Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai?

"क्या आप ने कभी गौर किया है कि हम जो नमाज़ पढ़ते हैं वह कबूल होगी की नही या हमे उसका पूरा अजर मिलेगा की नही ? या ऐसे ही नमाज़ पढ़ते हुवे जिंदगी गुज़र जाएगी जो हक़ीक़त में कबूल ही न हो.अपनी नमाज़ सुन्नत के मुताबिक अदा करें۔"

🌺ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🌺

Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai? सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ की अहमियत"

🕋 Islamic Article
हक़ीक़त: नमाज़ कब कबूल होती है और कब रद्द हो जाती है
Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai? 

क्या आपने कभी सोचा है कि Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai? जो नमाज़ हम रोज़ पढ़ते हैं, वह अल्लाह के दरबार में कबूल भी होगी या नहीं? क्या हमें उसका पूरा अजर मिलेगा या हम सिर्फ़ नमाज़ पढ़ने की आदत में अपनी उम्र गुज़ार देंगे, जबकि असलियत में हमारी नमाज़ नामंज़ूर कर दी जाएगी?

इस्लाम में नमाज़ सिर्फ़ एक फर्ज़ नहीं बल्कि वह पहली इबादत है जिसका हिसाब क़यामत के दिन सबसे पहले लिया जाएगा। अगर नमाज़ दुरुस्त रही तो बाकी आमाल भी दुरुस्त होंगे, और अगर नमाज़ खराब निकली तो बाकी आमाल भी रद्द कर दिए जाएंगे।
(सुनन अल-तिर्मिज़ी: 413, साहिह अल-जामे: 2573)

👉 इस आर्टिकल Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai में हम नमाज़ की अहमियत, कबूलियत की शर्तें और हदीसों व कुरआनी हवाले से इसका पूरा बयान करेंगे।

📖 Table of Contents(👆Touch Here▼)

    यह एक ऐसी इबादत है जो सुन्नत के मुताबिक़ सकून से न पढ़ी जाए तो 40 और 60 क्या पुरी जिंदगी की पढ़ी हुई नमाज़ बर्बाद हो जायेगी! अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला इसे कबूल नहीं करेगा और हम नुकसान उठाने वालों में शामिल हो जायेंगे! और जब नमाज़ ही कबूल न होगी तो बाकी जो नेकियाँ हैं वोह ऐसे ही बेकार हो जाएंगी !


    📖 नमाज़ कबूल होगी या नहीं?

    नबी ﷺ ने फरमाया:
    "क़यामत के दिन सबसे पहले बंदे से उसकी नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा। अगर नमाज़ सही हुई तो उसके बाकी सारे आमाल सही होंगे और अगर नमाज़ खराब निकली तो उसके सारे आमाल खराब होंगे।"
    (सुनन अल-तिर्मिज़ी: 413, साहिह अल-जामे: 2573)

    इस हदीस से साफ़ जाहिर होता है कि नमाज़ की सहीह अदा करने की अहमियत सबसे ज़्यादा है।


    📖 नमाज़ में मिलने वाला सवाब और कमी का कारण

    हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि) बयान करते हैं:
    "मैंने नबी ﷺ को यह फरमाते हुए सुना: जब कोई इंसान नमाज़ पढ़कर लौटता है तो उसे उसकी नमाज़ का सिर्फ दसवां, नौवां, आठवां, सातवां, छठा, पांचवां, चौथा, तीसरा या आधा हिस्सा ही लिखा जाता है।"
    (सुनन अबू दाऊद: हदीस 796)

    👉 यानी नमाज़ तो पढ़ी जाती है लेकिन ध्यान, सकून और सुन्नत के मुताबिक़ न होने की वजह से पूरा सवाब नहीं मिलता।


    📖 दो नमाज़ी, लेकिन फज़ीलत में आसमान-जमीन का फर्क

    नबी ﷺ ने फरमाया:
    "दो आदमी एक ही नमाज़ पढ़ते हैं, लेकिन उनके बीच फज़ीलत का इतना फर्क होता है जितना आसमान और ज़मीन के बीच का फर्क है।"
    (सुनन नसायी: हदीस 1313)

    👉इन हदीसों से यह पता चला कि भले ही हम नमाज़ पढ़ते हैं, फिर भी हम इसके पूरे अजर यानी सवाब से महरूम रह जाते हैं, जो हमारी आखिरत में कामयाब होने में रूकावट बनेगा ।


    📖 कुरआन का फरमान

    अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
    "बेशक मोमिन कामयाब हो गए, जो अपनी नमाज़ में विनम्रता और ध्यान रखने वाले हैं।"
    (सूरह अल-मुमिनून: आयत 1-2)

    और दूसरी जगह इरशाद है:
    "फिर बड़ी खराबी है उन नमाज़ पढ़ने वालों के लिए, जो अपनी नमाज़ से ग़ाफ़िल रहते हैं, और दिखावा करते हैं।"
    (सूरह अल-माऊन: आयत 4-6)

    Read This: Namaz ki ahmiyat


    📖 नमाज़ की हिफ़ाज़त और पाबंदी

    कबूल नमाज़ की निशानियाँ
    कबूल नमाज़ की निशानियाँ

    हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस (रज़ि) से रिवायत है:

    नबी ﷺ ने एक दिन नमाज़ का ज़िक्र करते हुए फरमाया: "जिसने नमाज़ की हिफ़ाज़त और पाबंदी की, वह क़ियामत के दिन उसके लिए नूर, दलील और निजात होगी। और जिसने इसकी पाबंदी न की, उसके लिए न नूर होगा, न दलील और न ही निजात। वह क़ारून, फिरऔन, हामान और उबई-बिन-खलफ़ के साथ होगा।"
    (मुसनद अहमद: 6576, दारमी, बैहक़ी – मिश्कातुल मसाबीह: 578)

    हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) से रिवायत है:

    उन्होंने एक आदमी को नाक़िस नमाज़ पढ़ते देखा। हज़रत हुज़ैफ़ा ने उससे पूछा : तू कितने वक़्त से ऐसी नमाज़ पढ़ रहा है? उसने कहा : चालीस साल से। आपने फ़रमाया: यक़ीन कर चालीस साल से तूने नमाज़ पढ़ी ही नहीं और अगर तू इसी क़िस्म की नमाज़ पढ़ता-पढ़ता मर जाता तो हज़रत मुहम्मद ﷺ के दीन पर वफ़ात न पाता। फिर आप कहने लगे : बेशक इन्सान हलकी नमाज़ पढ़ने के बावजूद मुकम्मल और अच्छे तरीक़े से नमाज़ पढ़ सकता है(सुन्न नसायी हदीस 1313)

    Note:तो आइए ! आज से हम अपनी नमाज़ नम्रतापूर्वक और सुन्नत के अनुसार अदा करें और आखी़रत की सफलता प्राप्त करें। क्योंकि "अगर नमाज़ सही न हो तो आखिरत में क्या होगा?"

    Read This: Namaz Kya hai ?

    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*

    📖 सलफ़ व उलेमा के बयानात 

    सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ न पढ़ी तो पूरी ज़िंदगी की इबादत बेकार
    Kya Aap ki Namaz Qabool Ho Rahi Hai?

    • हज़रत हज़ैफ़ा (रज़ि):
      "जो आदमी 40 साल से हल्की-फुल्की नमाज़ पढ़ रहा था, दरअसल उसने नमाज़ पढ़ी ही नहीं। अगर वह ऐसी ही नमाज़ पढ़ते हुए मर जाता तो हज़रत मुहम्मद ﷺ के दीन पर न मरता।"
      (सुनन नसायी: हदीस 1313)

    • हज़रत उमर फ़ारूक़ (रज़ि):
      "कई लोग नमाज़ पूरी ज़िंदगी पढ़ते हैं, लेकिन अल्लाह के लिए एक भी रकअ़त पूरी नहीं करते। क्योंकि वे रुकूअ़ और सज्दा सही तरीके से अदा नहीं करते।"

    • अबू हुरैरा (रज़ि):
      "कुछ लोग 60 साल तक नमाज़ पढ़ते रहते हैं, लेकिन उनकी एक भी नमाज़ कबूल नहीं होती। क्योंकि वे रुकूअ़, सज्दा, क़याम और ख़ुशूअ़ पूरा नहीं करते।"

    • इमाम अहमद बिन हनबल (रह.):
      "एक वक्त ऐसा आएगा जब लोग नमाज़ तो पढ़ेंगे लेकिन असल में नमाज़ पढ़ी न होगी।"

    • इमाम अल-ग़ज़ाली (रह.):
      "कई लोग सज्दा करते हैं लेकिन उनका दिल दुनियावी कामों में उलझा रहता है। ऐसा सज्दा अल्लाह के करीब नहीं करता बल्कि गुनाह बन जाता है।"

    Read This: Namaz padhne ki Fazeelat

    Conclusion:

    अब यह बात बिल्कुल साफ हो गई कि jo namaz Sunnat ke mutaabiq na ho और ध्यान-सकून के मुताबिक़ न पढ़ी जाए तो उम्र भर की नमाज़ भी कबूल नहीं होगी।

    👉 नमाज़ की सहीह अदायगी के बिना कोई भी नेकी कबूल नहीं होगी।
    👉 नमाज़ ही वह पहली इबादत है जिसका हिसाब क़यामत के दिन होगा।
    👉 जो शख्स नमाज़ की पाबंदी करेगा और उसे सुन्नत के मुताबिक़ अदा करेगा, वही आखिरत में कामयाब होगा। सुन्नत के मुताबिक़ नमाज़ न पढ़ी तो पूरी ज़िंदगी की इबादत बेकार है। 

     👍🏽 ✍🏻 📩 📤 🔔
              Like | Comment | Save | Share | Subscribe



    जो नमाज़ सकून से, ध्यान से न पढ़ी जाए तो 40 और 60 साल क्या पुरी जिंदगी की पढ़ी हुई नमाज़ बर्बाद हो जायेगी! अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला इसे कबूल नहीं करेगा और हम नुकसान उठाने वालों में शामिल हो जायेंगे! और जब नमाज़ ही कबूल न होगी तो बाकी जो नेकियाँ हैं वोह ऐसे ही बेकार हो जाएंगी !"

    FAQ:

    Q1. अगर नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो तो क्या वह कबूल होगी?
    Ans: नहीं! अगर नमाज़ सुन्नत और ध्यान से न पढ़ी जाए तो वह कबूल नहीं होगी, चाहे इंसान पूरी ज़िंदगी नमाज़ पढ़ता रहे।
    (अबू दाऊद: 796, नसायी: 1313)

    Q2. क़यामत के दिन सबसे पहले किस इबादत का हिसाब होगा?
    Ans: सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा। अगर नमाज़ दुरुस्त हुई तो बाकी आमाल भी सही होंगे।
    (तिर्मिज़ी: 413, साहिह अल-जामे: 2573)

    Q3. क्या नमाज़ में हर रुक्न को सकून से अदा करना ज़रूरी है?
    Ans: हां! क़याम, रुकूअ़ और सज्दा सकून से अदा करना ज़रूरी है। वरना नमाज़ नामंज़ूर होगी।
    (सुनन नसायी: 1313)

    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*

    Post a Comment

    1 Comments

    please do not enter any spam link in the comment box.thanks