islam me Qabar parasti Aur but Parasti mana kyun?/इस्लाम में कब्र परस्ती और बुत परस्ती मना क्यों ?
क़ब्र परस्ती और बुत परस्ती |
बुत परस्ती या क़ब्र परस्ती जिसे "شرك في العبادة" (Shirk fi al-Ibadah) कहा जाता है, यह एक बहुत बड़ा गुनाह है, जिसकी बगैर तौबा बख्शीश नही और शरीयत ने इसे सख्ती से मना किया है। यह अरबी में "شرك" (Shirk) के रूप में जाना जाता है, जिसका मतलब है "अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला के जात व शिफ़ात में किसी और को शामिल करना"। यानी किसी भी व्यक्ति या चीज को अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला के साथ समान या उसके बराबर मानना है।
islam me Qabar parasti Aur but Parasti mana kyun ? इस लिए की यह बहुत बड़ा जुर्म है, इंसान अल्लाह को भूल कर इन्ही कब्र वालों , पीरों और बुजुर्गों को अपना मुश्किल कुशा, हाजत र वां समझता है और जैसी मोहब्बत अल्लाह से होनी चाहिए वैसी इन कब्र वालों से करते हैं ! अल्लाह का दर छोड़ कर कब्र वालों का दर पकड़ लेते हैं !
इसकी दलील क़ुरान की यह आयत सुरह बकरह 165 में यूं बयान हुई है :और कुछ लोग ऐसे हैं जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसका बराबर ठहराते हैं, उनसे ऐसी मुहब्बत रखते हैं जैसी मुहब्बत अल्लाह से रखना चाहिए, और जो ईमान वाले हैं वे सब से ज़्यादा अल्लाह से मुहब्बत रखने वाले हैं, और अगर ये ज़ालिम उस वक़्त को देख लें जबकि वे अज़ाब को देखेंगे कि ज़ोर सारा का सारा अल्लाह का है, और अल्लाह बड़ा सख़्त अज़ाब देने वाला है।
जो बुत मूसा (अलैहि०) की क़ौम में पूजे जाते थे बाद में वही अरब में पूजे जाने लगे। वद दूमतुल-जन्दल में बनी-कल्ब का बुत था। सुवाअ बनी हुज़ैल का। यग़ूस बनी-मुराद का और मुराद की शाख़ बनी-ग़ुतैफ़ का जो वादी अज्वफ़ में क़ौमे-सबा के पास रहते थे यऊक़ बनी-हमदान का बुत था। नसर हिमयर का बुत था जो ज़ुल-कलाअ की आल में से थे। ये पाँचों नूह (अलैहि०) की क़ौम के नेक लोगों के नाम थे जब उन की मौत हो गई तो शैतान ने उन के दिल में डाला कि अपनी मजलिसों में जहाँ वो बैठे थे उन के बुत क़ायम कर लें और उन बुतों के नाम अपने नेक लोगों के नाम पर रख लें चुनांचे उन लोगों ने ऐसा ही किया उस वक़्त उन बुतों की पूजा नहीं होती थी लेकिन जब वो लोग भी मर गए जिन्होंने बुत क़ायम किये थे और इल्म लोगों में न रहा तो उन की पूजा होने लगी।(सहीह बुखारी:4920)
सूरः अल नज्म आयत 19 में अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फरमान है कि भला तुम लोगों ने लात और उज़्जा को देखा, लात उस बुत का नाम था जिसकी मुश्रिकीन ए अरब इबादत करते थे! इस आयत की तफसीर में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास फरमाते हैं: लात एक आदमी का नाम था जो हाजियों को सत्तू घोल कर पिलाता था जब उसकी वफात हो गई तो लोगों ने उसकी कब्र को इबादतगाह बना लिया!
और सुरह सबा आयत 41,42 में अल्लाह फरमाता है की मुश्रिकीन ए अरब ने फरिश्तों को भी अपना माबुद बना लिया था जिन को अपनी हाजातों के वक्त पुकारा करते थे
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क़ुरआन में अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है की:
इन बातों का ध्यान रखों और जो कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का आदर करे, तो यह उस के रब के यहाँ उसी के लिए अच्छा है। और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल है, सिवाय उन के जो तुम्हें बताए गए हैं। तो मूर्तियों की गन्दगी से बचो और बचो झूठी बातों से ! (सुरह अल हज:30)
यहां इस आयत में बुत को गन्दगी, गलाज़त कहा गया है और कोई भी इंसान गंदगी या गलाज़ात के पास नहीं जाता है उससे दूर ही रहता है और जो जाता है वो खुद ही सोचे की गन्दगी के पास कौन जाता है ?
हज़रत क़ैस-बिन-सअद (रज़ि०) बयान करते हैं कि में हैरा पहुँचा तो मैंने वहाँ के बाशिन्दों को अपने सिपह सालार को सजदा करते हुए देखा तो मैंने कहा : रसूलुल्लाह ﷺ का ज़्यादा हक़ है कि उन्हें सजदा किया जाए। में रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। तो कहा : में हैरा गया था मैंने वहाँ के बाशिन्दों को अपने सिपहसालार को सजदा करते हुए देखा आप ज़्यादा हक़ दार हैं कि आप को सजदा किया जाए आप ﷺ ने फ़रमाया : मुझे बताओ अगर तुम मेरी क़ब्र के पास से गुज़रो तो क्या तुम उसे सजदा करोगे? मैंने कहा : नहीं, आप ﷺ ने फ़रमाया : मत करो अगर में किसी को हुक्म देता कि वो किसी को सजदा करे तो में औरतों को हुक्म देता कि वो अपने शौहरों को सजदा करें इस लिये कि अल्लाह ने उन्हें उन पर हक़ अता किया है। (अबू-दाऊद) (मिश्कात अल मासाबीह:3266)
Note: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इतने सारे फरामीन और उम्मत को डराने के बाद भी उम्मत बुज़ुर्ग परस्ती और क़ब्र परस्ती में डूब गई. इतना ही नहीं अब उम्मत इससे भी आगे निकल गई है और अब बुत परस्ती भी करने लगी है! जिसकी मिसाल ऊपर एक तस्वीर में नज़र आ रही है!
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क़ुरआन में बुत परस्ती की ममानत
इन बातों का ध्यान रखों और जो कोई अल्लाह द्वारा निर्धारित मर्यादाओं का आदर करे, तो यह उस के रब के यहाँ उसी के लिए अच्छा है। और तुम्हारे लिए चौपाए हलाल है, सिवाय उन के जो तुम्हें बताए गए हैं। तो मूर्तियों की गन्दगी से बचो और बचो झूठी बातों से ! (सुरह अल हज:30)
यहां इस आयत में बुत को गन्दगी, गलाज़त कहा गया है और कोई भी इंसान गंदगी या गलाज़ात के पास नहीं जाता है उससे दूर ही रहता है और जो जाता है वो खुद ही सोचे की गन्दगी के पास कौन जाता है ?
अब आगे देखिए अल्लाह का फरमान क्या है :
ख़बरदार! दीन ख़ालिस अल्लाह का हक़ है। रहे वो लोग जिन्होंने उसके सिवा दूसरे सरपरस्त बना रखे हैं (और अपने अमल की तौजीह ये करते हैं कि) हम तो उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिये करते हैं कि वो अल्लाह तक हमारी रसाई करा दें। अल्लाह यक़ीनन उनके बीच उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा जिनमें वो इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं। अल्लाह किसी ऐसे शख़्स को हिदायत नहीं देता जो झूठा और हक़ का इनकार करनेवाल हो। ( सुरह अल जुमर:3)
उनका अकीदाह था कि हम इस लिए इनकी इ़बादत करते हैं की ये हमे अल्लाह तक पहुंचा देंगे ये हमारी अल्लाह से सिफ़ारिश करेंगे ! और इसी को इस्लाम में मना किया गया है क्योंकि यही तो शिर्क है !
ये लोग अल्लाह के सिवा उनकी इ़बादत कर रहे हैं जो उनको न नुक़सान पहुँचा सकते हैं, न फ़ायदा, और कहते ये हैं कि ये अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी हैं। ऐ नबी ! इनसे कहो, “क्या तुम अल्लाह को उस बात की ख़बर देते हो जिसे वो न आसमानों में जानता है, न ज़मीन में?” [ 24] पाक है वो और बुलन्द और बरतर है उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं। (सुरह युनुस :18)
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ख़बरदार! दीन ख़ालिस अल्लाह का हक़ है। रहे वो लोग जिन्होंने उसके सिवा दूसरे सरपरस्त बना रखे हैं (और अपने अमल की तौजीह ये करते हैं कि) हम तो उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिये करते हैं कि वो अल्लाह तक हमारी रसाई करा दें। अल्लाह यक़ीनन उनके बीच उन तमाम बातों का फ़ैसला कर देगा जिनमें वो इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं। अल्लाह किसी ऐसे शख़्स को हिदायत नहीं देता जो झूठा और हक़ का इनकार करनेवाल हो। ( सुरह अल जुमर:3)
उनका अकीदाह था कि हम इस लिए इनकी इ़बादत करते हैं की ये हमे अल्लाह तक पहुंचा देंगे ये हमारी अल्लाह से सिफ़ारिश करेंगे ! और इसी को इस्लाम में मना किया गया है क्योंकि यही तो शिर्क है !
ये लोग अल्लाह के सिवा उनकी इ़बादत कर रहे हैं जो उनको न नुक़सान पहुँचा सकते हैं, न फ़ायदा, और कहते ये हैं कि ये अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी हैं। ऐ नबी ! इनसे कहो, “क्या तुम अल्लाह को उस बात की ख़बर देते हो जिसे वो न आसमानों में जानता है, न ज़मीन में?” [ 24] पाक है वो और बुलन्द और बरतर है उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं। (सुरह युनुस :18)
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सुरह: अल आराफ में सुरह 191,192,194 और 195 में बुत परस्ती की ममानत
कैसे नासमझ हैं ये लोग कि उनको अल्लाह का शरीक ठहराते हैं जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते, बल्कि ख़ुद पैदा किए जाते हैं,Note: यहां ध्यान देने वाली बात है की इस आयत में अल्लाह का खुला फ़रमान है की इंसानों के तो हाथ,पांवों, आंखें और कान हैं जिनके ज़रिए इंसान पकड़ते, चलते,देखते और सुनते हैं लेकिन इनके माबूद जो खुद इन्ही जैसे बंदे हैं न खुद चल फिर सकते हैं ,न बोल सकते हैं और नही सुन सकते हैं यानी कुछ भी नहीं कर सकते हैं. फिर ये किस तरफ गुमराही में जा रहे हैं !
जो न उनकी मदद कर सकते हैं और न आप अपनी मदद ही पर क़ुदरत रखते हैं।
तुम लोग अल्लाह को छोड़कर जिन्हें पुकारते हो वो तो सिर्फ़ बन्दे हैं, जैसे तुम बन्दे हो। इनसे दुआएँ माँग देखो, ये तुम्हारी दुआओं का जवाब दें अगर इनके बारे में तुम्हारे ख़याल सही हैं।
क्या ये पाँव रखते हैं कि उनसे चलें? क्या ये हाथ रखते हैं कि उनसे पकड़ें? क्या ये आँख रखते हैं कि उनसे देखें? क्या ये कान रखते हैं कि उनसे सुनें? [ 148] ऐ नबी ! इनसे कहो कि “बुला लो अपने ठहराए हुए साझीदारों को, फिर तुम सब मिलकर मेरे ख़िलाफ़ तदबीरें करो और मुझे हरगिज़ मोहलत न दो,
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फ़िर सुरह अल अराफ के आयत 138,139 और 140 में भी बुतों की मजम्मत की गई है
और हमने बनी-इस्राईल को समुंदर के पार उतार दिया फिर उनका गुज़र एक ऐसी क़ौम पर हुआ जो अपने बुतों (की इबादत) पर जमी हुई थी, उन्होंने कहाः ऐ मूसा! हमारी इबादत के लिए भी एक बुत बना दो जैसे इनके बुत हैं, मूसा (अलै॰) ने कहाः तुम तो बड़े जाहिल लोग हो।
ये लोग जिस काम में लगे हुए हैं वह बरबाद होने वाला है और ये जो कुछ कर रहे हैं सब झूठा है।
मूसा (अलै॰) ने कहाः क्या मैं तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा कोई और माबूद तलाश करूँ हालाँकि उसने तुमको तमाम जहानों पर फ़ज़ीलत दी है।
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जब रसूलुल्लाह (सल्ल०) हुनैन के लिये निकले तो आपका गुज़र मुशरेकीन के एक पेड़ के पास से हुआ, जिसे ज़ात अनवात कहा जाता था। उस पेड़ पर मुशरेकीन अपने हथियार लटकाते थे, सहाबा ने कहा : अल्लाह के रसूल! हमारे लिये भी एक ज़ात अनवात मुक़र्रर फ़रमा दीजिये जैसा कि मुशरेकीन का एक ज़ात अनवात है। नबी अकरम (सल्ल०) ने फ़रमाया : सुब्हान अल्लाह! ये तो वही बात है, जो मूसा (अलैहि०) की क़ौम ने कही थी कि हमारे लिये भी माबूद बना दीजिये जैसा उन मुशरिकों के लिये है। उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है! तुम पिछली उम्मतों की पूरी-पूरी पैरवी करोगे। (सुन्न तिर्मज़ी:2180)
बुत परस्ती और कब्र परस्ती के फितनों से मुतल्लिक नबी ﷺ का फ़रमान
जब रसूलुल्लाह (सल्ल०) हुनैन के लिये निकले तो आपका गुज़र मुशरेकीन के एक पेड़ के पास से हुआ, जिसे ज़ात अनवात कहा जाता था। उस पेड़ पर मुशरेकीन अपने हथियार लटकाते थे, सहाबा ने कहा : अल्लाह के रसूल! हमारे लिये भी एक ज़ात अनवात मुक़र्रर फ़रमा दीजिये जैसा कि मुशरेकीन का एक ज़ात अनवात है। नबी अकरम (सल्ल०) ने फ़रमाया : सुब्हान अल्लाह! ये तो वही बात है, जो मूसा (अलैहि०) की क़ौम ने कही थी कि हमारे लिये भी माबूद बना दीजिये जैसा उन मुशरिकों के लिये है। उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है! तुम पिछली उम्मतों की पूरी-पूरी पैरवी करोगे। (सुन्न तिर्मज़ी:2180)
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हज़रत क़ैस-बिन-सअद (रज़ि०) बयान करते हैं कि में हैरा पहुँचा तो मैंने वहाँ के बाशिन्दों को अपने सिपह सालार को सजदा करते हुए देखा तो मैंने कहा : रसूलुल्लाह ﷺ का ज़्यादा हक़ है कि उन्हें सजदा किया जाए। में रसूलुल्लाह ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। तो कहा : में हैरा गया था मैंने वहाँ के बाशिन्दों को अपने सिपहसालार को सजदा करते हुए देखा आप ज़्यादा हक़ दार हैं कि आप को सजदा किया जाए आप ﷺ ने फ़रमाया : मुझे बताओ अगर तुम मेरी क़ब्र के पास से गुज़रो तो क्या तुम उसे सजदा करोगे? मैंने कहा : नहीं, आप ﷺ ने फ़रमाया : मत करो अगर में किसी को हुक्म देता कि वो किसी को सजदा करे तो में औरतों को हुक्म देता कि वो अपने शौहरों को सजदा करें इस लिये कि अल्लाह ने उन्हें उन पर हक़ अता किया है। (अबू-दाऊद) (मिश्कात अल मासाबीह:3266)
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इंसान को इंसान के लिए सजदह से मना
सैयदना मआ़ज़ बिन जबल (रज़ि०) से रिवायत है, वो कहते हैं की : जब मैं यमन से वापस आया तो मैंने कहा की ऐ अल्लाह के रसूल ! मैने यमन में देखा के वहां के लोग एक दूसरे को सजदा करते हैं ,तो क्या हम भी आप को सजदह न किया करें ? आप ﷺ ने फरमाया: अगर मैं बशर को बशर के लिए सजदह की इजाज़त देना होती तो मैं बीवी को हुक्म देता के वो खवांड को सजदह करे ! (मुसनद अहमद:7105)
Note: इस हदीस में साफ़ तौर पर एक इंसान को दूसरे इंसान के लिए सजदह की इज़ाजत नही है तो भला कैसे इंसान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फ़रमान को ठुकरा कर अपने पिरों,बुजुर्गों और क़ब्र में दफ़न शुदह को सजदह करते हैं ,झुकते हैं चौखट चूमते हैं.
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उम्मत के बदतरीन लोग
रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि० ने फ़रमाया "मेरी उम्मत के बदतरीन लोग वो होंगे जो क़ब्रों की इबादत करेंगे, और जिनकी ज़िन्दगी ही में उनके ऊपर क़यामत आएगी."(सही इब्ने खुज़ैमा: 789, सही इब्ने हिब्बान: 6808, मुसनद अहमद: 1/405)
और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि० से रिवायत है के जब आप ﷺ मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया :
"यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया"आप सल० अलैहि० ये फ़रमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे.(सही बुखारी, 435-436)
और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि० से रिवायत है के जब आप ﷺ मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया :
"यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया"आप सल० अलैहि० ये फ़रमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे.(सही बुखारी, 435-436)
Qabar parasti aur but Parasti |
Note: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इतने सारे फरामीन और उम्मत को डराने के बाद भी उम्मत बुज़ुर्ग परस्ती और क़ब्र परस्ती में डूब गई. इतना ही नहीं अब उम्मत इससे भी आगे निकल गई है और अब बुत परस्ती भी करने लगी है! जिसकी मिसाल ऊपर एक तस्वीर में नज़र आ रही है!
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की क़ब्र हुजरे में क्यूं ?
Qabar hujre me kyun? |
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं "ऐे मेरी उम्मत के लोगों, ख़बरदार हो जाओ के तुमसे पहले जो लोग गुज़रे हैं उन्होंने अपने औलिया और अम्बिया की क़ब्रों को अपना इबादतगाह बन लेते थे, ख़बरदार..तुम क़ब्रों को इबादतगाह मत बनाना, मैं तुम्हे ऐसा करने से मना करता हूँ"(मुस्लिम 1188)
मुहम्मद सल० अलैहि० ने दुआ की "ऐे अल्लाह मेरी क़ब्र को इबादत की जगह न बना देना, उनलोगों पे क़हर बेहद ख़ौफनाक था जिन्होंने अपने पैगम्बरों की क़ब्रों को सजदहगाह बना लिया "(मोअत्ता मालिक 9/88)
अम्मा आइशा और सहाबा को डर था की कहीं लोग आप ﷺ की कब्र को सजदा गाह ना बना लें !
नबी करीम (सल्ल०) ने अपने इस मर्ज़ के मौक़े पर फ़रमाया था जिससे आप (सल्ल०) जाँ-बर न हो सके थे कि अल्लाह तआला की यहूद और नसारा पर लानत हो। उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को सजदागाह बना लिया। अगर ये डर न होता तो आप (सल्ल०) की क़ब्र भी खुली रहने दी जाती। लेकिन डर उसका है कि कहीं उसे भी लोग सजदा गाह न बना लें ! (सहीह अल्बुखरी:1390, मुसनद अहमद :3341)
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अब यह हदीस बताएगी के islam me Qabar parasti Aur but Parasti mana kyun हैं क्योंकि नबी ﷺ ने इसे सख्ती से मना फ़रमाया है! पढ़ें हदीस
हज़रत अबुल-हय्याज असदी (रह०) बयान करते हैं कि अली (रज़ि०) ने मुझे फ़रमाया : क्या में तुम्हें ऐसे काम की ज़िम्मेदारी न सौंपूँ, जो ज़िम्मेदारी रसूलुल्लाह ﷺ ने मुझे सौंपी थी कि तुम हर मूर्ती को मिटा दो और हर ऊँची क़ब्र को बराबर कर दो। (मुस्लिम)(मिशकात अल मसाबीह:1696)Note: इस हदीस में बुत या मूर्ती तोड़ने और कब्रों को बराबर और ऊंचा न करने का हुक्म दिया गया है तो इस्लाम में बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती करने का सवाल ही पैदा नहीं होता! जो ये काम करते है या तो उन्हें सहीह दीन का इल्म नहीं है या इस्लाम से उनका कोई तअ़ल्लुक नहीं है ! वे गुमराह और दीन से भटके हुवे लोग हैं !
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Conclusion:
islam me Qabar parasti Aur but Parasti mana kyun? क्यूंकि इस अमल को शिर्क माना जाता है, इसको सख्ती से मना किया गया है। एक अल्लाह की इबादत और उसकी ही बंदगी करना इस्लामी ताअ़लीमात है ।इस्लाम में बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती को शिर्क माना जाता है, जो कि अल्लाह के साथ किसी अन्य को साझी बनाने के समान है। इस्लाम सच्चे एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा देता है, जहाँ अल्लाह को एकमात्र इबादत का हक़दार माना जाता है। इसलिए, बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती से रोका गया है,मुसलमानों को बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती से बचने के लिए दीन की सही इल्म की तलाश में रहना चाहिए ! अल्लाह और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बताए अहकाम पर अमल और सीधे रास्ते पर चलना चाहिए और अल्लाह की इबादत व ज़िक्र ओ अज़कार में लगे रहना चाहिए।
FAQs:
सवाल: बुत परस्ती क्या है?
जवाब: बुत परस्ती मरे हुए नेक बुजुर्गों की मूर्ति बनाकर उनकी की पूजा या इबादत करना उनसे या उनके वसीले से कुछ मांगना है, जहाँ इन्हें देवता या अल्लाह का वली माना जाता है।
सवाल: क़ब्र परस्ती क्या है?
जवाब: क़ब्र परस्ती मरने के बाद कब्रों में दफ़न शुदह बुजुर्गों या पीरों की क़ब्रों को पूजने या उनसे मदद मांगने की प्रथा है, जो कि हमारे कुछ मुस्लिम भाइयों में पाई जाती है।और यह शरीयत के खिलाफ है !
सवाल: इस्लाम में बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती का स्थान क्या है?
जवाब: इस्लाम में बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती को शिर्क (अल्लाह के साथ किसी अन्य को साझी बनाना) माना जाता है और यह पूर्णतः निषिद्ध है। और क़ुरान में इसे बहुत बड़ा ज़ुल्म या गुनाह बताया गया है!
सवाल: बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती के खिलाफ इस्लामिक शिक्षाएँ क्या हैं?
जवाब: इस्लाम में एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा दी जाती है, जिसमें केवल अल्लाह की इबादत की जाती है और किसी भी प्रकार की मूर्ति या क़ब्र की पूजा को गलत माना जाता है।
सवाल: बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती से बचने के लिए इस्लाम में क्या उपाय बताए गए हैं?
जवाब: इस्लाम में बुत परस्ती और क़ब्र परस्ती से बचने के लिए इल्म (ज्ञान) हासिल करना, सहीह दीन की जानकारी बहुत ज़रूरी है ! जो उल्मा अल्लाह और उसके रसूल की तालीमात की तरफ़ बुलाते हैं उनकी बातों को सुनें उनके पास बैठें और दिन सीखें !
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