Rishton ki Qadar karen: waqt den warna pachhtana padega
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Rishton ki qadar karen |
रिश्ते हमारी जिंदगी की सबसे कीमती पूँजी होते हैं। ये हमें सहारा देते हैं, हमारी पहचान बनाते हैं, और मुश्किल वक्त में उम्मीद की किरण बनते हैं। लेकिन अकसर हम इन्हीं रिश्तों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं — Rishton ki Qadar karen: waqt den warna pachhtana padega वक्त की कमी, ज़िम्मेदारियों का बोझ, या खुद की दुनिया में इतना उलझ जाना कि अपनों के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाते। लेकिन याद रखिए, गुज़रा वक्त वापस नहीं आता, और खोए हुए रिश्ते लौट कर नहीं आते।
रिश्ते अल्लाह की तरफ़ से अता की गई सबसे बड़ी नेमतों में से एक हैं। इन्हें संवारना, निभाना और इनकी हिफाज़त करना हमारी जिम्मेदारी है। खासकर मां बाप के बाद मियां-बीवी का रिश्ता, जिसे कुरआन और सुन्नत में बहुत अहमियत दी गई है। तो आइए पहले पढ़ते हैं की रिश्तों से मुतल्लिक शरीयत में क्या कहा गया है !
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रिश्तेदारों के हक़:
> रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:"जो रिश्ता जोड़ता है, अल्लाह उससे रिश्ता जोड़ता है; और जो रिश्ता तोड़ता है, अल्लाह उससे रिश्ता तोड़ देता है।"(सहीह बुखारी: 5988)इस हदीस से रिश्तेदारों की अहमियत मालूम होती है। चाहे वो माँ-बाप हों, भाई-बहन या ससुराल के रिश्ते — हर एक को अहमियत देना जरूरी है
हर रिश्ता ख़ास होता है
- हर रिश्ता — माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त, बच्चे — सबकी अपनी एक जगह होती है हमारे दिल में।
- माँ-बाप की दुआओं में हमारी ज़िंदगी की बरकत छुपी होती है।
- भाई-बहन बचपन की यादों की किताब होते हैं, जिनके बिना कोई किस्सा पूरा नहीं होता।
- दोस्त वो साया होते हैं जो बिना किसी लालच के साथ निभाते हैं।
- बच्चे हमारे कल का आईना होते हैं, जिन्हें हमारी मोहब्बत और तवज्जो की जरूरत होती है।
लेकिन इन सब रिश्तों में एक रिश्ता ऐसा होता है जिसे बहुत ज्यादा समझदारी, वक्त और मोहब्बत की जरूरत होती है — मियां-बीवी का रिश्ता। अल्लाह और अल्लाह के रसूल ﷺ का फ़रमान पढ़िए इस से मुतल्लिक:
आपसी मोहब्बत और रहमत:
> "और उसी की निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही किस्म से जोड़े बनाए, ताकि तुम उनके पास सकून पाओ, और उसने तुम दोनों के दरमियान मोहब्बत और रहमत पैदा कर दी।"(सूरह रूम: 21)
इस आयत से साफ़ ज़ाहिर होता है कि मियां-बीवी का रिश्ता सिर्फ जिस्मानी या दुनियावी नहीं, बल्कि एक रूहानी सुकून और रहमत का ज़रिया है।
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बीवी के साथ अच्छा सुलूक:
> रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:"तुम में से बेहतरीन वो है जो अपनी बीवी के साथ अच्छा सुलूक करता है, और मैं तुम सब में अपनी बीवियों के साथ सबसे अच्छा हूँ।"(तिर्मिज़ी: 3895)
यह हदीस इस बात की दलील है कि अच्छा शौहर वही है जो अपनी बीवी की कद्र करता है, उसे वक्त देता है, और उसकी इज्जत करता है।
मियां-बीवी का रिश्ता , नाज़ुक भी,मजबूती भी
- मियां-बीवी का रिश्ता सिर्फ दो लोगों का नहीं होता, बल्कि दो दिलों, दो जिंदगियों, और दो परिवारों का मिलन होता है। ये रिश्ता प्यार, एतबार, और इज्जत की बुनियाद पर टिकता है।
- मियां को बीवी के जज़्बात समझने की जरूरत होती है, न कि सिर्फ उसकी ज़िम्मेदारियाँ गिनाने की।
- बीवी को शौहर की थकावट और खामोशी को पढ़ने की फुर्सत होनी चाहिए, न कि सिर्फ शिकवों का हिसाब और मसरूफ़ियत में वक्त गुज़ार देना!
- जब दोनों एक-दूसरे को वक्त देते हैं, एक-दूसरे की सुनते हैं और समझते हैं, तो ये रिश्ता मजबूत बनता है। लेकिन जब बेज़ारी, बेरुख़ी और लापरवाही आ जाए, तो दिलों में फासले आने लगते हैं। और फिर पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता।
वक्त दीजिए, क़दर कीजिए
- अगर आपके पास आज रिश्तों को वक्त देने का मौका है, तो उसे गंवाइए मत।
- माँ-बाप को फोन कर लीजिए।
- भाई-बहन से हाल पूछ लीजिए।
- बच्चों के साथ कुछ लम्हे बैठ जाइए।
- और अपने हमसफ़र के साथ दिल की बात कर लीजिए।
क्योंकि कल को अगर ये लोग रहे भी, तो शायद वो अपनापन ना रहे। और अगर ना रहे, तो बस यादें रह जाएंगी... और पछतावा।
Note: कहा जाता है बूंद बूंद तालाब भरता है ठीक उसी तरह रिश्तों में धीरे धीरे कड़वाहट या दूरी आती है और इसकी ख़ास वजह एक दूसरे की बातों को , जज़्बात को, अहसास को न समझना और न ही क़दर करना ! और अगर इसे न संभाला जाए तो फिर वक्त के साथ साथ रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है, मुहब्बत ख़त्म होने लगती है !
Conclusion:
रिश्ते न तो खुद बनते हैं, न ही खुद टिकते हैं। उनको मज़बूत और टिकाऊ बनाने के लिए उन्हें वक्त, तवज्जो और मोहब्बत की जरूरत होती है।इसलिए रिश्तों की क़दर करें, वक्त दें, क्योंकि गुज़रा वक्त वापस नहीं आता... लेकिन पछतावा ताउम्र साथ रहता है।
हमारी ज़िंदगी में रिश्ते अल्लाह की बड़ी नेमत हैं। इन्हें नज़रअंदाज़ करना नादानी है। मियां-बीवी के रिश्ते को अगर वक्त, समझदारी और मोहब्बत दी जाए तो यह दुनिया और आखिरत दोनों में कामयाबी का ज़रिया बनता है।
तो आइए, आज से ही अपने रिश्तों की क़दर करें... उनका ख़्याल रखें,संभालें क्योंकि गुज़रा वक्त और दुनियां से जाने वाले कभी वापस नहीं आते।
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FAQs:
1. रिश्तों की क़दर क्यों करनी चाहिए?
रिश्ते हमारी जिंदगी में सहारा और खुशी का सबसे बड़ा ज़रिया होते हैं। अगर हम उनकी कद्र नहीं करेंगे, तो एक दिन पछताना पड़ेगा क्योंकि टूटे हुए रिश्ते और गुज़रा वक्त वापस नहीं आता।
2. मियां-बीवी के रिश्ते में वक्त देना क्यों ज़रूरी है?
मियां-बीवी का रिश्ता प्यार, एतबार और समझदारी पर टिकता है। वक्त देना मोहब्बत को गहरा करता है और गलतफहमियों को दूर करता है। वरना छोटी-छोटी बातें दूरियों का सबब बन सकती हैं।
3. अगर रिश्तों में दूरी आ जाए तो क्या करें?
सबसे पहले पेशकदमी करें, माफी मांगें या माफ करें। खुल कर बात करें और रिश्तों को फिर से सँवारने की कोशिश करें। अल्लाह तआला भी उन लोगों को पसंद करता है जो रिश्ते जोड़ते हैं।
4. मियां-बीवी के बीच मोहब्बत बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए?
छोटी-छोटी खुशियों को साझा करना, एक-दूसरे की बात सुनना, शुक्रिया अदा करना, और एक-दूसरे के एहसासात का लिहाज़ करना मोहब्बत को बढ़ाता है।
5. अगर कोई रिश्ता निभाना मुश्किल हो जाए तो?
सब्र, दुआ और सलाहियत से काम लेना चाहिए। रिश्ते को खत्म करने से पहले पूरी कोशिश करनी चाहिए कि उसे बचाया जाए। इस बारे में कुरआन कहता है कि सुलह करना बेहतर है।
6. मियां-बीवी के झगड़े को कैसे संभालें?
झगड़े में बदजुबानी से बचें। जब गुस्सा आए तो कुछ देर खामोश हो जाएं। बाद में ठंडे दिमाग से मसले को बातचीत से हल करें। रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया,
> "गुस्सा शैतान से है, और शैतान आग से पैदा किया गया है, और आग को पानी से बुझाया जाता है। जब तुममें से किसी को गुस्सा आए तो वुज़ू कर ले।" (अबू दाऊद: 4784)
7. रिश्तों में बरकत लाने के लिए कौन सी दुआ पढ़ें?
रिश्तों में बरकत और मोहब्बत के लिए यह दुआ पढ़ी जा सकती है:
> "رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا"
(सूरह फुरकान: 74)
तरजुमा:
"ऐ हमारे रब! हमें हमारी बीवियों और औलाद से आंखों की ठंडक अता फरमा, और हमें मुत्तक़ियों का पेशवा बना।"
8. मियां-बीवी को आपस में किन बातों का ख्याल रखना चाहिए?
एक-दूसरे की इज्जत करें।
छोटी-छोटी बातों पर शुक़्र अदा करें।
जब कोई गलती हो जाए तो जल्द माफ़ करें।
एक-दूसरे के एहसासात को समझें और तवज्जो दें।
9. क्या मियां-बीवी के बीच मोहब्बत के लिए कोई वज़ीफ़ा है?
जी हाँ! हर फर्ज़ नमाज़ के बाद 11 मर्तबा "या वदूदु" (یَا وَدُودُ) पढ़कर दुआ करना, और अल्लाह से दिलों में मोहब्बत पैदा करने की फरियाद करना बहुत मुफीद माना गया है।
10. अगर रिश्ते में दरार आ जाए तो इस्लाम क्या हिदायत देता है?
इस्लाम हमेशा सुलह की तरजीह देता है। अल्लाह तआला फरमाते हैं:
> "और सुलह बेहतर है।"
(सूरह अन-निसा: 128)
मसलहत से काम लेना और सही तरीके से मशवरा करना बहुत जरूरी है।
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