Mazaar par haazri se mushkil ka hal.

Mazaar par haazri se mushkil ka hal
अल्लाह ताआ़ला मज़ारों में हाज़िरी देने से समस्याओं का समाधान क्यों करता है? Mazaar par haazri se mushkil ka hal इस topic पर आगे बढ़ने से पहले कुछ अर्ज है! गौर ओ फिक्र ज़रूर कीजिएगा!
आगर फौत शुदागान के मजारों या कब्रों पर जा कर उनके वासीले से दुआ या मन्नत मांगना इस्लामी शरीयत में जायज़ होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क़बर ए मुबारक से बढ़ कर दुनिया में कोई क़बर नही है और न ही आप ﷺ से बढ़ कर दुनिया में कोई मोअ़ज्जी़ज़ और फ़जी़लत वाली जा़त है! जब ऐसे मुबारक जगह पर ऐसा करने का सहाबा या हदीस की किताबों से कोई सबूत नहीं मिलता तो फिर आ़म कब्रों और मजा़रों की क्या हैसीयत !!!!!
क्यों मन्नतें मांगते फिरते हो औरों के दरबार से वह कौनसा काम है जो होता नही तेरे परवर दिगार सेAllah ne jab shaitaan mardood ko jannat se nikala tab Allah aur shaitaan ke darmayan kya baatein huwi uska bayan Qur'an Al kareem ke Surah Bani israeel Surat 62 se 65 me kuchh yun huwa hai
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Mazaar par haazri se mushkil ka hal |
अल्लाह ताआ़ला मज़ारों में हाज़िरी देने से समस्याओं का समाधान क्यों करता है? Mazaar par haazri se mushkil ka hal इस topic पर आगे बढ़ने से पहले कुछ अर्ज है! गौर ओ फिक्र ज़रूर कीजिएगा!
आगर फौत शुदागान के मजारों या कब्रों पर जा कर उनके वासीले से दुआ या मन्नत मांगना इस्लामी शरीयत में जायज़ होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के क़बर ए मुबारक से बढ़ कर दुनिया में कोई क़बर नही है और न ही आप ﷺ से बढ़ कर दुनिया में कोई मोअ़ज्जी़ज़ और फ़जी़लत वाली जा़त है! जब ऐसे मुबारक जगह पर ऐसा करने का सहाबा या हदीस की किताबों से कोई सबूत नहीं मिलता तो फिर आ़म कब्रों और मजा़रों की क्या हैसीयत !!!!!
Allah ne jab shaitaan mardood ko jannat se nikala tab Allah aur shaitaan ke darmayan kya baatein huwi uska bayan Qur'an Al kareem ke Surah Bani israeel Surat 62 se 65 me kuchh yun huwa hai
उसने कहाः ज़रा देख! यह शख़्स जिसको तूने मुझ पर इज़्ज़त दी है, अगर तू मुझको क़यामत के दिन तक मोहलत दे तो मैं थोड़े लोगों के सिवा उसकी तमाम औलाद को तेरे रास्ते से भटकाऊंगा!अल्लाह ने फ़रमाया, “अच्छा तो जा, इनमें से जो भी तेरी पैरवी करें, तुझ समेत उन सबके लिये जहन्नम ही भरपूर बदला है!
उन में से जिस किसी पर तेरा बस चले उस के क़दम अपनी आवाज़ से उखाड़ दे उन्हें बहका दे। और उन पर अपने सवार और अपने प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला। और माल और सन्तान में भी उन के साथ साझा लगा। और उन से वादे कर!" - किन्तु शैतान उन से जो वादे करता है वह एक धोखे के सिवा और कुछ भी नहीं होता !निश्चय ही जो मेरे (सच्चे) बन्दे हैं उन पर तेरा कुछ भी ज़ोर नहीं चल सकता।" तुम्हारा रब इस के लिए काफ़ी है कि अपना मामला उसी को सौंप दिया जाए!
अब जब शैतान ने इंसान को गुमराह करने ,सही राह से भटकाने की क़सम खा ली है तो भला कैसे वह इंसानों को ऐसे ही छोड़ देगा!
और आज इंसानों की अक्सरियत गुनाहों में डूबी हुई है और शैतान के बहकावे पर हर बुराई में डूबी हुई है और इन तमाम बुराईयों या गुनाहों में सबसे बड़ी गुनाह अल्लाह के साथ किसी और को साझा करना या शिर्क करना है जिसकी माआ़फ़ी नही और अगर इंसान बिना तौबह किए मार गया तो सीधा जहन्नम/नर्क में जायेगा!
और फ़िर अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फरमाता है: भला कौन है जो बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम गौर करते हो.(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
और सूरत यूनुस आयत 66 में अल्ल्ह सुबहा़न व तआ़ला का खुला फरमान है की:जान लो! आसमानों में बसनेवाले हों या ज़मीन में, सब के सब अल्लाह के ममलूक (अधीन) हैं, और जो लोग अल्लाह के सिवा दूसरे [ अपने ख़ुद के गढ़े हुए] शरीकों को पुकार रहे हैं, वो बिल्कुल वहम और गुमान के पीछे चलनेवाले हैं और सिर्फ़ अटकल से काम लेते हैं।
पवित्र कुरान में अल्लाह कहते हैं:🕋
और जो कोई रसूल के सामने स्पष्ट मार्गदर्शन होने के बाद भी उसका विरोध करेगा और ईमान वालों के मार्ग को छोड़कर किसी अन्य मार्ग का अनुसरण करेगा, तो हम उसे उसी मार्ग पर सौंप देंगे जिस पर वह स्वयं चल रहा है, और उसे नरक की आग में डाल देंगे। और वोह बहुत बुरा ठिकाना है!(सूरह अल-निसा: 115)
अल्लाह के रसूल ﷺ ने कहा: सुनो! आपसे पहले लोग अपने पैगम्बरों और अच्छे लोगों की कब्रों को इबादतगाह बना लिया करते थे, सावधान! क़ब्रों को सज्दा करने की जगह न बनाओ, मैं तुम्हें इससे मना करता हूँ। (सहीह मुस्लिम: 532)
अगर इसे एक उदाहरण से समझना हो तो हज़रत खालिद बिन वलीद (रजी़ः) की घटना इसका स्पष्ट प्रमाण है: जब वह पैगंबर (ﷺ) के आदेश से ताईफ़ के प्रसिद्ध आस्ताने 'उज्जा़' को ध्वस्त कर के और उसके तीन पेड़ों को काट कर वापस आए। तब पवित्र पैगंबर (ﷺ) ने कहा: "हे खालिद, तुम फिर से जाओ तुमने अभी तक कुछ भी नहीं किया है। हजरत खालिद (आरए) फिर से तलवार लेकर गए तो आस्ताने के स्थान पर , हज़रत खालिद (R.A.) ने एक महिला को नग्न और बिखरे हुए बालों के साथ देखा। जो अपने सिर पर मिट्टी डाल रही थी, तो हज़रत खालिद (R.A.) ने तलवार के वार से उसे दो टुकड़ों में काट दिया। फिर पैगंबर (ﷺ) को आ कर यह घटना बताई, तो उन्होंने (S.A.W.) ने कहा: "यह महिला (शैतान) उज़्ज़ा है, जो लोगों की इच्छाओं को पूरा करती है !(तफ़सीर इब्न कथिर)
Read More:Azan aur iqaamat
शैतान ने मनुष्य को भटकाने की शपथ खाई है
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला की तरफ़ से हर बीमारी की शिफा और मुुश्किल का हल का एक वक्त निश्चित होता है!
और वही इन सब से निजात या शिफा देता है, अब दुआ के ज़रिए हो या दवा के जारिया यह उसकी इच्छा है।और अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला कहता है:और जो भी मुसीबत तुम पर पड़ती है, वह तुम्हारे ही हाथों से किए गए कामों के कारण आती है, और बहुत से कामों से तो वह दर गुज़र करता है। (सूरत अल-शूरा: 30)और फ़िर फरमाता हैऔर जब मैं बीमार होता हूँ तो मुझे शिफा देता है(सूरत अल-शुआरा: 80)अब ज़रा आप गौर ओ फिक्र करें!जो सिर्फ अल्लाह से मांगते हैं. वे मज़ारों दरबारों पर जाकर मन्नत नहीं मांगते, क्या वे भूखे सोते हैं?**या वे बे औलाद ही मर जाते हैं?**या वे बीमारी से शिफा नही पाते ?**या क्या वे अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतें पूरी करने में असमर्थ हैं?*बेशक, दूसरों की तरह उन्हें भी सब कुछ मिलता है।जब मजारों ,दरगाहों पर हाजरी देने वालों और न देने वालों के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है, तो फ़िर क्योंअल्लाह सुब्हानहु वा ता'आला के कमजोर मख्लूक को शरीक ठहरा कर अपनी आखिरत बर्बाद करें।
मंदिरों में भी मांगने वालों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
देने वाला तो अल्लाह है, जो अल्लाह को न मानने वालों और मुश्रिकों को भी देता है। यदि वह न मानने वालों और मुश्रिकों को उनके कुफ्रिया और मुश्रिकाना काम के कारण देना बंद कर दें, तो अगले ही दिन सभी मुशरिक और न मानने वाले फ़ौरन ईमान ले आएंगे और ईमान वाले हो जायेंगे। लेकिन तब हम इंसानों का यह परीक्षा कैसे होगी कि यह दुनिया तो एक परीक्षा केंद्र है...हज़रत अब्दुल्ला बिन मसूद की पत्नी सैय्यदा ज़ैनब की आंख में दर्द था, और वह एक यहूदी से दम यानी झाड़ फूंक करवाती तो ठीक हो जातीं।" जब हज़रत अब्दुल्ला को पता चला, तो उन्होंने कहा, "यह शैतान की करतूत है। जब तू यहूदी से दम करवाती है तो वह आँख को तकलीफ़ नही पहुंचाता और जब दम करवाना छोड़ देती है तो वह आँख को छू कर दर्द पैदा करता है। इसलिए, इसे यहूदी से दम करवाने के बजाय, मसनून दम किया करो
सोचने वाली बात है की:
किसी स्थान से मुराद का पूरा हो जाना ये उसके मुकद्दस और बरकत होने की दलील नहीं है।
हज़रत सय्यिदुना अबू हुरैरा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने कोई ऐसी बीमारी नाजिल नही फरमाई जिसकी शिफा न उतारी हो? (बुखारी हदीसः 5678)
Read More>>>Achhe Aur Bure Aamal
Conclusion:
FAQ:
Ques: 1-मजार या दरगाह पर जाना कैसा है ?
Ques: 2-मजार पर दुआ मांगना !
Ques: 3-वसीला क्या है या वसीले से दुआ मांगना ?
1 Comments
Masha Allah
ReplyDeleteplease do not enter any spam link in the comment box.thanks