Aakhirat ka Anjam:Gumrah karne wale Aur hone wale

"याद रखिए: “सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल की पैरवी ही निजात का रास्ता है।”किसी की अंधी पैरवी गुमराही के सिवा कुछ नहीं। 


Aakhirat ka Anjam:Gumrah karne wale Aur hone wale

Jahannum me gumrah peeron aur mureedon ke jhagde
Andhi pairwi ka anjaam 


क़ुरआन-ए-करीम, इंसान की रहनुमाई के लिए हर पहलू पर रोशनी डालता है। इसमें उन लोगों यानी Aakhirat ka Anjam:Gumrah karne wale Aur hone wale का भी ज़िक्र किया गया है जो दुनिया में ख़ुद गुमराह थे और दूसरों को भी गुमराह करते थे — जैसे झूठे पीर, रहबर और लीडर — और साथ ही उनका भी जो आंख बंद कर उनके पीछे चलते हैं। आख़िरत में, ये दोनों वर्ग जहन्नुम में एक-दूसरे को दोष देंगे, आपस में झगड़ेंगे लेकिन कोई भी बच नहीं सकेगा।
आख़िरत का अंजाम: गुमराह करने वाले और होने वाले"
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    अंधी पैरवी की सख्त मुमानअत:

    क़ुरआन बार-बार चेतावनी देता है कि इंसान को अंधी पैरवी से बचना चाहिए और अपने अमल का खुद जवाबदेह बनना चाहिए। आख़िरत में हर शख्स अपने कर्मों का हिसाब देगा। कोई भी किसी के काम नहीं आएगा और न ही मदद करेगा। 
    किसी की पैरवी कीजिए उस हद तक जितना इस्लाम इजाज़त दे उससे आगे बढ़ना यानी अंधी तक़लीद करना गुमराही का सबब बन सकता है और गुमराही जहन्नुम में ले कर जाएगी।

     गुमराह करने वाले और गुमराह होने वाले जहन्नुम में एक साथ 


    क़ुरआन कहता है:

    > "जब उनके सब (गुमराह करने वाले) पेशवाओं को और उनके अनुयायियों को हम जहन्नुम की तरफ घेरकर लाएँगे..."
    — सूरह अल-क़सस (28:41)

    > "और जब सब एक साथ आग में डाल दिए जाएँगे, तो उनके पिछलग्गू अपने सरदारों से कहेंगे, 'ऐ हमारे रब! इन्हीं ने हमें गुमराह किया, इन्हें दुगना अज़ाब दे!'"
    — सूरह अल-आअ'राफ़ (7:38-39)
    यह दिखाता है कि मुरीद (अनुयायी) आख़िरत में अपने पिरों (गुमराह रहनुमाओं) को इल्ज़ाम देंगे।
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     जहन्नुम में आपसी मलामत और बेबसी का मंज़र (इल्ज़ाम तराशी)

    अल्लाह तआला फ़रमाता है:
    "और जब वे सब आग में आपस में झगड़ेंगे, तो कमजोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे, 'हम तो तुम्हारे अनुयायी थे, तो क्या अब तुम इस आग का कोई हिस्सा हमसे दूर कर सकते हो?'"
    "बड़े लोग कहेंगे, 'हम सब इसी में हैं, वास्तव में अल्लाह ने अपने बंदों के बीच फैसला कर दिया है।'"सूरा मोमिन (40:47-48)

    वजाहत: यहाँ देखा जा सकता है कि अंधी पैरवी करने वाले अपने सरदारों से मदद मांगते हैं, लेकिन वहाँ कोई मदद नहीं मिलती।

    > "हर बार जब कोई गिरोह उसमें डाला जाएगा, तो उसका एक रहनुमा दूसरे पर लानत करेगा... जब सब उसमें जमा हो जाएँगे, तो पीछे आने वाले आगे वालों से कहेंगे, 'ऐ हमारे रब! इन्हीं ने हमें गुमराह किया, तो इन्हें आग का दुगना अज़ाब दे!'..."
    — सूरह अल-आअ'राफ़ (7:38-39)
    इससे यह बात साबित होती है कि झूठे पिर और इनके चाहने वाले, दोनों जहन्नुम में होंगे और एक-दूसरे को इल्ज़ाम देंगे।

    अफ़सोस और मलामत

    "जिस दिन उनके चेहरे आग में उलट-पलट किये जाएंगे, तो वे कहेंगे, 'हाय! काश हमने अल्लाह और रसूल की बात मानी होती।'"
    "और कहेंगे, 'हमने अपने सरदारों और बड़ों की बात मानी और उन्होंने हमें रास्ते से भटका दिया।'"
    "ऐ हमारे रब! उन्हें दोहरा अज़ाब दे और उन पर बड़ी लानत कर।"सूरा अहज़ाब (66-68)

    वजाहत: ये झगड़े दिखाते हैं कि आख़िरत में अफ़सोस और मलामत के अलावा कुछ हाथ नहीं आएगा।

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    शैतान कहेगा, 'मैंने तो बस बुलाया, तुमने मान लिया। अब मुझे मलामत मत करो बल्कि खुद को करो..सूरा इब्राहीम (14:21-22)शैतान और गुमराह लीडर आख़िरत में साफ कह देंगे कि हमने ज़बरदस्ती नहीं की। ये तुम्हारा खुद का फैसला था।

    आपसी बहस और गुमराही का इल्ज़ाम 

     
    Gumrah rahnuma aur andhe pairokaar
    Jahannum me peer aur mureed ka jhagda 

    सूरा साफ़्फ़ात आयत 27 से 35 में इस बात को उजागर करता है कि हर कोई एक-दूसरे को दोष देगा, लेकिन सभी को अज़ाब मिलेगा।

    फिर वे आपस में एक-दूसरे से पूछेंगे...”
    “हमने जबरदस्ती नहीं की, तुम खुद गुमराह थे।”
    “अब हम सब अज़ाब में साझेदार हैं।”


    वजाहत (व्याख्या):

    इन आयतों में जहन्नुम में होने वाले आपसी झगड़ों और इल्ज़ामात का दृश्य बताया गया है।

    • आयत 27-33: यह एक इल्ज़ाम-तराशी का मंज़र है जहाँ गुमराह अनुयायी और उनके लीडर आपस में बहस करते हैं। अनुयायी आरोप लगाते हैं कि तुम हमें भटकाते थे, जबकि रहनुमा कहते हैं कि हमने जबरदस्ती नहीं की, तुम खुद सरकश थे।

    • आयत 34-36: अल्लाह फरमा रहा है कि यह सज़ा मुजरिमों के लिए तय है, क्योंकि वे हक़ बात को घमंड से ठुकराते थे — जैसे तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) को न मानना।

    • आयत 37-40: यहां हक़ रसूल (हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सच्चाई और उनकी तस्दीक़ की बात की जा रही है, और साफ़ किया जा रहा है कि अज़ाब सिर्फ मुजरिमों के लिए है, जबकि अल्लाह के नेक बंदे इससे महफूज़ रहेंगे।

    वजाहत: यह संवाद उन लोगों का है जो दुनिया में एक-दूसरे को गुमराही की तरफ ले गए थे। अब सब खुद को बेगुनाह बता रहे हैं, लेकिन अज़ाब में सभी बराबर के हिस्सेदार होंगे।


    शैतान भी पल्ला झाड़ लेगा —शैतान का अपने मानने वालों से इन्कार


    "कमजोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे, 'हम तो तुम्हारे अनुयायी थे, क्या तुम अल्लाह के अज़ाब में से कुछ हमसे दूर कर सकते हो?'..."
    "शैतान कहेगा, 'मैंने तो बस बुलाया, तुमने मान लिया। अब मुझे मलामत मत करो बल्कि खुद को करो...'"
    — सूरा इब्राहीम (14:21-22)

    वजाहत: शैतान और गुमराह लीडर आख़िरत में साफ कह देंगे कि हमने ज़बरदस्ती नहीं की। ये तुम्हारा खुद का फैसला था।


    दुनिया की दोस्तियाँ वहाँ दुश्मनी बन जाएँगी

    > "उस दिन दोस्त आपस में दुश्मन बन जाएँगे, मगर मुत्तक़ी (परहेज़गार) नहीं।"
    — सूरह अज़-ज़ुखरुफ़ (43:67)


    जो दोस्ती अल्लाह के लिए नहीं, बल्कि दुनिया या गुमराही की बुनियाद पर थी, वह जहन्नुम में दुश्मनी में बदल जाएगी।


    सबक और नसीहत

    इस्लाम हमें यह सिखाता है कि हम आँख बंद कर किसी को न मानें, चाहे वो कोई पीर हो, लीडर हो या मशहूर शख्सियत। हमें कुरआन और सही हदीसों के मुताबिक अपने अकीदे और अमल की तसहीह करनी चाहिए।
    पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया:

    “तुममें से हर शख्स ज़िम्मेदार है और उससे उसकी ज़िम्मेदारी के बारे में पूछा जाएगा।”
    — सहीह बुखारी

    मुख्य नसीहत:

    • अंधी पैरवी(Blind following) जहन्नुम की तरफ ले जा सकती है।
    • पीर, लीडर, या मशहूर शख्सियत की बात को सिर्फ इस वजह से न मानें कि वह मशहूर है।
    • सिर्फ पीर, उस्ताद, या लीडर को फॉलो करना काफी नहीं — हक़ और दलील पर चलना जरूरी है।
    • सही रास्ता सिर्फ वही है जो क़ुरआन और सहीह हदीस से साबित हो।
    • आख़िरत में हर इंसान अकेला होगा, कोई किसी के काम नहीं आएगा।
    • दोस्ती, रिश्ते, ओहदे — सब बेकार होंगे, जब तक वे अल्लाह की रज़ा के लिए न हों।
    • जहन्नुम की हक़ीक़त और वहाँ के झगड़ों का कुरआनी बयान हमें आगाह करता है कि:
    • हम सिर्फ हक़ और दलील के पीछे चलें।
    • अपने अकीदे और अमल की तजुर्बा-कारी करें।
    • किसी की ताअत सिर्फ उस हद तक करें जो अल्लाह और रसूल (ﷺ) के खिलाफ न जाए।

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    निष्कर्ष (Conclusion):

    ऊपर आयात में  Aakhirat ka Anjam:Gumrah karne wale Aur hone wale  का अच्छी तरह से  जिक्र किया गया है और क़ुरआन हमें साफ़ तौर पर आगाह करता है कि आख़िरत में कोई रिश्ता, ओहदा या अंधी वफादारी इंसान को अल्लाह के अज़ाब से नहीं बचा सकेगी। जो लोग दुनिया में खुद को “रहनुमा” समझकर दूसरों को गुमराह करते हैं, और जो लोग बिना सोच-विचार उनके पीछे चलते हैं, वे सब एक साथ जहन्नुम में होंगे — और वहाँ कोई भी किसी की मदद नहीं कर सकेगा। 

    इस्लाम हमें सिखाता है कि हमें सच्चाई को पहचान कर, दलील और समझदारी से अपने रास्ते का चुनाव करना चाहिए। कुरआनी आयतें इस बात की ज़िंदा गवाही हैं कि केवल अल्लाह और उसके रसूल की पैरवी ही निजात का रास्ता है। 

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    FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
    1. क्या कुरआन में पिर और मुरीदों के झगड़े का ज़िक्र है?
    जी हां, कुरआन में कई आयतें मौजूद हैं जहाँ जहन्नुम में अनुयायी (मुरीद) अपने रहनुमा (पिर/लीडर) को गुमराही के लिए ज़िम्मेदार ठहराएंगे। (जैसे: सूरा अहज़ाब 33:67)
    2. क्या आख़िरत में किसी और की पैरवी से निजात मिल सकती है?
    नहीं, कुरआन के मुताबिक हर इंसान को अपने अमल का खुद जवाबदेह होना होगा। (सूरा इब्राहीम 14:22)
    3. क्या शैतान अपने मानने वालों की मदद करेगा?
    कुरआन साफ़ कहता है कि शैतान कहेगा: "मैंने सिर्फ बुलाया, तुमने खुद मान लिया।" यानी वह कोई मदद नहीं करेगा। (सूरा इब्राहीम 14:22)
    4. क्या इस्लाम में अंधी पैरवी (ब्लाइंड फॉलोइंग) की इजाज़त है?
    नहीं, इस्लाम में हर इंसान को कुरआन और सुन्नत के मुताबिक सोच-विचार कर फैसला लेने की तालीम दी गई है।
    5. इन आयतों से आज के दौर के लिए क्या सबक मिलता है?
    इन आयतों से यह सबक मिलता है कि हमें किसी भी लीडर या पीर की बातें आँख बंद करके नहीं माननी चाहिए जब तक कि वह कुरआन और सुन्नत के मुताबिक न हों। 




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