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Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho/जो नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो

 Jo namaz Sunnat ke mutaabiq na ho

*🌺🌷ﺑِﺴْـــــــــــــﻢِﷲِالرَّحْمٰنِﺍلرَّﺣِﻴﻢ🌺
Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho
Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho 

Jo namaz Sunnat ke mutaabiq na ho तो उस नमाज़ का क्या होगा आप ने कभी सोचा है ? कुछ नेकियां या इबादतें ऐसी हैं जिन्हे हम करते भी हैं तो वह नेकियों में शुमार नही होती हैं! हम नेकियां करके भी उसका पूरा अजर हासिल नहीं कर पाते है और उसकी वजह हमारी कोताही और दिल से न करना है! उसी में से एक नमाज़ है ! और यह एक ऐसी इबादत है की jo namaz Sunnat ke mutaabiq na ho और सकून से, ध्यान से न पढ़ी जाए तो 40 और 60 क्या पुरी जिंदगी की पढ़ी हुई नमाज़ बर्बाद हो जायेगी! अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला इसे कबूल नहीं करेगा और हम नुकसान उठाने वालों में शामिल हो जायेंगे! और जब नमाज़ ही कबूल न होगी तो बाकी जो नेकियाँ हैं वोह ऐसे ही बेकार हो जाएंगी !

क्या आप ने कभी गौर किया है कि हम जो नमाज़ पढ़ते हैं वह कबूल होगी की नही या हमे उसका पूरा अजर मिलेगा की नही ? या ऐसे ही नमाज़ पढ़ते हुवे जिंदगी गुज़र जाएगी जो हक़ीक़त में कबूल ही न हो.....

नमाज़ में मिलने वाली नेकियां

हज़रत अम्मार बिन यासीर रजी़ः बयान करते हैं: मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह कहते हुए सुना: जब कोई व्यक्ति (नमाज़ पढ़ कर) लौटता है, तो उसे अपनी नमाज़ का केवल दसवां, नौवां, आठवां, सातवां, छठा, पांचवां, चौथा , तीसरा और आधा ही हिस्सा लिखा जाता है।
(सुनन अबू दाऊद: 796)
एक अन्य हदीस में कहा गया है कि दो लोग एक ही नमाज़ में होते हैं, लेकिन उनके बीच फजीलत में उतना ही अंतर होता है जितना आसमान और पृथ्वी के बीच की दूरी है।
दूसरे शब्दों में, इन हदीसों से यह पता चला कि भले ही हम नमाज़ पढ़ते हैं, फिर भी हम इसके पूरे अजर यानी सवाब से महरूम रह जाते हैं, जो हमारी आखिरत में कामयाब होने में रूकावट बनेगा ।
क्योंकि अल्लाह और पैगंबर ﷺ ने कहा है: "फिर बड़ी खराबी है उन नमाज पढ़ने वालों की जो लोग अपनी नमाज़ से लापरवाह रहते हैं. जो दिखावा करते हैं”(4,5,6: सूरह अल-मौन)
पैगंबर ﷺ ने कहा कि कयामत के दिन सबसे पहले बंदे से इबादत में उसकी नमाज़ का हिसाब होगा यदि नमाज़ ठीक रही तो उसके सभी कर्म अच्छे होंगे। और अगर खराब निकली तो उसके सारे कर्म खराब हो जायेंगे सुन्नन अल-तिर्मिज़ी 413 और ( साहिह अल-जामी 2573) या
नी सीधी बात है कि नमाज़ में नेकी की कमी का मुख्य कारण सकून और ध्यान देकर नमाज ना पढ़ना और सुन्नत के अनुसार नमाज अदा न करना है।
और अल्लाह का फ़रमान पढ़िए की कौन हैं जो काम्याब हुवे और कौन हैं जिनकी नमाज़ कबूल की जाएगी! 
उन ईमान वालों ने यकीनन फलाह पाली है जो अपनी नमाज़ में दिल से झुकने वाले हैं !
(सूरह अल-मुमिनुन: 1, 2)

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Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho
Falah pane wale


Note:तो आइए ! आज से हम अपनी नमाज़ नम्रतापूर्वक और सुन्नत के अनुसार अदा करें और आखी़रत की सफलता प्राप्त करें। क्योंकि Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho वो क़बूल नही !

नमाज़ की हिफ़ाज़त करने वाले

हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-आस (रज़ि०) नबी (सल्ल०) से रिवायत करते हैं। आप ﷺ ने एक दिन नमाज़ का ज़िक्र करते हुए फ़रमाया : जिसने नमाज़ की हिफ़ाज़त और पाबन्दी की तो वो उस शख़्स के लिये क़ियामत के दिन नूर, दलील और नजात होगी और जिसने उसकी हिफ़ाज़त और पाबन्दी न की तो क़ियामत के दिन उसके लिये नूर,  दलील और नजात नहीं होगी और वो क़ारून फ़िरऔन हामान और उबई-बिन-ख़लफ़ के साथ होगा। (अहमद और दारमी और बैहक़ी !(मिश्कातुल मसाबीह:578)

हज़रत हुज़ैफ़ा (रज़ि०) से रिवायत है,  उन्होंने एक आदमी को नाक़िस नमाज़ पढ़ते देखा। हज़रत हुज़ैफ़ा ने  उससे पूछा :  तू कितने वक़्त से ऐसी नमाज़ पढ़ रहा है?  उसने कहा : चालीस साल से। आपने फ़रमाया: यक़ीन कर चालीस साल से  तूने नमाज़ पढ़ी ही नहीं और अगर  तू  इसी  क़िस्म की नमाज़ पढ़ता-पढ़ता मर जाता तो हज़रत मुहम्मद ﷺ के दीन पर वफ़ात न पाता। फिर आप कहने लगे : बेशक इन्सान हलकी नमाज़ पढ़ने के बावजूद मुकम्मल और अच्छे तरीक़े से नमाज़ पढ़ सकता है(सुन्न नसायी हदीस 1313)


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Zindagi bhar ki namaz bekaar 

Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho
Jo namaz sunnat ke mutaabiq na ho

एक रिवायत में है की:

ख़लीफ़ा अमीर अल-मोमिनीन उमर अल-फ़ारूक़ (रजी़) ने फ़रमाया: एक आदमी ऐसा भी होता है जो नमाज़ में ही जिंदगी गुजार देता है , लेकिन उसने अल्लाह के लिए एक रकअ़त भी पूरी नहीं की होती।
पूछा गया कि वह कैसे?
फरमाया :क्योंकि वह (एक) रकअ़त में भी रूकूअ़ और सजदा के अरकान को ठीक  तरीके से अदा नहीं करता है! यानी सुन्नत के मुताबिक अदा नहीं करता!

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एक दूसरी रिवायत में है:

अबू हुरैरा (रज़ी ) ने कहा: कुछ लोग ऐसे भी हैं जो साठ वर्षों तक नमाज़ पढ़ते रहते हैं, लेकिन उनकी कोई भी नमाज़ कबूल नहीं की जाती है।
उनसे पूछा गया कि ये कैसे?
उन्होंने कहाः 
यही वह नमाज़ी है जो नमाज़ तो पढ़ते है लेकिन नमाज़ में रूकुअ़, सजदे , क़यामत और खुशुअ़ मुकम्मल तौर पर अदा नहीं करता!

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इमाम अहमद बिन हनबल फरमाते हैं की: "लोगों पर एक वक्त ऐसा भी आएगा जिसमें लोग नमाज़ पढ़ते हुए दिखाई देंगे लेकिन नमाज़ पढ़ते न होंगे। मुझे डर है कि वह समय हमारा समय होगा।"

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इमाम अल-ग़ज़ाली  ने फरमाया: लोगों के बीच ऐसे लोग हैं जो सज्दा करते वक्त सोचते हैं कि वे उस सजदे के जारिया से अल्लाह के करीब हो रहे हैं! लेकिन ऐसा होता ही नही है! अगर उस सजदे का गुनाह उस इंसान के नगर के रहने वालों को बांट दिए जाएं, तो सब नाश हो जाएंगे !

पूछा गया की ऐसा क्यों?
तब उन्होंने  कहा, "क्योंकि सज्दा करने वाला अपने रब के सामने सिर झुकाता है, लेकिन उसका दिल बेकार कामों में उलझा रहता है और  दुनिया की मुहब्बत में मसरूफ़ रहता है। 
तो मुझे बताओ कि क्या यह सज्दह है ? अल्लाह इसे कबूल करेगा!
अल्लाह हमे तौफीक़ दे की हम सहीह और सुन्नत तरीक़े से नमाज़ अदा करें और इसे कबूल फरमाए!


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Conclusion:

अब तो ये पता चल गया होगा की jo namaz Sunnat ke mutaabiq na ho तो ज़िन्दगी भर पढ़ी नमाज़ बर्बाद हो जायेगी! अगर देखा जाए तो ये एक ऐसी इबादत है जिसके बगैर कोई भी नेकी या इबादत कबूल नहीं होगी! क्योंकि  नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है की क़यामत के दिन सबसे पहले बंदे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर नमाज़ दुरूस्त निकली तो काम्याबी नही तो नाकामी हाथ आयेगी!
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ˡᶦᵏᵉ    ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ    ˢᵃᵛᵉ      ˢʰᵃʳᵉ


FAQ:

Ques1. अगर नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो?
Ans: अगर नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो ये कबूल न होगी भले ही हम उम्र भर नमाज़ में गुजार दें!

Ques 2. क्या कयामत के रोज़ सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा ? 
Ans: हां ! क़यामत के दिन सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा क्योंकि ये नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है !

Ques 3. क्या नमाज़ में सकून से हर अरकान पूरा करना जरूरी है ?
Ans: हां ! नमाज़ अगर सकून से न पढ़ी जाए तो ये कबूल नहीं होगी !और हर अर्कान क़याम, रुकूअ़ और सज्दह को सकून से अदा करना है !
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