Hum Apne Baap Dada ke Deen Par Hain /हम अपने बाप दादा के दीन पर हैं
"हम अपने बाप-दादा के दीन /रास्ते पर हैं" — एक कुरआनी चेतावनी और आज के मुआशरे पर इसका असर। एक बार ज़रूर पढ़ें इसे वक़्त निकाल कर।
यह ज़रूरी नहीं है कि हमारे बाप दादे जो किए हैं और हम आज करते आ रहे हैं वो सहीह है। जब भी ये सवाल उठता है तो एक ही जवाब मिलता है कि "जो हमने अपने बाप-दादा को करते देखा, वही सही है"यानी Hum Apne Baap Dada ke Deen Par Hain.वो भला ग़लत कैसे हो सकते है ? यह जुमला आज़ाद सोच का नहीं, बल्कि गुमराही का पैग़ाम है। अफ़सोस! आज बहुत से मुसलमान भी इसी सोच का शिकार हैं। वह हर बात को, हर रस्म को, हर अमल को इस बिना पर सही ठहराते हैं कि "हमारे बाप-दादा यही करते आए हैं।"
मगर क्या इस सोच की ताईद क़ुरआन करता है?
क्या बाप-दादा की परंपरा को बिना तहकीक के अपनाना सही है?
आइए क़ुरआन की उस आयत पर नज़र डालते हैं जो इस मानसिकता पर साफ़ वार करती है।
📖 क़ुरआनी आयत:
अल्लाह ने फ़रमाया
और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह की नाज़िल की हुई चीज़ (कुरआन) की पैरवी करो, तो कहते हैं कि नहीं, हम तो उसी की पैरवी करेंगे जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया। क्या (वे ऐसा ही करेंगे) अगरचे उनके बाप-दादा कुछ भी अक़्ल नहीं रखते थे और न ही सीधे रास्ते पर थे?"
(सूरह अल-बक़रह 2:170)
📚 तफ्सीर और समझ:
यह आयत उन लोगों की सोच पर चोट करती है जो हक़ की दावत को ठुकरा कर सिर्फ इसलिए ग़लत रास्ते पर चलते रहते हैं क्योंकि उनके पूर्वज वही करते आए हैं।यह 'परंपरा की गुलामी' है, दीन की पैरवी नहीं!
इस आयत का मक़सद यह नहीं कि बाप-दादा की इज़्ज़त न की जाए, उनके हर अमल या बात को ठुकरा दिया जाए,बल्कि यह कि आँख मूंद कर उनकी ग़लत बातों की ताईद न की जाए।उनसे जो भी अमल क़ुरान और सुन्नत से मिले उसे अपनाएं और जो क़ुरान और सुन्नत के खिलाफ़ हो उसे छोड़ दें।
Read this also: Muslim ummat aur shirk
🛑 क्या आप ने कभी गौर किया है ?
आइए हम अपनी रोज़ाना की ज़िन्दगी में होने वाले मामलात से समझते हैं दीन से मुतल्लिक ताकि हमें दीन की असल पहचान हो सके।
![]() |
Buzurgon ka deen |
📱 दुनिया का मामला — पूरी तहकीक
मान लीजिए हमें एक मोबाइल खरीदना है।हम एक दुकान पर नहीं, बल्कि कई दुकानों पर जाते और चक्कर लगाते हैं।
सवालों की एक लंबी लिस्ट तैयार रखते हैं:
- किस कम्पनी का मोबाइल है?
- RAM कितना है?
- Internal Memory कितनी है?
- Battery Backup कैसा है?
- Look और Design कैसा है?
🕌 दीन का मामला — बिना तहकीक के अपनाना
लेकिन जब दीन का मामला आता है तो न जाने क्यों हमारी यह होशियारी ग़ायब हो जाती है।
बिना सोचे-समझे, बिना सवाल किए, बिना कुरआन-हदीस से मिलान किए —
हम जो भी सुनते हैं, जो भी देखते हैं, उसे अपना लेते हैं।
– कोई रस्म हो,
– कोई अकीदा हो,
– कोई अमल हो…
ऐसी सोच रखने वालों से एक अहम सवाल है —
हम दुनिया के मामलात में तो बेहद होशियार, अक़्लमंद और चुस्त रहते हैं, लेकिन जब दीन की बात आती है तो हमारी सोच पर ताला क्यों लग जाता है?
हमारा दिमाग़ उस वक्त सुस्त क्यों हो जाता है?
हम हक़ की तहकीक से कतराते क्यों हैं?
⚠️ यह खतरनाक क्यों है?
क्योंकि दीन का मामला मोबाइल या दुनिया के किसी सौदे से कई गुना अहम है।
मोबाइल में गलती हुई तो सिर्फ पैसे का नुकसान होगा,जिसे हम फ़िर कमा कर पूरी कर सकते हैं।
लेकिन दीन में गलत राह अपनाई तो आख़िरत का नुक़सान है — जो कभी पूरा नहीं होगा।
Read This Also:
💡 सबक़:
- जैसे हम दुनिया के लिए सवाल करते हैं, वैसा ही दीन के लिए भी सवाल किया करें।
- हर अमल की जड़ कुरआन और हदीस में तलाश करें।
- बिना तहकीक के किसी की बात को दीन न मान लें।
अल्लाह तआला ने हमें दिल, आँखें और कान सिर्फ दुनिया के लिए नहीं, बल्कि हक़ को पहचानने अपनाने के लिए दिए हैं। और ऐसों के लिए ही क़ुरआन की यह आयत है
निश्चित ही हमने बहुत से जिन्न और इंसानों को जहन्नुम के लिए पैदा किया है। उनके दिल हैं, मगर समझते नहीं; आंखें हैं, मगर देखते नहीं; कान हैं, मगर सुनते नहीं। वे चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी ज़्यादा गुमराह। यही लोग हैं जो गाफ़िल हैं।"
📖 [सूरतुल अ'राफ़: 179]
🚫 आज के दौर की ग़लतियाँ जो इसी सोच की पैदावार हैं:
1. बिदअतों का दीन बन जाना:
आज बहुत सी रस्में — जैसे उर्स, चादरपोशी, कुल, बर्सी, ताज़िये, ईद मिलाद, शब ए बारात, मुहर्रम में ताजिया — सिर्फ इसलिए की जाती हैं क्योंकि हम बचपन से ही ये देखते और करते आ रहे हैं"हमारे बड़े यही करते थे।"
कोई पूछे कि इनकी असल क्या है, तो जवाब मिलता है:
"भाई! यह तो रिवायत है, बड़ों से सुना है, हमारे बड़ों ने भी यह किया है तो हम क्यों न करें ?
2. मज़ारों पर सजदा व तोहफ़े चढ़ाना:
हज़ारों मुसलमान आज भी मज़ारों को "दुआ कबूल होने की जगह" मानते हैं।
इनसे कोई कहे कि यह शिर्क है, तो जवाब मिलता है:
"हमारे दादा-परदादा भी वहीं जाते थे, कुछ नहीं होता इससे।" हमारी दुआ वहां कबूल होती है। हमारी मुरादें वहां पूरी होती हैं तो क्यों न जाएं।
हमें अच्छी तरह मालूम होना चाहिए की दुआ एक इबादत है और इबादत सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की की जाती है गैरुल्लाह की नही। गैरुल्लाह से दुआ मांगना शिर्क है।
Read this also: Kya Allah hamare liye kaafi nahu
3. सालगिरहें और मीलाद की रस्में:
रसूल ﷺ के नाम पर मीलाद में ढोल, गीत, फूल और खाना – सब कुछ होता है सिवाए सुन्नत के।
और इसका बहाना वही:
"हम तो बस अपने बुज़ुर्गों की रवायत निभा रहे हैं।"ये बरसों से चला आ रहा है तो कैसे गलत हो गया। हम तो यह जश्न नबी ﷺ के इश्क़ में करते या मानते हैं।
और मना करने वालों पर गुस्ताख़ी और वहाबी होने का फतवा लग जाता है।
4. क़ब्रों से उम्मीदें लगाना:
कई लोग क़ब्रों में जो दफ़न हैं उनसे मुराद मांगते हैं, उन्हें मददगार समझते हैं।
ये सब काम shirk की हद तक पहुँच जाते हैं लेकिन justification वही:
"बचपन से देख रहे हैं यही होता है।"वहां जाने से हमारी मुरादें पूरी होती हैं,हमारी मुश्किलों का हल होता है। हमारी परेशानियां दूर होती हैं।
अब भला उन्हें कैसे समझाया जाए की मुरादें पूरी करने वाला और मुश्किलों को दूर करने वाला सिर्फ अल्लाह की ज़ात है। ग़ैर मुस्लिम भी तो मंदिरों में जाते हैं , इनकी भी मुरादें पूरी होती हैं वहां,मुश्किलें दूर होती है तो फर्क क्या रह गया हम में और उन में।
Read this also: Mazar par Chadar aur qabar parasti
🔍 हक़ीक़त यह है कि:
दीन सिर्फ वही है जो क़ुरआन और सुन्नत से साबित हो।
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"जिसने हमारे इस दीन में कोई नई बात निकाली जो उसमें से नहीं है, वह रद है।"
📚 [सहीह बुखारी व मुस्लिम]
💡 हमें क्या करना चाहिए?
✅ हर अमल को क़ुरआन और हदीस की कसौटी पर कसें
✅ बाप-दादा की इज़्ज़त करें, लेकिन आँख मूंद कर उनकी हर बात की पैरवी न करें
✅ खुराफ़ात और बिदअत से तौबा करें
✅ समाज में जागरूकता फैलाएं — क्योंकि हक़ छुपाने वाले भी गुनाहगार होते हैं
🛑 इबरतनाक अंजाम:
क़ुरआन में ऐसी कौमों का ज़िक्र है जो अपने बाप-दादाओं की तंग सोच पर अड़ी रहीं — नतीजा?
हिदायत से महरूमी, अज़ाब और हलाकत।
क्या हम भी वही रास्ता अपनाना चाहेंगे?
इनका अंजाम क्या हुआ यहां पढ़ें👇
Read this also: Jin Qaumo ne Allah ki Nafarmani ki wo kaise barbad huwe, kitna khaunfnaak unka anjaam huwa,yahan padhen
✅ Conclussion:
सोचें और ग़ौर व फ़िक्र करें कि Hum Apne Baap Dada ke Deen Par Hain या अल्लाह और उसके रसूल के लाए दीन पर। बाप-दादा की रवायात की आड़ में खुराफ़ात और बिदअत को दीन बनाना, दरअसल अल्लाह की आयतों को झुठलाना है। बाप दादे की रवायात को अपनाएं लेकिन आँखें बंद कर के नहीं बल्कि तहकीक करें, मोबाइल की तरह इसे भी परखें की ये क़ुरआन और सुन्नत के मुताबिक़ है या खिलाफ है।
हमें सोचना होगा — हम किसके पीछे चल रहे हैं? क़ुरआन के या परंपरा के?
हमें दीन को समझकर अपनाना होगा, वरना कल अल्लाह के सामने यह जवाब नहीं चल पाएगा कि
"हम तो वही कर रहे थे जो हमारे बड़ों ने किया था!"
ھم اپنے باپ دادا کے دين پر ہیں
"ہم اپنے باپ دادا کے طریقے / دین پر ہیں" — ایک قرآنی انتباہ اور آج کا معاشرہ.ایک بار ضرور پڑھیں .
🕋 اسلامی تحریر 📚 ماخذ: قرآن، صحیح احادیث
"جو ہمارے باپ دادا کرتے آئے، ہم بھی وہی کریں گے!"
لیکن کیا قرآن نے اس طرزِفکر کو قبول کیا ہے؟
کیا صرف باپ دادا کی پیروی دلیلِ حق ہے؟
آئیے قرآن کی اس آیت پر غور کریں جو اس سوچ کو چیلنج کرتی ہے۔
📖 قرآنی آیت:
"اور جب ان سے کہا جاتا ہے کہ جو کچھ اللہ نے نازل فرمایا ہے اس کی پیروی کرو، تو وہ کہتے ہیں کہ ہم تو اسی کی پیروی کریں گے جس پر ہم نے اپنے باپ دادا کو پایا۔ کیا (ایسا بھی) اگرچہ ان کے باپ دادا نہ کچھ عقل رکھتے تھے اور نہ ہی ہدایت یافتہ تھے؟"📚 [سورۃ البقرہ: 170]
📚 آیت کی تفسیر:
یہ آیت اُن لوگوں پر تنقید کرتی ہے جو حق واضح ہونے کے باوجود اندھی تقلید میں گرفتار رہتے ہیں۔
اللہ تعالیٰ فرماتا ہے کہ باپ دادا اگر گمراہ تھے، تو کیا تم بھی گمراہی پر چلو گے؟ یہ رسم و رواج کی غلامی ہے دین کی پیروی نہیں۔
اسلام یہ نہیں کہتا کہ بزرگوں کی عزت نہ ہو، بلکہ یہ سکھاتا ہے کہ جو چیز قرآن و سنت سے ثابت نہ ہو، اس کو دین نہ بنایا جائے۔
🛑 کیا آپ نے کبھی غور کیا ہے؟
ایسی سوچ رکھنے والوں سے ایک اہم سوال ہے —
ہم دنیا کے معاملات میں تو انتہائی ہوشیار، عقل مند اور چست رہتے ہیں، لیکن جب دین کی بات آتی ہے تو ہماری سوچ پر تالا کیوں لگ جاتا ہے؟
ہمارا دماغ اس وقت سست کیوں ہو جاتا ہے؟
ہم حق کی تحقیق سے کتراتے کیوں ہیں؟
📱 دنیا کا معاملہ — مکمل تحقیق
فرض کیجیے ہمیں ایک موبائل خریدنا ہے۔ہم ایک دکان پر اکتفا نہیں کرتے بلکہ کئی دکانوں پر جاتے ہیں۔
سوالات کی ایک لمبی فہرست تیار رکھتے ہیں:
- کس کمپنی کا موبائل ہے؟
- RAM کتنا ہے؟
- Internal Memory کتنی ہے؟
- بیٹری بیک اپ کیسا ہے؟
- ڈیزائن اور لک کیسا ہے؟
🕌 دین کا معاملہ — بغیر تحقیق کے اپنانا
لیکن جب دین کا معاملہ آتا ہے تو نہ جانے کیوں ہماری یہ ہوشیاری غائب ہو جاتی ہے۔بغیر سوچے سمجھے، بغیر سوال کیے، بغیر قرآن و حدیث سے موازنہ کیے —
ہم جو بھی سنتے ہیں، جو بھی دیکھتے ہیں، اسے اپنا لیتے ہیں۔
– کوئی رسم ہو،
– کوئی عقیدہ ہو،
– کوئی عمل ہو…
ہم آنکھ بند کر کے مان لیتے ہیں، یہ سوچے بغیر کہ:"کیا یہ قرآن و سنت کے مطابق ہے بھی یا نہیں؟" غور کرنے والی بات ہے کی جِس سے ہماری آخرت کامیاب ہونے والی ہے اُس سے ہم بے پرواہ ہیں کوئی فکر ہے نہیں۔
⚠️ یہ خطرناک کیوں ہے؟
کیونکہ دین کا معاملہ موبائل یا دنیا کے کسی سودے سے کئی گنا زیادہ اہم ہے۔
موبائل میں غلطی ہوئی تو صرف پیسوں کا نقصان ہوگا،پھر ہم محنت کرکے اُسکی بھرپائی کر سکتے ہیں.
لیکن دین میں غلط راستہ اپنانے سے آخرت کا نقصان ہے — جو کبھی پورا نہیں ہوگا۔
💡 سبق:
- جیسے ہم دنیا کے لیے سوال کرتے ہیں، ویسے ہی دین کے لیے بھی سوال کریں۔
- ہر عمل کی جڑ قرآن و حدیث میں تلاش کریں۔
- بغیر تحقیق کے کسی کی بات کو دین نہ مان لیں۔
اور ہم نے جنات اور انسانوں میں سے بہت سے لوگ جہنم کے لیے پیدا کیے ۔ ان کے پاس دل ہیں جن سے وہ سمجھتے نہیں ، ان کے پاس آنکھیں ہیں جن سے وہ دیکھتے نہیں ، اور ان کے پاس کان ہیں جن سے وہ سنتے نہیں ۔ وہ لوگ چوپایوں کی طرح ہیں ، بلکہ وہ ان سے بھی زیادہ بھٹکے ہوئے ہیں ۔ یہی لوگ ہیں جو غفلت میں پڑے ہوئے ہیں ۔ 📖 [سورۃ الاعراف: 179]
آج کے دور کی گمراہیاں جو اسی سوچ کی پیداوار ہیں:
1. بدعتوں کا دین بن جانا:
آج بہت سی رسومات — جیسے عرس، چادر پوشی، قل، برسی، تعزیہ، عید میلاد، شبِ برات — صرف اس لیے کی جاتی ہیں کیونکہ ہم بچپن سے یہ دیکھتے اور کرتے آ رہے ہیں:
"ہمارے بڑے یہی کرتے تھے۔"
اگر کوئی پوچھے کہ ان کی اصل کیا ہے، تو جواب ملتا ہے:
"بھائی! یہ تو روایت ہے، بڑوں سے سنا ہے، ہمارے بڑوں نے بھی یہ کیا ہے تو ہم کیوں نہ کریں؟"
2. مزارات پر سجدہ و تحفے چڑھانا:
ہزاروں مسلمان آج بھی مزارات کو "دعا قبول ہونے کی جگہ" سمجھتے ہیں۔
ان سے کوئی کہے کہ یہ شرک ہے، تو جواب ملتا ہے:
"ہمارے دادا، پردادا بھی وہیں جاتے تھے، کچھ نہیں ہوتا اس سے۔ ہماری دعا وہاں قبول ہوتی ہے، مرادیں پوری ہوتی ہیں تو کیوں نہ جائیں۔"
حالانکہ ہمیں اچھی طرح معلوم ہونا چاہیے کہ دعا ایک عبادت ہے اور عبادت صرف اور صرف اللہ کے لیے ہوتی ہے، غیر اللہ کے لیے نہیں۔ غیر اللہ سے دعا مانگنا شرک ہے۔
3. سالگرہیں اور میلاد کی رسومات:
رسول ﷺ کے نام پر میلاد میں ڈھول، گانے، پھول اور کھانا — سب کچھ ہوتا ہے سوائے سنت کے۔
اور اس کا بہانہ یہی ہوتا ہے:
"ہم تو بس اپنے بزرگوں کی روایت نبھا رہے ہیں۔" یہ برسوں سے چلا آ رہا ہے تو کیسے غلط ہو گیا؟ ہم تو یہ جشن نبی ﷺ کی محبت میں مناتے ہیں۔
اور روکنے والوں پر گستاخی اور وہابی ہونے کا فتویٰ لگا دیا جاتا ہے۔
4. قبروں سے امیدیں لگانا:
کئی لوگ قبروں میں جو دفن ہیں اُن سے مراد مانگتے ہیں، انہیں مددگار سمجھتے ہیں۔
یہ سب اعمال شرک کی حد تک پہنچ جاتے ہیں لیکن جواز وہی:
"بچپن سے دیکھ رہے ہیں یہی ہوتا ہے۔ وہاں جانے سے ہماری مرادیں پوری ہوتی ہیں، مشکلات کا حل نکلتا ہے، پریشانیاں دور ہوتی ہیں۔"
حالانکہ حقیقت یہ ہے کہ مرادیں پوری کرنے والا اور مشکلات کو دور کرنے والا صرف اللہ کی ذات ہے۔ غیر مسلم بھی تو مندروں میں جاتے ہیں، ان کی بھی مرادیں پوری ہوتی ہیں، مشکلات دور ہوتی ہیں — تو پھر فرق کیا رہ گیا ہم میں اور ان میں؟
حقیقت یہ ہے کہ:
💬 رسول اللہ ﷺ کا فرمان:"جس نے ہمارے دین میں کوئی نئی بات نکالی جو اس میں سے نہیں ہے، وہ مردود ہے۔"📚 [صحیح بخاری و مسلم]
💡 ہمیں کیا کرنا چاہیے؟
✅ ہر عمل کو قرآن و سنت کی روشنی میں پرکھیں
✅ آنکھیں بند کرکے تقلید نہ کریں
✅ خرافات اور بدعات سے توبہ کریں
✅ دین کو دلیل کے ساتھ اپنائیں
✅ اپنے گھر اور معاشرے میں علم پھیلائیں
⚠️ عبرت انگیز انجام:
نتیجہ: گمراہی، ذلت، اور ہلاکت!
کیا ہم بھی وہی انجام چاہتے ہیں؟
✅ خلاصہ:
FAQs:(अक्सर पूछे जाने वाले सवालात):Hindi/Urdu
सवाल 1: क्या बाप-दादा की परंपरा को बिना जांचे-परखे अपनाना सही है?
سوال 1: کیا باپ دادا کی روایت کو بغیر تحقیق کے اپنانا درست ہے؟
जवाब: नहीं, इस्लाम में हर अमल को कुरआन और सुन्नत की कसौटी पर परखने की हिदायत दी गई है। केवल परंपरा के नाम पर ग़लत काम को दीन नहीं बनाया जा सकता।
جواب: نہیں، اسلام میں ہر عمل کو قرآن و سنت کی روشنی میں پرکھنے کا حکم ہے۔ صرف روایت کی بنیاد پر غلط عمل کو دین نہیں بنایا جا سکتا۔
सवाल 2: अगर हमारे बाप-दादा किसी गलत रस्म को निभाते रहे हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
سوال 2: اگر ہمارے بزرگ کسی غلط رسم پر عمل کرتے رہے ہوں تو ہمیں کیا کرنا چاہیے؟
سوال 2: اگر ہمارے بزرگ کسی غلط رسم پر عمل کرتے رہے ہوں تو ہمیں کیا کرنا چاہیے؟
جواب: ہمیں ادب کے ساتھ حق کو قبول کرنا چاہیے اور بغیر توہین کے غلطیوں کی اصلاح کرنی چاہیے۔ حق کے آگے جھکنا ہر مؤمن کا فرض ہے۔
सवाल 3: क्या मज़ार पर जाकर दुआ करना शिर्क है?
سوال 3: کیا مزار پر جا کر دعا مانگنا شرک ہے؟
जवाब: अगर दुआ अल्लाह से की जाए तो ठीक है, लेकिन अगर मरे हुए वली से मांगी जाए या उनसे मदद मांगी जाए तो यह शिर्क है।جواب: اگر دعا اللہ سے کی جائے تو درست ہے، لیکن اگر کسی مردہ ولی سے مانگی جائے یا ان سے مدد مانگی جائے تو یہ شرک ہے۔
सवाल 4: क्या अपने बड़ों की इज्जत करते हुए भी उनके गलत अकीदों को छोड़ा जा सकता है?
سوال 4: کیا اپنے بڑوں کی عزت کرتے ہوئے ان کے غلط عقائد کو چھوڑا جا سکتا ہے؟
जवाब: बिल्कुल! इस्लाम हमें इज़्ज़त और तहकीक दोनों सिखाता है। हम अदब के साथ हक़ को अपनाएं और ग़लत को छोड़ें, यही असली वफ़ा है।جواب: بالکل! اسلام ہمیں ادب کے ساتھ تحقیق کی تعلیم دیتا ہے۔ ہمیں حق کو اپنانا اور غلط کو چھوڑنا چاہیے، یہی اصل وفاداری ہے۔
सवाल 5: क्या ताज़िये, उर्स, चादरपोशी जैसी रस्में इस्लाम में जायज़ हैं?
سوال 5: کیا تعزیے، عرس اور چادر پوشی جیسی رسومات اسلام میں جائز ہیں؟
سوال 5: کیا تعزیے، عرس اور چادر پوشی جیسی رسومات اسلام میں جائز ہیں؟
जवाब: नहीं, ये रस्में न कुरआन से साबित हैं न हदीस से। ये सब बिदअत और खुराफात में आती हैं।
جواب: نہیں، یہ رسومات نہ قرآن سے ثابت ہیں نہ حدیث سے۔ یہ سب بدعت اور خرافات میں شمار ہوتی ہیں
सवाल 6 : लोग दुनिया के मामलों में तो बहुत होशियार होते हैं, लेकिन दीन के मामले में गाफ़िल क्यों हो जाते हैं?
سوال 6 : لوگ دنیا کے معاملات میں تو بہت ہوشیار ہوتے ہیں، لیکن دین کے معاملے میں غافل کیوں ہو جاتے ہیں؟
सवाल 7 : दीन में बिना तहक़ीक़ किए अमल करना क्यों खतरनाक है? سوال7 : دین میں بغیر تحقیق کے عمل کرنا کیوں خطرناک ہے؟
जवाब: क्योंकि अगर हम ग़लत रास्ते पर चल पड़े तो उसका नुकसान सिर्फ दुनिया तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि हमारी आख़िरत को भी बर्बाद कर सकता है। गलत मोबाइल खरीदने से पैसा जाएगा, लेकिन गलत अकीदा अपनाने से जन्नत भी छिन सकती है।
सवाल 8 : इस सोच से बचने के लिए क्या करना चाहिए? سوال 8 : اس سوچ سے بچنے کے لیے کیا کرنا چاہیے؟
کیا قیامت صرف انسانوں کے لیے ہے؟
نہیں، قیامت تمام مخلوقات پر آئے گی۔ زمین، آسمان، جن، انسان، حیوانات، سب فنا ہو جائیں گے۔
🌟 قیامت کے دن کی تیاری آج کی جائے، کل صرف حسرت ہوگی۔ 🌟
0 Comments
please do not enter any spam link in the comment box.thanks