Mard ka Aurat Par Haath Uthana (Hindi/Urdu)

औरत पर हाथ उठाना मर्दानगी नहीं,एक खुशहाल घर में औरत का सबसे बड़ा हाथ होता है मर्द तो औरत के बिना नाकाम है।औरत घर की कमजोरी नहीं, घर की सबसे बड़ी ताक़त होती है।

Mard ka Aurat Par Haath Uthana/मर्द का औरत पर हाथ उठाना

Aurat ki izzat wa maqaam
islam me biwi ka Haq 

आज के दौर में कई मर्द ऐसे है जो छोटी छोटी बातों पर या औरत से कोई ग़लती हो जाए तो उनपर हाथ उठा देते हैं। उन्हें अपनी तल्ख़ बातों का निशाना बनाते हैं और ऐसा सोचते हैं की Mard ka Aurat Par Haath Uthana उनका हक़ है। क्या वाकई मर्द को औरत पर हाथ उठाने का हक़ है?

हर घर की बुनियाद मोहब्बत, एहतराम और भरोसे पर टिकी होती है। लेकिन अफ़सोस कि बहुत से मर्द यह सोच बैठते हैं कि चूंकि वह घर चलाने के लिए कमाते हैं,मेहनत मज़दूरी करते हैं इसलिए औरत पर उनका पूरा हक़ है, यहाँ तक कि वो उसे मार भी सकते हैं। लेकिन अगर गहराई से देखा जाए, तो हक़ीक़त इससे बिल्कुल अलग है। कैसे ? आइए इस लेख Mard ka Aurat Par Haath Uthana को पढ़ें तब समझ में आएगा कि कैसे?


✦ 🤵मर्द का तर्क – “मैं कमाता हूं इसलिए हक़ है”

अक्सर मर्दों का कहना है कि मर्द घर से बाहर जाकर मेहनत मजदूरी करता है,घर चलाता है, पसीने बहाकर पैसे कमाकर लाता है तभी तो घर चलता है, घर वाले खाते हैं , अच्छे कपड़े पहनते हैं और सकून से रहते हैं।

लेकिन हक़ीक़त यह है कि:

बच्चे पैसा नहीं खाते, बच्चे खाना खाते हैं।

बच्चे नोटों पर नहीं सोते, बच्चे बिस्तर पर सोते हैं।

घर की असल तामीर और सुकून सिर्फ पैसों से नहीं बल्कि औरत की मेहनत से है।
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✦🧕 औरत का किरदार – घर की जान और रूह

मर्द कमाकर लाता है लेकिन:

वह औरत ही है जो उस पैसे को खाना में बदलती है। तब जा कर बच्चों ,शौहर या घर के दूसरे लोगों का पेट भरता है।

वह औरत ही है जो उस पैसे को बिस्तर और आराम में बदलती है तब जाकर बच्चे या शौहर सकून से बिस्तर पर सोते हैं

वही औरत जब मर्द थका हारा घर आता है तो अपनी मेहनत और मोहब्बत से मर्द की थकान दूर करती है।मर्द सकूं से सोता है। 

वही औरत बच्चों की देखभाल करती है।बच्चों की परवरिश करती है। उनके सुबह स्कूल जाने से घर वापस आने तक उनके सारे मामलात को देखती है लेकिन उफ़्फ़ तक नहीं कहती है।

वही औरत सुबह जल्द उठकर बच्चों और शौहर के लिए नाश्ता और खाना तैयार करती है, कपड़े और जूते साफ करती है।तब जा कर बच्चे हो या शौहर ,स्कूल या काम पर जा पाते हैं।
अगर औरत अपनी यह जिम्मेदारी छोड़ दे तो मर्द अगले दिन काम पर जाने के काबिल ही न बचे।असल मायनों में औरत मर्द की ताक़त है, कमजोरी नहीं। औरत के इस काम के बिना तो मर्द नाकाम है


✦ इस्लाम का नज़रिया़

इस्लाम ने औरत को इज़्ज़त, मोहब्बत और रहमत का दर्ज़ा दिया है।

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फ़रमाया:
तुम्हारे अंदर सबसे बेहतर वो है जो अपनी बीवी के साथ सबसे अच्छा है।” (तिर्मिज़ी)
यानी मर्द की असल मर्दानगी उसकी कमाई से नहीं, बल्कि औरत के साथ उसके अख़लाक़ और सुलूक से है।
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✦🧕 औरत पर हाथ उठाना – ज़ुल्म और जहालत

औरत पर हाथ उठाना ना इंसानियत है और ना ही इस्लामियत।

जो मर्द औरत को मारता है, दरअसल वो अपनी कमजोरी छुपाता है।

जो मर्द औरत को सम्मान देता है, वो असली क़ाबिल और रहनुमा कहलाता है।

Conclusion:

Mard ka Aurat Par Haath Uthana  यह कोई मर्द का हक़ नहीं है।चाहे वो कितना ही कमाने वाला क्यों न हो।औरत मर्द की मददगार, उसकी हमराज़ और उसकी सच्ची ताक़त है। यह ना तो मर्दानगी है, ना इंसानियत और ना ही इस्लामियत कि मर्द औरत पर हाथ उठाए। औरत वो है जो घर को घर बनाती है, मर्द के मेहनत से कमाए पैसों को घर के सकून में तब्दील करती है जो शायद मर्द न कर पाए। औरत बच्चों की परवरिश करती है और मर्द को थकान से राहत देती है। अगर मर्द सचमुच अपनी मर्दानगी साबित करना चाहता है तो उसे औरत की इज़्ज़त, मोहब्बत और क़दर करनी होगी।
क्योंकि असल ताक़त उस हाथ में नहीं है जो औरत को मार दे, बल्कि उस हाथ में है जो उसे सहारा दे, उसकी हिफ़ाज़त करे और मोहब्बत से थाम ले।
घर तभी घर कहलाता है जब उसमें मोहब्बत, इज़्ज़त और एहतराम हो – ना कि ज़ुल्म और ज़बरदस्ती।


"असली मर्द वो है जो अपने घर को मोहब्बत और रहमत से सजाता है, ज़ुल्म और डर से नहीं।" "हाथ मारने से रिश्ता टूटता है, हाथ थामने से रिश्ता जुड़ता है।"

✦ FAQs: 

 1. क्या इस्लाम मर्द को औरत पर हाथ उठाने की इजाज़त देता है?

नहीं। इस्लाम ने मर्द को औरत पर हाथ उठाने का हक़ नहीं दिया। अल्लाह के रसूल ﷺ ने हमेशा औरतों के साथ मोहब्बत, रहमत और एहतराम से पेश आने की ताकीद की। औरत पर हाथ उठाना ज़ुल्म और गुनाह है।


 2. अगर मर्द औरत पर हाथ उठाए तो उसकी सज़ा क्या है?

दुनियावी कानून में ये घरेलू हिंसा (domestic violence) के दायरे में आता है और सज़ा का हक़दार बनाता है।
आख़िरत में यह ज़ुल्म है, और ज़ालिम को अल्लाह तआला से बचाव नहीं मिलेगा।


 3. क्या सिर्फ कमाई करने से मर्द बड़ा हो जाता है?

हरगिज़ नहीं। मर्द पैसे कमाता है, लेकिन औरत उस पैसे को घर, सुकून और आराम में तब्दील करती है।
इसलिए घर चलाने में दोनों का बराबर योगदान है।


 4. मर्द–औरत का असली रिश्ता किस तरह होना चाहिए?

इस्लाम के मुताबिक़ मर्द–औरत का रिश्ता:

🔹मोहब्बत पर हो।
🔹इज़्ज़त और रहमत पर हो।
🔹बराबरी और समझदारी पर हो।

 5. क्या औरत की मेहनत मर्द की कमाई से कम है?

कभी नहीं। मर्द बाहर काम करता है तो औरत घर को संभालती है। दोनों की मेहनत मिलकर ही एक परिवार को मुकम्मल और खुशहाल बनाती है।


मर्दानगी औरत पर हाथ उठाने में नहीं, बल्कि उसे उठाकर सहारा देने में है।" "औरत घर की कमजोरी नहीं, घर की सबसे बड़ी ताक़त है।"

کیا مرد عورت پر ہاتھ اُٹھا سکتا ہے؟

کیا مرد عورت پر ہاتھ اُٹھا سکتا ہے؟
کیا مرد عورت پر ہاتھ اُٹھا سکتا ہے؟


آج کے دور میں کئی مرد ایسے ہیں جو چھوٹی چھوٹی باتوں یا کسی غلطی پر فوراً ہاتھ اُٹھا دیتے ہیں۔ انہیں اپنی تیز اور کڑی باتوں کا نشانہ بناتے ہیں اور یہ سمجھتے ہیں کہ Mard ka Aurat Par Haath Uthana  اُن کا حق ہے۔ سوال یہ ہے: کیا واقعی مرد کو عورت پر ہاتھ اٹھانے کا کوئی حق ملتا ہے؟

ہر گھر کی بنیاد محبت، احترام اور اعتماد پر ٹکی ہوتی ہے۔ لیکن افسوس کی بات یہ ہے کہ بہت سے لوگ یہ سوچ بیٹھتے ہیں کہ چونکہ وہ گھر کے لیے محنت کرتے ہیں، کماتے ہیں، اس لیے اُنہیں بیوی یا عورت پر اپنا اختیار جتانے کا پورا حق ہے — حتیٰ کہ وہ اُسے مار بھی سکتے ہیں۔ مگر اگر ہم گہرائی میں جائیں تو حقیقت بالکل مختلف نظر آتی ہے۔ کیسے؟ آئِیے ذیل میں اس موضوع کو غور سے پڑھیں تو بات واضح ہوجائے گی۔




✦ 👳مرد کا مؤقف – "میں کماتا ہوں اس لیے حق ہے"

اکثر مرد کہتے ہیں کہ وہ گھر سے باہر محنت کرتے ہیں، پسینہ بہاتے ہیں، پیسہ کماتے ہیں، اسی لیے گھر چلتا ہے، لوگ کھانا کھاتے ہیں، بچے اور اہلِ خانہ سکون سے رہتے ہیں۔ مگر حقیقت یہ ہے کہ:

بچے پیسہ نہیں کھاتے، بچے کھانا کھاتے ہیں۔
بچے نوٹوں پر نہیں سوتے، بچے بستر پر سوتے ہیں۔
گھر کی اصل تعمیر اور خوش حالی صرف پیسوں سے نہیں بلکہ عورت کی خدمات اور محنت سے ہوتی ہے
۔


✦🧕 عورت کا کردار — گھر کی جان و روح

مرد پیسہ کماتا ہے مگر:
🔘 وہی عورت ہے جو اُس کمائی کو کھانے میں بدلتی ہے، تب جا کر بچوں، شوہر اور گھر والوں کا پیٹ بھرتا ہے۔
🔘 وہی عورت ہے جو پیسے کو بستر، آرام اور سکون میں تبدیل کرتی ہے، تب جا کر گھر والے چین سے سوتے ہیں۔
🔘 جب شوہر تھکا ہوا گھر لوٹتا ہے تو عورت اپنی محنت اور محبت سے اُس کی تھکن دور کرتی ہے تاکہ وہ آرام سے سو سکے۔
🔘 وہ عورت بچوں کی پرورش کرتی ہے، صبح سے شام تک اُن کے تمام معاملات سنبھالتی ہے، اور شکایت کم ہی کرتی ہے۔
🔘 وہ صبح اُٹھ کر ناشتہ بناتی ہے، کپڑے اور جوتے صاف کرتی ہے — تب جا کر بچے اسکول اور شوہر کام پر جا سکتے ہیں۔
اگر عورت یہ ذمّہ داریاں چھوڑ دے تو مرد اگلے دن کام پر جانے کے قابل بھی نہیں رہے گا۔ حقیقت میں عورت مرد کی طاقت ہے، کمزوری نہیں۔ عورت کے بغیر مرد ناتمام ہے۔

اسلام کا نظریہ

اسلام نے عورت کو عزت، محبت اور رحمت کا مرتبہ دیا ہے۔
رسولِ کریم ﷺ نے فرمایا:
"تم میں سب سے بہتر وہ ہے جو اپنی بیوی کے ساتھ سب سے بہتر سلوک کرے۔" (ترمذی)
یعنی مرد کی اصل مردانگی اُس کی کمائی سے نہیں، بلکہ عورت کے ساتھ اُس کے اخلاق اور برتاؤ سے جانی جاتی ہے۔

✦🧕 عورت پر ہاتھ اُٹھانا — ظلم اور جہالت

عورت ہاتھ اُٹھانے کے لئے نہیں بلکہ محبّت اور عزت و احترام کرنے کے لئے ہے 
عورت پر ہاتھ اُٹھانا نہ تو انسانیت ہے اور نہ ہی اسلامیت۔ جو مرد عورت کو مارتا ہے، دراصل وہ اپنی اندرونی کمزوری اور جہالت کو چھپا رہا ہوتا ہے۔ اور جو مرد عورت کو عزت دیتا ہے، وہی اصل لائقِِ قدر اور رہنما کہلاتا ہے۔

✦ نتیجہ (Conclusion):

Mard ka Aurat Par Haath Uthana یہ کسی مرد کا حق نہیں ہے، چاہے وہ کتنا ہی کمانے والا کیوں نہ ہو۔ عورت مرد کی مددگار، ہمراز اور سچی طاقت ہے۔ نہ تو مروّت وہ ہے جو ہاتھ مارے، نہ انسانیت وہ جو درد دے، اور نہ ہی اسلام وہ جو ظلم کی اجازت دے۔ عورت وہ ہے جو گھر کو گھر بناتی ہے، مرد کی محنت سے کمائے گئے پیسے کو گھر کے سکون میں بدلتی ہے — وہ کام جو مرد اکیلے شاید نہ کر پائے۔ عورت بچوں کی پرورش کرتی ہے اور مرد کو تھکن سے آرام دیتی ہے۔ اگر مرد واقعی اپنی مردانگی ثابت کرنا چاہتا ہے تو اسے عورت کی عزت، محبت اور قدر کرنی چاہئے۔
کیونکہ اصل طاقت اُس ہاتھ میں ہے جو عورت کو سہارا دے، اُس کی حفاظت کرے اور محبت سے تھامے — نہ کہ اُس ہاتھ میں جو مار دے۔ گھر تبھی گھر کہلائے گا جب اس میں محبت، عزت اور احترم ہوں — ظلم اور زبردستی نہیں۔



"آج کا دن اصلاح کا دن ہے، کل تو صرف حساب ہوگا۔"

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 سوال و جواب (FAQs)

 کیا اسلام مرد کو عورت پر ہاتھ اُٹھانے کی اجازت دیتا ہے؟

نہیں۔ اسلام نے مرد کو عورت پر ہاتھ اُٹھانے کا کوئی حق نہیں دیا۔ نبی ﷺ نے ہمیشہ عورتوں کے ساتھ محبت، رحمت اور عزت سے پیش آنے کی تاکید کی۔


 اگر مرد عورت پر ہاتھ اُٹھائے تو اس کی سزا کیا ہے؟

دنیاوی قانون میں یہ گھریلو تشدد (domestic violence) کے زُمرے میں آتا ہے اور سزا کا حقدار بنتا ہے۔
آخرت میں یہ ظلم ہے، اور ظالم اللہ کی پکڑ سے نہیں بچ سکتا۔


 کیا صرف کمانے سے مرد بڑا ہو جاتا ہے؟

ہرگز نہیں۔ مرد کماتا ہے، لیکن عورت اُس کمائی کو گھر اور سکون میں بدلتی ہے۔ دونوں کی محنت سے ہی زندگی چلتی ہے۔


 مرد–عورت کا اصل رشتہ کیسا ہونا چاہیے؟

اسلام کے مطابق مرد–عورت کا رشتہ:

 💠محبت پر قائم ہو۔
 💠عزت اور رحمت پر قائم ہو۔
 💠برابری اور سمجھداری پر قائم ہو۔

 کیا عورت کی محنت مرد کی کمائی سے کم ہے؟

بالکل نہیں۔ مرد باہر کام کرتا ہے اور عورت گھر کو سنبھالتی ہے۔ دونوں کی محنت مل کر ہی ایک مکمل خاندان بناتی ہے۔



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