Zindagi me hi Maan jao Warna Maut ke Baad der ho jayegi

"अल्लाह से सुलह का वक्त अभी है।ज़िंदगी में तौबा, इबादत, नेक आमाल और अल्लाह की रज़ा की तलाश करनी चाहिए, वरना मौत के बाद सिर्फ़ अफ़सोस रह जाएगा।


🕌 जिंदगी में ही मान जाओ, वरना मौत के बाद देर हो जाएगी!

Bando ki Allah se sulah
Zindagi rahte maan jaao 

ज़िंदगी अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है। इंसान को इस दुनिया में इसलिए भेजा गया कि वह अल्लाह की पहचान करे, उसकी इबादत करे और नेक रास्ते पर चले। मगर अफसोस! बहुत से लोग इस हक़ीक़त को भूल जाते हैं और गुनाहों में डूबे रहते हैं।
आज हम इस लेख Zindagi me hi Maan jao Warna Maut ke Baad der ho jayegi  में एक ऐसे फ़कीर और बादशाह की कहानी से सबक लेंगे जो हमें यही याद दिलाती है कि

Urdu me yahan padhenBandon ki Allah se sulah

 "ज़िंदगी में ही अल्लाह से सुलह कर लो, वरना मौत के बाद तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाएगा।"

फ़कीर का पैग़ाम बाज़ार में

एक बार की बात है, एक फ़कीर बाज़ार के बीचों-बीच बैठा लोगों को आवाज़ दे रहा था। उनको अपनी तरफ़ मोतवजह कर रहा था। उसकी आवाज़ बुलंद और दिल में उतर जाने वाली थी। वह कह रहा था। 

"ऐ अल्लाह के बंदों! रुक जाओ, अभी वक्त है। अपने गुनाहों से तौबा कर लो। यह ज़िंदगी चंद रोज़ की है, हमेशा की ज़िंदगी अल्लाह के पास है। अल्लाह बड़ा मेहरबान है, वह तुम्हारे गुनाहों को माफ कर देगा। लौट आओ अल्लाह की तरफ़, कहीं देर न हो जाए। पता नहीं कब अल्लाह का बुलावा आ जाए और सांसें रुक जाए,ज़िन्दगी थम जाए और फ़िर मोहलत न मिले। लौट आओ अल्लाह की तरफ़! लौट आओ अल्लाह की तरफ़!

यह बुलंद आवाज़ मुसलसल फ़िज़ा में गूंज रही थी,पर अफ़सोस ! कुछ लोग उसकी आवाज़ सुनते मगर मज़ाक उड़ाकर चले जाते। कोई हंसता, कोई ताने कसता और कोई अनसुना कर देता।

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दुनिया की ज़िंदगी ही असली मौका है अल्लाह से सुलह करने का, तौबा करने का, नेकियों की तरफ़ लौट आने का। जब तक जान बाकी है, अल्लाह बार-बार तौबा क़ुबूल करता है, जैसा कि क़ुरआन में है। लेकिन मौत के बाद अब इंसान की कोई दलील, कोई रोना-धोना, कोई तौबा क़ुबूल नहीं होगी।

✦ बादशाह और फ़कीर की मुलाक़ात

Waqt se pahle taubah kar lo
Laut Aao Allah ki taraf 

इत्तेफ़ाक़ से उसी वक्त बादशाह उधर से गुज़रा। उसने फ़कीर को देखा और पूछा:

ऐ फ़क़ीर, तुम ये क्या कर रहे हो?
फ़कीर ने मुस्कुराकर कहा:
"मैं अल्लाह के बंदों की अल्लाह से सुलह करवा रहा हूँ। अल्लाह तो माफ करने के लिए तैयार है, लेकिन बंदे अपनी ज़िद और गुनाहों से बाज़ नहीं आ रहे।"
फ़कीर कह रहा था: "अल्लाह तो मान रहा है, बंदे नहीं मान रहे हैं।"

बादशाह यह सुनकर सोच में पड़ गया। वहां से चला गया लेकिन फ़क़ीर की बातों से उसके दिल में बेचैनी पैदा हो गई।

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ज़िंदगी में इंसान ग़फ़लत में है, अल्लाह की बार-बार दी हुई मोहलत को गंवा रहा है। मौत आ जाए तो बन्दे चाहेंगे कि काश हमें वापस लौटा दिया जाए, लेकिन तब देर हो चुकी होगी।

✦ कब्रिस्तान में फ़कीर से मुलाक़ात 

वक्त गुजरता गया,कुछ दिनों बाद वही बादशाह कब्रिस्तान से गुज़र रहा था। उसने देखा कि वही फ़कीर क़ब्रिस्तान में बैठा हुआ है।

बादशाह ने पूछा:
"ऐ फ़कीर! अब यहाँ क्या कर रहे हो?"

फ़कीर ने आह भरी और कहा:
"आज भी मैं अल्लाह के बंदों की सुलह करवा रहा हूँ। लेकिन अब हालात उलट गए हैं। अब बंदे तो मान रहे हैं, मगर अल्लाह नहीं मान रहा।"

बादशाह हैरान होकर बोला:
"यह कैसे?"

फ़कीर ने जवाब दिया:
"जब इंसान ज़िंदा होता है, तब अल्लाह तौबा का दरवाज़ा खुला रखता है। वह बार-बार मौका देता है कि बंदा लौट आए। लेकिन जब इंसान मर जाता है, तब तौबा का वक्त खत्म हो जाता है। अब चाहे जितना रो ले, अल्लाह उस वक्त तौबा क़ुबूल नहीं करता।"

यह बात सुन कर बादशाह पर ख़ौफ़ तारी हो गया। उसने फकीर से दुआ की दरखास्त की और अपने गुनाहों से तौबा करने का अहद किया।

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📖 अहम सबक

आख़िर में फ़क़ीर ने एक बहुत अहम बात कही:

ऐ बादशाह! यह बात सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि हर इंसान के लिए है जो आख़िरत से अंजान है। हम सबको चाहिए कि अपनी ज़िंदगी में ही अल्लाह की तरफ़ लौट आएं, अल्लाह को राज़ी कर लें। क्योंकि इसी में हमारी भलाई और आख़िरत की कामयाबी और हमेशा रहने वाली ज़िंदगी है।"
जब वक़्त निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आने वाला। ज़िंदगी बार-बार मौक़ा नहीं देती।

यह क़िस्सा हमें यह सिखाता है कि वक़्त बहुत क़ीमती है। हमें अपनी ज़िंदगी के हर लम्हे को ग़नीमत समझते हुए अल्लाह की रज़ा हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि मौत के बाद तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाता है।

वक्त बहुत कीमती है, इसे गुनाहों में बर्बाद न करें।मौत के बाद तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाता है।अल्लाह हमेशा तौबा क़ुबूल करने के लिए तैयार है।


✦ कुरआन से सबक

अल्लाह तआला ने कुरआन में फ़रमाया:

إِنَّ اللَّهَ يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ
"बेशक, अल्लाह अपने बंदों की तौबा क़ुबूल करता है।" (सूरह अश-शूरा 42:25)

और एक दूसरी जगह फ़रमाता है:
حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ • لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ
"यहाँ तक कि जब उनमें से किसी के पास मौत आती है, तो वह कहता है: ऐ मेरे रब! मुझे लौटा दे ताकि मैं नेक काम कर लूँ जो मैंने छोड़े थे।" (सूरह अल-मु’मिनून 23:99-100)

लेकिन मौत के बाद वापसी का कोई मौका नहीं मिलता।


✦ हदीस से सबक तौबा से मुतल्लिक़ 

तौबा से मुतल्लिक़ रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:

1️⃣ अल्लाह तआला तौबा करने वालों को पसंद करता है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"हर आदमी ग़लतियाँ करता है, और ग़लती करने वालों में सबसे बेहतर वे लोग हैं जो तौबा करने वाले हैं।"📕 (सुनन इब्न माजा: 4251, हसन)

2️⃣ अल्लाह तौबा से खुश होता है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"अल्लाह अपने बंदे की तौबा से उस शख़्स से भी ज़्यादा खुश होता है जो रेगिस्तान में अपनी खोई हुई ऊँटनी पा ले।"📕 (सहीह मुस्लिम: 2744)

3️⃣ मौत से पहले तौबा क़ुबूल होती है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"अल्लाह अपने बंदे की तौबा क़ुबूल करता है जब तक उसकी जान गले तक न पहुँच जाए (यानी मौत का वक़्त न आ जाए)।"📕 (सुनन तिर्मिज़ी: 3537, सहीह)

4️⃣ हर रात और दिन तौबा के दरवाज़े खुले हैं

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"अल्लाह अपनी रात को हाथ बढ़ाता है ताकि दिन के गुनहगार तौबा करें, और दिन को हाथ बढ़ाता है ताकि रात के गुनहगार तौबा करें — यहाँ तक कि सूरज पश्चिम से निकल आए।"📕 (सहीह मुस्लिम: 2759)

5️⃣ गुनाह कितने भी हों, तौबा से मिट जाते हैं

अल्लाह तआला फ़रमाता है:
"ऐ आदम के बेटे! जब तक तू मुझे पुकारता रहेगा और मुझसे उम्मीद रखेगा, मैं तुझे माफ़ करता रहूँगा, चाहे तेरे गुनाह कितने भी हों और मुझे कोई परवाह न होगी।"📕 (सुनन तिर्मिज़ी: 3540, हसन)


इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि हमें ज़िंदगी में ही अल्लाह से सुलह कर लेनी चाहिए। मौत आने से पहले तौबा और नेक अमल करने चाहिए, क्योंकि कब्र में पहुँचने के बाद बंदे तो मानेंगे, मगर तब अल्लाह नहीं मानेगा।

Conclusion

यह कहानी Zindagi me hi Maan jao Warna Maut ke Baad der ho jayegi हमें ज़िंदगी की हक़ीक़त और तौबा की अहमियत समझाती है।
एक फ़क़ीर ने लोगों को गुनाहों से रुकने और अल्लाह की तरफ़ रुझू करने तथा बंदों की अल्लाह से सुलह करवाने की तलक़ीन की।
फ़क़ीर का कहना था कि अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करने के लिए हमेशा तैयार है, लेकिन अक्सर बंदे अपनी ज़िंदगी में तौबा नहीं करते। जब इंसान मर जाता है तो तौबा का वक़्त खत्म हो जाता है।
यह क़िस्सा हमें यह सबक़ देता है कि ज़िंदगी में अल्लाह की बात मानना और गुनाहों से दूर रहना ही हमारी कामयाबी का राज़ है। और इसी में हमारी दुनिया और आख़िरत दोनों की सफलता है।
 इसलिए वक्त रहते ही लौट आओ, क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं।

✅ नसीहत:
अल्लाह से सुलह का वक्त अभी है।ज़िंदगी में तौबा, इबादत, नेक आमाल और अल्लाह की रज़ा की तलाश करनी चाहिए, वरना मौत के बाद सिर्फ़ अफ़सोस रह जाएगा।


Aaj ka Din islaah ka Din hai,kal to sirf hisaab hoga 

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Qayamat ke din ki taiyari aaj ki jaye,kal sirf hasrat hogi.

FAQs:

Q1: इंसान को अल्लाह से सुलह कब करनी चाहिए?

इंसान को अपनी ज़िंदगी में ही अल्लाह से सुलह कर लेनी चाहिए, क्योंकि मौत के बाद तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाता है।ں۔

Q2: क्या अल्लाह हर तौबा को क़ुबूल करता है?जी घर

जी हाँ, अल्लाह हर तौबा को क़ुबूल करता है, बशर्ते इंसान सच्चे दिल से तौबा करे और मौत आने से पहले अल्लाह की तरफ लौट आए।

Q3: मौत के बाद तौबा क्यों क़ुबूल नहीं होती?؟

मौत के बाद इंसान का अमल का वक्त खत्म हो जाता है। उस समय सिर्फ़ हिसाब-किताब रह जाता है। इसलिए मौत के बाद तौबा का कोई फ़ायदा नहीं।

Q4: अल्लाह अपने बंदों को कितनी मोहलत देता है?

अल्लाह तआला इंसान को पूरी ज़िंदगी मोहलत देता है, यहाँ तक कि जब उसकी रूह गले तक पहुँच जाती है तब तौबा का दरवाज़ा बंद हो जाता है।۔

Q5: हमें इस कहानी से क्या सबक मिलता है?؟

हमें यह सबक मिलता है कि ज़िंदगी बहुत कीमती है। मौत से पहले अल्लाह को राज़ी करना ज़रूरी है, वरना मौत के बाद सिर्फ़ अफ़सोस रह जाएगा।

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