Jab Nabi ﷺ Allah se shikayat Karenge(Hindi/Urdu)

"Us waqt kya hoga hamara ,jab Nabi ﷺ khud Allah se hamari shikayat karenge ke Ay mere Rab! mere jane ke baad meri Qoum ne Quran ko chhod diya tha ۔"

Jab Nabi ﷺ Allah se shikayat  Karenge

✍️ लेखक: Mohib Tahiri | 🕋 islamic article|उम्मत की इसलाह|दीन से दूरी का अंजाम 🕰 अपडेटेड:1 Nov 2025

आपने कभी ग़ौर ओ फ़िक्र किया है कि उस वक्त क्या होगा हमारा, क़यामत का दिन होगा और सभी हिसाब ओ किताब के लिए खड़े होंगे और Jab Nabi ﷺ Allah se shikayat Karenge ? क्या जवाब देंगें हम। किस क़दर शर्मिंदगी की बात होगी उस वक्त हमारे लिए। 
Deen se doori ke nateeje
Nabi ﷺ ki Shikayat 

रसूलुल्लाह ﷺ की ज़िंदगी का हर लम्हा उम्मत के लिए रहमत और रहनुमाई से भरा हुआ था। आपने अपनी उम्मत के लिए रातों को जागकर दुआएं कीं, आँखों में आंसू बहाए, और हर मुश्किल पर उम्मत के हक़ में रहमत मांगी। लेकिन अफ़सोस! क़ुरआन मजीद हमें बताता है कि क़यामत के दिन रसूलुल्लाह ﷺ अल्लाह से शिकायत करेंगे — शिकायत अपनी उम्मत की, जिन्होंने कुरान को छोड़ दिया, दीन में नयी-नयी चीज़ें ईजाद कीं, इमामों और मशायख़ को अल्लाह और उसके रसूल से ज़्यादा अहमियत दी, और शिर्क-बिदअत के दलदल में डूब गए।

क़ुरआन और हदीस हमें बार-बार यह बताते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ की सबसे बड़ी फ़िक्र अपनी उम्मत थी। आपने अपने लिए कभी अल्लाह से शिकायत नहीं की, बल्कि जब भी शिकायत की तो उम्मत की ग़फ़लत और उनकी बे-रुख़ी की। क़ुरआन मजीद की एक आयत में यह तसवीर बयान की गई है कि रसूलुल्लाह ﷺ अल्लाह से शिकायत करेंगे कि मेरी उम्मत ने कुरान को छोड़ दिया था। यह शिकायत दरअसल उम्मत के लिए एक बड़ी चेतावनी है।

📖 कुरान की गवाही

उम्मत का क़ुरआन छोड़ देना

وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَٰذَا الْقُرْآنَ مَهْجُورًا
और रसूल (ﷺ) कहेंगे: ऐ मेरे रब! मेरी क़ौम ने इस कुरान को छोड़ दिया।”सूरह अल-फ़ुरक़ान (25:30)

 📖 तफ़सीर

मुफ़स्सिरीन ने लिखा है कि "कुरान को छोड़ देने" के कई मायने हो सकते हैं:
  • कुरान को बिल्कुल न पढ़ना।
  • कुरान पढ़ना मगर समझने की कोशिश न करना।
  • कुरान को समझकर भी अमल न करना।
  • कुरान के बजाय दूसरी किताबों और फ़लसफ़ों को अहमियत देना।

 यानी सिर्फ तिलावत ही नहीं बल्कि ज़िंदगी को कुरान के मुताबिक़ ढालना असली मक़सद है।

आज हम मुसलमान कुरान को सिर्फ़ तावीज़, सजावट, और मौत के मौकों तक सीमित कर चुके हैं। न समझने की कोशिश, न अमल की फ़िक्र। यही हालत देखकर रसूलुल्लाह ﷺ शिकायत करेंगे।
और आज नज़र आ रहा है लोग क़ुरान और हदीस को छोड़ कर झूठे किस्से कहानियों को अपना दीन बना लिया है

अहले किताब का तजकिरा

فَنَبَذُوهُ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ
“तो उन्होंने उसे अपनी पीठ पीछे डाल दिया।”सूरह आल-ए-इमरान (3:187)
यहां अहले किताब (यहूद-ओ-नसारा) का ज़िक्र है कि उन्होंने अल्लाह की किताब को नज़रअंदाज़ किया। अफ़सोस, यही हालात आज मुसलमानों में भी नज़र आने लगे हैं।


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📌 क़ुरआन छोड़ने का अंजाम

1. गुमराह होना

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"कुरआन अल्लाह की मज़बूत रस्सी है, जो इससे चिपक गया वह हिदायत पा गया, और जिसने इसे छोड़ दिया वह गुमराह हो गया।"
— (मुस्नद अहमद, तबरानी)

यह हदीस साफ़ बता रही है कि कुरान को छोड़ने का मतलब है गुमराही को चुन लेना। 

2.  इमामों और रहबरों की अंधी पैरवी

कुरान का बयान
اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّهِ
“उन्होंने अपने आलिमों और रहबरों को अल्लाह के सिवा अपना रब बना लिया।”(सूरह तौबा 9:31)

जब इंसान क़ुरआन छोड़ेगा तो अपने आलिमों , इमामों और रहबरों को रब बनाएगा। आज बहुत से लोग कुरान और सुन्नत छोड़कर अपने मज़हबी रहबर, इमाम या पीर की हर बात को मानते हैं, चाहे वह अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की हिदायत के खिलाफ़ ही क्यों न हो। और यही रब बनाना है। यही वजह है कि उम्मत टुकड़ों में बंट गई है। 

3. दीन में शिर्क, बिदअत और खुराफ़ात

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
मेरी उम्मत में भी वही कुछ होगा जो बनी इस्राईल में हुआ था, यहाँ तक कि अगर वे छिपकली के बिल में घुसे तो मेरी उम्मत भी उसमें घुसेगी।”
— (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)

आज हम देखते हैं: 

क़ब्रों और मज़ारों से मदद माँगना।
पीरों और बुज़ुर्गों को अल्लाह का दर्जा देना।
दीन में नए-नए त्योहार और रस्में ईजाद करना।
कुरान और सुन्नत की जगह ताजुर्बों और खुराफ़ात पर यक़ीन करना।

जब इंसान क़ुरआन छोड़ेगा तो वो सही दीन से दूर होगा और ऐसे में गुमराही वाले रास्ते को ही अपनाएगा।
ये तमाम चीज़ें उस शिकायत की वजह हैं जो नबी ﷺ क़यामत के दिन करेंगे।



आज का दौर और हमारी हालत

  • आज मुसलमान कुरान को सिर्फ मौत के मौके पर पढ़ते हैं।
  • बहुत से लोग कुरान को सजावट और तावीज़ तक सीमित कर चुके हैं।
  • न स्कूलों और कॉलेजों में कुरान का इल्म है, न हमारे घरों में कुरान की तालीम।कुरान को छोड़कर हम दुनियावी नज़्मो-नस्क़ और अफसानों के पीछे भाग रहे हैं।
  • इमामों, मशायख़ों और फिरकों की अंधी पैरवी हमें तोड़ रही है।
  • शिर्क और बिदअत की काली परछाइयाँ हमें असल तौहीद से दूर कर चुकी हैं।

यही हालात देखकर रसूलुल्लाह ﷺ की शिकायत हमें हिला देने के लिए काफी हैं। क्या हमने कभी सोचा कि अगर रसूलुल्लाह ﷺ अल्लाह से हमारी शिकायत करें, तो हम उनका क्या जवाब देंगे? 

🌙 पैग़ाम और सबक़

  • कुरान को सिर्फ तिलावत की किताब न समझें।
  • रोज़ाना कुरान पढ़ने और समझने की आदत डालें।
  • बच्चों को कुरान की तालीम दें।
  • अपनी ज़िंदगी को कुरान के मुताबिक़ ढालें।हमें कुरान के साथ सच्चा रिश्ता बनाना होगा।
  • हर मसले में कुरान और सुन्नत को अंतिम हुक्म मानना होगा।
  • शिर्क, बिदअत और खुराफ़ात से तौबा करनी होगी।
  • अपनी और अपने घर वालों की तालीम और तरबियत को कुरान-सुन्नत की बुनियाद पर खड़ा करना होगा।


 नतीजा (Conclusion)

रसूलुल्लाह ﷺ की शिकायत दरअसल हमारे लिए एक चेतावनी है। यह शिकायत हमें आगाह करती है कि अगर हमने कुरान और सुन्नत से मुंह मोड़ा, तो क़यामत के दिन हमारी तरफ़ से कोई सफ़ाई क़बूल नहीं होगी। इसीलिए आज हमें तौबा करनी चाहिए, और अपने दीन को कुरान और सुन्नत की रोशनी में अपनाना चाहिए।

रसूलुल्लाह ﷺ की शिकायत यह नहीं कि उन्होंने उम्मत को कुरान नहीं दिया, बल्कि यह है कि उम्मत ने कुरान को छोड़ दिया। अगर आज भी हम कुरान से रिश्ता मज़बूत नहीं करेंगे तो यह शिकायत क़यामत के दिन हमारे ख़िलाफ़ गवाही बन जाएगी। आइए हम सब आज ही इरादा करें कि कुरान को पढ़ेंगे, समझेंगे और अपनी ज़िंदगी में उतारेंगे।


 FAQs

Q1. रसूलुल्लाह ﷺ किस बात की शिकायत करेंगे?
👉 उम्मत के कुरान छोड़ देने, शिर्क-बिदअत और रहबरों की अंधी पैरवी करने की।

Q2. क्या सिर्फ तिलावत काफी है?
👉 नहीं, तिलावत के साथ समझना और अमल करना असल मक़सद है।

Q3. शिर्क और बिदअत से कैसे बचा जाए?
👉 कुरान और सहीह हदीस को कस कर पकड़ें और उलमा-ए-हक़ की रहनुमाई लें।

Q4. क्या मज़ारों पर दुआ करना जायज़ है?
👉 नहीं, दुआ सिर्फ़ अल्लाह से करनी चाहिए, मज़ारों और बुज़ुर्गों से मदद माँगना शिर्क है।

Q5. उम्मत को बचाने का तरीका क्या है?
👉 कुरान और सुन्नत को असल हुक्म मानकर, बग़ैर फिरक़ा-पैरवी के अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लेना।

Q6. कुरान को छोड़ना किसे कहते हैं?
👉 सिर्फ़ न पढ़ना ही नहीं, बल्कि समझे बग़ैर पढ़ना और अमल न करना भी "कुरान छोड़ना" कहलाता है।

Q7. क्या सिर्फ तिलावत काफी है?
👉 तिलावत का सवाब है, लेकिन असली मक़सद है कुरान की हिदायत पर अमल करना।

Q8. रसूलुल्लाह ﷺ की शिकायत किस बारे में होगी?
👉 शिकायत यह होगी कि उनकी उम्मत ने कुरान को छोड़ दिया था।

Q9. कुरान छोड़ने की सज़ा क्या है?

👉 गुमराही, दुनिया की ज़िल्लत और आखिरत का अज़ाब।

Q10. आज हम इस शिकायत से कैसे बच सकते हैं?
👉 कुरान से दोस्ती करें, उसे समझें और ज़िंदगी में लागू करें।


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📖 Qur'an ko chhod dena – Nabi ﷺ ki shikayat ka sabab ban sakta hai! | ⚡ Shirk aur bid'at se bacho, ye deen ko kamzor karte hain! | 🌙 Waqt hai ke hum Qur'an aur Sunnat ki taraf palat aayein! | 💔 Rasulullah ﷺ apni ummat ki be-rukhi par shikayat karenge! | 🤲 Apni zindagi ko Qur'an ke mutabiq badlo – yehi najat ka raasta hai!


جب نبی ﷺ اللہ سے شکایت کریں گے

آپ نے کبھی غور و فکر کیا ہے کہ اُس وقت کیا ہوگا ہمارا ،قیامت کا دن ہوگا اور سبھی حساب و کتاب کے لئے کھڑے ہونگے اور Jab Nabi s.a Allah se shikayat Karenge تو کیا جواب دینگے ہم؟
Quran aur sunnat ki ahmiyat
Deen se doori Gumrahi hai 

رسول اللہ ﷺ کی پوری زندگی اُمت کے لئے رحمت اور رہنمائی سے بھری ہوئی تھی۔ آپ ﷺ نے اپنی اُمت کے لئے راتوں کو جاگ کر دعائیں کیں، آنکھوں میں آنسو بہائے اور ہمیشہ ان کے حق میں اللہ سے رحمت طلب کی۔ لیکن قرآن ہمیں خبر دیتا ہے کہ قیامت کے دن رسول اللہ ﷺ اپنی اُمت کی شکایت اللہ سے کریں گے — شکایت اس بات کی کہ اُنہوں نے قرآن کو چھوڑ دیا، دین میں شرک و بدعت داخل کیں، اماموں اور مشائخ کی اندھی تقلید اختیار کی اور خرافات میں پڑ گئے۔

📖 اُمت کا قرآن چھوڑ دینا

قرآن کا بیان
وَقَالَ الرَّسُولُ يَا رَبِّ إِنَّ قَوْمِي اتَّخَذُوا هَٰذَا الْقُرْآنَ مَهْجُورًا
“اور رسول (ﷺ) کہیں گے: اے میرے رب! بے شک میری قوم نے اس قرآن کو چھوڑ دیا تھا۔”(سورۃ الفرقان 25:30)

 آج اُمتِ مسلمہ قرآن کو صرف تعویذ، سجاوٹ یا موت کے موقع پر تلاوت کے لئے استعمال کرتی ہے۔ نہ سمجھنے کی کوشش ہے، نہ عمل کی فکر۔ یہی حالت دیکھ کر نبی ﷺ شکایت کریں گے۔

📖 تفسیر

مفسرین نے لکھا ہے کہ "قرآن کو چھوڑ دینے" کے کئی معنی ہوسکتے ہیں:

قرآن کو بالکل نہ پڑھنا۔
قرآن پڑھنا مگر سمجھنے کی کوشش نہ کرنا۔
قرآن کو سمجھ کر بھی اس پر عمل نہ کرنا۔
قرآن کے بجائے دوسری کتابوں اور فلسفوں کو اہمیت دینا۔
یعنی صرف تلاوت ہی نہیں بلکہ زندگی کو قرآن کے مطابق ڈھالنا اصل مقصد ہے۔

 آج ہم مسلمان قرآن کو صرف تعویذ، سجاوٹ، اور موت کے مواقع تک محدود کرچکے ہیں۔ نہ سمجھنے کی کوشش ہے اور نہ عمل کی فکر۔ یہی حالت دیکھ کر رسول اللہ ﷺ شکایت کریں گے۔ اور آج یہ صاف نظر آرہا ہے کہ لوگ قرآن و حدیث کو چھوڑ کر جھوٹے قصے کہانیوں کو اپنا دین بنا چکے ہیں۔شِرک و بدعت کی دلدل میں دھنس چکے ہیں۔ یہ قرآن چھوڑنے کہ ہی انجام ہے۔ 

اہلِ کتاب کا تذکرہ

فَنَبَذُوهُ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ
“تو انہوں نے اسے اپنی پیٹھ کے پیچھے ڈال دیا۔”
(سورۃ آلِ عمران 3:187)

یہاں اہلِ کتاب (یہود و نصاریٰ) کا ذکر ہے کہ انہوں نے اللہ کی کتاب کو نظر انداز کیا۔ افسوس، یہی حالات آج مسلمانوں میں بھی دکھائی دینے لگے ہیں۔

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📌 قرآن چھوڑنے کا انجام

1. گمراہ ہونا

رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
"قرآن اللہ کی مضبوط رسی ہے، جو اس سے وابستہ ہوگیا وہ ہدایت پاگیا، اور جس نے اسے چھوڑ دیا وہ گمراہ ہوگیا۔"(مسند احمد، طبرانی)

یہ حدیث صاف بتا رہی ہے کہ قرآن کو چھوڑنے کا مطلب ہے گمراہی کو اختیار کرنا۔اور آج اُمّت کی اکثریت گمراہی کے راستے پر چل پڑی ہے

2. اماموں اور رہبروں کی اندھی تقلید

✦ قرآن کا بیان

اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّهِ

“انہوں نے اپنے علماء اور رہبروں کو اللہ کے سوا رب بنا لیا تھا۔”
(سورۃ التوبہ 9:31)

جب انسان قرآن چھوڑ دیتا ہے تو اپنے علماء، اماموں اور رہبروں کو رب بنا لیتا ہے۔ آج بہت سے لوگ قرآن و سنت چھوڑ کر اپنے مذہبی رہبر، امام یا پیر کی ہر بات مانتے ہیں، چاہے وہ اللہ اور اس کے رسول ﷺ کی ہدایت کے خلاف ہی کیوں نہ ہو۔ یہی رب بنانا ہے۔ یہی وجہ ہے کہ اُمت ٹکڑوں میں بٹ گئی ہے۔

 آج بھی بہت سے لوگ قرآن و سنت کو چھوڑ کر اپنے مذہبی رہبروں یا اماموں کی ہر بات کو مانتے ہیں، چاہے وہ اللہ اور اس کے رسول ﷺ کی ہدایت کے خلاف ہی کیوں نہ ہو۔

3. دین میں شرک، بدعت اور خرافات

رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
“میری اُمت میں بھی وہی کچھ ہوگا جو بنی اسرائیل میں ہوا تھا، یہاں تک کہ اگر وہ چھپکلی کے بل میں گئے تو میری اُمت بھی ان کے پیچھے جائے گی۔”
— (صحیح بخاری، صحیح مسلم)

 آج ہم دیکھتے ہیں:

قبروں اور مزارات سے مدد مانگنا۔
پیروں اور بزرگوں کو اللہ کا درجہ دینا۔
دین میں نئے نئے تہوار اور رسومات ایجاد کرنا۔
قرآن و سنت کی جگہ خرافات اور اندھی تقلید پر یقین رکھنا۔

جب انسان قرآن چھوڑ دیتا ہے تو وہ سیدھے دین سے دور ہوکر گمراہی کے راستے پر چل پڑتا ہے۔ یہی وہ چیزیں ہیں جن کی وجہ سے نبی ﷺ قیامت کے دن شکایت کریں گے۔ یہ سب اس شکایت کی وجوہات ہیں جو نبی ﷺ قیامت کے دن کریں گے۔


Jis ne Qur'an chhod diya, usne rahmat se munh mod liya.Nabi ﷺ ke qadam par chalo, taake wo Qayamat ke din tum par raazi hon."

⚡ آج کا حال اور سوچنے کی بات 

بدعت کی سیاہ آندھیاں جو ہمیں اصل توحید سے دور کر رہی ہیں۔
  1. آج مسلمان قرآن کو صرف موت کے موقع پر پڑھتے ہیں۔
  2. بہت سے لوگ قرآن کو صرف سجاوٹ اور تعویذ تک محدود کرچکے ہیں۔
  3. نہ اسکولوں اور کالجوں میں قرآن کا علم ہے، نہ گھروں میں قرآن کی تعلیم۔
  4. قرآن کو چھوڑ کر ہم دنیاوی نظم و نسق اور افسانوں کے پیچھے بھاگ رہے ہیں۔
  5. اماموں، مشائخ اور فرقوں کی اندھی پیروی نے ہمیں توڑ دیا ہے۔
  6. شرک اور بدعت کی سیاہ پرچھائیاں ہمیں اصل توحید سے دور کر چکی ہیں۔
  7. قرآن چھوڑ کر دنیاوی فلسفوں اور کہانیوں کے پیچھے دوڑنا۔
  8. اماموں اور مشائخ کی اندھی تقلید۔
  9. شرک اور بدعت کی سیاہ آندھیاں جو ہمیں اصل توحید سے دور کر رہی ہیں۔

 یہی حالات دیکھ کر رسول اللہ ﷺ کی شکایت ہمیں ہلا دینے کے لیے کافی ہے۔ کیا ہم نے کبھی سوچا کہ اگر رسول اللہ ﷺ اللہ سے ہماری شکایت کریں تو ہم ان کو کیا جواب دیں گے؟

سوچنے کی بات یہ ہے کہ اگر نبی ﷺ قیامت کے دن ہماری شکایت اللہ کے سامنے کریں تو ہم ان کے سامنے کیا جواب دیں گے؟


🌙 پیغام اور سبق

ہمیں قرآن کے ساتھ سچا تعلق قائم کرنا ہوگا۔
ہر مسئلے میں قرآن و سنت کو آخری فیصلہ ماننا ہوگا۔
شرک، بدعت اور خرافات سے سچی توبہ کرنی ہوگی۔
اپنی اور اپنے گھر والوں کی تربیت قرآن و سنت کی بنیاد پر کرنی ہوگی۔

قرآن کو صرف تلاوت کی کتاب نہ سمجھیں۔
روزانہ قرآن پڑھنے اور سمجھنے کی عادت ڈالیں۔
بچوں کو قرآن کی تعلیم دیں۔
اپنی زندگی کو قرآن کے مطابق ڈھالیں۔
ہر مسئلے میں قرآن و سنت کو آخری حکم مانیں۔
شرک، بدعت اور خرافات سے توبہ کریں۔
اپنی اور اپنے گھر والوں کی تعلیم و تربیت کو قرآن و سنت کی بنیاد پر قائم کریں۔


 نتیجہ (Conclusion):

نبی ﷺ کی شکایت دراصل ہمارے لئے ایک بڑی تنبیہ ہے۔ یہ شکایت ہمیں خبردار کرتی ہے کہ اگر ہم نے قرآن و سنت سے منہ موڑا تو قیامت کے دن ہمارے پاس کوئی عذر قبول نہیں ہوگا۔ اس لئے آج ہی ہمیں توبہ کرنی چاہیے اور اپنے دین کو قرآن و سنت کی روشنی میں اپنانا چاہیے۔

رسولُ اللہ ﷺ کی شکایت یہ نہیں کہ اُنہوں نے اُمّت کو قرآن نہیں دیا، بلکہ یہ ہے کہ اُمّت نے قرآن کو چھوڑ دیا۔ اگر آج بھی ہم قرآن سے اپنا رشتہ مضبوط نہیں کریں گے تو یہ شکایت قیامت کے دن ہمارے خلاف گواہی بن جائے گی۔ آئیے ہم سب آج ہی عہد کریں کہ قرآن کو پڑھیں گے، سمجھیں گے اور اپنی زندگی میں اس پر عمل کریں گے۔


 اکثر پوچھے جانے والے سوالات (FAQs):

سوال 1: نبی ﷺ کس بات کی شکایت کریں گے؟
👉 اُمت کے قرآن چھوڑ دینے، شرک و بدعت اختیار کرنے اور اماموں کی اندھی تقلید کرنے کی۔

سوال 2: کیا صرف تلاوت کافی ہے؟
👉 نہیں، تلاوت کے ساتھ سمجھنا اور عمل کرنا ہی اصل مقصد ہے۔

سوال 3: شرک اور بدعت سے کیسے بچا جائے؟
👉 قرآن اور صحیح احادیث کو مضبوطی سے تھام کر، علماءِ حق کی رہنمائی لینا ضروری ہے۔

سوال 4: کیا مزارات پر دعا کرنا جائز ہے؟
👉 نہیں، دعا صرف اللہ سے کرنی چاہیے۔ مزارات یا بزرگوں سے مدد مانگنا شرک ہے۔

سوال 5: اُمت کی اصلاح کا راستہ کیا ہے؟
👉 قرآن و سنت کو اصل فیصلہ ماننا اور فرقہ واریت سے بچ کر اللہ کی رسی کو مضبوطی سے تھام لینا۔


"Shirk aur bid'at se door rehna – ye gunahon ki jar hain.Qur'an aur Sunnat ko apna dastoor-e-zindagi banao.Woh din na aaye jab Nabi ﷺ humari shikayat karein!"

"آج کا دن اصلاح کا دن ہے، کل تو صرف حساب ہوگا۔"

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