Sajde ka Sunnat Tareeqa/सज्दे का सुन्नत तरीक़ा
रसूलुल्लाह (ﷺ) का हुक्म है :"मुझे जिस तरह नमाज़ पढ़ते देखते हो तुम भी उसी तरह नमाज़ पढ़ो"(सही बुख़ारी : 631)
सज्दा की अहमियत
क़ुरआन में सज्दा का ज़िक्र
हदीस में सज्दा का बयान
सज्दा का सुन्नत तरीका
घुटनों को जमीन पर रखना: पहले दोनों हाथों को ज़मीन पर घुटनों से पहले रखें फ़िर घुटने रखें! इसमें उलमा का इख्तिलाफ़ है !
दोनों हाथों को जमीन पर रखना: फिर दोनों हाथों को इस तरह जमीन पर रखें कि अंगुलियां क़िबले की तरफ हों।
नाक और माथा जमीन पर रखना: दोनों नाक और माथे को जमीन पर टिकाएं। यह सुन्नत का हिस्सा है कि नाक और माथा दोनों एक साथ जमीन पर रखें।
कोहनियों को ऊपर उठाना: कोहनियों को जमीन से ऊपर रखें और बाजुओं को बगलों से दूर रखें, ताकि बगलें खुली रहें।
पैरों की अंगुलियों को मोड़ना: दोनों पैरों की अंगुलियों को इस तरह मोड़ें कि वे क़िबले की तरफ हों।
सजदे में दुआ: सजदे में "सुब्हाना रब्बियल आला" (سبحان ربي الأعلى) तीन बार कहना सुन्नत है। इसका मतलब है: "मेरा रब, जो सबसे बुलंद है, उसकी तस्बीह करता हूँ।"
पहले घुटने या पहले हाथ
सजदे में जाते समय पहले हाथ रखना चाहिए या घुटने, इस पर उलेमा और फुक़हा में मतभेद है। इसके लिए दोनों के अपने-अपने तर्क और दलीलें हैं। आइए दोनों मतों की दलीलों को देखें:1. पहले घुटने रखना:
कुछ उलेमा का मानना है कि सजदे में जाते समय पहले घुटने जमीन पर रखने चाहिए। इसकी दलील वे हज़रत वाइल बिन हजर (रजि.) की हदीस से लेते हैं:
इस राय के समर्थन में वह हदीस पेश की जाती है जिसमें हज़रत वाइल बिन हजर (र.अ.) से मर्वी है कि: हज़रत वाएल इब्न हुजर (रजि.) बयान करते हैं कि उन्होंने देखा कि नबी (स.अ.व.) ने सजदे में जाते समय पहले अपने घुटने अपने हाथों से पहले जमीन पर रखे।
(अबू दाऊद: 838,तिर्मिज़ी:268) (ये दोनों हदीसें ज़ईफ़ हैं)
यह तरीका हनफी मसलक में अपनाया जाता है, और उनके अनुसार यह नबी (ﷺ) की सुन्नत के करीब है। घुटने पहले रखना अधिक विनम्रता का प्रतीक माना गया है।
2. पहले हाथ रखना:
दूसरे मत के अनुसार, सजदे में जाते समय पहले हाथ जमीन पर रखने चाहिए। इसकी दलीलें ये हैं:हदीस: हदीस: "हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने बयान किया कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब तुम में से कोई सजदा करे तो ऐसे न बैठे जैसे कि ऊँट बैठता है, चाहिये कि अपने हाथ घुटनों से पहले रखे।"(अबू दाऊद, हदीस: 840,निसाई)इन मतभेदों के आधार पर अधिकतर उलेमा का मानना है कि दोनों तरीके सुन्नत में शामिल हैं, और किसी भी तरीके को अपनाया जा सकता है।दोनों तरीकों के पक्ष में हदीसें मौजूद हैं, और उलेमा इस पर सहमत हैं कि जो तरीका अपनाया जाए, नीयत सुन्नत के अनुसार ही होनी चाहिए।
इस हदीस से यह समझा जाता है कि ऊँट पहले अपने हाथ जमीन पर रखता है, इसलिए मुसलमान को इसके उलट पहले घुटने रखना चाहिए।और यह तर्क दिया जाता है कि नबी (स.अ.व.) का तरीका पहले घुटने रखना था, इसलिए इसी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
यह तरीका मालिकी और कुछ हनबली मसलकों में प्रचलित है, और इसे ऊँट की तरह बैठने से बचने के रूप में समझा जाता है।
सज्दा के दौरान शरीर के हिस्सों का इस्तेमाल
सज्दा में हाथों की पोजीशन
सज्दा में पांव की पोजीशन
सज्दा में पढ़ी जाने वाली तस्बीह
सज्दा के बाद कुछ देर बैठना
सज्दा का आदाब और विनम्रता
Conclusion:
سجدہ کرنے کا مسنون طریقہ
قرآن مجید میں سجدہ کا ذکر:
قرآن مجید میں سجدہ سے متعلق ذکر کیا گیا ہے۔ اللہ تعالیٰ نے متعدد مقامات پر سجدہ کرنے کا حکم دیا اور اس کو اپنی قربت کا ذریعہ قرار دیا ہے۔
اللہ تعالیٰ قرآن مجید میں فرماتے ہیں:
"فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ * وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ" (سورۃ العلق، 96:19)
"اپنے عظیم رب کے نام کی تسبیح کرو اور سجدہ کرو اور (اللہ کے) قریب ہو جاؤ۔"
اس آیت سے واضح ہوتا ہے کہ سجدہ اللہ کی قربت کا ایک ذریعہ ہے۔ جب مسلمان سجدہ کرتا ہے تو وہ اپنی عاجزی اور اللہ کی بڑائی کا اعتراف کرتا ہے۔
حدیث میں سجدہ کی اہمیت :
رسول اللہ ﷺ نے بھی سجدہ کی اہمیت کو واضح طور پر بیان کیا ہے۔ ایک حدیث میں رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
"أَقْرَبُ مَا يَكُونُ الْعَبْدُ مِنْ رَبِّهِ وَهُوَ سَاجِدٌ، فَأَكْثِرُوا الدُّعَاءَ" (صحیح مسلم)
"بندہ اپنے رب کے سب سے زیادہ قریب اس وقت ہوتا ہے جب وہ سجدہ میں ہوتا ہے، پس اس حالت میں زیادہ دعا کرو۔"
اس حدیث سے معلوم ہوتا ہے کہ سجدہ ایک ایسی حالت ہے جس میں اللہ تعالیٰ کے ساتھ بندے کا رشتہ اور قربت سب سے زیادہ مضبوط ہوتی ہے۔ اس دوران دعا کرنے کی تلقین کی گئی ہے کیونکہ یہ حالت اللہ کی رحمت اور قبولیت کا وقت ہے۔
سجدہ کا سنت طریقہ:
سجدہ کرنے کا صحیح طریقہ رسول اللہ ﷺ نے خود سکھایا اور یہ طریقہ احادیث میں واضح طور پر موجود ہے۔ سجدے کے دوران جسم کے مخصوص اعضا کا زمین پر لگنا اور دعا کا پڑھنا ایک اہم سنت ہے۔
جسم کے سات اعضا کا زمین پر لگنا:
رسول اللہ ﷺ نے فرمایا کہ سجدہ کرتے وقت جسم کے سات اعضا زمین پر لگنے چاہئیں۔ حضرت عبداللہ بن عباس (رضی اللہ عنہ) روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
"أُمِرْتُ أَنْ أَسْجُدَ عَلَى سَبْعَةِ أَعْظُمٍ" (صحیح بخاری و صحیح مسلم)
"مجھے سات ہڈیوں پر سجدہ کرنے کا حکم دیا گیا ہے۔"
یہ سات اعضا درج ذیل ہیں:
1. پیشانی (جس میں ناک بھی شامل ہے)
2. دونوں ہاتھوں کی ہتھیلیاں
3. دونوں گھٹنے
4. دونوں پاؤں کے انگوٹھے
یہ سنت طریقہ ہے اور سجدہ کرتے وقت ان سات اعضا کا زمین پر لگنا ضروری ہے۔
ہاتھوں اور پیروں کی پوزیشن:
سجدہ کرتے وقت ہاتھوں اور پیروں کی پوزیشن بھی سنت کے مطابق ہونی چاہیے۔ رسول اللہ ﷺ نے ہاتھوں کو گھٹنوں سے آگے رکھنے اور ان کو زمین پر اچھی طرح رکھنے کا حکم دیا۔ حضرت ابوہریرہ (رضی اللہ عنہ) روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
"جب تم سجدہ کرو، تو اپنی کہنیوں کو پہلو سے دور رکھو اور ہاتھوں کو زمین پر اچھی طرح رکھو۔"(صحیح بخاری)
اسی طرح پاؤں کے انگوٹھوں کو زمین پر ٹکانا اور پاؤں کو ملانا بھی سنت ہے۔
سجدہ میں پڑھی جانے والی تسبیح
"سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى" (صحیح مسلم)
"پاک ہے میرا رب جو سب سے بلند ہے۔"
یہ تسبیح کم از کم تین مرتبہ پڑھی جاتی ہے، لیکن زیادہ مرتبہ بھی پڑھنا جائز ہے۔ اس کا مقصد اللہ تعالیٰ کی عظمت اور پاکیزگی کا اعتراف کرنا ہے۔
سجدے کے بعد بیٹھنے کا طریقہ
سجدہ میں عاجزی اور انکساری
نتیجہ:
FAQs:
जवाब: दोनों हाथों को जांघों या घुटनों पर रखें। हाथ की अंगुलियां न बहुत ज्यादा फैली हों और न बंद हों।दाहिने पैर को खड़ा रखें और उसकी अंगुलियां क़िबले की तरफ होनी चाहिए।बाएं पैर को मोड़कर उस पर बैठें। बाएं पैर का ऊपरी हिस्सा जमीन से लगा होना चाहिए और पंजा बाहर की तरफ हो।
सवाल: दो सज्दों के दरम्यान में क्या पढ़ना चाहिए ?
जवाब: दो सजदों के दरम्यान यानी जलसा में "رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي"("रब्बिग़फिर ली, रब्बिग़फिर ली") पढ़ना चाहिए!
इसका मतलब है: "ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे, ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे"।
जवाब: नहीं, मसनून तरीका यह है कि कोहनियों को जमीन से ऊपर रखा जाए। कोहनियों को ऊपर उठाकर बगलों को थोड़ा खुला रखना चाहिए।
सवाल: सजदे में पैरों की उंगलियों का क्या मसनून तरीका है?
जवाब: मसनून तरीका यह है कि सजदे में दोनों पैरों की उंगलियों को मोड़कर क़िबले की तरफ रखा जाए।
सवाल: सजदे में क्या पढ़ा जाता है ?
जवाब: सजदे में "सुब्हाना रब्बियल आला" (سبحان ربي الأعلى) तीन बार कहना सुन्नत है। इसका मतलब है: "मेरा रब, जो सबसे बुलंद है, उसकी तस्बीह करता हूँ।"
सवाल: जल्साऐ-इस्तराहत क्या है ?
जवाब: पहली या तीसरी रकात के बाद दूसरा सज्दा कर चुकने पर अगली रकअत के लिए उठने से पहले कुछ देर सकून से बैठने को जल्साऐ-इस्तराहत कहते हैं !
जवाब: मसनून तरीका यह है कि सजदे में दोनों पैरों की उंगलियों को मोड़कर क़िबले की तरफ रखा जाए।
जवाब: सजदे में "सुब्हाना रब्बियल आला" (سبحان ربي الأعلى) तीन बार कहना सुन्नत है। इसका मतलब है: "मेरा रब, जो सबसे बुलंद है, उसकी तस्बीह करता हूँ।"
जवाब: पहली या तीसरी रकात के बाद दूसरा सज्दा कर चुकने पर अगली रकअत के लिए उठने से पहले कुछ देर सकून से बैठने को जल्साऐ-इस्तराहत कहते हैं !
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