Allah ne insaan ko kyun paida kiya?

यह दुनिया इम्तिहान की जगह है, हर एक को इस इम्तिहान से हो कर गुजरना है !इंसान की ज़िन्दगी का असल मकसद अल्लाह की मर्जी के मुताबिक जिंदगी गुजारना है"

 Allah ne insaan ko kyun paida kiya/ अल्लाह ने इंसान को क्यूं पैदा किया?

✍️ लेखक: Mohib Tahiri | 🕋 islamic article|insaan ki paidaishAazmaish aur imtahan  🕰 अपडेटेड:26 Sep 2025

Duniya insaan ke liye imtihan ka maidan hai, har ek amal ka hisaab hai
Insaan duniya mein Allah ke imtihan aur ibadat ke liye paida hua hai.


 Allah ne insaan ko kyun paida kiya इस बात से इंसानों की अक्सरियत गाफिल है उन को पता ही नही है की हम दुनिया में किस मकसद के लिए और किस लिए आए हैं! हम अपनी दुनियावी जिंदगी और दुनिया बनाने में इस तरह मसरूफ हैं जैसे की हमे मरना ही नही है और न ही आखिरत में कोई हिसाब देना है! हम ये बिलकुल भूल बैठे हैं की हम इस दुनिया में एक आजमाईश, इम्तिहान के लिए आए हैं ! यह दुनिया इम्तिहान की जगह है, हर एक को इस इम्तिहान से हो कर गुजरना है !
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     Allah ne insaan ko kyun paida kiya आइए कुरआन और हदीस की रोशनी में देखें की इसके मुतल्लिक अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का क्या फ़रमान है !

    Allah ne kaayenat aur insaan ko kyun banaya video


    अल्लाह तआला ने इंसान को एक खास मकसद के साथ पैदा किया है, जिसे समझना और अमल करना हर इंसान और मुसलमान की जिम्मेदारी है। कुरआन और हदीस में  इंसान की पैदाइश और उसकी ज़िंदगी के ख़ास मकसद के बारे में विस्तार से बताया गया है।


    अल्लाह ने हर चीज को हिकमत (समझ-बूझ और मक़सद) के साथ पैदा किया

    Allah ki hidayat aur rehnumai se insaan ko sahi aur ghalat ka farq maloom hota hai
    Allah ne har cheez hikmat ke Saath paida kiya

    अल्लाह ने कभी कोई चीज़ बेकार नहीं बनाई !अल्लाह की सबसे बड़ी खूबियों में से एक हिकमत है और उसका सबसे बड़ा नाम अल-हकीम (सबसे ज़्यादा हिकमत वाला) है यानी कोई भी काम बिलकुल perfect तरीके से अंजाम देना की फिर उसमे किसी कमी बेसी की गुंजाइश न रहे !

    अल्लाह ने हर चीज को हिकमत (समझ-बूझ और मक़सद) के साथ पैदा किया है। कुरआन में अल्लाह कई जगहों पर यह फरमाता है कि उसने इस दुनिया और उसमें मौजूद हर चीज़ को एक मक़सद और हिकमत के साथ बनाया है। मिसाल के तौर पर, कुरआन में अल्लाह कहता है:

    "और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ उनके बीच में है, खेल के तौर पर नहीं बनाया। हमने उन्हें बस हक़ (सच्चाई) के साथ पैदा किया है, लेकिन इन में से अधिकतर लोग (इस हकीकत को) नहीं जानते।"(सूरह अद्-दुख़ान :38-39)

    यह आयत यह दर्शाती है कि हर चीज़ का एक मकसद और उद्देश्य है। अल्लाह ने इंसान को भी एक विशेष मकसद के साथ पैदा किया है, ताकि वह उसकी इबादत करे, उसके बनाए हुए कायदे-कानून माने, और इस दुनिया में दी गई जिम्मेदारियों को पूरा करे।
    इसलिए, इस्लाम में हर चीज़ में अल्लाह की हिकमत और गहरी योजना है, चाहे वह इंसान की समझ में आए या न आए।

    यह बात ध्यान देने लायक है कि उसने कोई भी चीज़ बेकार नहीं बनाई है, अल्लाह ऐसी किसी भी चीज़ से कहीं ज़्यादा अज़ीम है। बल्कि वह चीज़ों को बेहतरीन और हिकमत वाले मकसदों के लिए बनाता है! अल्लाह ने अपनी किताब में इस बात का बयान किया है, जहाँ उसने कहा है कि उसने इंसानों को बेकार नहीं बनाया है और उसने आसमानों और ज़मीन को बेकार नहीं बनाया है । अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है :

    • क्या तुमने ये समझ रखा था कि हमने तुम्हें बेकार ही पैदा किया है और तुम्हें हमारी तरफ़ कभी पलटना ही नहीं है? अल्लाह, हक़ीक़ी बादशाह, कोई ख़ुदा उसके सिवा नहीं, मालिक है बुज़ुर्ग अर्श का।”(अल-मुमिनून : 115, 116)
    • हमने आसमानों और ज़मीन को और जो कुछ उनके बीच है उसे खेल के लिए नहीं बनाया” 
    • [अल-अंबिया:16]
    • "और हमने बहुत से जिन्नों और मनुष्यों को जहन्नम के लिए पैदा किया है। उनके पास दिल हैं जिनसे वे समझ नहीं पाते, और उनके पास आँखें हैं जिनसे वे देख नहीं पाते, और उनके पास कान हैं जिनसे वे सुन नहीं पाते। वे तो मवेशियों के समान हैं, बल्कि उनसे भी अधिक भटके हुए हैं। वे लोग बड़े गाफिल हैं।" [अल-आराफ 7:179] 

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    अल्लाह इंसान को इम्तेहान में डालता है ताकि उसकी ईमानदारी और सब्र का इम्तेहान लिया जा सके। यह मुश्किलें इंसान की परख करने और उसे अल्लाह के करीब लाने का जरिया होती हैं।

     इबादत के लिए इंसान की तख़लीक़ (पैदाइश)

    Allah ki ibadat aur Allah ki raza hasil karna duniya aur aakhirat ke liye
    Har insaan ki zindagi ka asli maqsad Allah ki raza aur ibadat hai.


    अल्लाह ने इंसान को जिस सबसे बड़ी वजह से पैदा किया है - जो कि सबसे बड़ी परीक्षा है - वह है उसकी एकता ( तौहीद ) की पुष्टि करना और किसी को साझीदार या सहयोगी न बनाकर सिर्फ़ उसी की इबादत करना। अल्लाह ने इंसान को पैदा करने की यह वजह बताई है, जैसा कि वह कहता है : 

    और मैंने जिन्न और मनुष्य को इसलिए पैदा किया कि वे मेरी ही इबादत करें।” [अल-ज़रियात 51:56]

    इब्न कथिर (अल्लाह उन पर रहम करे) ने कहा: 

       अल्लाह फरमाता है कि मैंने उन्हें इसलिए बनाया है कि मैं उन्हें अपनी इबादत करने का आदेश दूँ, इसलिए नहीं कि मुझे उनकी कोई ज़रूरत है।" अली इब्न अबी तलहा ने इब्न अब्बास से रिवायत करते हुए कहा: "सिवाय इसके कि वे स्वेच्छा से या अनिच्छा से मेरी (अकेली) इबादत करें।" यह इब्न जरीर का नज़रिया है। इब्न जुरैज ने कहा: यानी, सिवाय इसके कि वे मुझे जानें। अल-रबी इब्न अनस ने कहा: "सिवाय इसके कि वे मेरी इबादत करें", यानी इबादत के उद्देश्य से।" (तफ़सीर इब्न कथिर, 4/239)

    शेख अब्दुल रहमान अल-सादी (अल्लाह उन पर रहम करे) ने कहा: 

    अल्लाह ने इंसान को उसकी इबादत करने और उसके नामों और सिफातों से उसे जानने और उन्हें इसका आदेश देने के लिए बनाया। जो कोई भी उसके अधीन हो जाता है और जो उसे आदेश दिया जाता है वह करता है, वह सफल लोगों में से एक होगा, लेकिन जो कोई भी इससे दूर हो जाता है, वे घाटे में हैं। वह उन्हें आख़िरत में इकट्ठा करेगा, जहाँ वह उन्हें उस चीज़ के लिए ईनाम देगा या अज़ाब देगा जिसका उसने आदेश दिया था और उन्हें करने से मना किया था। इसलिए अल्लाह उल्लेख करता है कि कैसे मुशरिकिन (बहुदेववादियों) ने पुरस्कार या दंड से इनकार किया, जैसा कि वह कहता है
    अल्लाह ने जिन्न और इंसान को सिर्फ़ और सिर्फ़ उसकी इबादत करने के लिए पैदा किया।
    "मैंने जिन्नात और इंसानों को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।"(सूरह अज़-ज़ारियात 51:56)

    इस आयत से साफ़ होता है कि इंसान की पैदाइश का सबसे बड़ा मकसद अल्लाह की इबादत करना है। इबादत का मतलब सिर्फ नमाज़, रोज़ा या हज तक महदूद नहीं है, बल्कि इंसान की पूरी जिंदगी अल्लाह के हुक्मों के मुताबिक़ गुजारना भी इबादत है! यानी सीधी बात कही जाए तो सिर्फ़ अल्लाह को ही मानना नही है बल्कि अल्लाह की भी माननी है !

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    और याद रहे, अल्लाह की इबादत सिर्फ़ और सिर्फ़ मुहम्मदुर रसूलुल्लाह ﷺ के बताए हुए तरीक़े के मुताबिक़ की जाएगी। अल्लाह की इबादत करने में इंसान अपनी मन-मानी नहीं कर सकता। वो शरीयत का पाबंद है चाहे इबादत फर्ज़ दर्जे की हो या नफ़िल दर्जे की हो।

    इसिलिए अल्लाह और उसके रसूल ﷺ  ने सिर्फ़ अल्लाह की "इबादत" करने का और "शिर्क" से बचने का हुक्म दिया है...
    अल्लाह ने हुक्म दिया : "सिर्फ़ अल्लाह की इबादत करो और उसके सिवा तमाम ताग़ूत (माबूदो) से बचो"।
    (सुरह 16 नहल : आयत 36)

    और अल्लाह ताला फरमाता है :
    ऐ ईमान लानेवालो ! तुम पूरे-के-पूरे इस्लाम में आ जाओ और शैतान की पैरवी न करो कि वो तुम्हारा खुला दुश्मन है। (सुरह अल बकरह:208)

    Note: यहां ताग़ूत से मुराद अल्लाह के अलावा हर वो हस्ती जो इंसान से अपनी इबादत करवाती है यानी इंसान को अपनी इबादत करने के लिए कहता है या बुलाती है। यह सब शैतानी रास्ता है इन रास्तों को छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ अल्लाह और अल्लाह के रसूल के बताए रास्ते को अपनाओ ! और इसी में कामयाबी है!

    अल्लाह का हक बंदो पर 

    Allah ki hidayat aur rehnumai se insaan ko sahi aur ghalat ka farq maloom hota hai
    Akhirat ki tayyari aur dunya mein nek amal insaan ka asli farz hai.


    रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : "अल्लाह का हक बंदो पर ये है के सिर्फ़ उसी की इबादत करे, किसी को उसका शरीक ना करे और बंदो का हक़ अल्लाह पर ये है कि जो कोई शिर्क ना करे उसे अज़ाब ना दे"।(सही बुख़ारी : 2856, सही मुस्लिम : 30)

    ख़ालिस एक अल्लाह की ही "इबादत" करना उसकी "तौहीद" का एक अहम हिस्सा है इसलिये कोई शख़्स अगर अल्लाह की इबादत करता हुआ भी दूसरो की इबादत करता हो तो गोया उसने अल्लाह के साथ "शिर्क-ए-अबकर" किया। इसी हलत में अगर उस शख़्स की मौत हो जाती है तो वो हमेशा के लिए जहन्नुम में जलता रहेगा। जन्नत में कभी भी दाख़िल नहीं किया जाएगा अगर मरने से पहले तौबा न करे तो!
    जैसा की अल्लाह ने ख़ुद फ़रमाया है के वो शिर्क करने वाले को कभी माफ़ नहीं करेगा:

    🍃 إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا


    • "उसे अल्लाह तआला क़तां (हरगिज़) न बख़्शेगा के उसके साथ शरीक मुक़र्रर किया जाए, हां शिर्क के अलावा गुनाह जिस के चाहे माफ़ फ़र्मा देता है और अल्लाह के साथ शिर्क करने वाला बहुत दूर की गुमराही मे जा पड़ा।"(सुरह निसा : 116)
    • एक और आयत में अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है की :
    • "यक़ीन मानो के जो शख़्स अल्लाह के साथ शरीक करता है, अल्लाह तआला ने उस पर जन्नत हराम करदी है"। (حَرَّمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ ٱلْجَنَّةَ )( सुरह मायदा : 72)
    यानी इससे साफ पता चलता है की अल्लाह ने इंसान को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया..

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     इंसान का इम्तिहान और आजमाईश 


    दूसरा अहम मकसद इंसान का इम्तिहान है। अल्लाह तआला ने इंसान को एक ऐसा मखलूक़ बनाया, जिसे अख़्तियार दिया गया ताकि वह सही और गलत के बीच फैसला कर सके। 

    अल्लाह ने हमें बताया है कि आसमानों और ज़मीन और ज़िंदगी व मौत की रचना, इन्सान को परखने के लिए की गई है। जो कोई उसकी हुक्म का पालन करेगा, उसे वह ईनाम देगा और जो कोई उसकी ना फर्मानी करेगा, उसे वह सजा देगा। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाते हैं:

    और वही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छ: दिनों में पैदा किया- जबकि इससे पहले उसका अर्श [ सिंहासन] पानी पर था - ताकि तुमको आज़माकर देखे कि तुममें कौन बेहतर अमल करने वाला है ! 
     [हूद 11:7] 
    फ़िर फरमाता है :
    "वह (अल्लाह) जिसने मौत और जिंदगी को पैदा किया ताकि वह देख सके कि तुममें से कौन बेहतर अमल करता है।"(सूरह अल-मुल्क :2)
    यह दुनिया इंसान के लिए एक इम्तिहानगाह है, जहां उसे अपने अमल के जरिए अल्लाह की रज़ा हासिल करनी है।

    Note:
    अल्लाह ने इंसान को महज़ इल्म व अक़्ल की क़ुव्वतें देकर ही नहीं छोड़ दिया, बल्कि साथ-साथ उसकी रहनुमाई भी की, ताकि उसे मालूम हो जाए कि शुक्र का रास्ता कौन-सा है और कुफ़्र का रास्ता कौन सा, और इसके बाद जो रास्ता भी वो इख़्तियार करे उसका ज़िम्मेदार वो ख़ुद हो। सूरा बलद में यही मज़मून इन अल्फ़ाज़ में बयान किया गया है वह्दैनाहुन-नज्दैन और हमने उसे (ख़ैर व शर के) दोनों रास्ते नुमाया करके बता दिये। और सूरा शम्स में यही बात इस तरह बयान की गई है व-नफ़्सिंव-वमा-सव्वा-ह फ़-अल-ह-म-ह फ़ुजू-र-ह व-तक़वा-हा और क़सम है (इन्सान के) नफ़्स की और उस ज़ात की जिसने उसे (तमाम ज़ाहिरी और बातिनी क़ुव्वतों के साथ) तैयार किया, फ़िर उसका फ़ुजूर और उसका तक़वा दोनों उस पर इलहाम कर दिये। इन तमाम वज़ाहतों को निगाह में रख कर देखा जाए, और साथ-साथ क़ुरआन मजीद के उन तफ़्सीली बयानात को भी निगाह में रखा जाए जिनमें बताया गया है कि अल्लाह ने इन्सान की हिदायत के लिये दुनिया में क्या-क्या इन्तिज़ामात किये हैं, तो मालूम हो जाता है कि इस आयत में रास्ता दिखाने से मुराद रहनुमाई की कोई एक ही सूरत नहीं है, बल्कि बहुत सी सूरतें हैं जिनकी कोई हद्दो-इन्तिहा नहीं है इन्सान अगर इनसे आँखें बन्द कर ले, या अपनी अक़्ल से काम लेकर इन पर ग़ौर न करे, या जिन हक़ीक़तों की निशानदेही ये कर रही हैं उनको तस्लीम करने से जी चुराए, तो ये उसका अपना क़ुसूर है। अल्लाह ने अपनी तरफ़ से तो हक़ीक़त की ख़बर देने वाले निशानात उसके सामने रख देने में कोई कसर नहीं उठा रखी है।

    सूरः यासीन में अल्लाह का फ़रमान है कि:
    बेशक हम एक दिन मुर्दों को ज़िंदा करने वाले हैं। जो कुछ अ़मल वह आगे भेजते हैं, वो सब हम लिखते जा रहे हैं, और जो कुछ निशान उन्होंने पीछे छोड़े है, वो भी हम लिख रहे हैं। हर चीज़ को हमने एक खुली किताब में लिख रखा है।इससे मालूम हुआ कि इम्तिहान के बाद हमें अपने कर्मो का हिसाब भी देना है 

     दुनियावी और आख़िरत की ज़िंदगी


    कुरआन में यह भी फरमाया गया है कि इंसान की जिंदगी सिर्फ इस दुनिया के लिए नहीं है, बल्कि आख़िरत (आख़िरी ज़िंदगी) के लिए भी है:

    और यह दुनियावी जिंदगी तो बस खेल और तमाशा है, और असल जिंदगी तो आख़िरत की जिंदगी है, अगर वे समझते।"(सूरह अल-अनक़बूत 29:64)
    इससे जाहिर होता है कि इंसान को अपनी ज़िंदगी सिर्फ दुनिया की दौलत और शानो-शौकत के पीछे नहीं गुजारनी चाहिए, बल्कि आख़िरत की तैयारी करनी चाहिए, जहां उसकी असल जिंदगी शुरू होगी।

    नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है की :
    हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : दुनिया मोमिन के लिये क़ैद ख़ाना जबकि काफ़िर के लिये जन्नत है। मिश्कात:5158 (मुस्लिम:7417)
    हज़रत अनस (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : अल्लाह किसी मोमिन की कोई नेकी बर्बाद नहीं करता, उसको उस (नेकी) के बदले में दुनिया में अता किया जाता है और उसके बदले में उसे आख़िरत में बदला दिया जाएगा और काफ़िर को उसकी दुनिया में अल्लाह के लिये की गई नेकियों के बदले में खिलाया जाता है। यहाँ तक कि जब वो आख़िरत को पहुँचेगा तो उसकी कोई नेकी नहीं होगी जिसका उसे बदला दिया जाए। (मुस्लिम:7089) मिश्कात:5159

    अल्लाह ने इंसान को एक ख़ास मकसद के साथ पैदा किया है। वह मकसद अल्लाह की इबादत, उसकी हुक्म का पालन, और दुनिया में अमन और भलाई फैलाना है। कुरआन और हदीस की रौशनी में यह समझ आता है कि इंसान की जिंदगी का असली मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना और आख़िरत की तैयारी करना है।

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    अफसोस उम्मत में से कुछ गुमराही में दाख़िल हो चुकी है



    अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने इंसान को समझने के लिए सहीह राह दिखाने के लिए हर तरह से रहनुमाई की है! अल्लाह ने नबियों और रसूलों को भेजा इन्सानों की रहनुमाई के लिए और आखिर में क़ुरान नाजिल की हिदायत के लिए पर अफसोस की इन्सानों की अक्सरियत गुमरही वाली राह पर चल पड़ी है ! और इसकी सबसे बड़ी वजह है अल्लाह के कलाम और नबी ﷺ  कर फ़रमान यानी क़ुरान और हदीस से दूरी ! और वो उलमा या दीन के ठेकेदार ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने अल्लाह का दर छुड़ा कर और मस्जिदों को वीरान करके उम्मत को पीरों, बुजुर्गों के चौखट और मजारों ,दरबारों पर लगा रखा है !
     नबी ﷺ , अहले बैत और औलिया अल्लाह के मोहब्बत के नाम पर खुराफात हो रहे हैं, शिर्किया अमाल हो रहे हैं, मुबारक नामों की तौहीन और गुस्ताखी हो रही है ! तागूत की इबादत हो रही है और ये समझ रहे है की हम सहीह राह पर हैं.
    और इसका अंजाम हमारे सामने है ! जो इन वीडियो में इनका अमल देख कर ज़ाहिर हो रहा है ! क्या अल्लाह ने इंसान को इसी लिए पैदा किया की वो ऐसे अमल करे!



    यह क्या हो रहा है ? अफसोस की इंसान अपने आने के मकसद को भूल चुका है। और अल्लाह की न फरमानी कर रहा है !


    इतना ही नहीं ,इंसान अब पीर परस्ती और बुज़ुर्ग परस्ती के बाद बुत परस्ती वाला अमल भी अपना चुका है ! और अब वो काम भी हो रहे हैं जिसकी शरीयत में सख़्ती से मना किया गया था. अब औरतें भी बाजार और सड़कों की ज़ीनत बन रही है शरीयत को पामाल कर रही हैं !


    नसीहत करते रहें:

    और ऐसे ही लोगों के लिए सूरा अल अनाम आयत 70 में अल्लाह ताला का फ़रमान है की :
    छोड़ो उन लोगों को जिन्होंने अपने दीन को खेल और तमाशा बना रखा है और जिन्हें दुनिया की ज़िन्दगी धोखे में डाले हुए है। हाँ, मगर इस क़ुरआन को सुनाकर नसीहत और ख़बरदार करते रहो कि कहीं कोई शख़्स अपने किए करतूतों के वबाल में गिरफ़्तार न हो जाए, और गिरफ़्तार भी इस हाल में हो कि अल्लाह से बचानेवाला कोई हामी और मददगार और कोई सिफ़ारिशी उसके लिये न हो, और अगर वो हर मुमकिन चीज़ फ़िदये में देकर छूटना भी चाहे तो वो भी उससे क़बूल न की जाएगी, क्योंकि ऐसे लोग तो ख़ुद अपनी कमाई के नतीजे में पकड़े जाएँगे, इनको तो अपने हक़ के इनकार के बदले में खौलता हुआ पानी पीने को और दर्दनाक अज़ाब भुगतने को मिलेगा।


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    Conclusion

    ऊपर दिए गए वजूहात की रौशनी में ये बात अच्छी तरह से समझ में आ गई की Insaan ko Allah ne kyun paida kiya ? और हमें दुनियां में भेजने का ख़ास मक़सद क्या है ?
    और अल्लाह का जितना भी शुक्र अदा किया जाए कम है क्योंकि अल्लाह ने हमे दुनियां में भेजने के बाद हमें हमारे हाल पर नहीं छोड़ा बल्की उसने हमे हर वो रास्ता दिखाया जिस से हम आसानी से अपनी आजमाईश या इम्तिहान में कामयाब हो सकते हैं!  अल्लाह ने हमारी रहनुमाई के लिए लाखों अंबिया अलैहे सलाम को भेजा और आखिर में हमारी हिदायत और कामयाबी के लिए आखरी नबी करीम ﷺ  के जरिया क़ुरान नाजिल फ़रमाया!
    इसलिए, हर इंसान को चाहिए कि वह राह ए हक़ पर चले और अपनी जिंदगी को अल्लाह की इबादत, नेक अमल और इंसानियत की खिदमत में गुजारे ताकि उसे आख़िरत में कामयाबी मिले।
    पर अफसोस ! की हम अपनी दुनियावी जिंदगी के मक़सद और आखिरत को भूल चुके हैं ।

    FAQs:


    1. सवाल: अल्लाह ने इंसान को क्यों पैदा किया?
    जवाब: अल्लाह ने इंसान को अपनी इबादत (पूजा) और बंदगी के लिए पैदा किया है। कुरआन में अल्लाह फरमाता है, "और मैंने जिन्नात और इंसानों को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।" (सूरह अज़-ज़ारियात, 51:56)


    2. सवाल: इंसान की ज़िन्दगी का मकसद क्या है?
    जवाब: इंसान की ज़िन्दगी का असल मकसद अल्लाह की मर्जी के मुताबिक जिंदगी गुजारना है। इस दुनिया को एक इम्तेहान की जगह के तौर पर बनाया गया है ताकि इंसान अच्छे और बुरे के बीच सही चुनाव कर सके और अपनी अख़िरत को संवार सके।


    3. सवाल: इंसान को चुनौतियां और मुश्किलें क्यों दी जाती हैं?
    जवाब: अल्लाह इंसान को इम्तेहान में डालता है ताकि उसकी ईमानदारी और सब्र का इम्तेहान लिया जा सके। यह मुश्किलें इंसान की परख करने और उसे अल्लाह के करीब लाने का जरिया होती हैं।


    4. सवाल: अगर अल्लाह को हमारी इबादत की ज़रूरत नहीं, तो फिर इंसान को इबादत का हुक्म क्यों दिया गया?
    जवाब: अल्लाह खुद-मुख्तार और बेनियाज़ है, उसे इंसान की इबादत की कोई ज़रूरत नहीं। लेकिन इंसान को इबादत का हुक्म इसलिए दिया गया ताकि वह अल्लाह की रहमत और इनाम का हक़दार बने और उसकी रुहानी तरक्की हो सके।


    5. सवाल: अल्लाह ने इंसान को बाकी मखलूकात से अलग क्यों बनाया?
    जवाब: अल्लाह ने इंसान को अक्ल, समझ और इरादे की आजादी दी है, जो बाकी मखलूकात को नहीं दी गई। इंसान को यह आजादी इसलिए दी गई ताकि वह अपने कर्मों का खुद जिम्मेदार हो और अच्छे या बुरे का फैसला कर सके। यही उसकी इम्तेहान की असल वजह है।

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    بسم الله الرحمن الرحيم

    اللہ نے انسان کو کیوں پیدا کیا؟ (قرآن و حدیث کی روشنی میں ایک جامع مضمون)


    اکثر انسان اس بات سے غافل ہیں کہ اللہ تعالیٰ نے ہمیں کس مقصد کے تحت پیدا کیا ہے۔ ہم دنیا کی زیب و زینت، مال و دولت اور وقتی خوشیوں میں اتنے مگن ہیں جیسے ہمیں کبھی مرنا نہیں اور نہ ہی کسی کے سامنے حساب دینا ہے۔ حقیقت یہ ہے کہ یہ دنیا امتحان گاہ ہے، ہر انسان یہاں آزمایا جا رہا ہے۔

    آئیے، قرآن و حدیث کی روشنی میں سمجھتے ہیں کہ اللہ نے انسان کو کیوں پیدا کیا۔


    اللہ نے ہر چیز کو حکمت کے ساتھ پیدا کیا

    اللہ تعالیٰ کی صفتوں میں سے ایک "الحکیم" ہے یعنی وہ ہر کام کو بہترین تدبیر، عقل و شعور اور مکمل مقصد کے ساتھ انجام دیتا ہے۔
    اللہ نے کائنات کی کوئی چیز بے مقصد نہیں بنائی۔ قرآن میں ارشاد ہے:

    "اور ہم نے آسمان و زمین اور جو کچھ ان کے درمیان ہے کھیل کے طور پر نہیں پیدا کیا، بلکہ ہم نے انہیں حق (سچائی) کے ساتھ پیدا کیا، لیکن اکثر لوگ نہیں جانتے۔"
    (سورۃ الدخان: 38-39)

    یہ آیت واضح کرتی ہے کہ اللہ کی ہر تخلیق کا ایک مقصد ہے۔ انسان کو بھی ایک خاص مقصد کے ساتھ پیدا کیا گیا تاکہ وہ اللہ کی عبادت کرے، اس کے احکام پر عمل کرے، اور امتحان میں کامیاب ہو۔

    اللہ نے انسان کو فضول پیدا نہیں کیا

    اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:

    "کیا تم نے یہ سمجھ رکھا تھا کہ ہم نے تمہیں بے کار ہی پیدا کیا ہے اور تم ہماری طرف لوٹائے نہیں جاؤ گے؟"(المؤمنون: 115-116)

    "اور ہم نے آسمانوں اور زمین کو اور جو کچھ ان کے درمیان ہے، کھیل کے لئے نہیں بنایا۔"
    (الأنبیاء:16)

    یعنی انسان کی پیدائش ایک سنجیدہ مقصد کے لئے ہے — عبادت، اطاعت اور آزمائش۔

    انسان کی تخلیق عبادت کے لئے

    اللہ تعالیٰ نے قرآن میں فرمایا:
    "اور میں نے جنات اور انسانوں کو صرف اپنی عبادت کے لئے پیدا کیا ہے۔"
    (الذاریات: 56)
    تفسیر ابن کثیر:

    اللہ نے فرمایا کہ میں نے انہیں اس لئے پیدا کیا ہے تاکہ وہ میری عبادت کریں، نہ کہ مجھے ان کی ضرورت ہے۔
    ابن عباس رضی اللہ عنہ فرماتے ہیں: “یعنی تاکہ وہ میرا اقرار کریں اور میری بندگی اختیار کریں۔”

    عبادت کا مفہوم

    اکثر لوگ سمجھتے ہیں کہ عبادت صرف مسجد میں سجدہ کرنا ہے،جبکہ حقیقت یہ ہے کہ عبادت ایک طرزِ حیات ہے —قرآن و سنت کے مطابق زندگی گزارنا،جھوٹ، ظلم، فریب سے بچنا،انسانوں کے ساتھ عدل و احسان کرنا —
    یہ سب اللہ کی عبادت کے دائرے میں شامل ہیں۔
    عبادت صرف نماز، روزہ، حج یا زکوٰۃ تک محدود نہیں بلکہ انسان کی پوری زندگی جب اللہ کے احکام کے مطابق گزاری جائے تو وہ عبادت بن جاتی ہے۔
    عبادت صرف اللہ کے لئے اور نبی ﷺ کے طریقے کے مطابق ہونی چاہیے۔ اپنی مرضی سے عبادت ایجاد کرنا بدعت ہے۔

    اللہ نے فرمایا:
    "اللہ ہی کی عبادت کرو اور تمام باطل معبودوں سے بچو۔"(النحل: 36)

    اور فرمایا:

    "اے ایمان والو! پورے کے پورے اسلام میں داخل ہو جاؤ، اور شیطان کے قدموں پر مت چلو۔"
    (البقرہ: 208)

    اللہ کا حق بندوں پر

    نبی کریم ﷺ نے فرمایا:

    "اللہ کا حق بندوں پر یہ ہے کہ وہ صرف اسی کی عبادت کریں اور اس کے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرائیں، اور بندوں کا حق اللہ پر یہ ہے کہ جو شخص شرک نہ کرے، اللہ اسے عذاب نہ دے۔"
    (بخاری: 2856، مسلم: 30)

    اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:

    "اللہ ہرگز اسے معاف نہیں کرے گا جو اس کے ساتھ شرک کرے، اس کے سوا جسے چاہے معاف کر دے۔"
    (النساء: 116)

    اور فرمایا:
    "جس نے اللہ کے ساتھ شرک کیا، اس پر اللہ نے جنت حرام کر دی۔"
    (المائدہ: 72)

    یعنی انسان کی تخلیق کا سب سے بڑا مقصد یہی ہے کہ وہ اللہ کی وحدانیت کا اقرار کرے اور شرک سے بچے۔

    انسان کا امتحان اور آزمائش

    اللہ تعالیٰ نے انسان کو اختیار دیا تاکہ وہ خیر و شر میں تمیز کرے۔
    قرآن میں فرمایا:

    "اور وہی ہے جس نے آسمانوں اور زمین کو چھ دن میں پیدا کیا تاکہ تمہیں آزمائے کہ تم میں عمل کے لحاظ سے کون بہتر ہے۔"(ہود: 7)

    "اسی نے موت اور زندگی کو پیدا کیا تاکہ تمہیں آزمائے کہ تم میں سے کون بہتر عمل کرتا ہے۔"
    (الملک: 2)

    دنیا دراصل امتحان کی جگہ ہے۔ جو یہاں کامیاب ہوگا، وہی آخرت میں کامیاب ہوگا۔

    اللہ کی رہنمائی کے دلائل:

    اللہ نے انسان کو عقل و فہم دیا، اور خیر و شر کے راستے واضح کر دیے:

    "ہم نے انسان کو دو راستے دکھا دیے۔"(البلد: 10)

    اور فرمایا:

    "اور اس نفس کی قسم جسے درست بنایا، پھر اس کو اس کی بدی اور نیکی دونوں سمجھا دیں۔"
    (الشمس: 7-8)

    یعنی انسان خود اپنے عمل کا ذمہ دار ہے۔

    دنیاوی اور آخرت کی زندگی

    قرآن میں فرمایا گیا:
    "یہ دنیا کی زندگی کھیل اور تماشے کے سوا کچھ نہیں، اور آخرت ہی اصل زندگی ہے اگر وہ سمجھیں۔"
    (العنکبوت: 64)

    نبی ﷺ نے فرمایا:

    "دنیا مومن کے لئے قید خانہ ہے اور کافر کے لئے جنت۔"
    (مسلم: 7417)

    یعنی مومن دنیا میں صبر و شکر کے ساتھ رہتا ہے تاکہ آخرت کی کامیابی حاصل کرے۔

    افسوس! امت گمراہی میں پڑ گئی

    اللہ نے انسان کی رہنمائی کے لئے نبی، رسول اور قرآن نازل فرمایا، مگر آج زیادہ تر لوگ قرآن و سنت سے غافل ہیں۔
    لوگوں نے اللہ کے دین کو رسم و رواج، پیروں اور مزارات کی غلامی میں بدل دیا ہے۔یہی شرک اور بدعت کے دروازے ہیں جن کی وجہ سے امت گمراہی میں چلی گئی۔

    "چھوڑ دو ان لوگوں کو جنہوں نے اپنے دین کو کھیل اور تماشا بنا لیا اور دنیا کی زندگی نے انہیں دھوکے میں ڈال رکھا ہے..."(الأنعام: 70)

    نتیجہ (Conclusion):

    قرآن و حدیث کی روشنی میں واضح ہوا کہ اللہ نے انسان کو اپنی عبادت، اطاعت اور آزمائش کے لئے پیدا کیا۔
    اللہ نے ہمیں ہدایت کے لئے نبی ﷺ اور قرآن عطا فرمایا۔
    لہٰذا ہمیں اپنی زندگی کو اللہ کی بندگی، نیکی اور انسانیت کی خدمت میں گزارنا چاہیے تاکہ آخرت میں کامیابی نصیب ہو۔

    "اور یقیناً کامیاب وہی ہوگا جو اپنے رب کے حضور پاک دل کے ساتھ حاضر ہوگا۔"
    (الشعراء: 89)

    ✍️ مصنف:

    محب طاہری — اسلامی بلاگر
    مقصد: صحیح دین، علم اور ہدایت کو عام کرنا۔
    📖 میری ویب سائٹ ملاحظہ کریں: https://www.raahehidayat786.com


    اکثر پوچھے جانے والے سوالات (FAQs):

    1️⃣ سوال: اللہ نے انسان کو کیوں پیدا کیا؟
    جواب: اللہ نے انسان کو اپنی عبادت اور بندگی کے لئے پیدا کیا۔
    "اور میں نے جنات اور انسانوں کو صرف اپنی عبادت کے لئے پیدا کیا۔" (الذاریات: 56)

    2️⃣ سوال: انسان کی زندگی کا مقصد کیا ہے؟

    جواب: اللہ کی رضا کے مطابق زندگی گزارنا اور آخرت کی کامیابی حاصل کرنا۔

    3️⃣ سوال: آزمائشیں کیوں آتی ہیں؟
    جواب: اللہ انسان کے ایمان اور صبر کا امتحان لیتا ہے تاکہ اس کے درجات بلند ہوں۔

    4️⃣ سوال: اللہ کو ہماری عبادت کی ضرورت کیوں نہیں؟
    جواب: اللہ بے نیاز ہے، عبادت ہماری روحانی تربیت اور کامیابی کا ذریعہ ہے۔

    5️⃣ سوال: انسان کو باقی مخلوقات سے افضل کیوں بنایا؟
    جواب: کیونکہ اللہ نے انسان کو عقل، شعور اور اختیار دیا تاکہ وہ خود نیکی یا بدی کا فیصلہ کرے — یہی اس کا امتحان ہے۔



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