Maut ek Atal Haqeeqat /मौत एक अटल हकीकत

मौत से भागना नामुमकिन है। अकलमंद वही है जो अपनी हर सांस को मौत की तैयारी में लगाए। दुनिया की ज़िंदगी चंद रोज़ा है, मगर आख़िरत की ज़िंदगी हमेशा की है।

Maut ek Atal Haqeeqat /मौत एक अटल हकीकत

Aakhirat ki taiyari
Maut ek Atal Haqeeqat


इन्सान इस फानी दुनिया में चाहे जितनी भी तरक्की कर ले, चाहे कितनी भी लम्बी उम्र पा ले, लेकिन मौत से बचना नामुमकिन है। Maut ek Atal Haqeeqat है, जिस पर हर मज़हब, हर तहज़ीब, हर दौर में तस्लीम किया गया है। मगर इस्लाम ने इसे जिस वाज़ेह और पुरअसर अंदाज़ में बयान किया है, वह बे-मिसाल है।
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    इंसानों की अक्सरियत मौत से बेखबर दुनियावी चाहत में डूबी हुई है और आख़िरत को भूल कर दुनिया की तैयारी में लगा हुआ है ,जिंदगी ऐसे जी रहा है जैसे उसे मारना ही नहीं है ! ये है हमारी हक़ीक़त,मरने के बाद ये हमारा खूबसूरत जिस्म कीड़ों मकुड़ों का खुराक हो जायेगा! फ़िर तुम किधर भटक रहे हो ? आखिरत की फिक्र और तैयारी करें!

    Qabar ke andar insan ki haisiyat 

    अब आइए क़ुरान और हदीस की रोशनी में पढ़ें की मौत से मुतल्लिक क्या कहा गया है और  हमारी औकात क्या है इस दुनिया में !

    हदीस-ए-नबवी (ﷺ) — दुनिया में मुसाफ़िर बनकर रहो


    > "इस दुनिया में ऐसे रहो जैसे कोई अजनबी या मुसाफ़िर।"(सहीह बुखारी: 6416)

    वज़ाहत:
    रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस हदीस के ज़रिये बताया कि दुनिया मुसाफिर ख़ाना है — असली ठिकाना आख़िरत है। एक समझदार मुसाफ़िर रास्ते में आराम करता है, मगर मक़सद मंज़िल होता है। इसी तरह हमें भी चाहिए कि हम दुनिया की चकाचौंध में खो कर अपनी आख़िरत को न भूलें।

    दुनिया की मिसाल तो बस ऐसी है जैसे कोई सवार सफर में किसी दरख़्त के साये तले कुछ देर आराम करे और फिर वहां से चल पड़े।"  

    हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु इस हदीस को सुनने के बाद फ़रमाते थे:

    > "जब शाम हो तो सुबह का इंतेज़ार मत करो, और जब सुबह हो तो शाम का। अपनी सेहत में बीमारी से पहले और अपनी ज़िंदगी में मौत से पहले कुछ नेक अमल कर लो।"

    यह हदीस इंसान को हर वक़्त मौत और आख़िरत की तैयारी की याद दिलाती है।

    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

    > "मेरा दुनिया से क्या लेना देना! मेरी और दुनिया की मिसाल तो बस ऐसी है जैसे कोई सवार सफर में किसी दरख़्त के साये तले कुछ देर आराम करे और फिर वहां से चल पड़े।"
    (मुसनद अहमद: 3701, तिर्मिज़ी: 2377)

    हदीस की तशरीह:

    इस हदीस में दुनिया की हकीकत को बहुत खूबसूरत और आसान मिसाल से समझाया गया है — कि ये दुनिया एक सफर है, और इसका साया (आराम) बहुत ही थोड़ी देर के लिए है। असली मंज़िल आख़िरत है, और अक़लमंद वो है जो इस चंद लम्हों को आख़िरत की तैयारी में लगाए।

    यह हदीस भी उसी सोच को मज़बूत करती है कि इंसान को इस फानी दुनिया से दिल नहीं लगाना चाहिए बल्कि इसे एक सफरगाह समझते हुए नेक आमाल करने चाहिए।


    अब आइए असल तहरीर की तरफ़ के मौत से किसी को छुटकारा नहीं कोई भी इसी बच नही सकता! अल्लाह का फ़रमान पढ़िए:



    क़ुरान में अल्लाह सुब्हान व तआला क्या फरमाता है:

    अल्लाह तआला फ़रमाता है:

    > ऐ नबी) आप से पहले किसी इन्सान को भी हमने हमेशगी नहीं दी  अगर आप फौत हो गये तो क्या वह हमेशा के लिए जिन्दा रहेंगे ? हर जानदार को मौत का मजा चखना ही हैं । "( कुरआन सुरह अम्बिया - आयत - 34 - 35 )

    इस आयत में साफ़ तौर पर अल्लाह ने ये हुक्म सुना दिया कि कोई भी इंसान, चाहे वो अमीर हो या ग़रीब, बादशाह हो या फ़कीर, मौत से बच नहीं सकता। 

    > "हर जान मौत का मज़ा चखने वाली है, फिर हमारी ही तरफ तुम लौटाए जाओगे।"

    इस आयत में दो बातें साफ़ हैं — मौत हक़ है और वापसी सिर्फ अल्लाह ही की तरफ है। सूरह अल-अन्कबूत: 57

    एक और मक़ाम पर अल्लाह फ़रमाते हैं:> "जहाँ कहीं भी तुम हो, मौत तुम्हें पा लेगी, चाहे तुम ऊँचे और मजबूत क़िलों में ही क्यों न हो।"(सूरह अन-निसा: 78)

    मौत एक ऐसी चीज है जो अपने तय वक्त पर ही आती है न एक लम्हा पहले और न एक लम्हा बाद । इसलिए कि " जब किसी का तय शुदा वक्त आ जाता है तो उसे अल्लाह हरगिज मोहलत नहीं देता । ( कुरआन सुरह मूनाफिकून - आयत - 11 )

    किसी इन्सान को न मौत का वक्त मालूम है और न उसे यह पता कि कहां आएगी ? अपनी मौत के मुकर्ररा वक्त पर जो जिस हालत में होगा और जहां होगा , उसे मौत वहां आ कर रहेगी क्योंकि " कोई ( भी ) नहीं जानता कि वह कल क्या कुछ करेगा ? न ही कोई यह जानता है कि वह किस जमीन पर मरेगा ।( कुरआन सुरह लुकमान - आयत - 34 )

    जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है। ये बात जो लोग समझ लेते हैं, वे गलत कामों से दूर रहते हैं। मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति अपने साथ कुछ चीज नहीं ले जा सकता है। इसीलिए हमें  दीन के अनुसार ही कर्म करना चाहिए।


    मौत से कोई भाग नहीं सकता

    Har jandar ko mout aani hai
    Maut ek Atal Haqeeqat


     कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो , वह तुम्हें पहुंच कर रहेगी । फिर तुम ( सब ) उस ज़ात की तरफ लौटाए जाओंगे जो हर छिपी और हर जाहिर चीज़ का जानने वाला है । वह तुम्हें तुम्हारे किये हुए सब कामों के बारे में बताएगा । "(कुरआन सुरह जुमआ - आयत - 8 )

    और यह कि  जो कुछ हमने तुम्हें दे रखा है उसमें से मौत के आने से पहले ( अल्लाह की राह में ) खर्च कर लो ( वरना जब मौत आ जाएगी तो अफसोस करते हुए ) कहेगा - ऐ मेरे रब ! मुझे थोड़ी देर के लिए मोहलत क्यों न दी कि मैं सदका कर लेता और नेक लोगों में से हो जाता ।
    (कुरआन सुरह मुनाफिकून - आयत - 10)

    यह बात हमारे घमंड को तोड़ने और अल्लाह की कुदरत को मानने की दावत देती है।

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    हदीसों में मौत का तज़करह 

    रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

    > "लज़्ज़तों को तोड़ने वाली चीज़ यानी मौत को अक्सर याद किया करो।"
    (सुनन तिर्मिज़ी: 2307)
    इस हदीस में मौत को याद करने की ताकीद की गई है ताकि इंसान दुनिया की फानी लज़्ज़तों में डूब कर अपनी आख़िरत को न भूल जाए।

    एक और हदीस में है:

    > "अक़लमंद वही है जो अपने नफ़्स का मुहासबा करे और मौत के बाद के लिए अमल करे।"
    (सुनन तिर्मिज़ी: 2459)



    उलमा के अकवाल

    इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं:

    > "मौत वह पुल है जो महबूब से मिलने का रास्ता है।"

    हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हु फ़रमाते हैं:

    > "दुनिया पीठ फेर कर जा रही है और आख़िरत आगे बढ़ रही है। तुम आख़िरत के बेटे बनो, न कि दुनिया के।"

    हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैहि:

    > "मैंने ऐसा कोई यकीनी अमल नहीं देखा जिसे लोग मौत की तरह भुला देते हों।"

    हज़रत इब्राहीम अद्धम:

    > "जिसने मौत को पहचान लिया, वो दुनिया से बेज़ार हो गया।"

    हसन अल बसरी और इमाम इब्ने अबी हातिम का कौल:

    > "मौत सबसे बड़ी नसीहत है, अगर कोई नसीहत हासिल करना चाहे।"

    > अल्लाह फ़रमाते हैं:

    "ऐ आदम की औलाद! तुझ पर हर दिन नया दिन आता है और वो तेरी उम्र को कम करता जाता है, मगर तू ग़ाफिल है।" 




    मौत की याद क्यों ज़रूरी है?

    मौत की याद इंसान को तकब्बुर से बचाती है।
    मौत की याद दिल को नरम करती है।
    मौत की याद दुनिया के धोखे से महफूज़ रखती है।
    मौत की याद इंसान को नेक आमाल करने पर उभारती है।

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    मौत से तैयारी कैसे करें?

    1. नमाज़ की पाबंदी करें।

    2. तौबा और इस्तिग़फ़ार में मशग़ूल रहें।

    3. हलाल रिज़्क़ कमाएं और खाएं।

    4. लोगों के साथ हुस्ने सुलूक करें।

    5. अल्लाह की याद में वक़्त बिताएं।



    नसीहत आमेज बातें जो दिल को जगा दें

    1. जो आज दूसरों का जनाज़ा पढ़ रहे हो, कल तुम्हारा जनाज़ा भी उठेगा।

    2. कब्र तुम्हारा आखिरी घर है — वहाँ रौशनी तुम्हारे आमाल से होगी।

    3. कभी ग़ुरूर मत करना अपनी जवानी, सेहत, दौलत या इल्म पर — मौत इन्हें एक पल में छीन लेती है।

    4. दुनिया की लज़्ज़तें चंद रोज़ की हैं, मगर आख़िरत हमेशा की।

    5. मौत हर रोज़ दरवाज़े पर दस्तक देती है — बस हमें सुनाई नहीं देती।


    मौत के बाद इंसान की आरजुएं:

    क़ुरान-ए-पाक में अल्लाह तआला ने मौत के बाद इंसानों की कुछ आरज़ूओं (इच्छाओं) का ज़िक्र किया है जो वह क़ब्र या आख़िरत में करेंगे। ये आरज़ूएँ इस बात की तरफ़ इशारा करती हैं कि दुनिया की ज़िंदगी की नेमतों और हिदायतों की क़द्र इंसान को मौत के बाद होती है, लेकिन उस वक़्त बहुत देर हो चुकी होती है।

    यहाँ क़ुरान से मौत के बाद इंसान की आरज़ूओं का ज़िक्र पेश है:


    1. वापसी की दुआ ताकि नेक अमल कर सकें

    आरज़ू: "हमें लौटा दिया जाए ताकि हम अच्छे काम करें।"
    📖 क़ुरान:

    “ऐ मेरे रब! मुझे वापस लौटा दे, ताकि मैं अच्छे अमल कर सकूं जो मैंने छोड़े थे।”
    (Surah Al-Mu’minun 23:99-100)


    2. एक दिन की मोहलत की इल्तिजा

    आरज़ू: "हमें थोड़ी देर की मोहलत दे दो।"
    📖 क़ुरान:

    “ऐ ईमानवालों! जो कुछ हमने तुम्हें दिया है उसमें से खर्च करो, इससे पहले कि मौत तुम में से किसी को आ जाए और वह कहे: ‘ऐ मेरे रब! क्यों न तूने मुझे थोड़ी मोहलत दी होती, तो मैं सदक़ा देता और नेक लोगों में से हो जाता।’”
    (Surah Al-Munafiqun 63:10)


    3. काश! मैंने अपनी आख़िरत के लिए कुछ किया होता

    📖 क़ुरान:

    “वह कहेगा: 'हाय! काश मैंने अपनी ज़िंदगी (आख़िरत) के लिए कुछ भेजा होता।’”
    (Surah Al-Fajr 89:24)


    4. काश! मैं मिट्टी होता

    📖 क़ुरान:

    “और काफिर कहेगा: 'काश! मैं मिट्टी होता।’”
    (Surah An-Naba 78:40)


    5. काश! मैंने फलाँ को दोस्त न बनाया होता

    📖 क़ुरान:

    “हाय अफ़सोस! काश मैंने फलाँ को दोस्त न बनाया होता। उस ने तो ज़िक्र (क़ुरआन) आने के बाद मुझे उससे गुमराह कर दिया।”
    (Surah Al-Furqan 25:28-29)


    6. काश! मैंने रसूल की राह अपनाई होती

    📖 क़ुरान:

    “और वह कहेगा: 'हाय अफ़सोस! काश मैंने रसूल की राह अपनाई होती।’”
    (Surah Al-Furqan 25:27)


    7. जहन्नुम में दाख़िल होने पर फ़रियाद

    📖 क़ुरान:

    “वे कहेंगे: 'ऐ हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे, अगर फिर वही करें तो हम ज़ालिम होंगे।’”
    (Surah Al-Mu’minun 23:107)


    8. काश! हम सुनते या समझते

    📖 क़ुरान:

    “और वे कहेंगे: 'अगर हम सुनते या समझते होते तो आज जहन्नुमी न होते।’”
    (Surah Al-Mulk 67:10)


    9. काफ़िर कहेगा: ऐ काश मैं मुसलमान होता

    📖 क़ुरान:

    “(वह) कहेगा: 'हाय अफ़सोस! काश मैं मुसलमान होता।’”
    (Surah Al-Hijr 15:2)


    📌 नसीहत:

    इन तमाम आरज़ूओं से यह साफ़ होता है कि आख़िरत में सिर्फ़ हसरत और पछतावा बाक़ी रहेगा, और दुनिया की ज़िंदगी ही वह मौका है जिसमें इंसान कुछ कर सकता है।

    📖 क़ुरान:
    “और तुम्हारे रब की तरफ़ लौट चलो और उसके आगे झुक जाओ, इससे पहले कि तुम पर अज़ाब आ जाए।”
    (Surah Az-Zumar 39:54)



    आखिर में एक  दुआ जिसे हमें हमेशा करनी चाहिए 

    اللَّهُمَّ اغْفِرْ لَنَا قَبْلَ الْمَوْتِ وَارْحَمْنَا عِنْدَ الْمَوْتِ وَلَا تُعَذِّبْنَا بَعْدَ الْمَوْتِ وَلَا تُحَاسِبْنَا يَوْمَ الْقِيمَةِ إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ.

    Allahumma ighfir lana qablal mawti, warhamna 'indal mawt, wa la tu'azzibna ba'dal mawt, wa la tuhasibna yaumal qiyamah, innaka 'ala kulli shay'in qadeer.

    "ऐ अल्लाह! मौत से पहले हमें माफ़ कर दे, मौत के समय हम पर रहमत कर, और मौत के बाद हमें अज़ाब न देना, और क़यामत के दिन हमारा हिसाब न लेना। बेशक तू हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत रखता है।"


    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*
    "ऐ अल्लाह! हमें मौत की तैयारी करने वाला बना,
    मौत को हमारे लिए राहत और रहमत बना,
    कब्र को जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ बना,
    और हमें तेरा नेक बन्दों में शामिल कर दे। आमीन या रब्बुल आलमीन🤲
    "इस्लामी अकीदे के मुताबिक, मौत के बाद इंसान बरज़ख़ की ज़िंदगी में दाख़िल होता है जहाँ उसे अपनी दुनिया की ज़िंदगी के बारे में अहसास और किए गए अमाल का नतीजा दिखाया जाता है।



    Conclusion:

    यह दुनिया महज़ एक धोखा है। एक दिन सबको मौत का स्वाद चखना है — चाहे वह अमीर हो या गरीब, सभी को एक दिन मिट्टी में मिल जाना है। इसलिए, अल्लाह तआला से अपने गुनाहों की माफ़ी माँगनी चाहिए।
    Maut ek Atal Haqeeqat है इस लिए नमाज़ क़ायम करो, क़ुरआन मजीद की तिलावत किया करो। इंसान की असली ज़िंदगी मौत के बाद शुरू होती है। हर वक़्त क़ब्र के अज़ाब से बचने की दुआ करते रहो, क्योंकि क़ब्र का अज़ाब बहुत सख़्त है।

    Maut ek Atal Haqeeqat इस लिए मौत से भागना नामुमकिन है। अकलमंद वही है जो अपनी हर सांस को मौत की तैयारी में लगाए। दुनिया की ज़िंदगी चंद रोज़ा है, मगर आख़िरत की ज़िंदगी हमेशा की है। आईये हम सब अपने आमाल को दुरुस्त करें और उस दिन की तैयारी करें जब कोई किसी के काम नहीं आएगा, सिवाए अपने नेक आमाल के।
    अल्लाह तआला हम सबको नेक आमाल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। (आमीन)



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    FAQs :अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

    1.मौत इस्लाम में क्यों अहम है?
    इस्लाम में मौत को आख़िरत की तैयारी की दावत समझा जाता है। क्योंकि मौत के बाद ही इंसान की असल जिंदगी की शुरुवात है! मौत इन्सान को नेक आमाल की तरफ़ उभारती है और दुनिया की फानी हकीकत याद दिलाती है।
    2. क्या मौत का वक्त तय है?
    जी हां, क़ुरान और हदीस के मुताबिक हर शख्स की मौत का वक्त अल्लाह के पास पहले से ही तय है — ना एक लम्हा आगे, ना पीछे।
    3. जनाज़े की नमाज़ का मक़सद क्या है?
    जनाज़े की नमाज़ मरहूम के लिए दुआ, मग़फ़िरत और रहमत की इल्तिजा होती है। ये उम्मत का हक़ भी है।
    4. क्या मौत की याद ज़िंदगी को नकारात्मक बनाती है?
    नहीं। मौत की याद इंसान को ज़्यादा जिम्मेदार, मुतवाज़िन और नेक बनने की तरगीब देती है।
    5. क्या मौत के बाद इंसान को अहसास होता है?
    इस्लामी अकीदे के मुताबिक, मौत के बाद इंसान बरज़ख़ की ज़िंदगी में दाख़िल होता है जहाँ उसे अपनी दुनिया की ज़िंदगी के बारे में अहसास और किए गए अमाल का नतीजा दिखाया जाता है।
    6. मौत से डरना चाहिए या तैयारी करनी चाहिए?
    डर के बजाए मौत को याद करके अपने आमाल की इस्लाह करनी चाहिए। सच्चे मोमिन के लिए मौत रहमत होती है।
    7. क्या मरने के बाद इंसान की रूह दुनियां में वापस आती है?
    नहीं ! मरने के बाद इंसान की रूह दुनियां में वापस नहीं आती है, यह अल्लाह के कलाम और कानून के खिलाफ है क्योंकि क़ुरआन में अल्लाह तआला का फ़रमान है कि जो इस दुनिया से चला गया वो वापस नहीं आ सकता!

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