Shirk Ki Asal Haqeeqat (Hindi/Urdu)

"जब हम अपने घर और निजी रिश्तों में किसी की शराक़त/साझेदारी को बर्दाश्त नहीं करते,यानी बाप के रहते किसी दूसरे को बाप बोलना या बाप वाला हैसियत देना,तो अल्लाह के साथ साझेदारी को क्यों मामूली समझ लेते हैं?

🕋Shirk Ki Asal Haqeeqat/शिर्क की असल हक़ीक़त

क़ुरआन और हदीस के साथ आइए कुछ दुनियावी मिसाल से समझे कि Shirk Ki Asal Haqeeqat क्या है? कई लोगों को क़ुरआन और हदीस से दलील दे कर समझाने के बाद भी समझ नहीं आता कि शिर्क क्या है ?या समझना ही नहीं चाहते हैं।एक छोटी सी कोशिश है कि कुछ दुनियावी मिसाल से समझाया जाए शायद समझ में आ जाए इन शा अल्लाह। 

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    ✍ लेखक: Mohib Tahiri,🕋 Islamic Article | Aqeedah | Shirk

    Shirk in islam
    Shirk Ki Asal Haqeeqat



    इस्लाम में सबसे बड़ा गुनाह शिर्क है। यह वह गुनाह है जिसे अगर कोई तौबा के बिना मर जाए तो अल्लाह तआला कभी माफ़ नहीं करता। आज के दौर में लोग कई बार बिना समझे ऐसे काम कर बैठते हैं जो शिर्क में शामिल होते हैं — और उन्हें लगता है कि यह बस एक रस्म या आदत है।
    इस्लाम में शिर्क का मतलब है अल्लाह तआला के साथ किसी और को उसकी ज़ात, सिफ़ात, इख़्तियार या हक़ में शरीक करना। यह इस्लाम का सबसे बड़ा गुनाह है जिसे अल्लाह तआला कभी माफ़ नहीं करेगा और वो सीधा जहन्नम जाएगा। 

    इसलिए, यह ज़रूरी है कि हम Shirk Ki Asal Haqeeqat को समझें, ताकि हम और हमारे घरवाले इस से बच सकें।

    आगे बढ़ने से पहले आइए क़ुरआन की एक आयत देखें जिससे पता चलता है कि Shirk Ki Asal Haqeeqat क्या है और कितना बड़ा गुनाह है। 

    शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी तांबिया /सचेत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे। जैसे कि सुरह अनआम में 17 नबीयों के नाम ज़िक्र करने के बाद फ़रमाया - "और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते।" (सूरह अनआम - 89)

    हालांकि तमाम नबी इस शीर्क से पाक हैं ,अल्लाह ने उन्हें इससे महफ़ूज़ रखा। हम इंसानों को ख़बर दार करने के लिए ऐसा कहा।

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    📜 शिर्क का मआनी:

    लफ़्ज़ी मआनी (Linguistic meaning):

    शिर्क का मतलब है अल्लाह के साथ किसी और को उसकी ज़ात, सिफ़ात, हक़ या इबादत में शरीक करना

    इस्लामी इस्तिलाही मआनी (Islamic definition):

    शिर्क वह है जब कोई इंसान अल्लाह के अलावा किसी और को —उसकी रब्बुबियत (ख़ालिक़, मालिक, रिज़्क़ देने वाला) में,उसकी उलूहियत (इबादत का हक़),या उसकी सिफ़ात (इल्म, ताक़त, ग़ैब का मालूम होना) — में बराबर समझे या हिस्सेदार ठहराए।

    असली ख़ालिक़, मालिक और रोज़ी देने वाला सिर्फ़ एक है — अल्लाह। अगर हम उसे छोड़ कर किसी और को वही दर्जा दें — उसे बुलाएँ, उससे माँगें, उससे आज़ात की उम्मीद रखें — तो यह वही बड़ा ज़ुल्म है जो क़ुरआन-हदीस में शिर्क कहा गया है।



    📖 क़ुरआन में शिर्क से मुतल्लिक:


    अल्लाह तआला फ़रमाता है:

    "अल्लाह इस बात को हरगिज़ माफ़ नहीं करता कि उसके साथ किसी को शरीक किया जाए और इससे कम गुनाह जिसे चाहे माफ़ कर देता है।" 
    (📚 (सूरह अन-निसा 4:48))

    शिर्क को सबसे बड़ा ज़ुल्म कहा:

    और अल्लाह फरमाता है"बेशक, शिर्क बहुत बड़ा ज़ुल्म है।"📚 (सूरह लुक़मान 31:13)

    🕌 हदीस से दलाइल

    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

    “जिस शख्स की मौत इस हाल में आई कि वह अल्लाह के साथ किसी को शरीक करता रहा, तो वह जहन्नम में दाख़िल होगा।”
    (सहीह बुखारी, मुस्लिम)

    रसूलों का पैग़ाम:

    "और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा कि अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत से बचो।"📚 (सूरह अन-नहल 16:36)

    दुनिया में अल्लाह ने जितने भी पैग़म्बर और रसूल भेजा सबकी एक ही दावत थी ला इलाह इल्लल्लाह यानी अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं। किसी भी नबी या रसूल ने ये नही कहा की किसी बुज़ुर्ग या नबी के कब्रों पर जाकर दुआ करो या मांगो। 

    सबसे बड़ा गुनाह:

    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

    रसूलुल्लाह ﷺ से पूछा गया:"सबसे बड़ा गुनाह कौन सा है?"आप ﷺ ने फ़रमाया: "तुम अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराओ, हालाँकि उसी ने तुम्हें पैदा किया।"📚 (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम)

    छुपा हुआ शिर्क:

    आप ﷺ ने फ़रमाया:"मेरी उम्मत के अंदर जो चीज़ मुझे सबसे ज़्यादा डराती है, वह है छोटा शिर्क।"सहाबा ने पूछा: "छोटा शिर्क क्या है?"आप ﷺ ने फ़रमाया: "रियाकारी (लोगों को दिखाने के लिए अमल करना)"📚 (मुस्नद अहमद)

    •  शिर्क सबसे बड़ा गुनाह है — इसका अर्थ यही है कि इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

    🕌 उलमा के अक़वाल

    इमाम इब्न तैमिय्या रहिमहुल्लाह:
    • शिर्क का असल यह है कि इंसान अपने दिल को अल्लाह के अलावा किसी और पर भरोसा करने में बराबर कर दे।"
    • इब्ने तैमिय्या रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं: "शिर्क वह ज़ुल्म है जिसमें बंदा अपने रब के हक़ को किसी और के लिए साबित करता है।"
    इमाम इब्न कसीर रहिमहुल्लाह:
    • "शिर्क वह है कि इंसान अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारे, चाहे मुसीबत में हो या आराम में, और उससे वह मांगे जो सिर्फ अल्लाह से मांगा जा सकता है।"
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    एक बाप के रहते हुए उसकी औलादें, घर वाले, अपनी ज़रूरतें और फ़रियादें लेकर किसी और के पास जाएँ,बाप वाला मुकाम व मर्तबा किसी और को दे तो क्या कोई भी बाप ये बर्दास्त करेगा?


    🌍 दुनियावी मिसाल से समझिए — शिर्क क्या है और कितना बड़ा गुनाह है

    आइए अब दुनिया की आम और रोज़मर्रा की मिसालों से सोचकर देखें कि शिर्क असल में क्या है — यानी अल्लाह के साथ किसी और को हक़, इबादत या रब्बियत में साझेदार ठहराना — और यह किस तरह इंसानी फ़ितरत की नज़रों में भी नापसंद है।


    1) घर का सरबराह — बाप की मिसाल

    हर घर में एक सरबराह होता है — बाप। वह परिवार की देखभाल करता है, घर की ज़रूरतें पूरी करता है, मुश्किल वक़्त में सुरक्षा देता है और हिफाज़त करता है। अब सोचिए: अगर उसी बाप के रहते हुए उसकी औलादें, घर वाले, उसकी ज़रूरतें और फ़रियादें लेकर किसी और के पास जाएँ — और उसे अपना सरबराह मान लें — तो यह बाप के हक़ की सीधी तौहीन (बेइज्ज़ती) होगी। कौन-सा बाप इसे बर्दाश्त करेगा? कौन-सा इंसान खुले दिल से यह पसंद करेगा कि उसके मौजूद रहते हुए खुद उसकी औलादें किसी और को बाप का मोक़ाम दे ?दुनिया का कोई भी बाप ये बर्दास्त नही करेगा। यह सोचकर ही शर्मनाक लगता है।

    बात का नतीजा: अगर यह व्यवहार इंसानी रिश्तों में नापसंद और अपमानजनक है, तो ख़ुद-ख़ुद समझिए कि कायनात का असली मालिक — जो हमें पैदा करने वाला, रोज़ी देने वाला और हमारी हर मुसीबत में हम पर रहम करने वाला है — उसे हमें इबादत और माँग में किसी और को शरीक ठहराना कैसे जायज़ होगा? यही शिर्क है — और क़ुरआन-हदीस में इसे ही सब से बड़ा ज़ुल्म और गुनाह कहा गया है।

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    2) शौहर-बीवी की मिसाल

    एक शौहर अपने रिश्ते में यह बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेगा कि उसकी बीवी का ताल्लुक किसी और मर्द से हो; उसकी बीवी उसका जो हक़, मुकाम व मर्तबा है वो किसी और को दे। वह इसका ख्याल भी बर्दाश्त नहीं करेगा। अगर ऐसा हो जाए, तो शौहर शर्म से नजरें छुपाए फिरता है, ज़िंदगी में उसकी इज़्ज़त और सामाजिक मुक़ाम सब खत्म हो जाते हैं — और घर, समाज दोनों में उसका दायरा बदल जाता है।

    अब जरा ग़ौर करें: जब एक आम इंसान अपनी मोहब्बत और मिया बीवी के रिश्ते के बीच, अपने निजी और मजबूत रिश्तों में किसी और की साझेदारी,शराक़त बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मेरी बीवी मेरा मुकाम व मर्तबा किसी और को दे। तो अल्लाह — जो सारा क़ायनात का मालिक,खालिक और सबसे बड़ा हक़दार है — वह अल्लाह अपनी इबादत और हक़ में किसी और की साझेदारी कैसे बर्दाश्त करेगा? कैसे शिर्क को माफ़ करेगा?और यही काम हम अपनी रोज़ मार्रः ज़िन्दगी में अल्लाह के साथ कर रहे हैं और हमे कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता है।

     ये एक बहुत बड़ा सवाल है ऐसा करने वालों से। 
     


    (ध्यान देने की बात)

    जो मज़ारों,दरबारों , पीर और बुजुर्गों के पास जाते हैं एक बार ज़रूर गौर व फ़िक्र करें कि हम खुद की ज़िन्दगी और ज़ात के साथ अपने मोकामा व मर्तबा और हक़ के साथ किसी की शराकत, साझेदारी को पसंद और बर्दाश्त नहीं कर सकते लेकिन अल्लाह के साथ हम वही व्यवहार क्यों करते हैं? और ऐसा करके अपने आप को फ़िर भी मुसलमान समझ रहे हैं। एक पल के लिए ज़रूर सोचिएगा। 



    3) कंपनी के मालिक की मिसाल

    सोचिए एक कंपनी का मालिक कौन होता है — वही जिसने पूँजी लगाई, वही जो नियुक्तियाँ करता है, वही जो तनख़्वाह देता है। अगर कर्मचारी उस असली मालिक को छोड़ कर किसी और को मालिक मान लें, उसका नाम लें, उसकी इज़्ज़त करें और उससे तनख़्वाह माँगें —— तो यह न सिर्फ मालिक की तौहीन है, बल्कि यह मालिक के अधिकारों को छीनना जैसा है।

    इसे अल्लाह पर लागू करें: असली ख़ालिक़, मालिक और रोज़ी देने वाला सिर्फ़ एक है — अल्लाह। अगर हम उसे छोड़ कर किसी और को वही दर्जा दें — उसे बुलाएँ, उससे माँगें, उससे आज़ात की उम्मीद रखें — तो यह वही बड़ा ज़ुल्म है जो क़ुरआन-हदीस में शिर्क कहा गया है। जिसकी माफ़ी नहीं। यह इंसानी पसंद और ना पसंद के हिसाब से भी गलत है कि असल मालिक को छोड़ कर किसी दूसरे को मालिक का दर्जा दें। 


    सोचने की जगह 

    • यही बात तो अल्लाह का क़ुरआन और नबी ﷺ का फ़रमान कह रहा है कि इस सारी काएनात और हम तमाम इंसानों का मालिका व ख़ालिक़ एक ही है। वहीं हमें रिज़्क देता है,वही हमे दुख व परेशानी से बचता है तो उसे कैसा लगेगा कि हम उसे छोड़ कर उसके मख़लूक़ के सामने सर झुका रहे हैं, उसके मख़लूक़ से मांग रहे हैं, दुःख परेशानी में उसके मख़लूक़ को पुकार रहे हैं। इसी तरह, अल्लाह एक है, और वह किसी के साथ अपनी ज़ात या इबादत में साझेदारी को बर्दाश्त नहीं करता

    • यही तो शिर्क है जिसे अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा अगर कोई बग़ैर तौबा के मर गया तो।

    • अगर हम अपने घर और निजी रिश्तों में किसी की शराक़त बर्दाश्त नहीं करते, तो अल्लाह के साथ शराक़त को क्यों मामूली समझ लेते हैं?

    • क्या हमने कभी सोचा है कि जब हम किसी मख़लूक़ से मदद माँग रहे होते हैं और अल्लाह को पीछे छोड़ रहे होते हैं, तो अल्लाह का हमारे साथ कैसा एहसास होगा?


    शिर्क सिर्फ एक गुनाह नहीं बल्कि वह दरवाज़ा है जो जन्नत को बंद और जहन्नम को हमेशा के लिए खोल देता है।

    🚫 शिर्क की आम शकलें (आज के दौर में)

    • अल्लाह के अलावा किसी और से ग़ैब का इल्म मांगना।
    • तावीज़, धागों या झाड़-फूँक में अल्लाह के अलावा किसी और से शिफ़ा की उम्मीद रखना।
    • पीरों या बुज़ुर्गों को दुआ में अल्लाह के बराबर पुकारना।
    • मजारों, दरगाहों या क़ब्रों से सीधे मुरादें मांगना (बगैर ये समझे कि दुआ सिर्फ़ अल्लाह से होनी चाहिए)।
    • दिखावे के लिए इबादत (रियाकारी) — छोटी शिर्क।

    ✅ शिर्क से बचने का तरीका

    • तौहीद का इल्म हासिल करना।
    • दुआ, मदद और इबादत सिर्फ अल्लाह से करना।
    • हर काम में नीयत सिर्फ अल्लाह की ख़ुशी के लिए रखना।
    • तौहीद की सही समझ हासिल करें; दुआ और इबादत सिर्फ़ अल्लाह से करें; हर काम में नीयत अल्लाह की ख़ुशी रखें; और जहाँ शक हो, इल्म वालों से पूछें।
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    📌 नतीजा (Conclusion):

    ऐसी बहुत सारी दुनियावी मिसालें हैं बस हम कभी ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते Shirk Ki Asal Haqeeqat को समझने कोशिश नही करते—एक जंगल का एक ही राजा होता है उसका मुकाम व मर्तबा किसी दूसरे जानवर को नहीं दे सकते,एक मुल्क का एक ही prime minister होता है दो नहीं। बाप की इज्ज़त, शौहर-बीवी का मुक़ाम, कंपनी-मालिक का हक़ — सब एक ही बात सिखाती हैं: इस कायनात का एक ही मालिक है इसमें किसी और की हिस्सेदारी बिल्कुल नहीं है। वहीं अकेला इबादत या दुआ का मुस्तहक है।उसका मुकाम व मर्तबा किसी और को नहीं दिया जा सकता है। 
    अब शायद आप समझ रहे होंगे कि शिर्क को क्यों बहुत बड़ा ज़ुल्म कहा गया है और Shirk Ki Asal Haqeeqat क्या है। शिर्क सिर्फ एक गुनाह नहीं बल्कि वह दरवाज़ा है जो जन्नत को बंद और जहन्नम को हमेशा के लिए खोल देता है।
    🤲अल्लाह तआला हमें शिर्क की हर शकल से महफ़ूज़ रखे, हमारे दिल को तौहीद पर क़ायम रखे और हमारे अमल को सिर्फ अपने लिए मुखलिस बना दे।
    "और अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को भी शरीक मत ठहराओ।"
    📚 (सूरह अन-निसा 4:36)
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    अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs):

    सवाल 1: शिर्क की सबसे बड़ी सूरत क्या है?
    जवाब: अल्लाह की इबादत में किसी और को शामिल करना, जैसे दुआ, सज्दा या मदद के लिए अल्लाह के अलावा किसी और को पुकारना।
    सवाल 2: क्या छोटा शिर्क भी खतरनाक है?
    जवाब: हां, छोटा शिर्क (जैसे दिखावे के लिए इबादत) भी बड़ा गुनाह है और यह इंसान के अमल को बर्बाद कर सकता है।
    सवाल 3: शिर्क से बचने का तरीका क्या है?
    जवाब: तौहीद की पक्की समझ, कुरआन-सुन्नत का इल्म और हर अमल में नीयत को सिर्फ अल्लाह के लिए रखना।
    सवाल 4:  क्या शिर्क माफ़ हो सकता है?
    जवाब: अगर इंसान तौबा कर ले और मरने से पहले शिर्क छोड़ दे, तो अल्लाह माफ़ कर देता है।
    सवाल 5: क्या शिर्क सिर्फ मूर्तियों की पूजा है?
    जवाब: नहीं, किसी भी अमल या अकीदे में अल्लाह के साथ साझी बनाना शिर्क है।

    شرک انسان کو اسلام کے دائرے سے نکال دیتا ہے اور اس کے تمام اعمال ضائع ہو جاتے ہیں۔ اس لیے سب سے ضروری ہے کہ ہم اپنے عقیدے کو خالص رکھیں اور ہر قسم کے شرک سے بچیں۔

    🕋 شرک کی اصل حقیقت

    قرآن و حدیث کے ساتھ آئیے کچھ دُنیاوی مثال سے سمجھیں کی شرك کی اصل حقیقت کیا ہے۔ کئی لوگوں کو قرآن و حدیث سے دلیل دے کر سمجھانے کے بعد بھی  سمجھ نہیں آتا کے شرک کیا ہے یا سمجھنا ہی نہیں چاہتے ہیں۔ ایک چھوٹی سے کوشش ہے کچھ دُنیاوی مثال سے سمجھایا جائے شاید سمجھ میں آ جائے۔

    ✍ مصنف: محب طاہری 🕋 اسلامک آرٹیکل | عقیدہ | شرک

    Shirk ka gunaah
    Shirk Ki Asal Haqeeqat


    اسلام میں سب سے بڑا گناہ شرک ہے۔ یہ وہ گناہ ہے کہ اگر کوئی شخص بغیر توبہ کے مر جائے تو اللہ تعالیٰ اسے کبھی معاف نہیں کرتا۔ آج کے دور میں لوگ اکثر بغیر سمجھے ایسے اعمال کر بیٹھتے ہیں جو شرک میں شامل ہوتے ہیں، اور انہیں لگتا ہے کہ یہ محض ایک رسم یا عادت ہے۔

    اسلام میں شرک کا مطلب ہے: اللہ تعالیٰ کی ذات، صفات، اختیار یا حق میں کسی اور کو شریک کرنا۔ یہ اسلام کا سب سے بڑا گناہ ہے، جسے اللہ تعالیٰ کبھی معاف نہیں کرے گا اگر بندہ بغیر توبہ کے مر گیا تو وہ سیدھا جہنم میں جائے گا۔
    اس لیے ضروری ہے کہ ہم Shirk Ki Asal Haqeeqat کو سمجھیں تاکہ ہم اور ہمارے گھر والے اس سے محفوظ رہ سکیں۔

    آگے بڑھنے سے پہلے آئیے قرآن کی ایک آیت دیکھتے ہیں جس سے معلوم ہوتا ہے کہ شرک کی اصل حقیقت کیا ہے اور یہ کتنا بڑا گناہ ہے۔

    شرک اتنا عظیم گناہ ہے کہ اللہ تعالیٰ نے عام انسان تو کیا، نبیوں تک کو تنبیہ کردی کہ اگر تم نے شرک کیا تو ہم تمہیں بھی نہیں چھوڑیں گے۔جیسا کہ سورۃ الانعام میں 17 نبیوں کے نام ذکر کرنے کے بعد فرمایا:"اور اگر وہ لوگ شرک کرتے تو جو اعمال وہ کرتے تھے سب بیکار ہو جاتے۔"📖 (سورۃ الانعام: 89)

    حالانکہ تمام انبیاء علیہم السّلام اِس سے پاک ہیں۔ اللہ نے انہیں اس سے محفوظ رکھا۔ ہمیں خبر دار کرنے کے لئے ایسا کہا کہ شرک کا کتنا خوفناک انجام ہے۔

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    📜 شرک کا معنیٰ:

    لغوی معنی:
    شرک کا مطلب ہے اللہ کے ساتھ کسی اور کو اس کی ذات، صفات، حق یا عبادت میں شریک کرنا۔

    اصطلاحی معنی:
    شرک یہ ہے کہ کوئی شخص اللہ کے علاوہ کسی اور کو اس کی ربوبیت (خالق، مالک، رزق دینے والا)، الوہیت (عبادت کا حق دار)، یا صفات (علم، طاقت، غیب کا جاننا) میں برابر سمجھے یا شریک ٹھہرائے۔


    📖 قرآن میں شرک کے بارے میں

    اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:

    اللہ اس بات کو ہرگز معاف نہیں کرتا کہ اس کے ساتھ کسی کو شریک کیا جائے، اور اس کے سوا جسے چاہے معاف کر دیتا ہے۔"📚 (سورۃ النساء 4:48) اور فرمایا:"بیشک شرک بہت بڑا ظلم ہے۔"📚 (سورۃ لقمان 31:13)

    قرآن میں رسولوں کا پیغام:

    اور ہم نے ہر امت میں ایک رسول بھیجا کہ اللہ کی عبادت کرو اور طاغوت سے بچو۔"📚 (سورۃ النحل 16:36)

    دنیا میں اللہ تعالیٰ نے شروع سے آخر تک جتنے بھی نبی یا رسول بھیجا سب کی ایک ہی دعوت تھی لا الہ الا اللہ یعنی اللّٰہ کے سوا کوئی دوسرا عبادت کے لائق نہیں.کسی نے بھی یہ نہیں کہا کہ تم میری یا فلاں بزرگ کی عبادت کرو۔ 


    🕌 حدیث سے دلائل

    رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
    جس شخص کی موت اس حال میں آئی کہ وہ اللہ کے ساتھ کسی کو شریک کرتا رہا، وہ جہنم میں داخل ہوگا۔"📚 (صحیح بخاری، صحیح مسلم) سب سے بڑا گناہ یہ ہے کہ تم اللہ کے ساتھ کسی کو شریک ٹھہراؤ، حالانکہ اسی نے تمہیں پیدا کیا ہے۔"📚 (صحیح بخاری، صحیح مسلم)

    چھپا ہوا شرک:

    آپ ﷺ نے فرمایا:

    مجھے اپنی امت میں سب سے زیادہ جس چیز کا ڈر ہے وہ چھوٹا شرک ہے۔"صحابہؓ نے پوچھا: "چھوٹا شرک کیا ہے؟" آپ ﷺ نے فرمایا: "ریاکاری (لوگوں کو دکھانے کے لیے عمل کرنا)"📚 (مسند احمد)


    🕌 علماء کے اقوال

    امام ابن تیمیہ رحمہ اللہ:

    شرک کا اصل یہ ہے کہ انسان اپنے دل کو اللہ کے علاوہ کسی اور پر بھروسے میں برابر کر دے۔"شرک وہ ظلم ہے جس میں بندہ اپنے رب کے حق کو کسی اور کے لیے ثابت کرتا ہے۔"

    امام ابن کثیر رحمہ اللہ:

    شرک یہ ہے کہ انسان اللہ کے سوا کسی اور کو پکارے، چاہے مصیبت میں ہو یا آرام میں، اور اس سے وہ مانگے جو صرف اللہ سے مانگا جا سکتا ہے۔"


    🌍 دنیاوی مثالوں سے سمجھئے — شرک کیا ہے؟

    آئیے اب دنیا کی عام اور روزمرّہ کی مثالوں سے سوچ کر دیکھیں کہ شرک اصل میں کیا ہے — یعنی اللہ کے ساتھ کسی اور کو حق، عبادت یا ربوبیت میں شریک ٹھہرانا — اور یہ کس طرح انسانی فطرت کی نظروں میں بھی ناپسندیدہ ہے۔

    1) گھر کے سربراہ — باپ کی مثال

    ہر گھر میں ایک سربراہ ہوتا ہے — باپ۔ وہ خاندان کی دیکھ بھال کرتا ہے، گھر کی ضروریات پوری کرتا ہے، مشکل وقت میں تحفظ دیتا ہے اور حفاظت کرتا ہے۔ اب سوچیے: اگر اسی باپ کی موجودگی میں اس کی اولاد، گھر والے، اپنی ضروریات اور فریادیں لے کر کسی اور کے پاس جائیں — اور اسے اپنا سربراہ مان لیں — تو یہ باپ کے حق کی سیدھی توہین (بے عزتی) ہوگی۔ کون سا باپ اسے برداشت کرے گا؟ کون سا انسان کھلے دل سے یہ پسند کرے گا کہ اس کے موجود رہنے پر اس کی اولادیں کسی اور کو اس کا مقام دے دیں؟ یہ سوچ کر ہی شرم آتی ہے۔


    بات کا نتیجہ: اگر یہ رویہ انسانی رشتوں میں ناپسندیدہ اور توہین آمیز ہے، تو خود ہی سمجھ لیجیے کہ کائنات کا اصل مالک — جو ہمیں پیدا کرنے والا، رزق دینے والا اور ہماری ہر مصیبت میں ہم پر رحم کرنے والا ہے — اس سے ہمیں عبادت اور مانگ میں کسی اور کو شریک ٹھہرانا کیسے جائز ہوگا؟ یہی شرک ہے — اور قرآن و حدیث میں اسے سب سے بڑا ظلم اور گناہ کہا گیا ہے۔

    2) شوہر–بیوی کی مثال

    ایک شوہر اپنے تعلق میں یہ ہرگز برداشت نہیں کرے گا کہ اس کی بیوی کا تعلق کسی اور مرد سے ہو؛ اس کی بیوی جو حق، مقام اور مرتبہ اس کا ہے وہ کسی اور کو دے۔ وہ اس کا خیال بھی برداشت نہیں کرے گا۔ اگر ایسا ہو جائے، تو شوہر شرم سے نظریں چھپائے پھرتا ہے، زندگی میں اس کی عزت اور سماجی مقام سب ختم ہو جاتے ہیں — اور گھر، معاشرہ دونوں میں اس کا دائرہ بدل جاتا ہے۔

    اب ذرا غور کریں: جب ایک عام انسان اپنی محبت اور میاں بیوی کے رشتے کے درمیان، اپنے ذاتی اور مضبوط رشتوں میں کسی اور کی شراکت برداشت نہیں کر سکتا کہ میری بیوی میرا مقام و مرتبہ کسی اور کو دے، تو اللہ — جو ساری کائنات کا مالک، خالق اور سب سے بڑا حقدار ہے — وہ اللہ اپنی عبادت اور حق میں کسی اور کی شراکت کیسے برداشت کرے گا؟ کیسے شرک کو معاف کرے گا؟ اور یہی کام ہم اپنی روز مرہ زندگی میں اللہ کے ساتھ کر رہے ہیں اور ہمیں کوئی فرق ہی محسوس نہیں ہوتا۔

    یہ ایک بہت بڑا سوال ہے ایسا کرنے والوں سے۔


    (توجہ دینے کی بات)

    جو لوگ مزاروں، درباروں، پیروں اور بزرگوں کے پاس جاتے ہیں، وہ ایک بار ضرور غور و فکر کریں کہ ہم اپنی زندگی اور اپنی ذات کے ساتھ، اپنے مقام و مرتبہ اور حق میں کسی کی شرکت اور شراکت کو پسند اور برداشت نہیں کرتے، لیکن اللہ کے ساتھ ہم وہی برتاؤ کیوں کرتے ہیں؟ اور ایسا کر کے بھی اپنے آپ کو مسلمان سمجھتے ہیں؟ ایک لمحے کے لیے ضرور سوچئے گا۔

    3) کمپنی کے مالک کی مثال

    سوچئے کہ ایک کمپنی کا مالک کون ہوتا ہے؟ — وہی جس نے سرمایہ لگایا، وہی جو بھرتیاں کرتا ہے، وہی جو تنخواہ دیتا ہے۔ اگر ملازمین اس اصل مالک کو چھوڑ کر کسی اور کو مالک مان لیں، اس کا نام لیں، اس کی عزت کریں اور اس سے تنخواہ مانگیں —— تو یہ نہ صرف مالک کی توہین ہے بلکہ اس کے حقوق چھیننے کے مترادف ہے۔


    اس کو اللہ پر قیاس کریں: اصل خالق، مالک اور روزی دینے والا صرف ایک ہے — اللہ۔ اگر ہم اُسے چھوڑ کر کسی اور کو وہی درجہ دیں — اُسے پکاریں، اُس سے مانگیں، اُس سے حاجت پوری ہونے کی امید رکھیں — تو یہ وہی بڑا ظلم ہے جسے قرآن و حدیث میں "شرک" کہا گیا ہے، اور جس کی معافی نہیں۔ یہ انسانی پسند و ناپسند کے حساب سے بھی غلط ہے کہ اصل مالک کو چھوڑ کر کسی دوسرے کو مالک کا درجہ دیا جائے۔


    سوچنے کی جگہ

    یہی بات تو اللہ کا قرآن اور نبی ﷺ کا فرمان کہہ رہا ہے کہ اس ساری کائنات اور ہم تمام انسانوں کا مالک اور خالق صرف ایک ہے۔ وہی ہمیں رزق دیتا ہے، وہی ہمیں دکھ اور پریشانی سے بچاتا ہے، تو اسے کیسا لگے گا کہ ہم اُسے چھوڑ کر اُس کی مخلوق کے سامنے سر جھکا رہے ہیں، اُس کی مخلوق سے مانگ رہے ہیں، اور دکھ و پریشانی میں اُس کی مخلوق کو پکار رہے ہیں؟ اسی طرح، اللہ ایک ہے اور وہ اپنی ذات یا عبادت میں کسی کے ساتھ شراکت کو برداشت نہیں کرتا۔
    یہی تو شرک ہے، جسے اللہ کبھی معاف نہیں کرے گا اگر کوئی بغیر توبہ کے مر گیا تو۔
    اگر ہم اپنے گھر اور ذاتی رشتوں میں کسی کی شرکت برداشت نہیں کرتے تو اللہ کے ساتھ شراکت کو کیوں معمولی سمجھ لیتے ہیں؟
    کیا ہم نے کبھی سوچا ہے کہ جب ہم کسی مخلوق سے مدد مانگ رہے ہوتے ہیں اور اللہ کو پیچھے چھوڑ رہے ہوتے ہیں تو اللہ کا ہمارے ساتھ کیسا احساس ہوگا؟


    🚫 آج کے دور میں شرک کی عام شکلیں

    • اللہ کے علاوہ کسی اور سے غیب کا علم مانگنا۔
    • تعویذ یا دھاگوں سے شفا کی امید رکھنا۔
    • پیروں یا بزرگوں کو دعا میں اللہ کے برابر پکارنا۔
    • مزاروں، درگاہوں یا قبروں سے مرادیں مانگنا۔
    • ریاکاری — چھوٹا شرک۔
    • مزارات یا درگاہوں سے براہِ راست مرادیں مانگنا (بغیر یہ سمجھے کہ دعا صرف اللہ سے ہونی چاہیے)۔
    • تعویذ یا اشیائےِ لاشعوریٰ میں غیر الہی طاقت کا بھروسہ کرنا۔
    • دکھاوے کے لیے عبادت (ریاکاری) — چھوٹا شرک۔


    شرک سے بچنے کا طریقہ

    • توحید کا علم حاصل کرنا۔
    • دعا، مدد اور عبادت صرف اللہ سے کرنا۔
    • ہر عمل میں نیت صرف اللہ کی خوشنودی کے لیے رکھنا۔۔ 
    • شک کی صورت میں علم والوں سے پوچھنا۔
    • توحید کی درست سمجھ حاصل کریں؛ دعا اور عبادت صرف اللہ سے کریں؛ ہر عمل میں نیت اللہ کی رضامندی کے لیے رکھیں؛ اور جہاں شک ہو، علمائے کرام سے رجوع کریں۔

    📌 نتیجہ

    دنیا میں ہر نظام کا ایک ہی مالک ہوتا ہے — جنگل کا ایک بادشاہ، ملک کا ایک وزیرِاعظم، گھر کا ایک سربراہ۔ اسی طرح کائنات کا بھی ایک ہی مالک ہے۔ وہی عبادت اور دعا کا مستحق ہے۔
    شرک نہ صرف سب سے بڑا گناہ ہے بلکہ وہ دروازہ ہے جو جنت کو بند اور جہنم کو ہمیشہ کے لیے کھول دیتا ہے۔
    اب آپ سمجھ گئے ہونگے کہ شرک کو کیوں بہت بڑا ظُلم کہا گیا ہے اور Shirk Ki Asal Haqeeqat کیا ہے۔ شرک صرف ایک گناہ نہیں — بلکہ ایسی غلطی ہے جو انسان کو آخرت میں بڑا نقصان پہنچا سکتی ہے۔ اللہ ہم سب کو توحید پر قائم رکھے اور ہمارے دلوں کو شرک سے محفوظ رکھے۔
    اللہ تعالیٰ ہمیں ہر قسم کے شرک سے محفوظ رکھے، ہمارے دل کو توحید پر قائم رکھے، اور ہمارے اعمال کو اپنے لیے خالص بنا دے۔

    "اور اللہ کی عبادت کرو اور اس کے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہراؤ۔"
    📚 (سورۃ النساء 4:36)


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    اکثر پوچھے جانے والے سوالات (FAQs)

    سوال 1: شرک کی سب سے بڑی صورت کیا ہے؟
    جواب: اللہ کے ساتھ کسی اور کی عبادت کرنا یا دعا میں پکارنا۔

    سوال 2: کیا شرک معاف ہوسکتا ہے؟
    جواب: اگر انسان توبہ کرلے اور مرنے سے پہلے شرک چھوڑ دے تو اللہ معاف فرما دیتا ہے۔

    سوال 3: کیا شرک صرف بتوں کی پوجا ہے؟
    جواب: نہیں، کسی بھی عمل یا عقیدے میں اللہ کے ساتھ شریک ٹھہرانا شرک ہے

    سوال 4: شرک کب معاف نہیں ہوتا؟
    جواب: اگر کوئی شخص شرک پر مر گیا اور اس نے توبہ نہیں کی تو اللہ تعالیٰ اسے معاف نہیں کرے گا۔

    سوال 5: شرکِ اصغر کیا ہے؟
    جواب: ایسا عمل جس میں ریاکاری یا دکھاوا ہو، جیسے نیک عمل صرف لوگوں کو دکھانے کے لیے کرنا۔

    سوال 6: کیا شرک کرنے والا مسلمان رہتا ہے؟
    جواب: اگر وہ شرکِ اکبر کرے تو وہ اسلام سے خارج ہو جاتا ہے جب تک توبہ نہ کرے۔

    سوال 7: شرک سے بچنے کا طریقہ کیا ہے؟
    جواب: قرآن و حدیث کی تعلیمات کو سیکھنا، توحید پر پختہ ایمان رکھنا اور ہر قسم کی بدعات و غیر شرعی رسومات سے بچنا

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