Kya Marne ke Baad Roohen Duniya me wapas Aati hain ?(Hindi/Urdu)

यह अल्लाह का अटल क़ानून है कि मौत के बाद किसी की भी दुनियां में वापसी मुमकिन नहीं। जब शहीद या उसकी रूह दुनिया में वापस नहीं आ सकती तो फ़िर दूसरों की क्या हैसियत है?

Kya Marne ke Baad Roohen Duniya me wapas Aati hain ?  – कुरआन और सहीह हदीस की रौशनी में

✒️ : Mohib Tahiri 🕋 islamic article 
अगर गुमराही और अल्लाह की पकड़ से बचना है तो इस लेख Kya Marne ke Baad Roohen Duniya me wapas Aati hain ?  को पूरा ज़रूर पढ़ें, सही दीन को समझें और अपना अकीदह दुरूस्त करें ताकी आख़िरत कामयाब हो। 

Ghalt aqeede ka radd
Rooh ki wapsi 




इस्लाम एक मुकम्मल और हकीकी दीन है जो इंसान की ज़िंदगी के हर पहलू को रोशनी में लाता है—दुनिया से लेकर आख़िरत तक। लेकिन अफसोस! आज के दौर में इस्लामी तालीमात से दूरी और मनघड़ंत कहानियों ने हमारे अकीदे में बहुत सी ग़लतियाँ पैदा कर दी हैं।
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    एक तरफ़ शहीद की कुर्बानी को समझने और उससे सबक लेने की बजाय हम रस्मी ताजियादारी और गैर-शरई रस्मों में उलझ गए हैं, दूसरी तरफ़ ये झूठा अकीदा भी फैला हुआ है कि इंसान की रूह मरने के बाद दुनिया में आती-जाती रहती है, वालिदैन या बुज़ुर्ग बच्चों के पास आते हैं, मदद करते हैं आदि।

    इंसान की मौत एक हक़ीक़त है जिससे कोई नहीं बच सकता। लेकिन अक्सर लोगों के दिल में ये सवाल उठता है कि Kya Marne ke Baad Roohen Duniya me wapas Aati hain ?  क्या वो हमसे मिलती हैं, बात करती हैं, या किसी शक्ल में वापस आती हैं? आइए इस सवाल का जवाब क़ुरआन, हदीस और उलमा के अक़वाल की रौशनी में तलाश करते हैं। इस लेख में इन दो बातों को सहीह हदीस और कुरआन की रौशनी में समझते हैं।

    1. शहीद की तमन्ना और जन्नत की नेमतें – सहीह हदीस की रौशनी में
    2. मरने के बाद रूह का दुनिया में लौटना – एक ग़लत अकीदे का रद्द

    🕊️ 1. शहीद की तमन्ना – जन्नत में पहुंच कर

    आइए सबसे पहले जानें कि एक शहीद जिसका इतना बड़ा मक़ाम और मर्तबा है कि अल्लाह ने फरमाया कि वो ज़िंदा है उसे मुर्दा न कहो, उससे मुतल्लिक़ क़ुरआन और हदीस में क्या कहा गया है ? उसकी रूह दुनिया में वापस आती है कि नहीं?
    आइए एक हदीस मुलाहिज़ा फरमाएं की रसूलुल्लाह ﷺ ने शहीद से मुतल्लिक क्या फरमाया:
    > "जब शहीद जन्नत में दाख़िल होता है तो उसका रब उस पर तजल्ली करता है और फ़रमाता है: ‘कोई तमन्ना कर।’ तो वह (शहीद) तमन्ना करता है, यहां तक कि जब उसकी तमन्नाएं खत्म हो जाती हैं, तो कहता है:
    ‘ऐ मेरे रब! मुझे फिर से दुनिया में भेज दे ताकि मैं एक बार फिर तेरी राह में क़ुर्बान किया जाऊं।’ यह वो चीज़ है जो वह जन्नत की करामतों को देखकर कहता है। मगर अल्लाह तआला फ़रमाता है: ‘अब यह फैसला हो चुका है कि लोग दोबारा नहीं लौटाए जाएंगे।’"
     📌 (सहीह मुस्लिम: हदीस 1877, सहीह बुख़ारी: हदीस 2817)

    इस हदीस से ये साफ़ ज़ाहिर हो गया कि शहीद की रूह दुनिया में वापस नहीं आ सकती है। 

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    शहीदों का पैग़ाम:

    हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

    "जब उहद की लड़ाई में तुम्हारे भाई शहीद किए गए तो अल्लाह तआला ने उनकी रूहों को हरे परिंदों के शरीर में डाल दिया। वे जन्नत की नहरों पर जाते हैं, जन्नत के फल खाते हैं और अल्लाह के अर्श के साए में सोने की कंदीलों में आराम फरमाते हैं। जब उन्होंने खाने-पीने की नेमतें और अपने मुकाम की खूबसूरती देखी तो कहने लगे: 'काश हमारे दुनिया वाले भाई जान जाएं कि अल्लाह तआला ने हमारे साथ कैसे इकराम का बर्ताव किया है, ताकि वे जिहाद से रुख़ न मोड़ें और पीठ न फेरे।'"

    अल्लाह तआला ने फरमाया:

    मैं तुम्हारा ये पैग़ाम तुम्हारे भाइयों तक पहुँचा देता हूँ।"
    फिर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फ़रमाई:
    और जो लोग अल्लाह के रास्ते में क़त्ल कर दिए गए उन्हें तुम हरगिज़ मुर्दा न समझो, बल्कि वे ज़िंदा हैं और अपने रब के पास रोज़ी दिए जा रहे हैं।"(सूरह आले इमरान: आयत 169)(मुस्नद अहमद: 8548)

    📖 इसी से मुतल्लिक एक और आयत:

    और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गए हैं, उन्हें 'मुरदा' मत कहो, बल्के वो ज़िंदा हैं, मगर तुम्हें उसका शऊर (एहसास) नहीं।"📚 — सूरह अल-बक़रा (2:154)

    मरने के बाद रूह वापस दुनिया में नहीं आती। न कोई घर आती है, न किसी से बात करती है। यह सिर्फ भ्रम, कल्पना या शैतान का धोखा हो सकता है। क़ुरआन और हदीस से यह बिल्कुल साफ़ है


    शहीद की ज़िंदगी और "आलम ए बर्ज़ख" की हकीकत

    इस हदीस और आयत से यह बात वाज़ेह होती है कि शहीदों को एक खास तरह की रूहानी जिंदगी अता की जाती है, जो "आलम ए बर्ज़ख" (बरज़ख की दुनिया) में होती है। बरज़ख वह आलम (जगह) है जहां हर इंसान मौत के बाद दाखिल होता है। वह न तो दुनिया है और न ही आख़िरत – बल्कि एक मध्यकालीन रूहानी दुनिया है जहां इनसान को उसकी नीयत और अमल के मुताबिक़ सिला मिलना शुरू हो जाता है।


    ग़लतफहमी और गलत तावीलें – एक ज़रूरी वज़ाहत

    कुछ लोग इस आयत और हदीस को गलत तरीके से पेश करके यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि शहीद या वली दुनिया में भी हमारे हालात से वाकिफ़ रहते हैं, हमारी बात सुनते हैं, मदद कर सकते हैं या उनके दर पर जाकर दुआएं करना जायज़ है। यह तफ्सीर ग़लत और बुनियादी अक़ीदे के खिलाफ़ है।

    असल में शहीदों की "हयात" (जिंदगी) ऐसी रूहानी है जिसका हमारी भौतिक दुनिया से कोई सीधा ताल्लुक नहीं होता। वे न हमारी बात सुन सकते हैं, न मदद कर सकते हैं, न ही उनसे फ़रियाद करना शरीअत के मुताबिक़ है।


    नतीजा और सबक

    हमें शहीदों की रूहानी जिंदगी पर यक़ीन रखना चाहिए क्योंकि यह कुरआन और सही हदीस से साबित है, लेकिन उसी हद तक जो हमें बताया गया है। इसमें बढ़ा-चढ़ाकर बातें बनाना या इससे उलटे-सीधे अकीदे गढ़ना न सिर्फ़ गुमराही है बल्कि तौहीद के खिलाफ़ है।


    📌 नोट: इस्लामी अक़ीदे की बुनियाद कुरआन और सही हदीस हैं, न कि लोगों की बनाई गई तावीलें और ख्वाहिशी तर्जुमे। हर मुसलमान को चाहिए कि वह इल्म हासिल करे, दलील की बुनियाद पर बात करे और बिदअत और ग़लत तसव्वुरात से बचे।



    अगर कोई किसी अपने को सपना में देखे तो यह एक सपना होता है। रूह का लौटना नहीं होता, बल्कि वह ख्वाब अल्लाह की तरफ़ से एक इशारा हो सकता है या फिर इंसान की सोच का असर।

    🔍 मुख्तसर वज़ाहत:

    1. शहीद का मक़ाम:

      जो लोग अल्लाह के लिए जान देते हैं — जिहाद में, हक़ के लिए, मज़लूम की मदद में — उन्हें "शहीद" कहा जाता है, और उनका दर्जा बहुत बुलंद होता है।

    2. शहीद मरते नहीं:

      दुनियावी नज़र से वो मरे हुए लगते हैं, लेकिन अल्लाह फ़रमाता है: वो ज़िंदा हैं।लेकिन उनकी जिंदगी का हमे शऊर नहीं। 

    3. कैसी ज़िंदगी?

      ये ज़िंदगी बरज़ख़ की होती है — क़ब्र और क़ियामत के बीच का आलम। वहाँ उन्हें रुहानी आराम और सुकून मिलता है।

    4. रिज़्क से मुराद:

      यह सिर्फ खाना नहीं, बल्कि अल्लाह की रहमत, जन्नत की नेमतें और रूहानी सुकून होता है।

    5. हमें एहसास नहीं:

      कुरआन कहता है: "लेकिन तुम शऊर नहीं रखते", यानी हम इस ज़िंदगी को अपनी अक्ल से नहीं समझ सकते।


    वाल्देन की रूह बच्चों से मिलने या कुछ बताने आती हैं, इस्लामी अकीदे के मुताबिक़ यह मुमकिन नहीं। अगर किसी को ऐसा लगता है तो वह धोखे या भ्रम का शिकार है। इस्लाम में ऐसा कोई अक़ीदा नहीं कि रूहें वापस आकर बच्चों से मिलती हैं।जब शहीद की रूह दुनियां में वापस नहीं आ सकती तो आम इंसानों की क्या हैसियत।

    🕊️ इन आयात और हदीस से क्या साबित होता है?

    शहीद को अल्लाह के पास ज़िंदा कहा गया है।
    लेकिन उनकी ये ज़िंदगी बरज़ख़ी ज़िंदगी है, दुनिया की नहीं।
    इसका मतलब यह नहीं कि वो वापस इस दुनिया में आते हैं।
    अल्लाह उन्हें जन्नत की नेमतें देता है और एक खास मक़ाम अता करता है।
    शहीद की जन्नत में बड़ी बुलंद मर्तबा होती है।
    शहादत का मक़ाम इतना अज़ीम है कि शहीद जन्नत की नेमतें देखकर बार-बार यही तमन्ना करता है कि उसे दोबारा जिंदगी मिले ताकि फिर जान दे सके।

    लेकिन अल्लाह का क़ानून है कि मौत के बाद वापसी मुमकिन नहीं। जब शहीद या उसकी रूह दुनिया में वापस नहीं आ सकती तो फ़िर दूसरों की क्या हैसियत है? फ़िर हम अल्लाह के क़ानून के ख़िलाफ़ जा कर कैसे यह अकीदह बना लें कि हमारे मरहूमीन की रूहें हमारे पास या घरों में आती हैं? एक बार सोचिएगा ज़रूर। 



    🚫 2. मरने के बाद रूह का वापस आना – एक ग़लत और बेबुनियाद अकीदा

    आजकल एक आम और ख़तरनाक अकीदा फैला हुआ है कि इंसान की रूह मरने के बाद कभी-कभी दुनिया में लौट आती है,हमारे घरों में आती है—ख़्वाह वालिदेन हों, औलिया हों या बुज़ुर्ग। यह अकीदा न कुरआन से साबित है, न किसी सहीह हदीस से।

    1. 📖 क़ुरआन कहता है:

    > "हर नफ़्स को मौत का मज़ा चखना है..."
    (सूरह आल-इमरान, 3:185)

    "जब किसी की मौत का वक़्त आ जाता है, तो अल्लाह उसे वापस नहीं करता।"
    📚 (सूरह मुनाफ़िक़ून: 63:11)

    "उनके आगे एक परदा (बरज़ख़) होता है जो क़ियामत तक बाक़ी रहेगा।"(उस दिन तक जब वो दोबारा उठाए जाएंगे)
    📚 (सूरह मोमिनून: 23:100)

    नेक और बुरे रूह का ठिकाना:इल्लीयीन और सिज्जीन

    📖 सूरह अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन (83:7-9)

    "हरगिज़ नहीं! बुरे लोगों का रिकार्ड 'सिज्जीन' में है। और आप क्या जानें कि सिज्जीन क्या है? वह एक लिखी हुई किताब है।"

    📖 सूरह अल-मुतफ़्फ़िफ़ीन (83:18-20)

    "हरगिज़ नहीं! नेक लोगों का रिकार्ड 'इल्लीयीन' में है। और आप क्या जानें कि इल्लीयीन क्या है? वह एक लिखी हुई किताब है, जिसे मुकर्रब (अल्लाह के क़रीबी) देखेंगे।"


    हदीस में रूह का इल्लीयीन और सिज्जीन में जाना

    📚 [मुस्नद अहमद, हदीस 18534; सहीह तिर्मिज़ी]
    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

    "जब मोमिन की रूह निकलती है तो वह आसमान की तरफ उठाई जाती है, वहां दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और वह 'इल्लीयीन' में दर्ज की जाती है।
    और जब काफ़िर या फासिक की रूह निकलती है तो आसमान के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और वह 'सिज्जीन' में दर्ज की जाती है।"


    ➡️ यानी मौत के बाद इंसान की रूह बरज़ख़ की दुनिया में चली जाती है, और क़ियामत तक वहीं रहती है। वह वापस नहीं आती।
    इन आयातों से साफ़ ज़ाहिर होता है कि मौत के बाद इंसान की रूह बरज़ख़ नामी एक आलम में चली जाती है।नेक रूह इल्लीयीन में और बुरी रूह सिज़्जीन में और अपने अपने अमाल की वजह से सज़ा या जज़ा में मुब्तिला होंगे। और यह एक ऐसा दौर है जो क़ियामत तक रहेगा। इंसान की रूह दुनिया में वापस नहीं आती।
    ये अल्लाह सुब्हान व तआला का क़ानून और निज़ाम है कोई घर या सैर व तफ़रीह करने की जगह नहीं की जिसकी जब मर्ज़ी वहां से आए जाए। 

    2. क़ब्र की ज़िन्दगी और सवाल(हदीस की रौशनी में)

    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    > "जब इंसान मर जाता है, तो उसके अमल बंद हो जाते हैं सिवाए तीन चीज़ों के: सदक़ा-ए-जारिया, इल्म जिससे फ़ायदा उठाया जाए, और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे।"(सहीह मुस्लिम: 1631)

    हज़रत बराअ बिन 'आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    > "मौत के बाद मोमिन की रूह जन्नत से लाई जाती है और फिर उसे वापस क़ब्र में लाया जाता है ताकि सवाल-जवाब हो..."(मुसनद अहमद: हदीस नंबर 18534)
    ये हदीस इस बात की दलील है कि मौत के बाद इंसान का रिश्ता इस दुनिया से टूट जाता है। हाँ, रूह को क़ब्र में सवाल-जवाब के लिए लाया जाता है, मगर वो दुनिया में आम लोगों की तरह वापस नहीं आती।

    3. उलमा का मत

    इमाम इब्न कसीर रहीमुल्लाह 

    उन्होंने अपनी तफ़सीर में सूरह मोमिनून की आयत (23:100) की तफ़्सीर में लिखा:
    > "बरज़ख़ का मतलब है कि मरने के बाद इंसान की रूह किसी और आलम में चली जाती है और दुनिया में वापस नहीं आती जब तक क़ियामत ना आ जाए।"(तफ़्सीर इब्न कसीर)

    इमाम नववी 
    रहीमुल्लाह

    उन्होंने फ़रमाया:
    > "मुरदार की रूह का दुनिया में वापस आना शरीअत से साबित नहीं है, और जो इस पर यक़ीन करता है वह ग़लतफहमी में है।"ऐसी बातें वहम और शैतानी धोखों पर मबनी होती हैं।
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    यह अक़ीदा बिल्कुल ग़लत है कि मरने के बाद कोई बुज़ुर्ग या वली मदद के लिए आता है। जो मदद मिलती है वो अल्लाह की तरफ़ से मिलती है, ना कि मरने वालों की रूह से।

    🚫 क्या बुजुर्गों की रूह घर आती है?

    कुछ लोग यह समझते हैं कि उनकी मां, बाप या बुज़ुर्ग मरने के बाद घर आते हैं, देख-रेख करते हैं, मदद करते हैं। और अक्सर यह दावा करते हैं कि उन्होंने मरहूम को देखा, उनसे बात की या उनकी रूह उनके घर आई। इस्लामी उलमा इन बातों को वहम, शैतानी वसवसे, या जिन्नों की हरकतें करार देते हैं। इन पर यक़ीन करना शरीअत के खिलाफ़ है।

    🔹 हकीकत: यह बातें शिर्क और कहानी-किस्सों पर मबनी हैं।
    🔹 इस्लाम कहता है: मौत के बाद रूह का ताल्लुक़ बरज़ख़ से होता है, ना कि इस दुनिया से।

    यानी यह अकीदह रखना कि बुजुर्गों की रूह घर आती हैं अल्लाह के फ़रमान और नबी ﷺ  के कलाम के बिल्कुल ख़िलाफ़ है। 


    💡 अगर कोई अपनों को सपना में देखे ?

    अगर किसी को अपने मरहूम मां बाप या बुज़ुर्ग का ख्वाब आता है तो ये सिर्फ़ एक ख्वाब है, जिसकी ताबीर हो सकती है। इसका मतलब यह नहीं कि उनकी रूह आई थी। और यह अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि अच्छे ख्वाब अल्लाह की तरफ़ से और बुरे ख्वाब शैतान की तरफ़ से होता है। 

    Note: किसी बुज़ुर्ग या हमारे मरहूमीन का हमारे ख्वाब में आना इसका ये हरगिज़ मतलब नहीं कि वो खुद आए थे या उनकी रूह आई थी। क्योंकि यह अल्लाह के अटल क़ानून के ख़िलाफ़ है। उनका आना किसी चीज की तरफ इशारा हो सकता है जो ख्वाब की ताबीर की शकल में कभी कभी हमारे सामने नज़र आता है। और यह अल्लाह की तरफ़ से होता है उनकी रूह खुद नहीं आती। 

    जब अल्लाह सुब्हान व तआला शहीद की ख्वाहिश करने पर उन्हें दुनियां में वापस नहीं भेज रहा है बल्कि उनका पैग़ाम खुद दुनियां वालों के लिए पहुंचा रहा है तो भला ये अकीदह कैसे सही मान लिया जाए कि बुजुर्ग या हमारे घर वालों की रूहें दुनियां में आती हैं हमें कुछ बताती हैं। ये अल्लाह के क़ानून के ख़िलाफ़  है। 


    किसी को ख़्वाब में देखना एक इशारा हो सकता है

    किसी को ख़्वाब में देखना एक इशारा हो सकता है कि कुछ होने वाला है उसकी ताबीर वाक़िआ होने के बाद ही समझ में आती है इंसान को पहले नहीं या जिनको अल्लाह ने वो समझ और बसीरत दी है वही इसकी ताबीर बता सकते हैं। 

    आइए एक ख्वाब से समझें 

    एक बार मैने अपने मरहूम वालिद को ख्वाब में बिल्कुल बूढ़े की हालत में देखा। सर और दाढ़ी के बाल बिल्कुल सफेद थे। फिर दूसरे दिन फजर की नमाज़ पढ़ कर सोया तो अपनी मरहूमा मां को देखा। वो अपने घर यानी मेरे नाना के घर में थी और बहुत सारे मर्द ,औरतें और लड़के ,लड़कियों का हजूम था। मैने मां से कहा कि अम्मा नमाज़ का वक्त हो गया है वज़ू करने जा रहा हूं मामा के घर के बाथरूम में। तब मां ने कहा कि नहीं यहां नहीं बाहर के नल से वज़ू कर लो ये तुम्हारे मामा का घर था अब नहीं रहा वो बदल गया है यानी दूसरी जगह चले गए हैं। ये रहा ख़्वाब। 

    ख़्वाब की ताबीर

      ठीक उसी दिन 10 बजे के करीब मैसेज आया कि हमारे एक रिश्तेदार आज इंतिक़ाल कर गए। तब मेरे ज़हन में वो ख़्वाब का मंजर घूमने लगा की उसका इशारा यानी ताबीर इससे है। और उसी दिन जब बड़े भाई से बात हुई तो उन्हों ने भी बताया कि वो भी दो दिन पहले एक ख्वाब देखे कि वो मरने वाले को वज़ू करवा रहे थे। 
    इन सभी ख्वाबों का इशारा यही था कि कोई इस दुनिया से जाने वाला है। और यह उसके जाने के बाद ही पता चला। 

    अब यहां अगर मैं यह सोचूं की मेरे मरहूमीन वालिदेन की रूहें मेरे ख़्वाब में आकर यह बताए या इशारा किए कि कोई हमारे खानदान में आज इंतिक़ाल करने वाला है तो ये अकीदह अल्लाह के क़ुरआन और क़ानून के बिल्कुल ख़िलाफ़ है जो ऊपर बयान किया गया है। 

    सही अकीदा क्या होना चाहिए?

    1. इंसान मरने के बाद दुनिया में वापस नहीं आता, सिवाय क़ियामत के दिन।

    2. शहीद को जन्नत की नेमतें मिलती हैं, और वह दोबारा शहादत चाहता है मगर लौटा नहीं जाता।

    3. किसी भी मरहूम की रूह का आना-जाना मुमकिन नहीं, ये सिर्फ़ अंधविश्वास हैं।


    🧑‍🧑‍🧒हमारी जिम्मेदारी क्या है?

    • अपने अकीदे की इस्लामी बुनियादों पर तामीर करें।

    • बुज़ुर्गों के लिए ईसाल-ए-सवाब करें, ना कि उनकी रूह को दुनिया में आने जाने के अंधविश्वास में पड़ें।

    • शहीदों की कुर्बानी से सबक लें, ना कि रस्मी नौहे और अफ़सानों में खो जाएं।


    🕯️ ख़ात्मा (Conclusion)

    ख़ुदारा! अपना अकीदह दुरूस्त करें और आख़िरत बचाएं ,और खुद फैसला करें कि वाक़ई Kya Marne ke Baad Roohen Duniya me wapas Aati hain ?  ऐसा न हो कि अल्लाह की पकड़ में आ जाएं। सही दीन हासिल करें। 

    शहीद की यह दुआ कि "या अल्लाह! मुझे फिर से ज़िंदा कर के शहादत का मौका दे", हमें यह सबक देती है कि इस्लाम की राह में जान देना सबसे बड़ी इज्ज़त है।

    1. और ये भी समझना ज़रूरी है कि मौत के बाद इंसान की रूह बरज़ख़ में होती है, ना कि हमारे घरों में।
    2. जब शहीद की रूह दुनिया में वापस नहीं आ सकती है तो फिर और किसी की रूह दुनिया में कैसे वापस आ सकती है? 
    3. वह आम तौर पर दुनिया में वापस नहीं आती।
    4. जो लोग ऐसा दावा करते हैं, वो धोखे में हैं या किसी ग़ैर-शरई चीज़ से मुतास्सिर हुए हैं।
    5. हमें इस्लामी अक़ीदे पर यक़ीन रखना चाहिए और ऐसे धोखों से बचना चाहिए।
    दुआ है कि अल्लाह तआला हमें सही समझ और सही अक़ीदा अता फ़रमाए। आमीन।
    हमें अपने अकीदे की हिफाजत करनी चाहिए, और हर उस बात को ठुकरा देना चाहिए जो कुरआन और सहीह हदीस के खिलाफ़ हो।


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    کیا مرنے کے بعد روحیں دنیا میں واپس آتی ہیں؟

    🕋 ✒️ تحریر: محب طاہری| اسلامی مضمون

    اسلام ایک مکمل اور حقیقی دین ہے جو انسان کی زندگی کے ہر پہلو کو روشنی میں لاتا ہے — دنیا سے لے کر آخرت تک۔
    لیکن افسوس! آج کے دور میں اسلامی تعلیمات سے دوری اور من گھڑت کہانیوں نے ہمارے عقیدے میں بہت سی غلطیاں پیدا کر دی ہیں۔

    ایک طرف شہید کی قربانی کو سمجھنے اور اس سے سبق لینے کے بجائے ہم رسمی تعزیہ داری اور غیر شرعی رسموں میں الجھ گئے ہیں، اور دوسری طرف یہ جھوٹا عقیدہ بھی پھیلایا جا رہا ہے کہ انسان کی روح مرنے کے بعد دنیا میں آتی جاتی رہتی ہے، والدین یا بزرگ بچوں کے پاس آتے ہیں، مدد کرتے ہیں وغیرہ۔

    انسان کی موت ایک حقیقت ہے جس سے کوئی نہیں بچ سکتا۔
    لیکن اکثر لوگوں کے دل میں یہ سوال پیدا ہوتا ہے کہ کیا مرنے کے بعد روحیں واپس دنیا میں آتی ہیں؟ کیا وہ ہم سے ملتی ہیں، بات کرتی ہیں، یا کسی شکل میں واپس آتی ہیں؟

    آئیے اس سوال کا جواب قرآن، حدیث اور علمائے کرام کے اقوال کی روشنی میں تلاش کرتے ہیں۔
    اس مضمون میں ہم دو باتوں پر روشنی ڈالیں گے:


    🕊️ 1. شہید کی تمنا اور جنت کی نعمتیں – صحیح احادیث کی روشنی میں

    نبی کریم ﷺ نے فرمایا:

    "جب شہید جنت میں داخل ہوتا ہے تو اُس کا رب اُس پر تجلی فرماتا ہے اور کہتا ہے: کوئی تمنا کرو۔
    وہ تمنا کرتا ہے، یہاں تک کہ جب تمام تمنا ختم ہو جاتی ہے، تو وہ کہتا ہے:
    'اے میرے رب! مجھے دوبارہ دنیا میں لوٹا دے تاکہ میں ایک بار پھر تیری راہ میں شہید کیا جاؤں۔'
    یہ وہ چیز ہے جو وہ جنت کی کرامتوں کو دیکھ کر کہتا ہے۔
    لیکن اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:
    'اب یہ فیصلہ ہو چکا ہے کہ لوگ دوبارہ نہیں لوٹائے جائیں گے۔'"

    📌 (صحیح مسلم: حدیث 1877، صحیح بخاری: حدیث 2817)


    📖 قرآن مجید کی آیات:

    "اور جو لوگ اللہ کی راہ میں مارے گئے انہیں مردہ نہ کہو، بلکہ وہ زندہ ہیں لیکن تم شعور نہیں رکھتے۔"
    📚 سورۃ البقرہ (2:154)

    "اور جو لوگ اللہ کی راہ میں قتل کیے گئے، انہیں مردہ نہ سمجھو، بلکہ وہ اپنے رب کے پاس زندہ ہیں، روزی دیے جاتے ہیں۔"
    📚 سورۃ آل عمران (3:169)


    🔍 مختصر وضاحت:

    1. شہید کا مقام:
    جو لوگ اللہ کے لیے جان دیتے ہیں — جہاد میں، حق کے لیے، مظلوموں کی مدد میں — انہیں "شہید" کہا جاتا ہے۔ ان کا درجہ بہت بلند ہوتا ہے۔

    2. شہید مرتے نہیں:
    ظاہری نظر میں وہ فوت شدہ نظر آتے ہیں، لیکن قرآن کہتا ہے: وہ زندہ ہیں۔

    3. کیسی زندگی؟
    یہ برزخی زندگی ہے — قبر اور قیامت کے درمیان کا ایک عالم۔ وہاں انہیں روحانی سکون، راحت اور اللہ کی نعمتیں ملتی ہیں۔

    4. رزق کا مطلب:
    صرف کھانے پینے کی چیزیں نہیں، بلکہ اللہ کی رحمت، جنت کی نعمتیں اور روحانی آرام شامل ہے۔

    5. ہمیں شعور نہیں:
    قرآن فرماتا ہے: "لیکن تم شعور نہیں رکھتے" — یعنی ہم اس زندگی کو دنیاوی عقل سے نہیں سمجھ سکتے۔


    🕊️ ان آیات اور حدیث سے کیا ثابت ہوتا ہے؟

    شہید کو اللہ کے ہاں زندہ کہا گیا ہے۔

    مگر یہ زندگی دنیا کی نہیں، بلکہ برزخی زندگی ہے۔

    اس کا ہرگز یہ مطلب نہیں کہ وہ دنیا میں واپس آتے ہیں۔

    اللہ تعالیٰ انہیں جنت کی خاص نعمتیں اور مرتبہ عطا فرماتا ہے۔

    وہ بار بار دنیا میں واپس آ کر شہادت کی تمنا کرتے ہیں، مگر اللہ کا قانون ہے: موت کے بعد واپسی ممکن نہیں۔

    پس، جب شہید یا اُس کی روح دنیا میں واپس نہیں آ سکتی، تو عام لوگوں کی روحوں کی واپسی کا تصور بھی غلط ہے۔

    🚫 2. مرنے کے بعد روح کا دنیا میں واپس آنا – ایک غلط اور بے بنیاد عقیدہ

    آج کل ایک عام اور خطرناک عقیدہ پھیلایا گیا ہے کہ انسان کی روح مرنے کے بعد کبھی کبھار دنیا میں آتی ہے — والدین، اولیاء یا بزرگ۔
    یہ عقیدہ نہ قرآن سے ثابت ہے، نہ کسی صحیح حدیث سے۔


    📖 قرآنی دلائل:

    ہر نفس کو موت کا ذائقہ چکھنا ہے...
    📚 سورۃ آل عمران (3:185)

    جب کسی کی موت کا وقت آ جاتا ہے تو اللہ اسے واپس نہیں کرتا۔
    📚 سورۃ المنافقون (63:11)

    اور ان کے آگے ایک پردہ (برزخ) ہوتا ہے، جو قیامت تک قائم رہے گا۔
    📚 سورۃ المؤمنون (23:100)
    📌 یعنی موت کے بعد روح برزخ میں چلی جاتی ہے، اور قیامت تک دنیا میں واپس نہیں آتی۔

    📚 حدیث کی روشنی میں:

    نبی کریم ﷺ نے فرمایا:

    "جب انسان مر جاتا ہے، تو اُس کے اعمال ختم ہو جاتے ہیں، سوائے تین چیزوں کے:
    صدقہ جاریہ، ایسا علم جس سے فائدہ اٹھایا جائے، اور نیک اولاد جو دعا کرے۔"
    📚 (صحیح مسلم: حدیث 1631)
    حضرت براء بن عازب رضی اللہ عنہ سے روایت ہے:
    "مومن کی روح جنت سے لائی جاتی ہے اور پھر قبر میں سوالات کے لیے واپس لائی جاتی ہے..."📚 (مسند احمد: حدیث 18534)
    📌 یعنی روح قبر میں سوالات کے لیے آتی ہے، لیکن دنیا میں عام انسانوں کی طرح گھومنے پھرنے نہیں آتی۔

    📚 علمائے کرام کا مؤقف:

    امام ابن کثیر رحمہ اللہ
    سورۃ المؤمنون (23:100) کی تفسیر میں لکھتے ہیں:
    "برزخ کا مطلب ہے کہ مرنے کے بعد انسان کی روح ایک دوسرے عالم میں چلی جاتی ہے اور قیامت تک واپس نہیں آتی۔"
    امام نووی رحمہ اللہ فرماتے ہیں:
    "مردے کی روح کا دنیا میں واپس آنا شریعت سے ثابت نہیں، اور جو اس پر یقین رکھتا ہے وہ غلط فہمی میں مبتلا ہے۔ یہ سب وسوسے اور شیطانی دھوکے ہیں۔"

    🚫 کیا بزرگوں کی روحیں گھر آتی ہیں؟

    کچھ لوگ یہ سمجھتے ہیں کہ ان کے والدین یا بزرگ مرنے کے بعد گھر آتے ہیں، ان کی مدد کرتے ہیں، ان سے بات کرتے ہیں۔

    📌 حقیقت:
    یہ سب باتیں شِرک، وہم اور قصے کہانیوں پر مبنی ہیں۔
    اسلامی علماء فرماتے ہیں کہ یہ سب جنات کے اثرات یا شیطانی وسوسے ہوتے ہیں۔


    💡 اگر کوئی اپنے عزیز کو خواب میں دیکھے؟

    اگر کسی کو اپنے مرحوم ماں باپ یا بزرگ کا خواب آتا ہے تو یہ صرف ایک خواب ہے، جس کی تعبیر ہو سکتی ہے۔ اس کا مطلب یہ ہرگز نہیں کہ ان کی روح آئی تھی۔ اور یہ اچھی طرح معلوم ہونا چاہیے کہ اچھے خواب اللہ کی طرف سے اور برے خواب شیطان کی طرف سے ہوتے ہیں۔

    📌 نبی ﷺ نے فرمایا:
    "اچھا خواب اللہ کی طرف سے، اور برا خواب شیطان کی طرف سے ہوتا ہے۔"
    نوٹ:
    کسی بزرگ یا ہمارے مرحومین کا ہمارے خواب میں آنا اس کا یہ ہرگز مطلب نہیں کہ وہ خود آئے تھے یا ان کی روح آئی تھی، کیونکہ یہ اللہ کے اٹل قانون کے خلاف ہے۔ ان کا آنا کسی چیز کی طرف اشارہ ہو سکتا ہے جو خواب کی تعبیر کی شکل میں کبھی کبھی ہمارے سامنے ظاہر ہوتا ہے، اور یہ اللہ کی طرف سے ہوتا ہے، ان کی روح خود نہیں آتی۔
    جب اللہ سبحانہ و تعالیٰ شہید کی خواہش پر بھی انہیں دنیا میں واپس نہیں بھیج رہا بلکہ ان کا پیغام خود دنیا والوں تک پہنچا رہا ہے، تو بھلا یہ عقیدہ کیسے صحیح مان لیا جائے کہ بزرگ یا ہمارے گھر والوں کی روحیں دنیا میں آتی ہیں اور ہمیں کچھ بتاتی ہیں؟ یہ اللہ کے قانون کے خلاف ہے۔

    کسی کو خواب میں دیکھنا ایک اشارہ ہو سکتا ہے

    کسی کو خواب میں دیکھنا کبھی ایک اشارہ ہو سکتا ہے کہ کچھ ہونے والا ہے، لیکن اس کی صحیح تعبیر اکثر واقعہ ہونے کے بعد ہی سمجھ میں آتی ہے۔ عام طور پر انسان کو پہلے نہیں پتہ چلتا، البتہ جن کو اللہ نے یہ فہم اور بصیرت دی ہو، وہی اس کی تعبیر بتا سکتے ہیں۔

    آئیے ایک خواب سے سمجھتے ہیں:

    ایک مرتبہ میں نے اپنے مرحوم والد کو خواب میں بالکل بوڑھے کی حالت میں دیکھا۔ سر اور داڑھی کے بال بالکل سفید تھے۔ پھر دوسرے دن فجر کی نماز پڑھ کر سویا تو اپنی مرحومہ والدہ کو دیکھا۔ وہ اپنے گھر، یعنی میرے نانا کے گھر میں تھیں، اور وہاں مرد، عورتیں اور لڑکے، لڑکیوں کا ہجوم تھا۔
    میں نے امی سے کہا:
    "امّاں، نماز کا وقت ہوگیا ہے، وضو کرنے جا رہا ہوں ماموں کے گھر کے باتھ روم میں۔"
    تو امی نے کہا:
    "نہیں، یہاں نہیں، باہر کے نل سے وضو کر لو۔ یہ تمہارے ماموں کا گھر تھا، اب نہیں رہا، وہ بدل گیا ہے، یعنی دوسری جگہ منتقل ہو گئے ہیں۔"یہ تھا خواب۔ 

    خواب کی تعبیر:

    ٹھیک اسی دن صبح دس بجے کے قریب ایک رشتہ دار کے انتقال کی خبر آئی۔ تب میرے ذہن میں وہ خواب کا منظر گھومنے لگا کہ اس کا اشارہ یا تعبیر اسی واقعے سے ہے۔اور اسی دن جب بڑے بھائی سے بات ہوئی تو انہوں نے بھی بتایا کہ انہوں نے خواب میں دیکھا کہ جو رشتےدار انتقال کئے ہیں انکو وہ وضو کروا رہے تھے۔ 

    لیکن یہاں اگر میں یہ سوچوں کہ میرے مرحوم والدین کی روحیں میری خواب میں آکر یہ بتائیں یا اشارہ کئے ہیں کہ ہمارے خاندان میں آج کوئی انتقال کرنے والا ہے، تو یہ عقیدہ اللہ کے قرآن اور قانون کے بالکل خلاف ہے، جیسا کہ اوپر بیان کیا گیا ہے۔



    صحیح عقیدہ کیا ہونا چاہیے؟

    انسان مرنے کے بعد دنیا میں واپس نہیں آتا، سوائے قیامت کے دن۔

    شہداء کو جنت کی نعمتیں ملتی ہیں، مگر وہ بھی دنیا میں نہیں لوٹائے جاتے۔

    کسی مرنے والے کی روح کا آنا جانا ممکن نہیں — یہ سب باطل اور خرافات ہیں۔

    🧕🏼 ہماری ذمہ داری کیا ہے؟

    اپنے عقیدے کو قرآن و سنت کی بنیاد پر قائم کریں۔

    مرنے والوں کے لیے ایصالِ ثواب کریں، نہ کہ ان کی روح کو بلانے کے وہم میں پڑیں۔

    شہداء کی قربانی سے سبق حاصل کریں، نہ کہ رسم و رواج میں کھو جائیں۔

    🕯️ خاتمہ (نتیجہ)

    شہید کی یہ دعا:
    "یا اللہ! مجھے پھر سے زندہ کر کے دوبارہ شہادت کا موقع دے" — ہمیں بتاتی ہے کہ اللہ کی راہ میں جان دینا سب سے بڑی عزت ہے۔
    لیکن ساتھ ہی یہ حقیقت بھی سمجھ لیں کہ مرنے کے بعد انسان کی روح برزخ میں ہوتی ہے، دنیا میں نہیں۔
    جو لوگ روحوں کے واپس آنے کا دعویٰ کرتے ہیں، وہ یا تو دھوکے میں ہیں یا غیر شرعی تصورات سے متاثر۔

    📌 ہمیں اسلامی عقیدے پر یقین رکھنا چاہیے، اور ہر ایسی بات کو رد کرنا چاہیے جو قرآن و حدیث کے خلاف ہو۔

    🤲 دعا ہے کہ اللہ تعالیٰ ہمیں صحیح فہم، صحیح عقیدہ اور ایمان پر موت نصیب فرمائے۔ آمین۔

     🟢 FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले सवालात:

     क्या मरने के बाद इंसान की रूह (आत्मा) घर वापस आती है? / کیا مرنے کے بعد انسان کی روح واپس گھر آتی ہے؟

    ❌ नहीं। क़ुरआन और हदीस से यह बिल्कुल साफ़ है कि मरने के बाद रूह वापस दुनिया में नहीं आती। न कोई घर आती है, न किसी से बात करती है। यह सिर्फ भ्रम, कल्पना या शैतान का धोखा हो सकता है। ❌ نہیں۔ قرآن و حدیث سے واضح ہے کہ مرنے کے بعد روح دنیا میں واپس نہیں آتی، نہ گھر آتی ہے نہ کسی سے بات کرتی ہے۔ یہ سب وہم یا شیطانی وسوسے ہو سکتے ہیں۔

     क्या शहीद की रूह लौटने की इच्छा करती है? / کیا شہید کی روح دنیا میں واپس آنے کی خواہش کرتی ہے؟

    ✅ हाँ, हदीस में है कि जब शहीद को जन्नत की नेमतें मिलती हैं तो वह चाहता है कि वह दोबारा दुनिया में लौटे और फिर से शहीद हो। मगर अल्लाह फ़रमाता है कि अब वापसी मुमकिन नहीं। ✅ جی ہاں، حدیث میں ہے کہ جب شہید جنت کی نعمتیں دیکھتا ہے تو دنیا میں واپس آ کر دوبارہ شہادت کی خواہش کرتا ہے، لیکن اللہ فرماتا ہے کہ اب واپسی ممکن نہیں۔

     शहीद की ज़िंदगी कैसी होती है? / شہید کی زندگی کیسی ہوتی ہے؟

    ✅ शहीद की रूह को अल्लाह बरज़ख़ में ज़िंदा रखता है। वहाँ उसे रूहानी रिज़्क, जन्नत की नेमतें और सुकून मिलता है। लेकिन वह दुनिया में नहीं लौटती, और न ही किसी से सीधा रिश्ता रखती है। ✅ شہید کی روح برزخ میں زندہ ہوتی ہے۔ اللہ اسے روحانی رزق، جنت کی نعمتیں اور سکون عطا فرماتا ہے۔ لیکن وہ دنیا میں واپس نہیں آتی اور نہ کسی سے براہ راست تعلق رکھتی ہے۔

     क्या वालिदैन की रूहें बच्चों से मिलने आती हैं? / کیا والدین کی روحیں بچوں سے ملنے آتی ہیں؟

    ❌ नहीं। इस्लामी अकीदे के मुताबिक़ यह मुमकिन नहीं। अगर किसी को ऐसा लगता है तो वह धोखे या भ्रम का शिकार है। इस्लाम में ऐसा कोई अक़ीदा नहीं कि रूहें वापस आकर बच्चों से मिलती हैं।जब शहीद की रूह दुनियां में वापस नहीं आ सकती तो आम इंसानों की क्या हैसियत।     ❌ نہیں۔ اسلامی عقیدے کے مطابق یہ ممکن نہیں۔ اگر کسی کو ایسا محسوس ہو تو یہ دھوکہ یا وسوسہ ہو سکتا ہے۔ اسلام میں ایسا کوئی عقیدہ نہیں کہ روحیں واپس آ کر بچوں سے ملتی ہیں۔ جب شہید کی روح دنیا میں واپس نہیں آ سکتی تو عام انسانوں کی کیا حیثیت۔ 

     अगर कोई मरहूम ख्वाब में आए तो क्या वह रूह होती है? / اگر کوئی مرحوم خواب میں آئے تو کیا وہ روح ہوتی ہے؟

    ❌ नहीं, यह एक सपना है। रूह का लौटना नहीं होता, बल्कि वह ख्वाब अल्लाह की तरफ़ से एक इशारा हो सकता है या फिर इंसान की सोच का असर। ❌ نہیں، یہ ایک خواب ہوتا ہے۔ روح کا لوٹنا نہیں ہوتا، بلکہ یہ خواب اللہ کی طرف سے اشارہ ہو سکتا ہے یا انسان کی سوچ کا اثر۔

     क्या किसी वली (बुज़ुर्ग) की रूह मदद करने आती है? / کیا کسی ولی یا بزرگ کی روح مدد کے لیے آتی ہے؟

    ❌ यह अक़ीदा ग़लत है। मरने के बाद कोई बुज़ुर्ग या वली मदद के लिए नहीं आता। जो मदद मिलती है वो अल्लाह की तरफ़ से मिलती है, ना कि मरने वालों की रूह से। ❌ یہ عقیدہ غلط ہے۔ مرنے کے بعد کوئی ولی یا بزرگ مدد کے لیے نہیں آتا۔ مدد صرف اللہ کی طرف سے ہوتی ہے، مردوں کی روحوں سے نہیں۔

     क्या हम रूहों को बुला सकते हैं? / کیا ہم روحوں کو بلا سکتے ہیں؟

    ❌ नहीं। इस्लाम में ऐसा कोई तरीका नहीं जिससे रूहों को बुलाया जाए। ऐसा करना गुमराही, झूठे तावीज़ वालों और जादूगरों का तरीका है। ❌ نہیں۔ اسلام میں کوئی طریقہ نہیں کہ روحوں کو بلایا جائے۔ یہ گمراہی اور جھوٹے عاملوں، جادوگروں کا کام ہے۔

     सही इस्लामी अक़ीदा क्या है? / صحیح اسلامی عقیدہ کیا ہے؟
     क्या शहीद वाक़ई जिंदा होते हैं? / کیا شہید واقعی زندہ ہوتے ہیں؟

    ✅ हाँ, कुरआन और सही हदीस के मुताबिक शहीद एक रूहानी जिंदगी जीते हैं जो 'बरज़ख़' की दुनिया में होती है। वे हमारे जैसे ज़िंदा नहीं होते बल्कि उनके लिए जन्नत की नेमतें मुहैय्या होती हैं। ✅ جی ہاں، قرآن اور صحیح حدیث کے مطابق شہداء ایک روحانی زندگی گزارتے ہیں جو عالم برزخ میں ہوتی ہے۔ وہ دنیا کی طرح زندہ نہیں ہوتے بلکہ جنت کی نعمتیں ان کے لیے مہیا کی جاتی ہیں۔

     क्या शहीद हमारी बात सुन सकते हैं? / کیا شہداء ہماری بات سن سکتے ہیں؟

    ❌ नहीं, शहीदों की रूहानी ज़िंदगी का इस दुनिया से कोई सीधा ताल्लुक नहीं होता। वे हमारी आवाज़ नहीं सुन सकते और न हमारी फरियाद का जवाब दे सकते हैं। ❌ نہیں، شہداء کی روحانی زندگی کا دنیا سے کوئی براہ راست تعلق نہیں ہوتا۔ وہ ہماری آواز نہیں سن سکتے اور نہ ہی ہماری فریاد کا جواب دے سکتے ہیں۔

     क्या शहीदों या वलियों की क़ब्र पर जाकर दुआ माँगना जायज़ है? / کیا شہداء یا اولیاء کی قبروں پر جا کر دعا مانگنا جائز ہے؟

    ❌ नहीं, दुआ सिर्फ़ अल्लाह से माँगी जाती है। क़ब्र पर जाकर किसी वली या शहीद से दुआ मांगना या मदद की उम्मीद रखना शिर्क के करीब है। ❌ نہیں، دعا صرف اللہ سے مانگی جاتی ہے۔ قبر پر جا کر کسی ولی یا شہید سے دعا مانگنا یا مدد کی امید رکھنا شرک کے قریب ہے۔

     "वो ज़िंदा हैं" का मतलब क्या है? / "وہ زندہ ہیں" کا کیا مطلب ہے؟

    ✅ इसका मतलब है कि अल्लाह ने उन्हें जन्नत की रूहानी ज़िंदगी बख्शी है जहाँ वे रोज़ी पाते हैं और आराम करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे हमारी दुनिया में वापस आ गए हों या हमारे हालात से वाक़िफ़ हों। ✅ اس کا مطلب ہے کہ اللہ نے انہیں جنت کی روحانی زندگی عطا فرمائی ہے جہاں وہ رزق پاتے ہیں اور آرام کرتے ہیں۔ اس کا مطلب یہ نہیں کہ وہ دنیا میں لوٹ آئے ہوں یا ہمارے حالات سے باخبر ہوں۔

     क्या शहीदों को जन्नत फ़ौरन मिलती है? / کیا شہیدوں کو جنت فوراً ملتی ہے؟

    ✅ जी हाँ, हदीस से साबित है कि शहीदों की रूहें हरे परिंदों की शक्ल में जन्नत की सैर करती हैं और जन्नत के फल खाती हैं। ✅ جی ہاں، حدیث سے ثابت ہے کہ شہداء کی روحیں سبز پرندوں کی صورت میں جنت کی سیر کرتی ہیں اور جنت کے پھل کھاتی ہیں۔


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