو مضبوط کرتا ہے۔

🌍 کیا زمین ایک قیدخانہ ہے؟

ڈاکٹر سلور کا کہنا ہے:
"زمین شاید ایک قیدخانہ (prison planet) ہو۔"کیوں؟
یہ چاروں طرف سے سمندر سے گھری ہوئی ہے
یہاں زندگی مشکلات، بیماریوں، محنت اور آزمائشوں سے بھرپور ہے
ہر چیز کے لیے محنت کرنی پڑتی ہے
انسان مسلسل جدوجہد میں رہتا ہے
یہ وہ جگہ نہیں لگتی جہاں ایک VVIP مخلوق رہتی ہو

یہ بالکل اس طرح ہے جیسے قدیم زمانے کی “کالا پانی” کی سزا —جہاں قیدیوں کو سزا کے لئے دور بھیجا جاتا تھا۔

 قرآن کا نظریہ — زمین آزمائش کی جگہ ہے

حقیقت یہ ہے کہ یہ بات آج انسان اپنی تحقیق کے ذریعہ بتا رہا ہے اور اسلام نے ہزاروں سال پہلے ہی بتا چکا ہے کہ انسان کو زمین پر بھیجا گیا ہے — آزمائش کے لیے۔ آئیے دلیل دیکھیں۔
اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:
جس نے موت اور زندگی کو اس لئے پیدا کیا کہ تمہیں آزمائے کہ تم میں کون بہتر عمل کرتا ہے۔"
— سورۃ الملک 67:2
یعنی:
زمین انسان کا اصل گھر نہیں
یہ ایک آزمائشی میدان ہے
یہاں دیکھا جاتا ہے کون اپنے رب کو پہچانتا ہے
کون نافرمانی میں گم ہو جاتا ہے
اور کون صبر و تقویٰ کے ساتھ رہتا ہے
یہ بات ڈاکٹر سلور کے نظریے سے حیرت انگیز طور پر ملتی ہے۔

 رسول اللہ ﷺ نے دنیا کی حقیقت کیا بتائی

نبی کریم ﷺ نے فرمایا:
"دنیا مومن کے لئے قید خانہ ہے اور کافر کے لئے جنت۔"— صحیح مسلم، حدیث 2956
یعنی:
مومن کے لیے دنیا مشکلات، صبر اور آزمائش کی جگہ
کافر کے لیے دنیا عارضی جنت
اصل جنت آخرت میں ملے گی
دنیا مستقل گھر نہیں
یہ بھی واضح کرتا ہے کہ زمین واقعی ایک امتحان گاہ ہے، نہ کہ اصل جگہ۔


🕋 یہ سب سائنس نہیں — اسلام پہلے سے بتا چکا ہے!

جب ہم ڈاکٹر سِلور کی باتیں پڑھتے ہیں،تو ہمیں فوراً قرآنِ کریم کی تعلیمات یاد آتی ہیں۔اسلام نے ہزاروں سال پہلے وہ حقیقت بتا دی تھی جو آج سائنس دان حیرت سے دریافت کر رہے ہیں۔

قرآن کہتا ہے:
اور ہم نے آدمؑ کو جنت میں بسایا، مگر جب اس نے حکم عدولی کی تو ہم نے کہا:
اب تم زمین پر اتر جاؤ — یہ تمہارے لیے امتحان کی جگہ ہے۔”(سورۃ البقرہ: 36)


اور دوسری جگہ فرمایا:
یہ دنیا تمہارے لیے آزمائش کی جگہ ہے،اور آخرت میں تمہیں تمہارے اعمال کا بدلہ دیا جائے گا۔”(الملک: 2)


🕌 سائنس اور ایمان — حیران کن ملاپ

اگر ڈاکٹر سلور کہتی ہیں کہ: انسان کہیں اور سے آیا ہے۔  اسے زمین پر بھیجا گیا ہے یہ جگہ آزمائش یا سزا لگتی ہے
تو اسلام کہتا ہے:
انسان کو اللہ نے پیدا کیا اسے جنت میں بسایا غلطی کے بعد زمین پر بھیجا تاکہ وہ آزمائش اور امتحان سے گزر کر پھر اپنی اصلی جگہ واپس پہنچے  
قرآن کہتا ہے:
میں نے جنّ اور انسان کو صرف اپنی عبادت کے لئے پیدا کیا۔"— سورۃ الذاریات 51:56
یعنی انسان کا اصل مقصد:
اپنے رب کو پہچاننا
اس کی عبادت کرنا
اور امتحان میں کامیاب ہونا ہے


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🌟 نتیجہ (Conclusion):

آج سائنس، جو کبھی مذہب کا انکار کرتی تھی،اب خود اس مقام پر پہنچ چکی ہے جہاں وہ ماننے پر مجبور ہے کہ —"یہ دنیا انسان کا اصل گھر نہیں، بلکہ ایک عارضی قید خانہ ہے۔"
اسلام کہتا ہے:"یہ زندگی محض ایک امتحان ہے، اصل زندگی آخرت میں ہے۔"(سورۃ العنکبوت: 64)

ڈاکٹر ایلس سِلور کے دلائل یہ ثابت کرتے ہیں کہ سائنس اب اس حقیقت کے قریب آ رہی ہے جسے قرآن و سنت نے صدیوں پہلے بیان کر دیا تھا۔اسلام کے مطابق انسان کی اصل جائے پیدائش "جنت" ہے —ایک ایسی جگہ جو پرسکون، حسین، اور تکلیف سے پاک تھی۔لیکن خطا کے بعد اسے زمین پر امتحان کے لیے بھیج دیا گیا۔

اگر ہم سائنسی دلائل، ڈاکٹر سلور کی تحقیق، اور قرآن و حدیث کا موازنہ کریں تو نتیجہ یہی نکلتا ہے:
✔ انسان کی اصل جگہ کوئی اور تھی
✔ زمین اس کی مستقل منزل نہیں
✔ یہاں اسے ایک خاص مقصد کے لیے بھیجا گیا
✔ یہ جگہ آزمائش کی گزرگاہ ہے
✔ اصل جنت — انسان کی حقیقی منزل — آزمائش کے بعد ملے گی

یہ بات انسان کے فطری احساس سے بھی ملتی ہے کہ ہم یہاں مسافر ہیں — اور ہمارا اصل گھر کہیں اور ہے۔

FAQs:

1. سوال: کیا واقعی انسان اِس زمین کا رہنے والا نہیں ہے؟

جواب:
ڈاکٹر ایلِس سلور کے مطابق انسان کسی اور سیارے پر بنایا گیا تھا، اور ایک غلطی یا سزا کے نتیجے میں اسے زمین پر بھیج دیا گیا، جو شاید آزمائش کی جگہ ہے۔


2. سوال: ڈاکٹر ایلِس سلور کون ہیں؟

جواب:
ڈاکٹر ایلِس سلور ایک مشہور امریکی ماہر ماحولیات (Ecologist) ہیں۔ اپنی کتاب "Humans are not from Earth" میں انہوں نے یہ چونکا دینے والا دعویٰ کیا کہ انسان زمین کا اصل باشندہ نہیں ہے۔


3. سوال: ڈاکٹر سلور کے پاس کیا ثبوت ہیں کہ انسان زمین کا باسی نہیں؟

جواب:
ان کے مطابق چند چیزیں یہ بتاتی ہیں کہ انسان زمین کے لیے "قدرتی" مخلوق نہیں:

کمر کا درد ہونا
سورج کی دھوپ سے جلد جل جانا
موسم بدلتے ہی جلد بیمار ہو جانا
دو پیروں پر چلنا
اور انسان کا منفرد DNA
یہ سب اشارہ دیتے ہیں کہ انسان کی اصل کسی اور جگہ ہو سکتی ہے۔

4. سوال: کیا یہ نظریہ اسلام کی تعلیم سے ملتا ہے؟

جواب:
جی ہاں، اسلام میں بیان ہے کہ حضرت آدمؑ اور اماں حوّاؑ کو جنت سے زمین پر بھیجا گیا۔ یعنی انسان کی اصل جنت ہے اور زمین آزمائش کی جگہ۔ یہ بات ڈاکٹر سلور کے دعوے سے کئی لحاظ سے ملتی جلتی ہے۔


5. سوال: کیا سائنس آہستہ آہستہ مذہب کے نظریات کے قریب آ رہی ہے؟

جواب:
جی ہاں، آج بہت سے سائنسی نظریات اور تحقیقات ایسے نتائج دکھا رہی ہیں جو پہلے صرف مذہب میں بیان کیے گئے تھے۔ وقت کے ساتھ سائنس انہی سچائیوں کی طرف بڑھتی دکھائی دیتی ہے جنہیں پہلے صرف ایمان کی بات سمجھا جاتا تھا۔


6. سوال: کیا زمین واقعی سزا کی جگہ ہو سکتی ہے؟

جواب:

ڈاکٹر سلور کے مطابق ایسا ممکن ہے — جبکہ مذہب بھی یہی کہتا ہے کہ دنیا آزمائش کی جگہ ہے۔

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