✦72 Hoor aur Apsara Ka Concept|islam Aur Hindu Dharm
दिलचस्प बात यह है कि ऐसा कॉन्सेप्ट सिर्फ इस्लाम तक सीमित नहीं है। हिंदू धर्म के ग्रंथों में भी अप्सराओं का ज़िक्र मिलता है, जिन्हें स्वर्ग की स्त्रियाँ कहा गया है और जो पुण्य आत्माओं का स्वागत करती हैं। यहाँ तक कि महाभारत में वीरगति पाने वाले योद्धाओं को हज़ारों अप्सराओं द्वारा सम्मानित किए जाने का वर्णन मिलता है।
तो सवाल उठता है कि अगर हिंदू धर्म में अप्सराओं का कॉन्सेप्ट स्वीकार किया जाता है तो इस्लाम में हूरों का ज़िक्र क्यों ऐतराज़ का विषय बन जाता है? 🤔 साफ़ है कि यह एकतरफ़ा सोच और अज्ञानता है।
👉 इस आर्टिकल 72 Hoor aur Apsara Ka Concept | Islam vs Hindu Dharm में हम दोनों धर्मों के ग्रंथों के हवाले, स्कॉलर्स की व्याख्या और आम भ्रांतियों का जवाब देकर इस विषय को गहराई से समझेंगे।
🌸 जन्नत की हूर या अप्सराएं क्या हैं?
जन्नत की हूर:
कुरआन में हूर को "पाक और खूबसूरत जन्नती औरतें" कहा गया है। उन्हें न तो किसी ने छुआ होगा और न ही उनमें कोई कमी होगी। वे जन्नतियों के लिए अल्लाह की तरफ से इनाम होंगी।जन्नत के लिए बनाई गई पवित्र और सुंदर स्त्रियाँ, जिनकी सुंदरता और पवित्रता दुनियावी औरतों से कहीं ऊपर बताई गई है। हूर सिर्फ जन्नत में मौजूद होंगी और नेक व परहेज़गार लोगों के लिए अल्लाह का इनाम हैं।
हूर एक ऐसी पवित्र और सुंदर स्त्री है जिसे अल्लाह ने सिर्फ जन्नत के लिए बनाया है।
उनका शरीर पारदर्शी और निर्मल है।
उनके गाल और मुख दर्पण से भी ज्यादा चमकदार हैं।
अगर हूर धरती की ओर देखें तो पूरा मार्ग सुगंधित और प्रकाशित हो जाए।
उनका शरीर पारदर्शी और निर्मल है।
उनके गाल और मुख दर्पण से भी ज्यादा चमकदार हैं।
अगर हूर धरती की ओर देखें तो पूरा मार्ग सुगंधित और प्रकाशित हो जाए।
सवर्ग की अप्सरा:
अप्सराएँ स्वर्गलोक की दैवी स्त्रियाँ हैं जिनका काम देवताओं और पुण्यात्माओं का मनोरंजन और सेवा करना है। वे नृत्य, संगीत और सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध मानी जाती हैं।
स्वर्ग की दिव्य और अलौकिक स्त्रियाँ जिन्हें देवताओं और वीरगति प्राप्त योद्धाओं की सेवा और स्वागत के लिए वर्णित किया गया है। अप्सराएँ सुंदरता, कला और आकर्षण का प्रतीक हैं।
ऋग्वेद: अप्सराएँ जल और आकाश से जुड़ी दैवी स्त्रियाँ कही गई हैं।
महाभारत और रामायण: वे अक्सर युद्धभूमि या यज्ञों में प्रकट होकर देवताओं के आदेश से वीरों की परीक्षा लेती थीं।
पुराणों में: अप्सराओं को नृत्यांगना और इंद्रदेव के दरबार की शोभा कहा गया है।
किसको और कैसे मिलेगी हूर?
असल इनाम जन्नत है जहाँ रहमत, सुकून और अल्लाह का दीदार मिलेगा।
कुरआन कहता है:
“और जो लोग ईमान लाए और नेक काम किए, उन्हें हम जन्नत में दाख़िल करेंगे जिसमें सोने के कंगन और हरे रेशमी कपड़े होंगे और वहाँ उनकी बीवियाँ पाक होंगी।” (सूरह हज्ज 23)यानी हूर सिर्फ शहादत से नहीं बल्कि ईमान और नेक अमल से भी हासिल होती हैं।
✦ इस्लाम में 72 हूरों का Concept
🔹 कुरान में अल्लाह फरमाता है:
📖 वजाहत: यहाँ जन्नत के लोगों को हूरों से नवाज़ने का ज़िक्र है। यह उनके नेकी के इनाम का हिस्सा है।
वे कतारों में बैठेंगे और हम उन्हें खूबसूरत आँखों वाली हूरें देंगे।"सूरह-ए-तूर (52:20):
📖 वजाहत: यह जन्नत की खुशियों और आराम की तस्वीर पेश करता है।
उन (हूरों) को न किसी इंसान ने छुआ होगा और न जिन्न ने।"सूरह-ए-रहमान (55:56):
📖 वजाहत: यह उनकी पाकीज़गी और पवित्रता को दर्शाता है।
🔹 हदीस से हवाला:पैग़म्बर ﷺ ने फ़रमाया:
"शहीद को अल्लाह तआला छः चीज़ें देता है... (उनमें से) 72 हूरें और जन्नत में उसके 72 रिश्तेदारों की शिफ़ाअत।"📕 (सुनन इब्न माजा: 2799)
हदीसों में आता है कि जन्नत वालों को अल्लाह तआला 72 हूरें और दुनिया की बीवियों को और भी खूबसूरत बनाकर देंगे।
हूरें कोई गंदी या हवसी सोच नहीं बल्कि इबादतगुज़ारों के लिए इनाम हैं।
जन्नत का असल मक़सद अल्लाह की रज़ामंदी और वहाँ की न खत्म होने वाली नेमतें हैं।
हिंदू धर्म में अप्सराओं का कॉन्सेप्ट
Explanation:
युद्ध में वीरगति पाने वाले योद्धा की आत्मा का स्वागत हज़ारों अप्सराएँ करती हैं। “हज़ारों” संख्या प्रतीकात्मक है, जो सम्मान और आदर को दर्शाती है। यह दिखाता है कि हिंदू धर्म में भी स्वर्गिक इनाम और अप्सराओं का उल्लेख है।
जब कोई योद्धा धर्म के लिए युद्ध करते हुए रणभूमि में मारा जाता है, तो हज़ारों अप्सराएँ उसके स्वागत के लिए निकलती हैं और उसे अपने “स्वामी” के रूप में स्वीकार करने की लालसा रखती हैं।
यहाँ “हज़ारों” (thousands) शब्द आया है, जो एक निश्चित गिनती नहीं बल्कि सम्मान और वैभव का प्रतीक है।
इसका उद्देश्य योद्धाओं को युद्ध में साहस और धर्म रक्षा के लिए प्रेरित करना था, न कि भौतिक हवस को बढ़ावा देना।
हिंदू धर्मग्रंथों में अप्सराओं का ज़िक्र कई जगह मिलता है।
1. 📖 ऋग्वेद (1.92.4):
“अप्सराएँ स्वर्ग में रहने वाली देवांगनाएँ हैं, जो देवताओं की शोभा बढ़ाती हैं।”
🔎 वजाहत:
ऋग्वेद में अप्सराओं को देवताओं के दरबार की सुन्दर स्त्रियाँ बताया गया है। ये स्वर्गलोक की शोभा और आकर्षण का प्रतीक मानी जाती हैं।
2. 📖 महाभारत, आदिपर्व (अध्याय 66):
“इंद्रदेव ने अपने शत्रु साधुओं का तपस्या भंग करने के लिए उर्वशी, मेनका और रंभा जैसी अप्सराओं को भेजा।”
🔎 वजाहत:
यहाँ अप्सराओं को स्वर्गिक स्त्रियों के रूप में दिखाया गया है जिनका कार्य देवताओं की सेवा करना या आकर्षण के माध्यम से तपस्या को भंग करना था।
3. 📖 पद्म पुराण:
“स्वर्ग में पुण्यात्मा को अप्सराओं का साथ और सेवाएँ प्राप्त होती हैं।”
🔎 वजाहत:
इससे साफ़ होता है कि हिंदू धर्म में स्वर्ग के आनंद के रूप में अप्सराओं की संगति और सेवा को बताया गया है।
Note:
हिंदू ग्रंथों में अप्सराओं का उल्लेख बार-बार मिलता है, उन्हें देवताओं की सभा में नृत्य करने वाली दिव्य स्त्रियाँ कहा गया है।कई जगह उनका संबंध योद्धाओं और ऋषियों से जोड़ा गया है। वे सिर्फ सुंदरता ही नहीं बल्कि स्वर्गिक आनंद और सम्मान का प्रतीक हैं।
महाभारत में लिखा है कि इंद्र अपने शत्रुओं को मोहित करने के लिए अप्सराओं को भेजते थे।
कई जगह यह भी आता है कि पुण्यवान आत्माओं को स्वर्ग में अप्सराओं की संगत और सेवाएँ मिलती हैं।
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स्कॉलर्स की व्याख्या (Misconceptions का जवाब)
🕌 मुस्लिम स्कॉलर्स की व्याख्या
उन्होंने हूरों को जन्नतियों के लिए "पाक और खूबसूरत बीवियाँ" कहा है। उनका कहना है कि हूरें दरअसल "जन्नत के आराम और सुकून" का हिस्सा हैं, न कि किसी हवस का प्रतीक।
4. इमाम ग़ज़ाली (इहया उलूमुद्दीन)
इमाम ग़ज़ाली के अनुसार हूरें इस बात की निशानी हैं कि अल्लाह अपने नेक बंदों को सिर्फ दुनिया जैसी नेमतें ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर रूहानी सुकून देगा।
5. शाह वलीउल्लाह रहमतुल्लाह अलैह
उनका कहना है कि हूरें जन्नत की रूहानी खुशबू और आनंद का प्रतीक हैं। यह इंसान की "क़ल्बी खुशी" का बयान है, महज़ जिस्मानी तसव्वुर नहीं।
🕉 हिंदू स्कॉलर्स की व्याख्या
स्वामी विवेकानंद
उन्होंने अप्सराओं को प्रतीकात्मक बताया। उनके अनुसार अप्सराएँ सिर्फ "स्त्री" नहीं बल्कि "दैवी आनंद और शक्ति" का रूपक हैं। वे मनुष्य को यह याद दिलाती हैं कि पुण्य के बाद आत्मा को शांति और आनंद मिलता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (भारत के दूसरे राष्ट्रपति और वेदांत दार्शनिक)
उनका कहना था कि अप्सराएँ हिंदू मिथकों में "पुरस्कार" और "प्रलोभन" दोनों के प्रतीक हैं। वे इस बात की ओर इशारा करती हैं कि पुण्य से आत्मा ऊँचे लोकों में आनंद पाती है, जबकि पाप आत्मा को उससे वंचित कर देता है।
पंडित हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
उन्होंने लिखा है कि अप्सराओं का ज़िक्र महाकाव्यों में वीरता और पुण्य की प्रेरणा के लिए किया गया। युद्ध में वीरगति पाने वाले योद्धा के लिए अप्सराएँ सम्मान का प्रतीक थीं, न कि केवल भोग की वस्तु।
✦ तुलना और हकीकत
- इस्लाम में – हूरें पाकीज़ा और इबादतगुज़ारों की इनाम के तौर पर।
- हिंदू धर्म में – अप्सराएँ पुण्यवान आत्माओं और देवताओं की सेवा व रंजन के लिए।
- दोनों धर्मों में स्वर्ग की नेमतें एक प्रतीकात्मक भाषा में बयान हुई हैं।
- फर्क सिर्फ नज़रिया और समझ का है – कोई इसे बदनाम करता है तो कोई इसे सम्मान देता है।
🌸 अहम नुक्ता
👉 जो लोग इस्लाम को सिर्फ "72 हूरों" तक सीमित करके बदनाम करते हैं, वे दरअसल अज्ञानी हैं, उन्होंने कभी अपने धर्म की किताब पढ़ी ही नही है। उन्हें अपने ही धर्म के बारे में कुछ पता नहीं है। जब वे अपने धार्मिक ग्रंथ पढ़ेंगे तब तो उन्हें पता चलेगा की अगर इस्लाम में 72 हूरें हैं तो उनकी किताबों में हजारों अप्सराओं का उल्लेख मिलता है। पहले वे खुद ज्ञान लें फिर दूसरों को ज्ञान दें या अंगुली उठाएं।
👉 हूरें और अप्सराएँ – दोनों इंसान को यह याद दिलाने के लिए हैं कि अगर वह भलाई करेगा तो उसे अल्लाह/ईश्वर की तरफ़ से स्वर्ग में नेमतें मिलेंगी।
Note : सिर्फ इस्लाम के 72 हूरों का मज़ाक बनाना और हिंदू धर्म की अप्सराओं को भूल जाना, दरअसल दोहरी सोच और नफरत फैलाने वाली मानसिकता है।
🏵️ Conclusion:
इस्लाम और हिंदू धर्म दोनों में यह बात साफ़ पाई जाती है कि स्वर्ग (जन्नत/स्वर्गलोक) इंसान के लिए इनाम और आराम की जगह है। इस्लाम में हूरें और हिंदू धर्म में अप्सराएँ उसी स्वर्गिक इनाम और सम्मान का हिस्सा हैं। महाभारत तक में उल्लेख मिलता है कि युद्ध में वीरगति पाने वाले योद्धाओं का स्वागत हज़ारों अप्सराएँ करती हैं, ठीक वैसे ही जैसे इस्लाम में नेक अमल करने वालों के लिए जन्नत की हूरों का ज़िक्र है।इसलिए सिर्फ एक धर्म को निशाना बनाना और दूसरे की शिक्षाओं को छिपाना नफ़रत और जहालत (अज्ञानता) की निशानी है। दोनों धर्मों की असल शिक्षा यह है कि इंसान बुराई छोड़कर भलाई की तरफ़ आए और अपने रब/ईश्वर की रज़ामंदी हासिल करे।
- महाभारत में – वीरगति पाए योद्धा के स्वागत हेतु अप्सराओं का उल्लेख है।
- इस्लाम में – नेक अमल करने वालों के लिए जन्नत की हूरों का वादा है।
- दोनों धर्मों में – यह अवधारणा “इनाम” और “सम्मान” का प्रतीक है, ताकि इंसान को याद रहे कि भलाई का नतीजा हमेशा बेहतरीन होगा।
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✦ FAQs:
Q1: क्या 72 हूरों का ज़िक्र क़ुरान में है?
Ans: क़ुरान में हूरों का ज़िक्र है लेकिन गिनती (72) का तफ़्सील हदीस में आया है।
Q2: क्या हूरें सिर्फ जिस्मानी लुत्फ़ के लिए हैं?
Ans: नहीं, हूरें जन्नत की नेमतों का हिस्सा हैं, असल मक़सद अल्लाह की रज़ामंदी है।
Q3: हिंदू धर्म में अप्सराओं का मक़सद क्या है?
Ans: अप्सराएँ देवताओं की सेवा और पुण्य आत्माओं को रंजन देने के लिए बताई गई हैं।
Q4: क्या दोनों धर्मों के ये concepts एक जैसे हैं?
Ans: हाँ, दोनों में स्वर्गिक नेमतें हैं, बस तर्ज़-ए-बयान अलग है
Q5: क्यों लोग सिर्फ़ इस्लाम को टार्गेट करते हैं?
क्योंकि उनकी सोच एकपक्षीय और भेदभावपूर्ण है। असल में दोनों धर्मों में समान बातें मौजूद हैं
हाँ। महाभारत शांति पर्व अध्याय 98 में लिखा है कि वीरगति पाने वाले योद्धा की आत्मा का स्वागत हज़ारों अप्सराएँ करती हैं।
Q7. हूर और अप्सरा में क्या समानता है?
दोनों स्वर्ग की दिव्य स्त्रियाँ हैं जो इनाम और सम्मान का प्रतीक हैं। फर्क सिर्फ नाम और धार्मिक संदर्भ का है।
Q8. क्या इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता है?
नहीं। इस्लाम में आतंकवाद करने वालों के लिए सिर्फ जहन्नुम का वादा है। जिहाद का मतलब नेक संघर्ष है, न कि मासूमों का खून बहाना।
🔍 आधुनिक हिंदू स्कॉलर्स और उनकी व्याख्याएँ
स्रोत / स्कॉलर | मुख्य व्याख्या / टिप्पणियाँ |
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Devdutt Pattanaik |
- उनके लेख “Kill the Apsara” में उन्होंने बताया है कि जब कोई तपस्वी (tapasvin) ध्यान और तपस्या की स्थिति में होता है, तो अप्सरा उसकी चेतना को मोह से बांधने का माध्यम बनती है, ताकि उसकी आत्म-प्रगति में बाधा आए।
- लेख “Dance of Enchantress” में वे कहते हैं कि “अप्सरा” शब्द ‘apsa’ (जल) धातु से आता है, जिसका अर्थ है वह जल-मयी देवी या जल की स्त्री-शक्ति। वह मोह और सौंदर्य की शक्ति है जो तपस्वियों की आत्मसंयम की परीक्षा लेती है। | | Suwanee Goswami |
- शोध पत्र “Apsaras: An Archetypal Exploration of Unmotherly Mothers” में लिखा है कि अप्सराएँ पारंपरिक मातृत्व (motherhood) की भूमिका में नहीं होतीं, लेकिन वे संवेदनशील प्रतीक हैं जो “mother-archetype” से भिन्न हैं। उदाहरण के लिए Menaka-Vishwamitra की कथा में अप्सरा तपस्वियों की परीक्षा करती है, मोह और इच्छा का सामना कराती है। | | Purobi Sen & Dr. Deepa Sarabhai |
- लेख “Celestial Nymphs as Sexual Objects: A Study of the Indian Epic Ramayana” में यह विश्लेषण है कि रामायण जैसी महाकाव्य ग्रन्थों में अप्सराओं को सुंदरता, कामवासना और आकर्षण के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही यह भी लिखा गया है कि पुरुष पात्रों द्वारा उनका उपयोग ‘मोह’ उत्पन्न करने के लिए किया जाता है — जिससे विषय यह बनता है कि अप्सराएँ सौंदर्य की वस्तुएँ (objectification) भी बन जाती हैं। | | Arshia Sattar (उल्लेख व विकिपीडिया आधार पर) |
- Menaka और Vishvamitra की कथा पर उनकी व्याख्या है कि Menaka केवल एक मोह-एक पात्र नहीं है, बल्कि एक ऐसे प्रतीक है जो यह दर्शाती है कि कैसे इच्छाएँ (desires) तपस्या, संयम और आत्मशुद्धि की राह में बाधा बन सकती हैं। वह “स्वयं सौंदर्य और मोह की शक्ति” को दिखाती है, जो तपस्वी को यह प्रेरणा देती है कि सांसारिक आकर्षणों के बावजूद आध्यात्मिक लक्ष्य को न भूलें।
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