Eid Milad un Nabi Sunnat Ya Bidat
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Eid Milad un Nabi Sunnat Ya Bidat |
इस आर्टिकल में हम जानेंगे:
- ईद-मिलाद मनाना सुन्नत है या बिदअत?
- नबी ﷺ की असली मोहब्बत और इज़्ज़त का सही तरीका
- कुरआन और हदीस की रोशनी में सही अमल
- आम गलतफहमियों और उनकी सच्चाई
इस टॉपिक पर आगे बढ़ने से पहले सोचें कि हम क्या कर रहे हैं और अपनी आने वाली नस्लों को कहाँ ले जा रहे हैं।आप खुद ग़ौर करें कि आज से 20 साल पहले इस दिन को कैसे मनाया जाता था और आज हम या हमारी नस्लें क्या कर रही हैं!
यह कैसी मोहब्बत है नबी ﷺ से?
हर आने वाला साल पिछले साल को शर्मिंदा करता है। हर साल खुराफ़ात में इज़ाफ़ा होता है। और अफ़सोस कि यह सब नबी ﷺ के नाम पर हो रहा है।और आगे आने वाली नस्लें क्या करेगी आप खुद सोचिए क्योंकि बिदॳ़त कभी बांझ नहीं होती हर साल नए नए ख़ुराफ़ात जनम देती है। और जो लोग इसके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं उन्हें "गुस्ताख़" और "बुग़ज़-ए-अहले-बैत" का लेबल लगा दिया जाता है।
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नबी ﷺ ने उम्मत को हर एक इबादत और अमल से मुतल्लिक तालीम दी?
जिस नबी ने हमें हर इबादत से मुतल्लिक तालीम दी, जिस नबी ﷺ ने हमें जूता पहनने का तरीका, बाल संवारने का तरीका, कपड़ा पहनने का तरीका, सोने-उठने का तरीका, यहाँ तक कि बाथरूम जाने तक के आदाब सिखाया, क्या वह नबी ﷺ अपने नाम पर जश्न मनाने का तरीका बताना भूल गए थे? (नऊज़ु बिल्लाह)
सोचने वाली बात यह है कि अगर यह इस्लाम में इतनी बड़ी अहमियत रखता, तो अल्लाह किसी नबी को कम से कम एक आयत के जरिए इस बात की जानकारी देते या नबी ﷺ इसे सहाबा को जरूर बताते ताकि कोई इस नेक अमल से वंचित न रहे।
न तो कोई आयत न ही कोई हदीस इस बात की पुष्टि करती है कि ईद-मिलाद मनाना वाजिब या सुन्नत है। जो भी काम बाद में पैदा हुआ और तीनों पीढ़ियों (सहाबा, ताबेईन और ताब-ताबेईन) में नहीं किया गया, वह कभी सुन्नत नहीं हो सकती; इसे सिर्फ बिदअत कहा जा सकता है।
ईद मिलादुन्नबी ﷺ और असली मोहब्बत का पैग़ाम
नबी ﷺ से सच्ची मोहब्बत यह नहीं कि साल में सिर्फ़ एक दिन जुलूस या जलसा करके दिखाया जाए, बल्कि असली मोहब्बत यह है कि हर दिन, हर महीने, हर घंटे और हर मिनट नबी ﷺ की सुन्नत और तालीमात को ज़िंदगी में उतारा जाए। अगर ईद मिलादुन्नबी मनानी है, तो फिर इसी अंदाज़ में मनानी चाहिए।
ईद मिलादुन्नबी और इख़्तिलाफ़ की हक़ीक़त
“सवाल यह है कि सहाबा-ए-कराम, ताबेईन और ख़ैरुल-क़ुरून के नेक लोग कौन-सी झंडियाँ लगाकर ईद मिलादुन्नबी मनाते थे? उन्होंने कौन-से जुलूस निकाले थे? हक़ीक़त यह है कि यह सब अमल इस्लामी इतिहास में बहुत बाद में, यानी आठवीं सदी हिजरी में, आप ﷺ के विसाल के लगभग आठ सौ साल बाद शुरू हुआ।
नतीजा
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नबी ﷺ की हदीस और अल्लाह का फ़रमान
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
📕 (जामिअ तिर्मिज़ी: हदीस 2675)
सूरह अन-निसा, आयत 14 में अल्लाह तआला फ़रमाता है:
और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल ﷺ की नाफ़रमानी करे और उसकी मुक़र्रर की गई हदों से आगे निकल जाए, तो अल्लाह उसे जहन्नम में डाल देगा, जिसमें वह हमेशा रहेगा। और ऐसे लोगों के लिए रुस्वा करने वाला अज़ाब है।
नतीजा और हमारा मुहासिबा
असली ईमान यह है कि हम नबी ﷺ की सुन्नत को अपनाएँ, उनके बताये हुए तरीक़े को ज़िंदगी में उतारें और हर उस काम से बचें जो दीन में बाद में ईजाद हुआ और न सहाबा-ए-कराम से साबित है और न ख़ैरुल-क़ुरून से।
नेमत का चर्चा/ज़िक्र
कुरआन का हुक्म
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
“ऐ नबी ﷺ! आप अपने रब की नेमतों का खूब चर्चे करें।”
📖 (सूरह अ-दुहा : 11)
गलत ताबीर
लेकिन अफ़सोस कि इस आयत को भी कुछ उलमा ने ईद मिलादुन्नबी से जोड़ कर लोगों को गुमराही के रास्ते पर डाल रखा है। जबकि हक़ीक़त यह है कि इस आयत का तअल्लुक़ किसी ख़ास दिन या जलूस-जंडियों से नहीं है।
नेमत का असल इज़हार
नेमतों का चर्चे करने का सही तरीक़ा यह है कि:
इंसान अपनी ज़ुबान से अल्लाह का शुक्र अदा करे।
यह इकरार करे कि जो भी नेमतें मुझे मिली हैं, यह सब अल्लाह का फ़ज़्ल और एहसान है, मेरा अपना कोई कमाल नहीं।
नेमत-ए-नुबूवत का इज़हार
नुबूवत (पैग़म्बरी) की नेमत का इज़हार इस तरह हो सकता है कि:
हम दावत व तब्लीग़ का हक़ अदा करें।
नबी ﷺ की सीरत और तालीमात को अपनी ज़िंदगी में अपनाएँ।
नेमत-ए-कुरआन का इज़हार
कुरआन की नेमत का इज़हार इस तरह हो सकता है कि:
लोगों में कुरआन की तालीम को फैलाया जाए।
उसकी हिदायत को लोगों के दिलों और ज़हन में बैठाया जाए।
नेमत-ए-हिदायत का इज़हार
हिदायत (सीधा रास्ता) की नेमत का इज़हार यह है कि:
अल्लाह की भटकी हुई मख़लूक़ को सही रास्ता दिखाया जाए।
लोगों को तौहीद और सुन्नत की ओर बुलाया जाए।
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नबी ﷺ ने अपनी पैदाइश के दिन क्या किया?
सहीह मुस्लिम की हदीस
हदीस का मज़मून:
हज़रत अबू क़तादा अंसारी (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ से सोमवार के रोज़े के बारे में पूछा गया, तो आपने फ़रमाया:
“इसी दिन मेरी पैदाइश हुई और इसी दिन मुझ पर (कुरआन) नाज़िल किया गया।”
असल सुन्नत
“यहाँ साफ़ नज़र आता है कि नबी ﷺ ने अपनी पैदाइश के साथ-साथ कुरआन के नुज़ूल (उतारने) का भी “जश्न” मनाया — लेकिन किस तरह?
👉 रोज़ा रखकर!
🛑 सवाल करने लायक बात
अगर हमें नबी ﷺ से मोहब्बत है तो हमें भी उसी तरह करना चाहिए जैसा आपने किया।
लेकिन अफ़सोस, आज लोग कहते तो हैं कि “हम मोहब्बत में जश्न मना रहे हैं”, मगर उनका तरीका बिल्कुल उल्टा है।
आज का हाल
आज के दौर में पैदाइश के दिन:
जलूस और झंडे निकाले जाते हैं।
सड़कें जाम की जाती हैं।
गाने-बजाने और नाच-गाने तक होते हैं
और उसी दिन पाँच वक्त की नमाज़ तक क़ुर्बान कर दी जाती है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है?
असल मोहब्बत क्या है?
असल मोहब्बत यह है कि:
सोमवार को रोज़ा रखें।
नबी ﷺ की सीरत और कुरआन की तालीम को अपनी ज़िंदगी में लागू करें।
असल मोहब्बत का तक़ाज़ा
मोहब्बत का सही मतलब
और रसूलुल्लाह ﷺ से मोहब्बत का तक़ाज़ा उनकी सुन्नत की पैरवी (अनुसरण) करना है।
यही है असली मोहब्बत।
📖 अल्लाह तआला कुरआन (सूरह आले-इमरान 3:31) में फ़रमाता है:
“कह दीजिए (ऐ नबी ﷺ), अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत रखते हो तो मेरी इताअत करो, (उसका नतीजा यह होगा कि) अल्लाह भी तुमसे मोहब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला और रहमत वाला है।
हदीस की रोशनी में
📕 सहीह बुख़ारी (हदीस: 7280) में नबी ﷺ का फ़रमान है:
सहाबा ने पूछा: “या रसूलुल्लाह! इनकार कौन करेगा?”
तो आपने फ़रमाया: “जो मेरी इताअत करेगा वह जन्नत में दाख़िल होगा, और जो मेरी नाफ़रमानी करेगा उसने इनकार किया।”
अपना जायज़ा लें
अब हमें खुद देखना चाहिए कि:
हम नबी ﷺ की कितनी सच्ची पैरवी करते हैं?
और कितनी मोहब्बत का दावा सिर्फ़ ज़बान से करते हैं?
सहाबा का तरीका
तो सबसे पहले सहाबा-ए-किराम (रज़ि.अन्हुम) ऐसा करते।
लेकिन हक़ीक़त यह है कि:
किसी सहाबी, ताबेई या तबा-ताबेई ने “ईद मिलादुन्नबी” का नाम तक इस्तेमाल नहीं किया।
जबकि वे नबी ﷺ से सबसे ज्यादा मोहब्बत करने वाले और सबसे ज्यादा इल्म रखने वाले थे।
असल मोहब्बत कैसे करें?
जरूर जश्न मनाएँ, लेकिन सुन्नत के मुताबिक़:
जलूस, झंडे, डीजे, नाच-गाने और सड़क जाम करने से नहीं।
बल्कि मजलिसें और जलसे करें।
नबी ﷺ की शान-ओ-अज़मत, फ़ज़ाइल, मोज़िज़ात और आपकी तालीमात का ज़िक्र करें।
और यह काम साल में सिर्फ़ एक दिन नहीं, बल्कि हर हफ़्ते, हर महीने और हर दिन होना चाहिए।
अल्लाह हमें असल दीन की समझ अता करे और हमें हक़ की राह पर चलने की तौफ़ीक़ बख़्शे। आमीन।
मिलाद-उन-नबी ﷺ से जुड़ी कुछ आम गलतफहमियाँ
1️⃣ क्या मिलाद-उन-नबी ﷺ सुन्नत है?
2️⃣ क्या यह "अच्छी बिदअत" (बिदअत-ए-हसना) है?
👉 "हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम की तरफ ले जाती है।" 📕 (सुनन-नसाई: 1578)
एक और हदीस में नबी ﷺ ने फरमाया:
👉 "जिसने ऐसा अमल किया जिस पर हमारा कोई अमल नहीं है, वह अमल مردूद है।" 📕 (सहीह बुखारी: 2697)
3️⃣ क्या यह रसूल ﷺ की ताज़ीम के लिए है?
क्या हम उनसे ज़्यादा नबी ﷺ की इज़्ज़त और मोहब्बत कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं।
4️⃣ क्या इससे रसूल ﷺ को याद किया जाता है?
नबी ﷺ को याद करने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत नहीं है। असली मोहब्बत यह है कि रसूल ﷺ की सुन्नत और तालीमात को हर दिन की जिंदगी में अपनाया जाए।
5️⃣ क्या यह नबी ﷺ से मोहब्बत का इज़हार है?
📖 "अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो, तो मेरी इताअत करो, अल्लाह तुमसे मोहब्बत करेगा।" (सूरह आल-इमरान: 31)
और एक और जगह फरमाया गया:
📖 "जिसने रसूल की इताअत की, उसने दरअसल अल्लाह की इताअत की।" (सूरह निसा: 80)
इसलिए असली मोहब्बत यह नहीं कि जुलूस निकाले जाएँ, डीजे बजे, या गाने-नाच हों। बल्कि असली मोहब्बत यह है कि हम नबी ﷺ की सुन्नतों और फरमानों पर अमल करें और अपनी जिंदगी को उसी रास्ते पर ढालें जो उन्होंने बताया।
📌 Conclusion:
अल्लाह और उसके रसूल ﷺ से सच्ची मोहब्बत सिर्फ़ उसी वक्त साबित होती है जब हम अपनी ज़िंदगी को कुरआन और सुन्नत के मुताबिक ढालें। नबी ﷺ ने अपनी पैदाइश का जश्न मनाने के लिए कभी कोई जुलूस, नारे या दिखावा नहीं किया, बल्कि हर सोमवार रोज़ा रखकर अपनी पैदाइश और कुरआन के नुज़ूल की याद ताज़ा की।अब समझ में आ गया होगा कि Eid Milad un Nabi Sunnat Ya Bidat है।
आज अगर हम सच में नबी ﷺ से मोहब्बत का दावा करते हैं तो हमें उन्हीं के तरीक़े पर चलना होगा—न कि अपनी तरफ़ से नए तौर-तरीक़े और बिदअत ईजाद करनी होंगी। असली मोहब्बत यह है कि हम उनकी सुन्नतों को ज़िन्दगी के हर पहलू में अपनाएँ, उनकी तालीमात को अमल में लाएँ और उनके अख़लाक़ को अपनी पहचान बनाएँ।
इसलिए हमें चाहिए कि हम मिलाद-उन-नबी ﷺ को बिदअत और खुराफ़ात से अलग रखकर, नबी ﷺ के बताए हुए तरीके यानी सोमवार के रोज़े और उनकी सुन्नतों को ज़िन्दगी में अपनाकर ही अपने ईमान और मोहब्बत को साबित करें। यही असली मोहब्बत है, यही असली इबादत है, और यही हमें अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के क़रीब ले जाएगी।
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🤲अल्लाह हमें हक़ीक़ी मोहब्बत और सही दीन की समझ अता करे। आमीन या रब्ब-ल-आलमीन।
FAQs
सवाल 1: क्या ईद मिलाद-उन-नबी ﷺ मनाना जायज़ है?
❌ जवाब: नहीं, यह न दीन का हिस्सा है और न जायज़। यह बाद की ईजाद है, जिसकी असल ईसाइयों और गैर-मुस्लिम क़ौमों से ली गई है।
सवाल 2: ईद मिलाद के दौरान होने वाली ख़ुराफ़ात क्या हैं?
✔️ जवाब: जलूस, बेहयाई, नाच-गाना, सड़कों का जाम, फ़िज़ूल ख़र्ची, और ग़ैर-इस्लामी रस्में।
सवाल 3: क्या ईद मिलाद पर जलूस निकालना जायज़ है?
❌ जवाब: नहीं, यह दीन में बिदअत है। न सहाबा से साबित है और न ही शरीअत से।
सवाल 4: ईद मिलाद पर चराग़ाँ (लाइटिंग) करना कैसा है?
✔️ जवाब: कुछ उलमा इसे जायज़ कहते हैं, कुछ इसे फ़िज़ूल-ख़र्ची और बिदअत मानते हैं।
सवाल 5: नात-ख़्वानी की महफ़िलें करना कैसा है?
✔️ जवाब: अगर ग़ैर-शरीअती अमल या शिर्किया अल्फ़ाज़ न हों तो नात-ख़्वानी की महफ़िल जायज़ है। लेकिन अस्ल मक़सद नबी ﷺ की सीरत, तालीमात और मोहब्बत का बयान हो, और यह साल भर हो, सिर्फ़ एक दिन नहीं।
1 Comments
Allah hidayat de
ReplyDeleteplease do not enter any spam link in the comment box.thanks