Sunnat Nikaah/सुन्नत निकाह

"बड़े ही अफसोस कि बात है की आज कल शादी ब्याह के नाम पर डीजे बजाना और आधे कपड़े पहने हुवे लड़कियों को नचाना आम बात हो गई है और इस बेहयाई वाला नाच को बच्चे बूढ़े जवान और औरतें सभी साथ देख रहे है ! और इस बेशर्मी वाले काम में लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं"

Sunnat Nikaah: आसान निकाह और वलीमा का सुन्नत तरीका | Aasan Shadi in Islam

इस्लाम ने निकाह़ को आसान बनाया है ताकि शादी बोझ न बने बल्कि रहमत और सुकून का ज़रिया बने। लेकिन आज के दौर में मुसलमानों का मुआशरा (समाज) निकाह़ को कठिन और महंगा बना चुका है। शादी का असल मक़सद मोहब्बत, रहमत और जिम्मेदारी है, मगर आज शादियाँ दिखावे, दहेज ( लानत है), गैर-इस्लामी रस्मों और फिज़ूलखर्ची का शिकार हो चुकी हैं।


Nikah ka Sunnat Tareeqa
Sunnat Nikaah/सुन्नत निकाह 


नबी ﷺ ने निकाह़ को आसान करने और महर को खुशदिली से अदा करने का हुक्म दिया। आप ﷺ ने फ़रमाया कि “सबसे मुबारक शादी वही है जिसमें खर्च कम और आसानी हो।” (मुसनद अहमद) यानी निकाह़ की असल सुन्नत सादगी, बरकत और पाकीज़गी है।
आज ज़रूरत है कि हम निकाह़ को उसके असली रूप में अपनाएँ—जहाँ मेहर बीवी का हक़ है, वलीमा सुन्नत है, और शादी में दिखावे, दहेज और गैर-ज़रूरी ताम-झाम से परहेज़ है। यही असल Sunnat Nikaah है जो हमारी ज़िंदगी को आसान और बरकत वाला बनाता है।

📌 निकाह़ के मानी और हिकमत

लुग़वी मानी: जमा करना, गांठ बाँधना, मिलाना।
शरई मानी: मियां-बीवी के दरमियान ऐसा अ़क़द जिससे दोनों के लिए सोहबत हलाल हो जाती है।
निकाह़ का मक़सद सिर्फ़ जिस्मानी ताल्लुक़ नहीं बल्कि एक पाकीज़ा घर-बार बसाना, औलाद की हिफाज़त और समाज की इस्लाही बुनियाद क़ायम करना है।

⚖️ निकाह को आसान बनाना:

शरीअ़त ने निकाह़ को आसान और जिना को हराम और मुश्किल बनाया है। अफ़सोस कि आज के दौर में लोग उल्टा कर रहे हैं—निकाह़ मुश्किल और जिना आसान कर दिया है।
रसूलुल्लाह ﷺ ने हमेशा सादा और आसान निकाह़ की तरग़ीब दी

असली सुन्नत यही है कि शादी सादगी और पाकीज़गी के साथ हो। अगर हम आसान शादियाँ करेंगे तो समाज में बुराइयाँ कम होंगी और रिश्ते मजबूत होंगे।

🚫 शादी ब्याह में आम खराबियाँ

1. डीजे और बेहयाई वाले नाच

आजकल शादी के नाम पर डीजे बजाना और लड़कियों को बेहयाई के साथ नचाना आम बात हो गई है। बच्चे, जवान, बूढ़े, और औरतें सब मिलकर इस गुनाह में शरीक होते हैं। लाखों रुपए इस बेशर्मी पर खर्च कर दिए जाते हैं लेकिन किसी गरीब की बेटी का घर बसाने के लिए कोई आगे नहीं आता।
👉 जबकि इस्लाम हमें सादगी और पाकीज़गी का हुक्म देता है। लिहाज़ा ! शरीयत का ख़्याल रखें और Sunnat Nikaah को अपनाएं!

बारात का ज़ुल्म यहां देखें वीडियो

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2. बारात का गलत रिवाज

हमारे समाज में निकाह के दिन सैकड़ों लोगों को लेकर लड़की वालों के घर जाना आम बात है। लेकिन हकीकत यह है कि इस्लाम में इसका कोई तसव्वुर ही नहीं है।
यह सीधा ज़ुल्म है लड़की वालों पर और शरीयत में इसका कोई नाम-ओ-निशान नहीं मिलता।
👉 असली सुन्नत है कि निकाह आसान किया जाए और वलीमा (Waleema) दूल्हे के जिम्मे हो, न कि लड़की वालों के।

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✦ निकाह़ से मुतअल्लिक़ अल्लाह तआ़ला और रसूलुल्लाह ﷺ के फ़रमान

निकाह़ इस्लाम का एक अहम और मुक़द्दस अमल है जिसे सुन्नत-ए-नबवी ﷺ भी कहा जाता है। अल्लाह तआ़ला ने इंसान की फ़ितरत और ज़िंदगी के निज़ाम को मुकम्मल और महफ़ूज़ बनाने के लिए निकाह़ को क़ानूनी और शरीअ़ी रास्ता क़रार दिया।

Nikaah behayayi se Rokti hai
 nikaah ko aasan banayen 

📖 अल्लाह तआ़ला का हुक्म

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फ़रमाता है:
“औरतों से निकाह करो जो तुम्हें पसंद आएं।”
इस आयत से साबित होता है कि निकाह़ अल्लाह का हुक्म है और इंसान की फ़ितरत के मुताबिक़ एक पाकीज़ा रिश्ता है।

🌿 निकाह़ – सुन्नत-ए-रसूल ﷺ

रसूलुल्लाह ﷺ इर्शाद फ़रमाते हैं:
“निकाह़ मेरी सुन्नत है।”
“जब बंदा निकाह़ कर लेता है तो उसने अपना आधा दीन मुकम्मल कर लिया। अब बाकी आधे में अल्लाह से डरता रहे।”
यानी निकाह़ इंसान की ज़िंदगी का न सिर्फ़ एक एहम मोड़ है बल्कि दीन की तकमील का भी ज़रिया है।

💍 महर अदा करना

अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है:
“औरतों को उनके महर खुशी से अदा करो।”इससे मालूम हुआ कि महर देना मर्द पर वाजिब है और इसे दिल की खुशदिली के साथ अदा करना चाहिए। अगर बीवी अपनी खुशी से कुछ हिस्सा माफ़ कर दे तो वह हलाल है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया:
“निकाह करो चाहे महर देने के लिए एक लोहे की अंगूठी ही क्यों न हो।”

🌸 हदीसों में निकाह की तालीमात

  1. हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) से रिवायत है:
    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
    “ऐ जवानों! जो तुम्हारे अंदर औरतों के हुक़ूक़ अदा करने की ताक़त रखता है, वह निकाह़ करे। क्योंकि निकाह निगाह को झुकाता है और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करता है। और जो ताक़त न रखे, वह रोज़ा रखे, क्योंकि रोज़ा शहवत को तोड़ता है।” (बुखारी 5066, मुस्लिम 2517)

  2. हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है:
    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
    “निकाह मेरी सुन्नत है। जिसने मेरी सुन्नत पर अमल न किया उसका मुझसे कोई तअल्लुक़ नहीं।” (इब्ने माजा 1846, बुखारी 5063)

  3. हज़रत इब्ने उमर (रज़ि.) से रिवायत है:
    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
    “दुनिया एक सामान है और दुनिया का बेहतरीन सामान नेक बीवी है।” (इब्ने माजा 1855)


निकाह़ इंसान की इज़्ज़त, पाकीज़गी और दीन की हिफ़ाज़त का ज़रिया है। इस्लाम ने निकाह़ को आसान और हलाल रास्ता बनाया ताकि इंसान गुनाहों से बचे।

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✦ निकाह़ में दीनदारी को तवज्जोह

इस्लाम ने निकाह़ को सिर्फ़ एक सामाजिक या जिस्मानी ज़रूरत नहीं बल्कि दीन की तकमील और पाकीज़ा ज़िंदगी का ज़रिया बताया है। रसूलुल्लाह ﷺ ने ख़ास तौर पर निकाह़ के लिए दीनदारी को बुनियाद बनाने की हिदायत दी।

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📖 औरत से निकाह़ की बुनियादी वजहें

हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फ़रमाया:
“औरत से निकाह़ चार वजहों से किया जाता है:

  1. उसके माल की वजह से,

  2. उसके खानदान की वजह से,

  3. उसके हुस्न व जमाल की वजह से,

  4. उसके दीनदारी की वजह से।

तो तुम दीनदार औरत को तरजीह दो।”
(बुख़ारी 5090, मुस्लिम 2681, अबु दाऊद, नसई, इब्ने माजा, तिर्मिज़ी)

👉 इसका मतलब है कि माल, हुस्न और खानदान फ़ानी हैं, मगर दीनदारी इंसान को दुनियावी और आख़िरवी कामयाबी देती है।


👁 निकाह़ से पहले देखने की इजाज़त

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“जब तुम में से कोई किसी औरत को निकाह़ का पैग़ाम दे, तो अगर मुमकिन हो तो उसे (शरीअ़ी हदों में) देख ले।”
(मुसनद अहमद, अबु दाऊद 2063 – सनद सहीह)


🕌 निकाह़ में वली की शर्त

रसूलुल्लाह ﷺ ने इर्शाद फ़रमाया:
* वली के बग़ैर निकाह़ नहीं होता।” (अबु दाऊद 2066, नसई, इब्ने माजा, तिर्मिज़ी)

* जिस औरत ने अपने वली की इजाज़त के बिना निकाह़ किया, उसका निकाह़ बातिल है।” (अबु दाऊद 2064, तिर्मिज़ी, इब्ने माजा – सहीह)

👉 यानी औरत का निकाह़ वली (बाप, भाई या क़रीबी रिश्तेदार) की मौजूदगी और इजाज़त के बग़ैर सहीह नहीं।

🚫 मुश्रिका औरतों से निकाह़

अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है:
“मोमिन मर्दों के लिए मुश्रिका औरतों से निकाह़ करना हराम है।” (सूरह नूर: 3)


🧕 बेवा और कुंवारी औरत का निकाह़

कुरआन कहता है:
“बेवा औरतों के निकाह़ कर दिया करो।” (सूरह नूर: 32)

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“बेवा औरत का निकाह़ उसकी राय के बग़ैर न करो, और कुंवारी औरत का निकाह़ उसकी इजाज़त के बग़ैर न करो। उसकी इजाज़त उसका ख़ामोश रहना है।”
(बुख़ारी 5136, मुस्लिम 2568)

📜 ख़ुत्बा-ए-निकाह़ का मक़सद

निकाह़ से पहले ख़ुत्बा पढ़ा जाता है, जो कुरआन की आयात और तौहीद व तक़्वा की तालीम पर मुश्तमिल है।

ख़ुत्बा ए निकाह़ का मकसद क्या है यहां देखें 


हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ निकाह़ के वक़्त यह आयात पढ़ते:
  1. सूरह निसा (4:1):
    “ऐ लोगो! अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा बनाया और फिर उन दोनों से बहुत से मर्द और औरत फैला दिए…”

  2. सूरह आले इमरान (3:102):
    “ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो, जैसा कि उससे डरने का हक़ है, और तुम मरना मगर इस हाल में कि तुम मुसलमान हो।”

  3. सूरह अहज़ाब (33:70-71):
    “ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो और सीधी बात कहा करो। वह तुम्हारे आमाल दुरुस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। और जिसने अल्लाह और उसके रसूल की इताअ़त की उसने बड़ी कामयाबी हासिल की।”

(इसे अहमद, अबु दाऊद 2100, तिर्मिज़ी, नसई, इब्ने माजा ने रिवायत किया है।)

👉 इस ख़ुत्बे का मक़सद यह है कि निकाह़ का रिश्ता तक़्वा, तौहीद और ईमान की बुनियाद पर शुरू हो।

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इस्लाम में निकाह़: दीन की हिफ़ाज़त का ज़रिया है, औरत की इज़्ज़त और हक़ूक़ की ज़मानत है, समाज की पाकीज़गी और बे-हयाई से बचाव है। इसलिए निकाह़ में हमेशा दीनदारी को तवज्जोह दी जाए, न कि सिर्फ़ हुस्न, माल या खानदान को।

✦ निकाह़ करने वालों के लिए दुआएँ

इस्लाम ने निकाह़ को सिर्फ़ दुनियावी रिश्ता नहीं बल्कि बरकत और रहमत का ज़रिया बनाया है। इसलिए नबी ﷺ निकाह़ करने वालों के लिए दुआ देते थे ताकि उनकी ज़िंदगी में सुकून, मोहब्बत और ख़ैर पैदा हो।

🌿 निकाह़ पर दी जाने वाली दुआ

जब कोई शख़्स निकाह़ करता था तो नबी ﷺ उसे यह दुआ देते:

اَللّٰهُ يُبَارِكُ لَكَ، وَيُبَارِكُ عَلَيْكَ، وَيَجْمَعُ بَيْنَكُمَا فِيْ خَيْرٍ

“बारकल्लाहु लका, वा बारका अलैक, वा जमा‘ा बैनकुमा फी खैर।”

📖 तर्जुमा:
“अल्लाह तुझ पर बरकत अता करे, तुझ पर रहमत और बरकत नाज़िल करे और तुम दोनों को भलाई और ख़ैर पर जमा रखे।”
(तिर्मिज़ी, अबु दाऊद 2112, नसई, इब्नेमाजा, अहमद – और इसे इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हिब्बान ने सहीह कहा है)

🌹 बीवी के पास जाने से पहले की दुआ

हज़रत इब्ने अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फ़रमाया:

بِسْمِ اللَّهِ، اللَّهُمَّ جَنِّبْنَا الشَّيْطَانَ، وَجَنِّبِ الشَّيْطَانَ مَا رَزَقْتَنَا

“बिस्मिल्लाह, अल्लाहुम्मा जन्निबनाश-शैतान, वा जन्निबिश-शैतान मा रज़क्तना।”

📖 तर्जुमा:
“अल्लाह के नाम से (शुरू करता हूँ), ऐ अल्लाह! हमें शैतान से दूर रख और जो औलाद तू हमें अता करे उसे भी शैतान से महफ़ूज़ रख।”
(बुख़ारी 5165, मुस्लिम 2609)

👉 रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“अगर इस मिलन से औलाद क़िस्मत में लिखी होगी तो शैतान उसे कभी नुकसान नहीं पहुँचा सकेगा।”

निकाह़ सिर्फ़ एक रिश्ता नहीं बल्कि बरकत, मोहब्बत और औलाद की हिफ़ाज़त का सबब है। इसलिए मुसलमान को चाहिए कि निकाह़ और वैवाहिक ज़िंदगी की शुरुआत दुआ और तक़्वा से करे ताकि ज़िंदगी में हमेशा रहमत और सुकून बना रहे।

✦ निकाह़ की अहम फ़ज़ीलतें

Nikaah Nabi ﷺ ki Sunnat hai – इस्लाम में निकाह़ सिर्फ़ दुनियावी रिश्ता नहीं बल्कि इबादत और सुन्नत-ए-रसूल ﷺ है। अल्लाह और उसके रसूल ﷺ ने निकाह़ को आसान बनाया ताकि इंसान पाक-साफ़ ज़िंदगी गुज़ारे, बदकारी से बचे और समाज में मोहब्बत व सुकून कायम रहे।

1️⃣ निकाह़ इंसान में शर्म व ह़या पैदा करता है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

“ऐ नौजवानों की जमाअ़त! जो तुम में निकाह़ की ताक़त रखे, वह ज़रूर निकाह़ करे, क्योंकि यह निगाह को झुकाता है और शर्मगाह की हिफ़ाज़त करता है।”
(मुस्लिम 2517)


2️⃣ निकाह़ बदकारी से बचाता है

निकाह़ इंसान को ज़िना और हराम रिश्तों से महफ़ूज़ रखता है।
(मुस्लिम 2518)


3️⃣ निकाह़ जिन्सी आलूदगी और शैतानी ख़यालात से बचाव है

रसूलुल्लाह ﷺ ने बताया कि निकाह़ इंसान को बुरे ख़यालात, वासनाओं और शैतानी वसवसों से बचाता है।
(मुस्लिम 2518)


4️⃣ निकाह़ आपसी मोहब्बत और मुरव्वत का ज़रिया है

पति-पत्नी का रिश्ता मोहब्बत, रहमत और आपसी मुआफ़क़त का बेहतरीन ज़रिया है।
(इब्ने माजा – सहीह)


5️⃣ निकाह़ राहत व सुकून का सबब है

कुरआन कहता है:
“और उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से जोड़ियाँ बनाईं ताकि तुम उनके पास सुकून पाओ और उसने तुम्हारे दरमियान मोहब्बत और रहमत डाल दी।”
(सूरह रूम: 21, नसई – सहीह)


6️⃣ निकाह़ से दीन मुकम्मल होता है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“जिसने निकाह़ किया उसने अपने आधे दीन को पूरा कर लिया, अब बाकी आधे में अल्लाह से डरे।”
(बैहकी – हसन)


7️⃣ निकाह़ इंसानी नस्लों के बाक़ी रहने का ज़रिया है

नस्ल-ए-इंसानी की हिफ़ाज़त और बाक़ाई निकाह़ के ज़रिए है।
(नसई – हसन)


8️⃣ नेक नियत से निकाह़ करने वाले की अल्लाह मदद करता है

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
“जो शख़्स बुराई से बचने की नियत से निकाह़ करता है, अल्लाह उसकी मदद करता है।”
(नसई – हसन)


✅ नतीजा

निकाह़ सुन्नत-ए-रसूल ﷺ है और इसकी फ़ज़ीलतें इंसान की ज़िंदगी, समाज और आख़िरत – तीनों को संवार देती हैं। निकाह़ शर्म व हया, सुकून, मोहब्बत और दीन की तकमील का सबब है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह निकाह़ को आसान बनाए और सुन्नत के मुताबिक़ अदा करे।

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मेहर और उसके मसाइल

मेहर (Mahr Dain) इस्लाम में औरत का हक़ है जो निकाह़ के वक्त मर्द अपनी बीवी को देता है। Haq Mahar रकम, माल या कोई फायदेमंद चीज़ हो सकती है। इस्लाम ने मेहर की कोई कम से कम या ज़्यादा से ज़्यादा हद मुक़र्रर नहीं की, बल्कि आसान और मुनासिब मेहर को बेहतर बताया है।

  1. बेहतर मेहर वही है जिसका देना आसान हो। (अबू दाऊद 2117)
  2. बरकत उन्हीं औरतों में है जिनका मेहर कम हो। (मुग़नी 9)
  3. मेहर निकाह की अहम शर्त है, जिसके ज़रिए शौहर-बीवी का रिश्ता हलाल होता है। (मुस्लिम 2567)
  4. अगर बिना मेहर तय किये निकाह हो तो औरत के लिये मेहरे मिस्ल वाजिब है। (मुस्लिम)
  5. हज़रत नबी ﷺ ने लोहे की अंगूठी और यहाँ तक कि कुरआन की आयतें सिखाने को भी मेहर ठहराया। (बुख़ारी 5087, मुस्लिम 2578)
  6. अल्लाह तआ़ला का हुक्म है: “अगर बीवियों को ख़ज़ाना (मेहर) दे चुके हो तो वापिस न लो।” (सूरह निसा 4:20)
  7. औरत चाहे तो अपनी खुशी से मेहर का कुछ हिस्सा या पूरा मेहर माफ़ कर सकती है। (सूरह निसा 4:4)
  8. मेहर को निकाह़ के वक्त या बाद में अदा किया जा सकता है। (सूरह बकरा 2:236)
  9. अगर सुहबत से पहले तलाक हो और मेहर तय हो चुका हो, तो आधा मेहर अदा करना वाजिब है। (सूरह बकरा 2:237)
  10. शौहर का वफात सुहबत से पहले भी हो जाए तो औरत पूरे मेहर की हक़दार होती है। (अबू दाऊद 2095)
✅ नतीजा:
मेहर औरत का बुनियादी हक़ है, इसे खुशदिली से और आसानी के साथ अदा करना चाहिए। ज़्यादा बोझ डालना या दिखावे के लिए भारी मेहर रखना निकाह़ को मुश्किल बनाता है, जबकि आसान मेहर निकाह़ में बरकत और मोहब्बत लाता है।


📌 हमबिस्तरी की दुआ़ और आदाब

इस्लाम में हमबिस्तरी (सहमिलन या शह्वती संबंध) सिर्फ़ नैतिक और शरीयती हदों में ही नहीं बल्कि इबादत और सवाब का भी ज़रिया है। नबी ﷺ ने इस रिश्ते के लिए दुआ और आदाब बताया ताकि पति-पत्नी का संबंध हलाल, पाक और बरकत वाला रहे।

हज़रत इब्ने अब्बास (रजि.) से रिवायत है कि नबी ﷺ ने फरमाया:
“जब कोई अपनी बीवी के पास जाने का इरादा करे तो कहे:
‘बिस्मिल्लाही अल्लाहुम्मा जन्निबनश शैतान व जन्निबिश-शैतान मा रज़क्तना।’”
(बुख़ारी 5165 / मुस्लिम 2609)

तर्जुमा: “अल्लाह के नाम से! ऐ अल्लाह! हमें शैतान से दूर रख और उस से भी शैतान को दूर रख जो तू हमें अता करे।”

🌿 हमबिस्तरी के शरीयती नियम और फ़ज़ीलत

  1. हलाल तरीके से शहवत पूरी करना सवाब का कारण है। (मुस्लिम)

  2. जुमेरात (रात) में सोहबत करना मुस्तहब है। (तिर्मिजी – सही)

  3. बच्चे को दूध पिलाने के दौरान भी हमबिस्तरी करना जायज़ है। (मुस्लिम)

  4. दिन के वक्त भी हमबिस्तरी करना जायज़ है। (बुख़ारी)

  5. दूसरी बार शहवत की इच्छा हो तो पहले वुजू कर लेना चाहिए। (मुस्लिम)

  6. हमबिस्तरी के बाद पति-पत्नी के बीच की बातें किसी और को बताना मना है।

    • नबी ﷺ ने फ़रमाया:

    “क़यामत के दिन अल्लाह के नज़दीक सबसे बुरा वह शख़्स है जो अपनी बीवी के पास जाए और बीवी भी उसके पास आए और फिर उसके राज़ की बातें लोगों को बतलाए।” (मुस्लिम 2617)


⚖️ जिम्मेदारियां

नबी ﷺ ने फरमाया:

“तुम में से हर शख्स हाकिम है और अपनी रअइयत (जिम्मेदारों) के बारे में जवाबदेह है। मर्द अपने घर वालों पर हाकिम है और औरत अपने ख़ाविन्द के घर और उसकी औलाद पर हाकिम है।” (बुख़ारी)

इसलिए पति-पत्नी दोनों को अपनी जिम्मेदारियां निभाना वाजिब है, ताकि रिश्ता हलाल, बरकत वाला और मोहब्बत भरा रहे।

📌 वलीमा की सुन्नत और फ़ज़ीलत

“वलीमा” का मतलब है जमा होना, इकट्ठा होना। जब मियां और बीवी मिलते हैं, तो उनके मिलन के जश्न के लिए रखा जाने वाला भोजन वलीमा कहलाता है।Waleema Sunnat तरीक़े से होना चाहिए। वलीमा न केवल खुशियों का अवसर है बल्कि यह सुनती और शरीयती अहमियत रखता है।

Waleema Ka Sunnat tareeqa
Waleema ka masnoon tareeqa 

  1. दावते वलीमा करना सुन्नत है।
    (बुख़ारी/मुस्लिम – 2584/2589)

  2. दावते वलीमा को क़ुबूल करना वाजिब है।
    (मुस्लिम – 2595/2605)

  3. अगर वलीमा में सिर्फ़ ख़ास लोगों को बुलाया जाए और आम लोगों को न बुलाया जाए, तो वह बदतर वलीमा माना जाता है।
    (मुस्लिम – 2603)

  4. दावते वलीमा कुबूल न करने वाला अल्लाह और रसूल ﷺ का नाफ़रमान है।
    (मुस्लिम – 2603 / बुख़ारी 5177)

  5. रिया (दिखावा), तकब्बूर (घमंड) और बड़ाई दिखाने वाले लोगों की दावत में शिर्कत करना मना है।
    (अबु दाऊद – सही)

  6. वलीमे में खाना बनाने की मात्रा हदबंदी पर नहीं बल्कि जरूरत और हैसियत के अनुसार हो सकती है, चाहे वह थोड़ा हो या ज़्यादा।
    (काजी अयाज – नील अल अवतर 0048260)

  7. वलीमा की दावत दुल्हा-दुल्हन के मिलन से पहले या बाद कभी भी दी जा सकती है।
    (अल फिक्ह अल मजाहिब – बर बदल 002 1 33-34)

  8. मुस्तहिब वक्त: सभी चार फ़िक़्ही मसलकों में वलीमा का सही समय निकाह़ के बाद माना गया है।

👁️‍🗨️ वलीमा न सिर्फ़ दुल्हा-दुल्हन के मिलन का जश्न है बल्कि यह सुन्नत, दीन और समाज में मेल-जोल का माध्यम भी है। इसे सरल, सादगी और शरीयती हदों के साथ करना चाहिए ताकि अल्लाह की बरकत और रसूल ﷺ की ख़ुशनवदी हासिल हो।

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निकाह़ इस्लाम की सुन्नत, पाकीज़ा रिश्ता और समाज की बुनियाद है। यह आधे दीन की तकमील का रास्ता है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह सुन्नत निकाह़ करे, इसे आसान बनाए और जिना के रास्ते बंद करे।


गौर करने वाली बात: Nikaah – ये कैसी सुन्नत, ये कौन सा इस्लाम?

आजकल हमारे समाज में निकाह़ और शादी के नाम पर कई ऐसे रिवाज आम हो गए हैं जो इस्लामी सुन्नत से बिलकुल हट कर हैं। ये बातें सिर्फ़ शान-शौकत और दिखावे की वजह से की जाती हैं, लेकिन हक़ीक़त में ये निकाह़ की असल सुन्नत और शरीयत का उल्लंघन हैं।


1. भारी बारात और लड़के वालों की मांग

निकाह़ के नाम पर शादी करो और दो-तीन सौ बरातियों का खाना लड़की के माँ-बाप से खिलवाओ।”
ये कौन सी सुन्नत है? ये कौन सा इस्लाम है?
👉शरीयत ने निकाह़ को सुलभ और आसान बनाने का हुक्म दिया है। बड़े-बड़े खर्च और दिखावा अल्लाह की रज़ामंदी में बाधा डालते हैं।

2. मेहर में अनुचित व्यवहार

मेहर नहीं देते, उधार रखकर माफ़ करवाते हैं या हक मारते हैं।”
ये कौन सी सुन्नत है? ये कौन सा इस्लाम है?
👉सच्चा इस्लाम मेहर को खुशदिली से अदा करना सिखाता है। मेहर महिला का हक़ है, इसे दबाना या कम करना शरीयत के खिलाफ़ है।

3. नौकरी का बंधन और मायके लौटाना

“शुरुआती सात महीने तक बीवी से पूरे खानदान की नौकरी करवा कर, डिलिवरी के समय मायके छोड़ आना।”
ये कौन सी सुन्नत है? ये कौन सा इस्लाम है?
👉निकाह़ का मक़सद सहूलियत, मोहब्बत और जिम्मेदारी है, ना कि बीवी पर काम का बोझ डालना।

4. डिलिवरी और बच्चा

“ज़्यादातर सिजेरियन ऑपरेशन से बच्चे पैदा हो रहे हैं, खर्च लड़की के माता-पिता उठाएं।”
ये कौन सी सुन्नत है? ये कौन सा इस्लाम है?
👉शरीयत में मर्द पर बीवी और बच्चे का खर्च देना वाजिब है।ये मर्द की ज़िम्मेदारी है उसे ससुराल वालों की नहीं। 

🔹 नसीहत

समाज से ये डाकुओं और लुटेरों जैसी आदतें निकालो।

हर मां-बाप को चाहिए कि बारातियों को खाना खिलाने का रिवाज बंद करें।

लड़के वालों को चाहिए कि लड़की के माता-पिता से बकवास फ़रमाइशें बंद करें।

निकाह़ को साधारण, सुन्नत और शरीयत के अनुसार अदा करें।

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Conclusion:

निकाह़ दरअसल एक इबादत और रहमत है, लेकिन हमने इसे रिवाज, बोझ और दिखावे में बदल दिया है। अगर हम वलीमा और निकाह़ को नबी ﷺ की बताई हुई सुन्नत के मुताबिक़ आसान कर दें, मेहर को हक़ समझकर अदा करें और गैर-इस्लामी रस्मों से बचें तो शादियाँ बरकत और सुकून का सबब बनेंगी।जहेज़ लेकर या जहेज़ का मुतालबा करके बेटी वालों को मजबूर न करें और न ही बारात लेकर जाए की बाप कर्जदार हो जाए बारातियों का पेट भरने के लिए. सुन्नत तरीक़ा अपनाएं ताकि आप पर अल्लाह की रहमत नाजिल हो और जिंदगी सकून से गुज़रे!

आज हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि हम अपने मुआशरे को सुधारें और निकाह़ को आसान करें। दहेज, बारात, शान-ओ-शौकत और फिज़ूलखर्ची को छोड़कर अगर हम सादगी और सुन्नत को अपनाएँ तो हमारी शादियाँ हक़ीक़ी तौर पर इबादत बनेंगी और समाज में मोहब्बत, रहमत और इत्तेहाद (एकता) पैदा होगा।

याद रखिए
आसान निकाह़ (Aasan Nikaah) रहमत है और मुश्किल निकाह़ (Mushkil Shadi) फितना है।
हमें वही तरीका अपनाना चाहिए जो हमारे प्यारे नबी ﷺ ने बताया—सादगी, बरकत और सुन्नत।
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FAQs :अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1. Que: सुन्नत की शादी कैसे होती है?
Ans: सुन्नत की शादी बगैर बैंड बाजा और बारात के सादगी के साथ सुन्नत तरीक़ा से मस्जिद में होती है

2. Que: मेहर क्या है?
Ans: मर्द निकाह़ के वक्त जो माल, रकम या कोई फायदेमन्द चीज़ औ़रत को दे वह “मेहर” कहलाता है!
मेहर लड़की का हक़ है जिसे लड़की खुद तय करे या फिर वो बाप भाई में से जिसे जिम्मेदारी दे वो तय करे, जहां तक हो सके मेहर को नकद तै करे!

3. Que:क्या हम माता-पिता के बिना निकाह कर सकते हैं?

Ans: नही ! हम माता पिता के बिना निकाह नहीं कर सकते हैं. निकाह के वक्त किसी ख़ास अपनों का होना जरूरी है! नबी (ﷺ) ने फरमाया- “जिस किसी औरत ने अपने “वली” की इजाजत के बिना निकाह किया” उसका निकाह बातिल है। 

4. Que: बदतरीन वलीमा कौनसा है ?
Ans: जिस वलीमा में आम आदमियों को न बुलाकर सिर्फ ख़ास लोगों को दावत दी जाये तो वह बदतरीन वलीमा है। (मुस्लिम-2603)
5. 5️⃣ सिंपल निकाह कैसे करें?
Ans: जवाब: सिंपल निकाह सादगी से किया जाने वाला निकाह है जिसमें न दहेज़ हो, न दिखावा, न बारात। कदम: मेहर तय करें। दोनों पक्षों की सहमति लें। दो गवाह बुलाएँ। मस्जिद में निकाह अदा करें। “क़ुबूल है” कहकर निकाह पूरा करें। सादा वलीमा करें — बिना फिज़ूलखर्ची।


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