Nabi Kareem ﷺ par darood padhna/नबी करीम ﷺ पर दुरूद पढ़ना
दरूद या सलावात का मतलब क्या है?
दरूद या सलावात के मानी उस पर मुंहासिर है जो इसे पढ़ता या भेजता है और किसके लिए इस्तेमाल होता है। जैसे :
जब यह कहा जाता है कि अल्लाह मुहम्मद ﷺ पर सलवात भेजता है, तो इसका मतलब है कि अल्लाह उन पर रहमत नाज़िल फरमाता है |
जब कोई शख्स मुहम्मद ﷺ पर सलवात भेजता हैं, तो इसका मतलब है कि वो उनके लिए रहमत औऱ सलामती की दुआ करते है
जब मलाइका (फ़रिश्ते या देवदूत) मुहम्मद ﷺ पर सलवात भेजते है, तो इसका मतलब है कि वह उनके लिए तलब ए मग़फ़िरत करते हैं|
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अल्लाह का फ़रमान दरूद से मुतल्लिक
क़ुरान अल करीम में अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फ़रमान है:
اِنَّ اللّٰہَ وَ مَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوۡنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَیۡہِ وَ سَلِّمُوۡا تَسۡلِیۡمًا ﴿۵۶﴾
अल्लाह सुब्हानहु व तआला और फ़रिश्ते नबी (ﷺ) पर रहमतें भेजते हैं, ऐ ईमान वालों तुम भी इस (नबी ﷺ) पर दुरूद व सलाम भेजा करो" (अल-अहज़ाब 56)
नबी ﷺ पर दरूद कैसे भेजें ?
सहाबा ने कहा : या रसूलुल्लाह! हम आप ﷺ पर किस तरह दुरूद भेजा करें? तो रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि इस तरह कहा करो
Nabi Kareem ﷺ par darood padhna/नबी करीम ﷺ पर दुरूद पढ़ना |
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَأَزْوَاجِهِ وَذُرِّيَّتِهِ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، وَبَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ وَأَزْوَاجِهِ وَذُرِّيَّتِهِ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
''ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मुहम्मद पर और उन की बीवियों पर और उन की औलाद पर जैसा कि तू ने रहमत नाज़िल फ़रमाई इब्राहीम पर और अपनी बरकत नाज़िल फ़रमा मुहम्मद पर और उन की बीवियों और औलाद पर जैसा कि तू ने बरकत नाज़िल फ़रमाई आले- इब्राहीम पर। बेशक तू बहुत ज़्यादा ख़ूबियों वाला और अज़मत वाला है।'' (सहीह अल्बुखारी:3369)
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एक मर्तबा कअब-बिन-उजरा (रज़ि०) से मेरी मुलाक़ात हुई तो उन्होंने कहा, क्यों न तुम्हें (हदीस का) एक तोहफ़ा पहुँचा दूँ जो मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल०) से सुना था। मैंने कहा जी हाँ मुझे ये तोहफ़ा ज़रूर इनायत फ़रमाइये। उन्होंने बयान किया कि आप (सल्ल०) से पूछा था या रसूलुल्लाह! हम आप पर और आप के अहले-बैत पर किस तरह दुरूद भेजा करें? अल्लाह तआला ने सलाम भेजने का तरीक़ा तो हमें ख़ुद ही सिखा दिया है। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि इस तरह कहा करो
ﺍﻟـﻠَّـﻬُـﻢَّ ﺻَـﻞِّ ﻋَـﻠَـﻰ ﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻭَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻛَـﻤَـﺎ ﺻَـﻠَّـﻴْـﺖَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺇِﺑْـﺮَﺍﻫِـﻴـﻢَ ﻭَﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِ ﺇِﺑْـــﺮَﺍﻫِـــﻳـــﻢَ ﺇِﻧَّـﻚَ ﺣَـﻤِـﻴـﺪٌ ﻣَـــﺠِــﻴــﺪٌ
ﺍﻟـﻠَّـﻬُـﻢَّ ﺑَـﺎﺭِﻙْ ﻋَـﻠَـﻰ ﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻭَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻛَـﻤَـﺎ ﺑَـﺎﺭَﻛْـﺖَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺇِﺑْــﺮَﺍﻫِــﻴــﻢَ ﻭَﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِ ﺇِﺑْــﺮَﺍﻫِــﻴــﻢَ ﺇِﻧَّـﻚَ ﺣَـﻤِـﻴـﺪٌ ﻣَـــﺠِــﻴــﺪٌ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीमा इन्नक हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्ता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नक हमीदुम मजीद।
''ऐ अल्लाह! अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा मुहम्मद (सल्ल०) पर और आले- मुहम्मद (सल्ल०) पर जैसा कि तूने अपनी रहमत नाज़िल फ़रमाई इब्राहीम पर और आले- इब्राहीम (अलैहि०) पर। बेशक तू बड़ी ख़ूबियों वाला और बुज़ुर्गी (पाकी) वाला है। ऐ अल्लाह! बरकत नाज़िल फ़रमा मुहम्मद पर और आले-मुहम्मद पर जैसा कि तूने बरकत नाज़िल फ़रमाई इब्राहीम पर और आले-इब्राहीम पर। बेशक तू बड़ी ख़ूबियों वाला और बड़ी अज़मत वाला है।
(Saheeh bukhari 3369/3370)
आप ﷺ पर दरूद भेजने की फ़जीलत
अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर फारूक ने फरमाया : दुआ आसमान और जमीन के दरम्यान लटकी रहती है उसमे से कुछ भी ऊपर नही जाता जब तक के तू अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद न भेजे.( जामा तिर्माजी)
हज़रत अनस-बिन-मालिक (रज़ि०) से नक़ल हुई है रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: जो शख़्स मुझ पर एक बार दुरूद पढ़ेगा अल्लाह उसपर दस रहमतें नाज़िल फ़रमाएगा और उसकी दस ग़लतियाँ माफ़ कर दी जाएँगी और उसके दस दर्जे बुलन्द किये जाएँगे। (नसाई:1298)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: जो शख्स मुझ पर एक बार दरूद भेजेगा ,अल्लाह ताला उस पर दस रहमतें नाजिल फरमाएगा. (सहीह मुस्लिम)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है: बखील है वह शख्स जिस के पास मेरा ज़िक्र हो और वह मुझ पर दरूद न भेजे ,( अल्तिर्मजी)
आप ﷺ ने फ़रमाया: अल्लाह ताला के कुछ फ़रिश्ते रूए ज़मीन पर चलते फिरते हैं,वह मेरी उम्मत का सलाम मुझे पहुंचाते हैं.(सुन्न अल्नीसायी)
जब कोई शख्स मुझे सलाम कहता है तो, अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला मेरी रूह मुझे वापस लौटा देता है ताकी मैं उसे सलाम का जवाब दूं.
जो शख्स सुबह व शाम दस मर्तबा मुझे सलाम कहता है यानी मुझ पर दरूद भेजता है उसे कयामत के दिन मेरी शफ़ात हासिल होगी .( तिब्रानी)
हजरत अबू हुरैरा फरमाते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: जिस शख्स को यह पसन्द हो की हमारे घराने वालों पर दरूद पढ़ते वक्त सवाब का पूरा पैमाना ले तो यह दरूद पढ़े. (दाऊद)
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ النبي، وَأَزْوَاجِهِ أُمَّهَاتِ الْمُؤْمِنِينَ،وَذُرِّيَّتِهِ وَأَهْلِ بَيْتِهِ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
ऐ अल्लाह! मुहम्मद (ﷺ) और आले-मुहम्मद पर ख़ुसूसी रहमतें नाज़िल फ़रमा।
(Sunan Nasai#1293)
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कसरत से दरूद पढ़ने की फजीलत
हज़रत औस-बिन-औस (रज़ि०) से रिवायत हुई है नबी ﷺ ने फ़रमाया: तहक़ीक़ तुम्हारे दिनों में से बेहतर दिन जुमा है। इस में आदम (अलैहि०) पैदा हुए। उसी दिन वफ़ात पाए और उसी दिन सूर फूँका जाएगा। उसी दिन बेहोशी होगी। इसलिये इस दिन मुझ पर कसरत से दुरूद पढ़ा करो। यक़ीनन तुम्हारा दुरूद मुझ पर पेश किया जाता है। लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! (वफ़ात के बाद) आप पर दुरूद कैसे पेश किया जाएगा जबकि आप बोसीदा हो चुके हूँगे? आपने फ़रमाया: अल्लाह ने ज़मीन पर हराम कर दिया है कि वो नबियों (अलैहि०) के जिस्मों को खाए। नसाई:1375
और उबैय इब्न का’ब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि जब रात के दो हिस्से गुज़र जाते और एक तिहाई बाक़ी रह जाती तो रसूल करीम ﷺ बेदार होते और कहते:
ऐ लोगो, अल्लाह का ज़िक्र करो, अल्लाह का ज़िक्र करो, सूर में पहली बार फूंकने का वक़्त क़रीब है, और फिर दूसरी फूंक भी क़रीब है, मौत और उसमें जो सख़्तियां हैं वो क़रीब हैं, मौत और उसमें जो सख़्तियां हैं वो आई कि आई।
उबैय इब्न का’ब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं, मैंने अर्ज़ किया: ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ, मैं आप पर दुरूद कसरत से पढ़ता हूँ, तो अपनी दुआ में आप पर दुरूद कितना पढ़ूं? रसूल करीम ﷺ ने फ़रमाया: जितना चाहो!
वो बयान करते हैं, मैंने अर्ज़ किया: तो फिर एक चौथाई हिस्सा कर लूं?आप ﷺ ने फ़रमाया: जितना चाहो, अगर इस से ज़्यादा कर लो तो तुम्हारे लिए बेहतर है!
वो बयान करते हैं, मैंने अर्ज़ किया: आधा कर लूं? रसूल करीम ﷺ ने फ़रमाया: जितना चाहो, और अगर ज़्यादा कर लो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है!
वो बयान करते हैं, मैंने अर्ज़ किया: तो फिर दो तिहाई हिस्सा कर लूं?आप ﷺ ने फ़रमाया: जितना चाहो, अगर इस से ज़्यादा कर लो तो तुम्हारे लिए बेहतर है!
मैंने अर्ज़ किया: ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ, तो फिर मैं अपनी सारी दुआ में ही आप पर दुरूद पढ़ता रहूं? रसूल करीम ﷺ ने फ़रमाया: तो फिर यह दुरूद तेरे ग़म और परेशानी के लिए काफ़ी हो जाएगा, और तेरे गुनाहों की बख़्शिश का बाइस होगा।सुनन तिर्मिज़ी हदीस नंबर (2457)
Nabi Kareem ﷺ par darood padhna/नबी करीम ﷺ पर दुरूद पढ़ना |
दरूद से मुतल्लिक आलिमों और इमामों का कौल
इब्न क़य्यिम रहिमहुल्लाह "जला अल-अफ़हाम" में लिखते हैं:
"हमारे उस्ताद अबू अल-अब्बास (यानी इब्न तैमिया) रहिमहुल्लाह से इस हदीस की शरह पूछी गई तो उन्होंने फ़रमाया: उब'ई बिन काब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने लिए एक दुआ मुक़र्रर कर रखी थी, तो उन्होंने रसूल करीम ﷺ से दरयाफ़्त किया कि क्या वह इस दुआ का एक चौथाई हिस्सा दरूद के लिए मुक़र्रर कर लें... इत्यादि।
क्योंकि जो कोई भी नबी करीम ﷺ पर एक बार दरूद पढ़ता है, अल्लाह तआला उसके बदले दस रहमतें नाज़िल फ़रमाता है, और जो नबी करीम ﷺ पर दरूद पढ़ता है, वह उसके ग़म और परेशानी के लिए काफ़ी हो जाता है, और उसके गुनाह बख़्श दिए जाते हैं।देखें: जला अल-अफ़हाम (79)
और "तुहफ़त अल-अहवज़ी" में लिखा है:
" فَكَمْ أَجْعَلُ لَك مِنْ صَلَاتِي "
यानी मैं अपने लिए दुआ की जगह आप पर कितना दरूद भेजूं, यह मुल्ला अली क़ारी का क़ौल है।
और "अल-तर्ग़ीब" में मुनज़िरी रहिमहुल्लाह कहते हैं:"इसका मतलब यह है कि मैं दुआ ज़्यादा करता हूँ, तो अपनी दुआ में आपके लिए दरूद का कितना हिस्सा रखूं....
"قُلْتُ أَجْعَلُ لَك صَلَاتِي كُلَّهَا"
मैंने अर्ज़ किया कि मैं सारी दुआ में ही आप पर दरूद भेजूंगा, यानी मैं जितनी देर अपने लिए दुआ करता हूँ, वह सारा वक्त ही आप पर दरूद में ख़र्च करूंगा।
قولہ: "إِذًا تُكْفَى هَمَّكَ، وَيُغْفَرُ لَكَ ذَنْبُكَ"
तो फिर यह तेरे ग़म व परेशानी के लिए काफ़ी होगा और तेरे गुनाह बख़्श दिए जाएंगे
"इलहम" उसे कहते हैं जब इंसान दुनिया और आख़िरत में किसी चीज़ का इरादा करे, यानी: जब आप अपनी दुआ का सारा वक्त मुझ पर दरूद में ख़र्च करोगे, तो आपको दुनिया और आख़िरत की कामयाबी हासिल होगी।"
शैख़-उल-इस्लाम इब्न तैमिया कहते हैं: "यह इंतिहा है जिसके साथ इंसान अपने लिए नफ़ा और ख़ैर (लाभ और भलाई) तलब करता है और नुक़सान से बच सकता है; क्योंकि दुआ में मतलूब का हुसूल और ख़दशा वाली चीज़ को दूर करना तलब होता है।"देखें: अल-रद्द ‘अला अल-बकरी (1/133)
और "अल-मसाबेह" के कुछ शारेहीन कहते हैं:
"... नबी करीम ﷺ ने उनके लिए इसकी हद मुक़र्रर करना मुनासिब नहीं समझा, ताकि मज़ीद (अधिक) का दरवाज़ा बंद न हो जाए, बल्कि मज़ीद का ख़्याल करते हुए उन्हें इख़्तियार देते रहे यहां तक कि उन्होंने अर्ज़ किया: मैं अपनी सारी दुआ ही आप पर दरूद के लिए कर देता हूँ। तो फिर रसूल करीम ﷺ ने फ़रमाया: तो फिर यह तेरे हर ग़म व हम यानी तेरे दीन व दुनियावी मामले के लिए काफ़ी हो जाएगा, क्योंकि नबी करीम ﷺ पर दरूद अल्लाह के ज़िक्र और रसूल करीम ﷺ की ताज़ीम पर मुश्तमिल है, और फ़ी-अल-मअना यह अपने लिए दुआ का इशारा है..."इसे सख़ावी ने "अल-क़ौल अल-बदी" (133) में नक़ल किया है।
"रोज़-ए-क़यामत मेरे सबसे नज़दीक वह होगा जो मुझ पर सबसे ज़्यादा दरूद पढ़ने वाला होगा।"
सुनन तिर्मिज़ी हदीस नंबर (484), अल्लामा अल्बानी रहिमहुल्लाह ने "सहीह अल-तरग़ीब व अल-तरहीब" में इसे हसन क़रार दिया है।
"तुफ़ह अल-अहवज़ी" में है:
"أولى الناس بي"
जो सबसे ज़्यादा मुझ पर दरूद पढ़ने वाला हो, क्योंकि कसरत दरूद ताज़ीम पर मब्नी है, और कामिल मोहब्बत की बिना के नतीजे में मुताब'अत (इताअत) व पैरवी का मुक़तज़ी है, जिसके नतीजे में अल्लाह सुब्हानहु व तआला की मोहब्बत हासिल होती है।
अल्लाह सुब्हानहु व तआला का फ़रमान है: कह दीजिए कि अगर तुम अल्लाह तआला से मोहब्बत करना चाहते हो तो मेरी (मुहम्मद ﷺ) की इत्तिबा (अनुकरण) और पैरवी करो, अल्लाह तआला तुमसे मोहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा।
लिहाज़ा नबी करीम ﷺ पर दरूद की फज़ीलत में कोई शक नहीं कर सकता।आप नबी करीम ﷺ पर जितना ज़्यादा दरूद पढ़ेंगे, आपकी रसूल करीम ﷺ से मोहब्बत भी उतनी ही ज़्यादा होगी, और आपका क़ुर्ब भी ज़्यादा होगा।"
दरूद पढ़ने के लिए तादाद त'अय्युन करना कैसा ?
जैसा कि ऊपर बयान हुआ है कि नबी करीम ﷺ पर दरूद पढ़ना क़ुर्ब और इबादत है तो इसके लिए तादाद की त'अय्युन (निर्धारण) करना जायज़ नहीं है, इसकी शरीअत में कोई हद नहीं हुई, चाहे वह एक हज़ार हो या दो या तीन हज़ार वग़ैरह जिसे सूफ़िया हज़रात ने ईजाद किया हुआ है, क्योंकि यह तहदीद (हदबंदी) शरीअत के मुक़ाबले में होने की बिना पर मज़्मूम (बुरी) बिदअत शुमार होती है। हां कुछ रिवायतें हैं जिनमें सुबह शाम 10 और कुछ में 100 मर्तबा पढ़ने का बयान मिलता है.
Juma ke din Darood padhne ki Fazeelat
इबादत या ज़िक्र ओ अज़कार को बिना किसी शरई दलील के किसी जगह या वक़्त या कैफ़ियत के साथ मुक़र्रर करना जायज़ नहीं है। क्यूंकि अच्छे अमल होते हुवे भी वो बिदअ़त और गुनाह में शुमार होंगे जिसकी कई रिवायतें अहादीस में मौजूद हैं. अच्छे अमल होते हुवे भी इन्हे रोक दिया गया! इसके मुतल्लिक जानने लिए इस link ko visit करें !
यह मालूम होना ज़रूरी है कि हर बिदअत गुमराही है चाहे लोग उसे अच्छा ही समझते हों, बल्कि बिदअत तो इबलीस को म'असियत (गुनाह) और नाफ़रमानी से भी ज़्यादा महबूब और प्यारी लगती है क्योंकि इससे तौबा नहीं की जा सकती। बिदअ़ती इसे नेकी समझ कर करता है तो तौबह की सोच ही नहीं सकता !
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह कहा करते थे:
"जिस किसी ने भी दीन-ए-इस्लाम में कोई बिदअत ईजाद की और वह उसे अच्छा समझता हो तो उसने गुमान किया कि (न'ऊजु-बिल्लाह) मुहम्मद ﷺ ने रिसालत में ख़ियानत की है।"
क्या नबी करीम ﷺ ने इस ख़ैर और भलाई की तरफ़ रहनुमाई करने में (न'ऊजु-बिल्लाह) कोई कौताही की है? हालांकि रसूल करीम ﷺ तो सभी लोगों से ज़्यादा अपनी उम्मत पर हरीस थे और उनसे भी ज़्यादा उन पर रहम करने वाले थे।
और फिर रसूल करीम ﷺ ने अबू बिन क'अब रज़ियल्लाहु ताअला अन्हु की उस मु'अय्यन अदद की तरफ़ रहनुमाई क्यों न फ़रमायी? जैसा कि ऊपर हदीस में बयान हुआ है।
असल वाक़ि'आ यह है कि बहुत सारे सूफ़ी हज़रात इस क़िस्म की तहदीद में ख़्वाबों पर ऐतमाद (आत्मविश्वास) करते हैं, या फिर मुजर्रद इख़्तिरा और ईजाद पर, और अपने मुरीदों को यह बावर कराते हैं कि इससे ज़्यादा करना सही नहीं, क्योंकि ज़्यादा करने के लिए पीर और बुज़ुर्ग की इजाज़त ज़रूरी है जो उस के हालात पर मतला है, बल्कि वह उस के पोशीदा हालात को भी जानता है, इस के अलावा और बातिल क़िस्म की अशियां भी जिन के ज़रिये से यह लोग अपने पैरोकारों पर तसल्लुत (ग़लबा) जमाने की कोशिश करते हैं।
और इस बिद'अती शख़्स के बारे में ख़तरा है कि कहीं यह अपने आमाल ही ज़ाए न कर बैठे, और उसकी सारी नेकियाँ ही तबाह न हो जाएँ, और अपनी इबादत का उसे कोई अच्छा फल और नतीजा ही हासिल न हो, ख़ास कर जब वह उस बिदअत को उम्मीद से और जान-बूझ कर करे और इल्म और बसीरत हासिल न करें।
क्योंकि रसूल करीम ﷺ का फ़रमान है:"जिस किसी ने भी हमारे इस दीन में कोई ऐसा अमल ईजाद किया जो इस में से नहीं तो वह मर्दूद है।"[सहीह बुख़ारी हदीस नम्बर (2697) (1718)]
इसलिए आप देखेंगे कि इस तरह के अक्सर लोगों पर ज़िक्र का कोई असर नहीं तो उनके मामलों में ज़ाहिर होता है और न ही उनके हालात में, और इस के साथ साथ वे मशरू और मस्नून अज़कार और दुआओं में कमी और कौताही का शिकार होते हैं, जिसमें शरीअत में हद मुत'अय्यन कर रखी है मिसाल के तौर पर: "सुब्हान अल्लाह व बिहम्दह सौ बार सुबह और शाम कहना।"
इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा की हदीस की तरफ़ आपने इशारा किया है जो के दारिमी ने अम्र बिन सलामा से रिवायत की है जिसे हम ज़ैल में पेश करते हैं:
अम्र बिन सलमा बयान करते हैं हम सुबह की नमाज़ से पहले अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा के दरवाज़े पर बैठ जाते और जब वह बाहर निकलते तो हम उनके साथ मस्जिद चले जाते, हम बैठे हुए थे कि अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु तआला आये और पूछा क्या अबू अब्दुर्रहमान बाहर आये हैं? तो हमने अर्ज़ किया नहीं तो वह भी हमारे साथ बैठ गए, और जब वह बाहर निकले तो हम सब उठ कर चल दिए तो अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु तआला अब्दुल्लाह बिन मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से अर्ज़ ऐ अब्दुर्रहमान मैंने अभी अभी. मस्जिद में एक काम देखा जो मुझे अच्छा नही लगा, और अल्हम्दुलिल्लाह वह अच्छा ही मालूम होता है, इब्न मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा ने दरयाफ़्त किया वह क्या?
तो अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु तआला कहने लगे अगर तुम ज़िंदा रहोगे तो देखोगे, वह बयान करने लगे:
मैंने मस्जिद में लोगों को नमाज़ का इंतज़ार करते हुए देखा कि वे हल्क़े बांध कर बैठे हैं और हर हल्क़े में लोगों के हाथों में कंकरियाँ हैं और एक शख़्स कहता है सौ बार तकबीर कहो, तो वे सौ बार अल्लाहु अकबर कहते हैं, और वह कहता है सौ बार ला इलाहा इल्लाह कहो तो वे सौ बार ला इलाहा इल्लाह कहते हैं, वह कहता है सौ बार सुब्हानल्लाह अल्लाह कहो तो वे सौ बार सुब्हानल्लाह कहते हैं।
अबू मूसा अश'अरी रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा ने जवाब दिया:
मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा मैं आपकी राय और हुक्म का इंतज़ार कर रहा हूँ।
इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा कहने लगे:
तुमने उन्हें यह हुक्म क्यों नहीं दिया कि वे अपनी बुराइयाँ शुमार करें और उन्हें यह ज़मानत क्यों नहीं दी कि उनकी नेकियाँ ज़ाए नहीं की जाएगी?
फिर वह चल पड़े और हम भी उनके साथ गए हत्ता कि वह उन हल्क़ो में से एक हल्क़े के पास आकर खड़े हुए और फ़रमाने लगे: यह तुम क्या कर रहे हो?
उन्होंने जवाब दिया: ऐ अबु अब्दुर्रहमान, हम कंकरियों पर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लाह, और सुब्हानल्लाह पढ़ कर गिन रहे हैं।
इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अनहुमा ने फ़रमाया:तुम अपनी बुराइयों का शुमार करो, मैं तुम्हारी नेकियों का ज़ामिन हूँ, वो कोई ज़ाए नहीं होगी, ऐ उम्मत मोहम्मद ﷺ अफ़सोस है तुम पर तुम कितनी जल्दी हलाकत मे पड़ गए हो। नबी करीम ﷺ के सहाबा कितने वाफ़िर (बहुत) मिक़दार मे तुम्हारे पास है, और अभी तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कपड़े भी बौसीदा नहीं हुए हैं और न ही उनके बर्तन टूटे हैं। उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ मे मेरी जान है क्या तुम ऐसी मिल्लत पर हो जो मिल्लत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तरीक़ा से ज़्यादा हिदायत पर हो, या फिर तुम गुमराही के दरवाज़े खोलने वाले हो।
इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा ने जवाब दिया:
और कितने ही ख़ैर और भलाई का इरादा रखने वाले इसे पा नहीं सकते।
तो हर ख़ैर और भलाई का इरादा रखने वाला इसे पा नहीं सकता हमें रसूल करीम ﷺ ने बताया है कि:
"कुछ लोग क़ुरआन मजीद पढ़ेंगे लेकिन वो उनके हल्क़ो से नीचे नहीं जाएगा।"
और अल्लाह की क़सम, मुझे मालूम नहीं हो सकता है उनकी अक्सरियत तुम में से हो, ये कहकर इब्ने मस'ऊद रज़ियल्लाहु अन्हुमा वहां से चल दिए, अम्रो बिन सलमा बयान करते हैं हमने उन हल्क़ो में बैठने वाले आम अफ़राद को नहरवान की लड़ाई वाले दिन ख़ारिजियों के साथ देखा कि वे हम पर ताना कर रहे थे।"
[सुनन दारिमी, हदीस नम्बर (204)]
Read this: Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ part:1
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Conclussion:
दरूद पढ़ने से न सिर्फ इंसान के गुनाह माफ़ होते हैं बल्कि अल्लाह के करीब होने का एक जरिया भी है।हदीसों में है की जो शख्स नबी ﷺ पर एक बार दरूद पढ़ता है, अल्लाह उस पर दस रहमतें नाज़िल करता है ,और उसके दस गुनाह माफ़ होते हैं। और तो और कयामत के दिन दरूद पढ़ने वालों को नबी ﷺ की शफ़ाअ़त नसीब होगी।
दरूद दुआ की कबूलियत का जरिया है । इस लिए अपनी दुवाओं में दरूद जरूर सामिल करें। यह एक ऐसा अमल है जिसके पढ़ने से दुनिया और आखिरत दोनों जगह ही कामयाबी है।
इस लिए हमें दरूद को अपनी जिंदगी और रोज़ मर्रा के अज़कार का हिस्सा बनना चाहिए ताकि अल्लाह की रहमत और नबी ﷺ की शफाअत प्राप्त हो सके।
FAQs:
Ans: अपने प्यारे नबी करीम ﷺ पर रहमत और सलामती भेजना दरूद कहलाता है !
Ans: जब आप ﷺ से सहाबा ने अर्ज किया के हम आप पर दरूद कैसे भेजें तो आप ﷺ ने फ़रमाया कि इस तरह कहा करो
ﺍﻟـﻠَّـﻬُـﻢَّ ﺑَـﺎﺭِﻙْ ﻋَـﻠَـﻰ ﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻭَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِﻣُـــﺤَـــﻤَّـــﺪٍﷺ ﻛَـﻤَـﺎ ﺑَـﺎﺭَﻛْـﺖَ ﻋَـﻠَـﻰ ﺇِﺑْــﺮَﺍﻫِــﻴــﻢَ ﻭَﻋَـﻠَـﻰ ﺁﻝِ ﺇِﺑْــﺮَﺍﻫِــﻴــﻢَ ﺇِﻧَّـﻚَ ﺣَـﻤِـﻴـﺪٌ ﻣَـــﺠِــﻴــﺪٌ
Ans: दरूद ए इब्राहिमी यह है :
Ans: दरूद पढ़ने से दरूद पढ़ने वाले पर अल्लाह की रहमत नाज़िल होती है, उसके गुनाह बख़्श दिए जाते हैं,उसके जन्नत में दरजात बुलंद होते हैं और कयामत के दिन नबी ﷺ की शफा़अ़त हासिल होगी !
Ans:रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : मुझ पर सबसे ज़्यादा यानी कसरत से दुरूद भेजने वाला शख़्स क़ियामत के दिन मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब होगा।
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