Mazaar par Chadar Aur Qabar parasti/मजार पर चादर और कब्र परस्ती
हमारे मुआशरे में एक बहुत ही बड़ी शिर्क देखने को मिलती है जो एक ख़ास तबक़े के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है .. Mazaar par chadar Aur Qabar parasti.मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मज़ार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपने हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर ,मन्नत पूरी हो जाने के बाद उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में कौवालियों की महफ़िल लगाना और उसमे शिर्किया कलाम पढ़ना वग़ैरह वग़ैरह !
Mazaar par chadar Aur Qabar Parast |
ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?
- आगे बढ़ने से पहले एक अहम सवाल है की क्या अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला अपने बंदों के लिए काफ़ी नहीं है ? जबकी अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का सुरह बकरा आयत 186 में फ़रमान है की मैं अपने बंदों से बहुत ही क़रीब हूं ,हर पुकारने वाले की पुकार को जब भी वह मुझे पुकारे क़बूल करता हूं यानी इतना क़रीब की बगैर किसी वास्ते वसीले और सिफ़ारिश के सीधा हर वक्त और हर जगह मुझ तक अपनी अर्जियां पहुंचा सकता है !
- आयत: जब मेरे बंदे मेरे बारे में आप से सवाल करें तो आप कहदें की मैं बहुत ही क़रीब हूं, हर पुकारने वाले की पुकार को जब भी वह मुझे पुकारे कबूल करता हूं. इस लिए लोगों को भी चाहिए की वह मेरी बात मान लिया करें और मुझ पर ईमान रखें यही उनकी भलाई का बाइस है!
Allah Apne bandon ke Liye kaafi hai |
अब आइए देखें की Mazaar par chadar Aur Qabar Parasti से मुतल्लिक कुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?
- जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मज़ार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते,हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले ) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ कुबूल करेगा।
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मगर अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फ़रमाता है :
- देखो, इबादत ख़ालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता।(सुरह जुमर, आयत नंबर 3)
- ग़ौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं।
- जबकि अल्लाह फ़रमाता है:भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ़ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम ग़ौर करते हो.(सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)
- और ऐसे ही मुश्रिकों के बारे में अल्लाह सूरज ज़ुमर आयत 67 में फरमाता है :इन लोगों ने अल्लाह की क़द्र ही न की जैसा कि उसकी क़द्र करने का हक़ है !(उसकी मुकम्मल क़ुदरत का हाल तो ये है कि) क़ियामत के दिन पूरी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी और आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए होंगे !पाक और बालातर है, वो उस शिर्क से जो ये लोग करते हैं !
- अल्लाह के सिवा कोई हमे नफ़ा या नुक़सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़बर वाले हमे क्या नफ़ा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्मीद लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है।
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमाता है:
- और ये के (ऐे मुहम्मद सब से) यकसू हो दीन-ए-इस्लाम की पैरवी किये जाओ, और मुशरिकों में से हरगिज़ न होना,और अल्लाह को छोड़ कर किसी ऐसी चीज़ को न पुकारना जो न तुम्हारा कुछ भला कर सके,और न कुछ बिगाड़ सके. अगर ऐसा करोगे तो ज़ालिमों में हो जाओगे। (सुरह युनूस, आयत 105-106)
- मरने के बाद सबका मामला अल्लाह के सुपुर्द होता है, वो हमे नहीं सुन सकते. उन तक जब हमारी आवाज़ ही नहीं पहुंच सकती तो फिर वो हमारी दुआओं के सिफारिशी कैसे बन जायेंगे.
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क़ुरआन में अल्लाह का फरमान है :
- और ये जिन्दे और मुर्दे बराबर नहीं हो सकते, अल्लाह जिसको चाहता है सुना देता है.और तुम इनको जो अपनी क़ब्रों में दफ़न हुए हैं इनको नहीं सुना सकते।(सुरह फातिर, आयत 22 )
- ये क़ब्र वाले न तो हमे सुन सकते हैं और ही जवाब दे सकते हैं, ग़ौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फ़रमाता है:और उस शख्स से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ऐसे को पुकारे जो क़यामत तक उसे जवाब न दे, और उनको इनके पुकारने की ही खबर न हो.(सुरह अहक़ाफ, आयत नंबर 5)
- जो क़ब्रों में हैं, बेशक वो औलिया हों, पीर हों या पैग़म्बर हों, ये भी हमारी तरह के ही मख़लूक हैं जिन्हे अल्लाह ने पैदा किया. इन लोगों ने अपनी तरफ़ से किसी चीज़ की तख़लीक़ नहीं की फिर भी कुछ जाहिल लोग उनसे मदद की गुहार लगाते हैं . ग़ौर कीजिये क़ुरआन की इस आयत पे जिसमे अल्लाह फरमाता है:
- और जिन लोगों को ये अल्लाह के सिवा पुकारते हैं वो कोई चीज़ भी तो पैदा नहीं कर सकते बल्कि खुद वो पैदा किये गए , बेजान लाशें हैं. इनको ये भी नहीं मालूम के ये कब उठाये जायेंगे.(सुरह नहल आयत नंबर 20-21)
- क़ब्रों पे मुजावर बन कर बैठने वाले वो लोग, जो क़ब्रों की पूजा करते हैं, क़ब्र वाले की इबादत करते हैं और ये समझते हैं की ये उनकी हाजते पूरी करेंगे, तो ये सच में अँधेरे में हैं और ये बदतरीन लोग हैं.
Mazaar par chadar Aur Qabar Parast |
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फरमान Mazaar par chadar Aur Qabar Parasti से मुतल्लिक
रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि० ने फ़रमाया "मेरी उम्मत के बदतरीन लोग वो होंगे जो क़ब्रों की इबादत करेंगे, और जिनकी ज़िन्दगी ही में उनके ऊपर क़यामत आएगी."(सही इब्ने खुज़ैमा: 789, सही इब्ने हिब्बान: 6808, मुसनद अहमद: 1/405)और जिन लोगों ने क़ब्रों को सजदहगाह बन लिया है और उनपे माथा टेकते हैं और उनसे अक़ीदत रखते हैं ऐसे लोगों पे अल्लाह की फटकार है जैसा की अल्लाह के रसूल ﷺ की हदीस है के
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि० से रिवायत है के जब आप सल० अलैहि० मर्ज़-ए-वफ़ात में मुब्तिला हुए तो आप अपनी चादर को बार बार अपने चेहरे पे डालते और कुछ अफाका होता तो चादर अपने चेहरे से हटा लेते. आप सल० अलैहि० ने उस इज़्तिराब-ओ-परेशानी की हालत में फ़रमाया :
"यहूद-ओ-नसारा पे अल्लाह की फटकार जिन्होंने अपने नबियों की क़बर को सजदहगाह बन लिया"आप सल० अलैहि० ये फ़रमा कर उम्मत को ऐसे कामों से डराते थे.(सही बुखारी, हदीस नंबर 435-436)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं "ऐे मेरी उम्मत के लोगों, ख़बरदार हो जाओ के तुमसे पहले जो लोग गुज़रे हैं उन्होंने अपने औलिया और अम्बिया की क़ब्रों को अपना इबादतगाह बन लेते थे, ख़बरदार..तुम क़ब्रों को इबादतगाह मत बनाना, मैं तुम्हे ऐसा करने से मना करता हूँ"(मुस्लिम 1188)
मुहम्मद सल० अलैहि० ने दुआ की "ऐे अल्लाह मेरी क़ब्र को इबादत की जगह न बना देना, उनलोगों पे क़हर बेहद ख़ौफनाक था जिन्होंने अपने पैगम्बरों की क़ब्रों को सजदहगाह बना लिया "(मोअत्ता मालिक 9/88)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की कबर को क्यों घेरा गया ?
अम्मा आइशा और सहाबा को डर था की कहीं लोग आप ﷺ की कब्र को सजदा गाह ना बना लें !नबी करीम (सल्ल०) ने अपने इस मर्ज़ के मौक़े पर फ़रमाया था जिससे आप (सल्ल०) जाँ-बर न हो सके थे कि अल्लाह तआला की यहूद और नसारा पर लानत हो। उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को सजदागाह बना लिया। अगर ये डर न होता तो आप (सल्ल०) की क़ब्र भी खुली रहने दी जाती। लेकिन डर उसका है कि कहीं उसे भी लोग सजदा गाह न बना लें ! (सहीह अल्बुखरी:1390, मुसनद अहमद :3341)
आज अगर कोई अल्लाह का नेक बन्दा वफ़ात पाता है तो कुछ लोग उनकी क़ब्रों को पक्का बना देते हैं फिर उसे मज़ार की शकल दे देते हैं.
अल्लाह के रसूल ﷺ ने तो क़ब्रों को पक्का बनाने, या उनपे प्लास्टर करने और उनको इमारत बनाने से भी मना फ़रमाया है :
हज़रते जाबिर रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ ने क़ब्रो को पक्का बनाने से या उनको बैठने की जगह बनाने से या उनपर कोई इमारत तामीर करने मन फ़रमाया है. (सही मुस्लिम, हदीस नंबर 970, अबु दाऊद हदीस नंबर 3225)
जो लोग क़ब्रों पे मुजावर बन बैठे हैं उनके लिए बहुत बड़ा अज़ाब है जैसा के अल्लाह के रसूल ﷺ की ये हदीस है :
हज़रते अबु हुरैरह रजि० से रिवायत है की रसूलल्लाह ﷺ फ़रमाते हैं "जो शख्स किसी क़ब्र पर (मुजावर बन कर) बैठे उस से बेहतर है के वो आग के अंगारों पर बैठे और आग उसके जिस्म और कपड़ों को जला कर कोयला बन दे"(सही मुस्लिम हदीस नंबर 971)
ख़ास कर एक तबक़ा हमारे यहां है जो इमाम अबु हनीफा के क़ौल को मानते हैं और ख़ुद को हनफ़ी कहते हैं ....तो क्या अबु हनीफा से ऐसी कोई दलील मिलती है के हमे क़ब्रों की पूजा करनी चाहिए, या क़ब्र पे चादर चढ़ानी चाहिए या क़बर वालों से मदद की गुहार लगानी चाहिए?
रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने सामने सजदा करने से मना किया
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हज़रत मआज़ (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने एक बार रसूलुल्लाह ﷺ के सामने सजदा किया तो रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने सामने सजदा करने से मना किया और फरमाया की अगर सजदा करने का हुक्म देता तो मैं औरतो को अपने शौहर के सामने सजदा करने का हुक्म देता।
(इब्ने मजा :- 1853)
ज़रा सोचने की बात है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने सामने सजदा करने से मना किया और आज के पीर और बाबा अपने सामने सजदा करवाते हैं। और कुछ मुस्लिम कम इल्मी की वजह से ऐसा करते भी हैं। जो कि शिर्क है।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं
"ऐे मेरी उम्मत के लोगों, खबरदार हो जाओ के तुमसे पहले जो लोग गुज़रे हैं उन्होंने अपने औलिया और अम्बिया की कब्रों को अपना इबादतगाह बन लेते थे, खबरदार..तुम कबरों को इबादतगाह मत बनाना, मैं तुम्हे ऐसा करने से मना करता हूँ"
(मुस्लिम 1188)
मुहम्मद सल० अलैहि० ने दुआ की "ऐे अल्लाह मेरी क़बर को इबादत की जगह न बना देना, उनलोगों पे कहर बेहद खौफनाक था जिन्होंने अपने पैगम्बरों की क़ब्रों को सजदहगाह बना लिया "
(मोअत्ता मालिक 9/88)
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अब इमाम अबु हनीफा को देखते हैं की उनका क़ौल क्या है ?
खास कर एक तबका हमारे यहां है जो इमाम अबु हनीफा के कौल को मानते हैं और खुद को हनफ़ी कहते हैं ....तो क्या अबु हनीफा से ऐसी कोई दलील मिलती है के हमे क़ब्रों की पूजा करनी चाहिए, या क़ब्र पे चादर चढ़ानी चाहिए या क़बर वालों से मदद की गुहार लगानी चाहिए?*इस कौल से यह पता चलता है की या तो अबू हनीफा को इल्म नहीं था जिन्होंने ऐसा करने से रोका या इन कबर पूजने वालों को जयादह इल्म है जो ये सब करते हैं !आइये देखते हैं उनका कौल क्या
इमाम अबु हनीफा फरमाते हैं "अम्बिया और औलिया की क़ब्रों पर सजदा करना, तवाफ़ करना , नज़राना चढ़ाना हराम व कुफ्र है"(दुर्रे मुख़्तार , जिल्द 1 सफहा नंबर 53)
क़ब्र परस्तों का नज़रिया और इनकी दलील :
क़ब्र की पूजा करने वाले और इनसे मदद तलब करने वाले अक्सर ऐसी किताबों से दलील इकटठी करके लोगों को वरग़लाते हैं जो न तो हदीस में कही दर्ज है और न ही सहाबा रज़ि० या तबो ताबइन से कही साबित है बल्कि कुछ मौलवी मुल्लाओं ने अपनी दूकान चलाने के लिए अपने नज़रियात को किताब की शक्ल में पेश किया और ये ही उनके लिए दलील बन गयी जिनपे वो बहस कर सकें और ऐसे मौलवियों की रोज़ी रोटी चलती रहे।
कुछ पाखंडी मौलवियों ने तो हद्द कर दी के वो भोले भाले मुसलमानो को वरग़लानने के लिए हदीस को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और फिर उनसे कहते हैं के फलां फ़िरक़े के लोग तुम्हे भटका रहे हैं और हमारी बात सही है।
आइये उनके तोड़ मरोड़ कर पेश किये गए एक हदीस पे ग़ौर करें जिन्हे वो क़ब्रों/मज़ारों पर चादर चढ़ाने के लिए दलील के रूप में पेश करते हैं
यही वो हदीस है जिसपे ये लोग बहस करते हैं.
- हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र मुबारक पर सुर्ख रंग की चादर डाली गयी थी !
- अब सही हदीस पे ग़ौर करते हैं : हज़रते इब्ने अब्बास रजि० से रिवायत है के रसूलल्लाह ﷺ की क़ब्र में सुर्ख रंग की मख़मली चादर रखी गयी थी(सुनन निसाई हदीस 2011, अल तिर्मिज़ी 1048)
- आप ग़ौर करें के सही हदीस में है के चादर उनकी क़ब्र के अंदर रखी गयी थी मगर इन्होने उसे क़ब्र के ऊपर कर दिया और क़ब्रों पर चादर चढाने की दलील बना दी।और इस हदीस से इन्होंने Mazaar par chadar Aur Qabar Parasti की दलील निकाल ली है ! अल्लाह हिदायत दे इन्हें !
Conclusion:
- अब इतनी सारी दलीलों के बाद भी कोई न माने तो फिर उसका मामला अल्लाह के सुपुर्द है।
- बस आप सभी से दरख़्वास्त है के जहाँ तक हो सके ऐसे शिर्किया कामों से ख़ुद को बचाएँ और सिर्फ़ अल्लाह ही से मदद मांगे
- अल्लाह हम सबको क़ुरआने करीम और सुन्नते नबवी ﷺ पे अमल करने की तौफ़ीक़ आता करे (आमीन)
- और हमे हिदायत के साथ सहीह और सीधी राह पर चलने की तौफीक अता फरमाए !
- जो लोग कब्रो पर उर्स / मेला, कव्वाली व महफिले सिमाअ, ढोल व सारंगी वगैरह मुनकरात कायम करते है उनके इस अमल की दलील कुरआन और सुन्नत में मौजूद नहीं है। ये गैर-मुस्लिम कौम से मुसलमानो में रिवाज पकड़ा हुआ अमल है, दीन-ए-इस्लाम में इसकी कोई हकीकत नहीं हैं बल्कि ये सभी अमल बिदअत में शुमार है।
हजरत अब हुरैरह रजि. से रिवायत है नबी करीम {ﷺ} ने फर्माया, "अपने घरो को कब्रिस्तान मत बनाओ, और न मेरी कब्र को ईद (मेलागाह) बनाओ और मुझ पर दरूद पढ़ो, तुम जहाँ कही भी होंगे तुम्हारा दरूद मुझ तक पहुच जायेगा"
(अबू दाऊद: 2042)
🤲 अल्लाह हम सबको शिर्क जैसे अज़ीम गुनाह से बचाये आमीन
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Frequently Asked Questions
Ques: 1-मजार या दरगाह पर जाना कैसा है ?
Ans: मजार या दरगाह पर जाने की कोई शरई दलील नही है हां नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है की कब्रों की ज़यारत किया करो ताकि तुम्हे अपनी आखिरत और मौत की याद आए ! हां रोज़ा ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़यारत की शरई दलील है!
Ques: 2-मजार पर दुआ मांगना !
Ans: जब मजार पर जाने की कोई दलील नही है तो दुआ का सवाल ही नहीं होता! हां कब्रों पर जा कर कब्र वालों के लिए दुआए मगफिरत करने की इजाज़त है !
Ques: 3-वसीला क्या है या वसीले से दुआ मांगना ?
Ans: वसीला का मतलब है अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का कु़रबत तलाश करना यानी नेक अमाल या ईबादत के ज़रिए अल्लाह तक पहुंचाना ताकी अल्लाह की रहमत का साया नसीब हो.लेकिन अफसोस ! इंसान अपनी हाजत पूरी करने के लिए ऐसी चीजों को वसीला बना लेते हैं जो अल्लाह के नजदीक नापसंदिद है जैसे किसी पीर,औलिया या बुजुर्ग को अपना वसीला बनाना!
Ques: 4- जायज़ वसीला क्या है ?
Ans: जायज़ वसीलेे तीन तरह के हैं !
- 1: जैसा कि अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने क़ुरआन के सूरत अलअ़राफ़ में फ़रमाता है की अल्लाह के बहुत अच्छे अच्छे नाम हैं, उस से उन नामों के जा़रिया से दुआ करो !
- 2: अपने नेक अ़माल का वासीला पेश किया जाए जैसे हदीस सहीह बुखारी और सूरत आल ईमरान में बयान हूवा है!
- 3: किसी जि़न्दा नेक बुजुर्ग से दुआ करवाना जो सहीह बुखारी में मौजूद है !
Ques:4-शिर्क क्या है ? क्या शिर्क की माआ़फ़ी है ?
Ans:अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला के जा़त, सिफ़ात, ईबादत वा दुआ में किसी को शामिल करना शिर्क कहलाता है! अगर कोई गुनाहगार है और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम शफ़आ़त या अल्लाह की रहमत मिल गई तो अल्लाह तआ़ला उसका हर गुनाह बख़्श देगा मआ़फ़ करदेगा लेकिन अगर कोई शिर्क करने वाला बगैर तौबह के मर गया तो सीधा जहन्नम उसकी कोई माआ़फ़ी नहीं है !
Ques: 5-क्या मजार पर हाजरी से मुश्किल का हल होता है?
Ans:मजार पर हाजरी से बेशक मुश्किल हल होगी लेकिन वो शिर्क हो जायेगा क्योंकि देने वाली अल्लाह की जात़ है लेकिन मांगने वाले की ज़हन में यह बात होती है की इस मजा़र के वसीले से मेरी परेशानी दूर हुई है.
Que : 6- रसूलुल्लाह (ﷺ) के इंतेक़ाल के बाद आप (ﷺ) की कब्रे-मुबारक घर में किस वजह से बनाई गयी?
Ans: इब्ने-जूरैज रह. से मरवी है, वो कहते है की मुझे मेरे वालिद ने यह हदीस सुनाई की जब रसूलुल्लाह (ﷺ) का इंतेक़ाल हो गया तब , नबी (ﷺ) के सहाबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो नबी (ﷺ) को कहा दफ़न करे, यहाँ तक के सैयदना अबु बकर सिद्दीक रजि. ने कहा, मेने रसूलुल्लाह (ﷺ) को यु फरमाते हुए सुना था के "हर नबी की कब्र वही बनाई जाती जहा इनका इंतेक़ाल होता है" , चुनाँचे आप (ﷺ) के बिस्तर को हटा कर इसी के नीचे वाली जगह को कब्र के लिए खोदा गया" (मुस्नद अहमद:27)
यही वजह थी की रसूलुल्लाह (ﷺ) की कब्र-मुबारक आप (ﷺ) के घर में ही बनाई गयी ।
Que: क्या सहाबा ने नबी (ﷺ) कब्र मुबारक को पक्का (पुख्ता) बनाया और कब्रे-मुबारक पर इमारत तामीर की?
Ans : सहाबा किराम रजि. ने नबी (ﷺ) की कब्र को पुख्ता नहीं बनाया और न ही इसपर इमारत तामीर की गयी क्योंकि :-
"हजरत जाबिर रजि. से रिवायत है की रसूलुल्लाह (ﷺ) ने पुख्ता कब्रे बनाने और और उनपर बैठने और इमारत तामीर करने से मना फ़र्माया है"
( Sahih Muslim 2245 (970)
इस हदीस को मद्देनजर रखते हुए सहाबा ने आप (ﷺ) की कब्र को न तो पक्का बनाया न ही उस पर इमारत बनाई बल्कि जो इमारत पहले से बनी थी यानी नबी (ﷺ) का घर, उसी के अंदर आपको दफनाया गया। सहाबा किराम ने दफनाने के बाद कब्र पर "एक्स्ट्रा" अपनी तरफ से कोई तामीरात की हो इसका कोई सबूत सहीह हदीस से नहीं मिलता हैं।
Que: पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ कैसा अमल है?
Ans : पैगम्बर, औलिया अल्लाह या अन्य किसी भी शख्स की कब्र के सामने सर झुका कर खड़े होना या नमाज की तरह हाथ बांधे खड़े रहना,सज्दा करना या उनका तवाफ़ करना इस्लामी-शरीयत के मुताबिक़ सरासर नाजायज और हराम है।
इसकी दलील इस तरह से हैं:
जुन्दुब रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ)ने फ़र्माया -
".........तुम से पहले के लोग अपने अम्बिया और स्वालेहीन (नेक लोग) की कब्रो को मस्जिद सज्दागाहें) बना लिया करते थे, कब्रो को मस्जिद मत बनाना,में तुम को इससे मना करता हुँ"
Sahih Muslim 1188 (532)
Que: क्या हर वो कब्र जो शरीयत के खिलाफ ऊंची और पक्की हैं, उसे गिराना लाज़िमी हैं?
Ans : इस सवाल का जवाब यह हदीस बेहतर दे रही है :-
हजरत अली रजि. ने हजरत अबुल हय्याज असदी रजि. से फरमाया कि तुम्हें उसी काम पर मै भेजता हूँ जिस काम पर अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने मुझे भेजा था वह यह कि "किसी बडी ऊंची कब्र को बराबर किये बगैर न छोडो , न किसी मूरत को बगैर मिटाये रहने दो ”
( Sahih Muslim 2243 (969)
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1 Comments
Allah mushrikon ko hidayat de
ReplyDeleteplease do not enter any spam link in the comment box.thanks