Maut ek Atal Haqeeqat /मौत एक अटल हकीकत
इन्सान इस फानी दुनिया में चाहे जितनी भी तरक्की कर ले, चाहे कितनी भी लम्बी उम्र पा ले, लेकिन मौत से बचना नामुमकिन है। Maut ek Atal Haqeeqat है, जिस पर हर मज़हब, हर तहज़ीब, हर दौर में तस्लीम किया गया है। मगर इस्लाम ने इसे जिस वाज़ेह और पुरअसर अंदाज़ में बयान किया है, वह बे-मिसाल है।
हदीस-ए-नबवी (ﷺ) — दुनिया में मुसाफ़िर बनकर रहो
> "इस दुनिया में ऐसे रहो जैसे कोई अजनबी या मुसाफ़िर।"(सहीह बुखारी: 6416)वज़ाहत:रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस हदीस के ज़रिये बताया कि दुनिया मुसाफिर ख़ाना है — असली ठिकाना आख़िरत है। एक समझदार मुसाफ़िर रास्ते में आराम करता है, मगर मक़सद मंज़िल होता है। इसी तरह हमें भी चाहिए कि हम दुनिया की चकाचौंध में खो कर अपनी आख़िरत को न भूलें।
> "जब शाम हो तो सुबह का इंतेज़ार मत करो, और जब सुबह हो तो शाम का। अपनी सेहत में बीमारी से पहले और अपनी ज़िंदगी में मौत से पहले कुछ नेक अमल कर लो।"यह हदीस इंसान को हर वक़्त मौत और आख़िरत की तैयारी की याद दिलाती है।
> "मेरा दुनिया से क्या लेना देना! मेरी और दुनिया की मिसाल तो बस ऐसी है जैसे कोई सवार सफर में किसी दरख़्त के साये तले कुछ देर आराम करे और फिर वहां से चल पड़े।"(मुसनद अहमद: 3701, तिर्मिज़ी: 2377)
इस हदीस में दुनिया की हकीकत को बहुत खूबसूरत और आसान मिसाल से समझाया गया है — कि ये दुनिया एक सफर है, और इसका साया (आराम) बहुत ही थोड़ी देर के लिए है। असली मंज़िल आख़िरत है, और अक़लमंद वो है जो इस चंद लम्हों को आख़िरत की तैयारी में लगाए।
क़ुरान में अल्लाह सुब्हान व तआला क्या फरमाता है:
अल्लाह तआला फ़रमाता है:> ऐ नबी) आप से पहले किसी इन्सान को भी हमने हमेशगी नहीं दी अगर आप फौत हो गये तो क्या वह हमेशा के लिए जिन्दा रहेंगे ? हर जानदार को मौत का मजा चखना ही हैं । "( कुरआन सुरह अम्बिया - आयत - 34 - 35 )
इस आयत में साफ़ तौर पर अल्लाह ने ये हुक्म सुना दिया कि कोई भी इंसान, चाहे वो अमीर हो या ग़रीब, बादशाह हो या फ़कीर, मौत से बच नहीं सकता।
> "हर जान मौत का मज़ा चखने वाली है, फिर हमारी ही तरफ तुम लौटाए जाओगे।"
इस आयत में दो बातें साफ़ हैं — मौत हक़ है और वापसी सिर्फ अल्लाह ही की तरफ है। सूरह अल-अन्कबूत: 57
एक और मक़ाम पर अल्लाह फ़रमाते हैं:> "जहाँ कहीं भी तुम हो, मौत तुम्हें पा लेगी, चाहे तुम ऊँचे और मजबूत क़िलों में ही क्यों न हो।"(सूरह अन-निसा: 78)
मौत एक ऐसी चीज है जो अपने तय वक्त पर ही आती है न एक लम्हा पहले और न एक लम्हा बाद । इसलिए कि " जब किसी का तय शुदा वक्त आ जाता है तो उसे अल्लाह हरगिज मोहलत नहीं देता । ( कुरआन सुरह मूनाफिकून - आयत - 11 )
किसी इन्सान को न मौत का वक्त मालूम है और न उसे यह पता कि कहां आएगी ? अपनी मौत के मुकर्ररा वक्त पर जो जिस हालत में होगा और जहां होगा , उसे मौत वहां आ कर रहेगी क्योंकि " कोई ( भी ) नहीं जानता कि वह कल क्या कुछ करेगा ? न ही कोई यह जानता है कि वह किस जमीन पर मरेगा ।( कुरआन सुरह लुकमान - आयत - 34 )
मौत से कोई भाग नहीं सकता
कह दीजिए कि जिस मौत से तुम भाग रहे हो , वह तुम्हें पहुंच कर रहेगी । फिर तुम ( सब ) उस ज़ात की तरफ लौटाए जाओंगे जो हर छिपी और हर जाहिर चीज़ का जानने वाला है । वह तुम्हें तुम्हारे किये हुए सब कामों के बारे में बताएगा । "(कुरआन सुरह जुमआ - आयत - 8 )और यह कि जो कुछ हमने तुम्हें दे रखा है उसमें से मौत के आने से पहले ( अल्लाह की राह में ) खर्च कर लो ( वरना जब मौत आ जाएगी तो अफसोस करते हुए ) कहेगा - ऐ मेरे रब ! मुझे थोड़ी देर के लिए मोहलत क्यों न दी कि मैं सदका कर लेता और नेक लोगों में से हो जाता ।(कुरआन सुरह मुनाफिकून - आयत - 10)
यह बात हमारे घमंड को तोड़ने और अल्लाह की कुदरत को मानने की दावत देती है।
हदीसों में मौत का तज़करह
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया:> "लज़्ज़तों को तोड़ने वाली चीज़ यानी मौत को अक्सर याद किया करो।"इस हदीस में मौत को याद करने की ताकीद की गई है ताकि इंसान दुनिया की फानी लज़्ज़तों में डूब कर अपनी आख़िरत को न भूल जाए।
(सुनन तिर्मिज़ी: 2307)
एक और हदीस में है:
> "अक़लमंद वही है जो अपने नफ़्स का मुहासबा करे और मौत के बाद के लिए अमल करे।"
(सुनन तिर्मिज़ी: 2459)
उलमा के अकवाल
इमाम ग़ज़ाली रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं:
> "मौत वह पुल है जो महबूब से मिलने का रास्ता है।"
हज़रत अली कर्रमल्लाहु वज्हु फ़रमाते हैं:
> "दुनिया पीठ फेर कर जा रही है और आख़िरत आगे बढ़ रही है। तुम आख़िरत के बेटे बनो, न कि दुनिया के।"
हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैहि:
> "मैंने ऐसा कोई यकीनी अमल नहीं देखा जिसे लोग मौत की तरह भुला देते हों।"हज़रत इब्राहीम अद्धम:
> "जिसने मौत को पहचान लिया, वो दुनिया से बेज़ार हो गया।"
हसन अल बसरी और इमाम इब्ने अबी हातिम का कौल:
> "मौत सबसे बड़ी नसीहत है, अगर कोई नसीहत हासिल करना चाहे।"
> अल्लाह फ़रमाते हैं:
"ऐ आदम की औलाद! तुझ पर हर दिन नया दिन आता है और वो तेरी उम्र को कम करता जाता है, मगर तू ग़ाफिल है।"
मौत की याद क्यों ज़रूरी है?
मौत की याद इंसान को तकब्बुर से बचाती है।
मौत की याद दिल को नरम करती है।
मौत की याद दुनिया के धोखे से महफूज़ रखती है।
मौत की याद इंसान को नेक आमाल करने पर उभारती है।
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मौत से तैयारी कैसे करें?
1. नमाज़ की पाबंदी करें।
2. तौबा और इस्तिग़फ़ार में मशग़ूल रहें।
3. हलाल रिज़्क़ कमाएं और खाएं।
4. लोगों के साथ हुस्ने सुलूक करें।
5. अल्लाह की याद में वक़्त बिताएं।
नसीहत आमेज बातें जो दिल को जगा दें
1. जो आज दूसरों का जनाज़ा पढ़ रहे हो, कल तुम्हारा जनाज़ा भी उठेगा।2. कब्र तुम्हारा आखिरी घर है — वहाँ रौशनी तुम्हारे आमाल से होगी।3. कभी ग़ुरूर मत करना अपनी जवानी, सेहत, दौलत या इल्म पर — मौत इन्हें एक पल में छीन लेती है।4. दुनिया की लज़्ज़तें चंद रोज़ की हैं, मगर आख़िरत हमेशा की।5. मौत हर रोज़ दरवाज़े पर दस्तक देती है — बस हमें सुनाई नहीं देती।
मौत के बाद इंसान की आरजुएं:
क़ुरान-ए-पाक में अल्लाह तआला ने मौत के बाद इंसानों की कुछ आरज़ूओं (इच्छाओं) का ज़िक्र किया है जो वह क़ब्र या आख़िरत में करेंगे। ये आरज़ूएँ इस बात की तरफ़ इशारा करती हैं कि दुनिया की ज़िंदगी की नेमतों और हिदायतों की क़द्र इंसान को मौत के बाद होती है, लेकिन उस वक़्त बहुत देर हो चुकी होती है।
यहाँ क़ुरान से मौत के बाद इंसान की आरज़ूओं का ज़िक्र पेश है:
1. वापसी की दुआ ताकि नेक अमल कर सकें
आरज़ू: "हमें लौटा दिया जाए ताकि हम अच्छे काम करें।"
📖 क़ुरान:
“ऐ मेरे रब! मुझे वापस लौटा दे, ताकि मैं अच्छे अमल कर सकूं जो मैंने छोड़े थे।”
(Surah Al-Mu’minun 23:99-100)
2. एक दिन की मोहलत की इल्तिजा
आरज़ू: "हमें थोड़ी देर की मोहलत दे दो।"
📖 क़ुरान:
“ऐ ईमानवालों! जो कुछ हमने तुम्हें दिया है उसमें से खर्च करो, इससे पहले कि मौत तुम में से किसी को आ जाए और वह कहे: ‘ऐ मेरे रब! क्यों न तूने मुझे थोड़ी मोहलत दी होती, तो मैं सदक़ा देता और नेक लोगों में से हो जाता।’”
(Surah Al-Munafiqun 63:10)
3. काश! मैंने अपनी आख़िरत के लिए कुछ किया होता
📖 क़ुरान:
“वह कहेगा: 'हाय! काश मैंने अपनी ज़िंदगी (आख़िरत) के लिए कुछ भेजा होता।’”
(Surah Al-Fajr 89:24)
4. काश! मैं मिट्टी होता
📖 क़ुरान:
“और काफिर कहेगा: 'काश! मैं मिट्टी होता।’”
(Surah An-Naba 78:40)
5. काश! मैंने फलाँ को दोस्त न बनाया होता
📖 क़ुरान:
“हाय अफ़सोस! काश मैंने फलाँ को दोस्त न बनाया होता। उस ने तो ज़िक्र (क़ुरआन) आने के बाद मुझे उससे गुमराह कर दिया।”
(Surah Al-Furqan 25:28-29)
6. काश! मैंने रसूल की राह अपनाई होती
📖 क़ुरान:
“और वह कहेगा: 'हाय अफ़सोस! काश मैंने रसूल की राह अपनाई होती।’”
(Surah Al-Furqan 25:27)
7. जहन्नुम में दाख़िल होने पर फ़रियाद
📖 क़ुरान:
“वे कहेंगे: 'ऐ हमारे रब! हमें यहाँ से निकाल दे, अगर फिर वही करें तो हम ज़ालिम होंगे।’”
(Surah Al-Mu’minun 23:107)
8. काश! हम सुनते या समझते
📖 क़ुरान:
“और वे कहेंगे: 'अगर हम सुनते या समझते होते तो आज जहन्नुमी न होते।’”
(Surah Al-Mulk 67:10)
9. काफ़िर कहेगा: ऐ काश मैं मुसलमान होता
📖 क़ुरान:
“(वह) कहेगा: 'हाय अफ़सोस! काश मैं मुसलमान होता।’”
(Surah Al-Hijr 15:2)
📌 नसीहत:
इन तमाम आरज़ूओं से यह साफ़ होता है कि आख़िरत में सिर्फ़ हसरत और पछतावा बाक़ी रहेगा, और दुनिया की ज़िंदगी ही वह मौका है जिसमें इंसान कुछ कर सकता है।
📖 क़ुरान:
“और तुम्हारे रब की तरफ़ लौट चलो और उसके आगे झुक जाओ, इससे पहले कि तुम पर अज़ाब आ जाए।”
(Surah Az-Zumar 39:54)
आखिर में एक दुआ जिसे हमें हमेशा करनी चाहिए
"ऐ अल्लाह! हमें मौत की तैयारी करने वाला बना,मौत को हमारे लिए राहत और रहमत बना,कब्र को जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ बना,और हमें तेरा नेक बन्दों में शामिल कर दे। आमीन या रब्बुल आलमीन🤲
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