🕋 कुर्बानी कैसे करें? दुआ, तरीका, हिस्सेदारी और गोश्त की तक्सीम
✨ ईद-उल-अज़हा, जिसे हम "बकरीद" भी कहते हैं, इस्लाम की एक अहम ईद है। इस दिन मुसलमान दुनिया भर में हज़रत इब्राहीम अ.स. की सुन्नत को निभाते हुए अल्लाह की राह में जानवरों की कुर्बानी करते हैं।तो आइए जानें की Qurbani kaise karen? Dua,Tareeqa,Hissedari aur gosht ki Taqseem का मसनून तरीक़ा क्या है ?
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Qurbani ka masnoon tareeqa |
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कुर्बानी का मकसद सिर्फ जानवर ज़बह करना नहीं, बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करना, ईमान की पुख़्तगी और फिदा-कारी का इज़हार है।
📖 कुर्बानी का हुक्म और उसकी दलीलें
कुरआन से दलील:
फसल्ली लि-रब्बिका वनहर"
“तो अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो।”(सूरह अल-कौसर: आयत 2)
इस आयत से साफ़ जाहिर होता है कि कुर्बानी एक हुक्म है, वाजिब है और इसे अल्लाह के लिए करना है।न तो अल्लाह को इनके गोश्त पहुँचते हैं और न खून, बल्कि उसे तो तुमसे तक़्वा (परहेज़गारी) पहुँचती है।"(सूरह अल-हज: आयत 37)
हिकमत: कुर्बानी का असल मकसद तक़्वा है — यानि अल्लाह के लिए त्याग।Read this also: Dhul hijja,Qurbani aur ibadat ka maheena
न तो अल्लाह को इनके गोश्त पहुँचते हैं और न खून, बल्कि उसे तो तुमसे तक़्वा (परहेज़गारी) पहुँचती है।"(सूरह अल-हज: आयत 37)
🕋 कुर्बानी किस पर वाजिब (अनिवार्य) है?
इस्लाम में कुर्बानी एक बहुत ही अहम इबादत है, लेकिन यह हर मुसलमान पर फर्ज (अनिवार्य) नहीं है।
कुर्बानी उन मुसलमानों पर वाजिब है जो बालिग, अक़लमंद, मुक़ीम और साहिबे निसाब हों। यह एक अहम इबादत है, जिसे करने से इंसान अल्लाह का क़ुर्ब पाता है और समाज के गरीब लोगों को राहत भी मिलती है। अगर आप इन शर्तों को पूरा करते हैं, तो आप पर कुर्बानी करना ज़रूरी है।
कुर्बानी उन मुसलमानों पर वाजिब है जो बालिग, अक़लमंद, मुक़ीम और साहिबे निसाब हों। यह एक अहम इबादत है, जिसे करने से इंसान अल्लाह का क़ुर्ब पाता है और समाज के गरीब लोगों को राहत भी मिलती है। अगर आप इन शर्तों को पूरा करते हैं, तो आप पर कुर्बानी करना ज़रूरी है।
2. हदीस से दलील:
हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि.) बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया:यह हदीस इस बात की वज़ाहत करती है कि कुर्बानी हैसियत वाले पर वाजिब है और इसे न करने पर अल्लाह और रसूल की नाराज़गी हो सकती है।
“जिस शख्स में कुर्बानी करने की हैसियत हो और वह न करे, वह हमारी ईदगाह के करीब भी न आए।”(इब्ने माजाह: हदीस 3123)
🐐 कुर्बानी के जानवर और उनकी शरायत
कुर्बानी के जानवर कौन-कौन से हो सकते हैं?
- बकरी/दुम्बा: सिर्फ एक शख्स के लिए
- गाय/भैंस: सात हिस्सों तक
- ऊँट: सात हिस्सों तक
जानवर की उम्र:
- बकरी/दुम्बा: कम से कम 1 साल (या 6 महीने अगर मोटा हो)
- गाय: कम से कम 2 साल
- ऊँट: कम से कम 5 साल
शरीअत के मुताबिक सही जानवर:
- सेहतमंद हो
- अंधा, लंगड़ा, बहुत कमज़ोर या कान-कटा न हो
- कुर्बानी के लिए चुना गया हो
(अबू दाऊद: 2802)
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तो उसे चाहिए कि वह अपनी क़ुर्बानी में अपने घर के सभी लोगों को भी शामिल करे। इसलिए ज़बह करते वक्त अपने नाम के साथ-साथ अपने घर वालों का भी ज़िक्र करे।
अगर सलीम घर का मुखिया है, तो उसके साथ उसके घर वालों का भी ज़िक्र किया जाए:
📚 हदीस के हवाले:
(सहीह बुखारी: 5565, सहीह मुस्लिम: 1966, 1967)
“उनसे खाओ और मुहताजों (मिस्कीनों) को खिलाओ।”(सूरह अल-हज: आयत 28)
हिकमत: इस तक्सीम में भाईचारा, इन्सानियत, और समाजी हमदर्दी का सबक है।
🤲 कुर्बानी की दुआ क्या पढ़ें?
जब कोई मुसलमान खुद अपने हाथ से कुर्बानी करता है (या किसी से करवा रहा होता है), तो उस समय सुनन-ए-नबवी (हज़रत मुहम्मद ﷺ की सुन्नत) के मुताबिक एक खास दुआ पढ़ी जाती है।
जानवर को ज़बह करते वक़्त यह दुआ पढ़ें:
बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर, अल्लाहुम्मा हाज़ा मिंका व लका।"
"अल्लाह के नाम से और अल्लाह सबसे बड़ा है। हे अल्लाह! यह (कुर्बानी) तेरी ही तरफ से है और तेरे ही लिए है।"(अबू दाउद:2795)
बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर, अल्लाहुम्मा हाज़ा मिन्नी'
अगर किसी और की तरफ से कुर्बानी कर रहा हो तो दुआ ऐसे हो:
> اللَّهُمَّ هَذَا عَنْ فُلَانٍ
(जहां “फुलान” की जगह उस व्यक्ति का नाम लें जिसकी तरफ से कुर्बानी हो रही है)
📌 उदाहरण:
اللَّهُمَّ هَذَا عَنْ مُحَمَّدٍ
(ए अल्लाह! यह मुहम्मद की तरफ से है)
यह दुआ हमें याद दिलाती है कि यह जानवर अल्लाह का इनआम है और हम उसे उसी के नाम पर कुर्बान कर रहे हैं।
और तफ्सील से समझते हैं
1. जब कोई शख्स अपने नाम से क़ुर्बानी कर रहा हो:
जब ज़बह करने वाला खुद अपने लिए जानवर ज़बह कर रहा हो, तो वह कहे:इसके बाद जानवर को अच्छी तरह चाकू से ज़बह करे।
بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ أَكْبَرُ، اَللّٰهُمَّ هٰذَا مِنْكَ وَلَكَ، اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّي
हिन्दी तर्जुमा:
"अल्लाह के नाम से, अल्लाह सबसे बड़ा है। या अल्लाह! यह (क़ुर्बानी) तेरी तरफ़ से और तेरे लिए है। या अल्लाह! इसे मेरी तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा।"
2. अगर क़ुर्बानी करने वाला घर का मुखिया हो:
तो उसे चाहिए कि वह अपनी क़ुर्बानी में अपने घर के सभी लोगों को भी शामिल करे। इसलिए ज़बह करते वक्त अपने नाम के साथ-साथ अपने घर वालों का भी ज़िक्र करे।
मिसाल के तौर पर:
अगर उसका नाम "उसैद" (Osaid) है, तो वह कहे:
بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ أَكْبَرُ، اَللّٰهُمَّ هٰذَا مِنْكَ وَلَكَ، اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنْ أُسَيْدٍ وَآلِ أُسَيْد
हिन्दी तर्जुमा:
"अल्लाह के नाम से, अल्लाह सबसे बड़ा है। या अल्लाह! यह तेरी तरफ़ से और तेरे लिए है। या अल्लाह! इसे उसैद और उसैद के घरवालों की तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा।"
3. अगर किसी और की तरफ़ से क़ुर्बानी की जा रही हो:
तो जानवर ज़बह करते वक्त उस शख्स का नाम लिया जाए जिसकी तरफ़ से क़ुर्बानी की जा रही है।मिसाल के तौर पर:
अगर क़ुर्बानी "सलीम" (Saleem) की तरफ़ से हो रही है, तो ज़बह करने वाला कहे:
بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ أَكْبَرُ، اَللّٰهُمَّ هٰذَا مِنْكَ وَلَكَ، اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنْ سَلِيم
हिन्दी तर्जुमा:
"अल्लाह के नाम से, अल्लाह सबसे बड़ा है। या अल्लाह! यह तेरी तरफ़ से और तेरे लिए है। या अल्लाह! इसे सलीम की तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा।"
अगर सलीम घर का मुखिया है, तो उसके साथ उसके घर वालों का भी ज़िक्र किया जाए:
بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ أَكْبَرُ، اَللّٰهُمَّ هٰذَا مِنْكَ وَلَكَ، اَللّٰهُمَّ تَقَبَّلْ مِنْ سَلِيمٍ وَآلِ سَلِيم
हिन्दी तर्जुमा:
"अल्लाह के नाम से, अल्लाह सबसे बड़ा है। या अल्लाह! यह तेरी तरफ़ से और तेरे लिए है। या अल्लाह! इसे सलीम और उसके घरवालों की तरफ़ से क़ुबूल फ़रमा।"
📚 हदीस के हवाले:
(सहीह बुखारी: 5565, सहीह मुस्लिम: 1966, 1967)
👥 बड़े जानवर में कितने लोग शामिल हो सकते हैं?
शरीअत के मुताबिक:
गाय और ऊँट में 7 लोग तक शरीक हो सकते हैं, बशर्ते कि सभी की नियत कुर्बानी की हो।हदीस: "हम रसूलुल्लाह ﷺ के साथ सफर में थे। हमने ऊँट और गाय में सात-सात हिस्से किए।"(सहीह मुस्लिम: 1318)
हिस्सेदारों को चाहिए कि सभी की नियत सिर्फ कुर्बानी हो, न कि सिर्फ गोश्त लेना।
🍖 गोश्त की तक्सीम कैसे करें?
- कुर्बानी का गोश्त तीन हिस्सों में तक्सीम करना सुन्नत है:
- एक हिस्सा खुद के लिए
- दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए
- तीसरा हिस्सा गरीब और जरूरतमंदों के लिए
“उनसे खाओ और मुहताजों (मिस्कीनों) को खिलाओ।”(सूरह अल-हज: आयत 28)
हिकमत: इस तक्सीम में भाईचारा, इन्सानियत, और समाजी हमदर्दी का सबक है।
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👉 इसलिए इस ईद-उल-अज़हा पर कुर्बानी को सिर्फ एक रस्म न समझें, बल्कि इबादत और सेवा का ज़रिया बनाएं।
📋 कुर्बानी की अहम हिदायतें (Tips)
- कुर्बानी की नियत सही हो
- कुर्बानी के बाद गोश्त का कोई हिस्सा बेचना हराम है
- चमड़ा बेचना भी मना है — इसे सदक़ा करें
- कुर्बानी का वक्त ईद की नमाज़ के बाद से शुरू होता है
🕋अगर कुर्बानी की नियत हो और न कर सके
अगर कोई शख्स कुर्बानी की नियत रखता हो और इस्तिताअत न रखता हो यानी माली तंगी की वजह से कुर्बानी न कर सके तो वो भी कुर्बानी करने वाले की तरह ही अजर हासिल कर सकता है। आइए हदीस देखें
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस (रज़ि. अल्लाहु अन्हुमा) बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
"या रसूलल्लाह! अगर मुझे दूध देने वाले जानवर के अलावा कोई दूसरा जानवर न मिले (क़ुर्बानी के लिए), तो क्या मैं उसी की क़ुर्बानी कर सकता हूं?"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस (रज़ि. अल्लाहु अन्हुमा) बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
"मुझे ज़िलहिज्जा की 10 तारीख़ (यानी क़ुर्बानी के दिन) को ईद के तौर पर मनाने का हुक्म दिया गया है, जिसे अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल ने इस उम्मत के लिए खास फ़रमाया है।"एक आदमी ने अर्ज़ किया:
"या रसूलल्लाह! अगर मुझे दूध देने वाले जानवर के अलावा कोई दूसरा जानवर न मिले (क़ुर्बानी के लिए), तो क्या मैं उसी की क़ुर्बानी कर सकता हूं?"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
"नहीं, बल्कि तुम अपने बाल काट लो, नाखून और मूंछें तराश लो और नाफ़ के नीचे की सफाई कर लो। अल्लाह के यहां यही तुम्हारी पूरी क़ुर्बानी मानी जाएगी।"📚 सुनन अबू दाऊद: हदीस नंबर 2789
🕌 Conclussion (निष्कर्ष):
कुर्बानी इस्लामी रिवायतों का अहम हिस्सा है जो हमें तक़्वा, फिदाकारी, और समाजी जिम्मेदारी सिखाती है। यह इबादत हमें खुदा के करीब लाती है और हमें बताती है कि सिर्फ रस्मों और रिवाजों पर नहीं, बल्कि नियत और अमल पर अल्लाह नज़र करता है।👉 इसलिए इस ईद-उल-अज़हा पर कुर्बानी को सिर्फ एक रस्म न समझें, बल्कि इबादत और सेवा का ज़रिया बनाएं।
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FAQs:
1. कुर्बानी किन लोगों पर वाजिब है?
हर साहिब-ए-निसाब मुसलमान मर्द और औरत पर वाजिब है जो अक़िलमंद, बालिग़ और मुक़ीम हो।
2. कुर्बानी कब की जाती है?
ईद-उल-अज़हा की नमाज़ के बाद से 10, 11, 12 ज़िलहिज्जा तक कुर्बानी की जा सकती है।
3. क्या औरतें भी कुर्बानी कर सकती हैं?
जी हां, अगर औरत साहिब-ए-निसाब है तो उस पर कुर्बानी वाजिब है।
4. एक ही जानवर में कितने लोग हिस्सेदार हो सकते हैं?
गाय, भैंस या ऊँट में 7 लोग शामिल हो सकते हैं; बकरी या दुम्बा सिर्फ 1 व्यक्ति के लिए होता है।
5. क्या कुर्बानी का गोश्त गैर-मुस्लिम को दिया जा सकता है?
हां, अगर वह ज़रूरतमंद और अमनपसंद हो तो दे सकते हैं।
6. क्या कुर्बानी का गोश्त बेचना जायज़ है?
नहीं, कुर्बानी का कोई हिस्सा बेचना जायज़ नहीं है। खाल को सदक़ा करना चाहिए।
7. कुर्बानी न कर पाने की सूरत में क्या करना चाहिए?
अगर वाजिब थी और नहीं कर पाए, तो कीमत का सदक़ा करें, लेकिन यह कुर्बानी का पूरा बदल नहीं है।
8. क्या नेक नियत पर कुर्बानी का सवाब मिलेगा ?
अल्लाह तआला बंदे के निय्यत पर सवाब देता है, अगर वह नेक निय्यत रखे और उसमें क़ाबलियत न हो तो भी उसे सवाब दिया जाता है।"
(सहीह बुखारी व मुस्लिम, निय्यत की बाब)
9. जो कुर्बानी की हैसियत नहीं रखते, वे क्या करें?
जिन पर कुर्बानी वाजिब नहीं (जैसे गरीब, क़र्ज़दार, या कम आमदनी वाले), वे गुनहगार नहीं होते। ऐसे लोग इन नेक आमाल से सवाब पा सकते हैं:
- ✔ नेक निय्यत रखें कि अगर हैसियत होती तो कुर्बानी करते — इस पर भी अल्लाह सवाब देता है (सहीह हदीस)।
- ✔ कुर्बानी के दिनों में अल्लाह का ज़िक्र, तकबीर, दुआ और इबादत बढ़ाएँ।
- ✔ जो थोड़ा-बहुत माली वसिला हो उससे सदक़ा करें, किसी गरीब को खाना खिलाएँ।
- ✔ रातों में इबादत करें — इससे अल्लाह दिल को ईमान से रोशन करता है।
10. कुर्बानी के दिनों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा प्यारा अमल कौनसा है ?
रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
“कुर्बानी के दिनों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा प्यारा अमल उसका ज़िक्र है।”
(अल-तरग़ीब व अल-तरहीब)
इन दिनों में तकबीर-ए-तशरीक पढ़ना, ज़िक्र करना, दुआएँ माँगना — ये सब इबादतें भी कुर्बानी के दिनों की अहम सुन्नतें हैं।
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