Dhul Hijjah Haj, Qurbani aur ibadat ka Maheena

"🌙 ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिन नेकियों का खज़ाना हैं – उन्हें ज़ाया न करें 🌟 🕋 हज, तौहीद और बराबरी का सबसे बड़ा पैग़ाम है 🤲 🐐 कुर्बानी सिर्फ जानवर की नहीं, अपने नफ़्स की भी होनी चाहिए ✨ 📖 "अल्लाह को तुम्हारा गोश्त नहीं, तुम्हारा तक़वा पहुँचता है" – (सूरह हज्ज: 37) 📿 🕋 ज़ुल-हिज्जा, वह महीना जिसमें दुआएँ कुबूल होती हैं और गुनाह माफ़ होते हैं 🌸

Dhul Hijjah Haj, Qurbani aur ibadat ka Maheena/ज़ुल-हिज्जा – हज, क़ुर्बानी और इबादत का महीना

Quebani,Eid UL Adha
Dhul Hijjah Haj, Eid ul Adha



इस्लामी कैलेंडर का बारहवां और आख़िरी महीना ज़ुल-हिज्जा Dhul Hijjah Haj, Qurbani aur ibadat ka Maheena है, जो रहमतों, बरकतों और अज्र व सवाब से भरपूर है। यह वह मुबारक महीना है जिसमें दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह के घर काबा की ज़ियारत के लिए जमा होते हैं और हज अदा करते हैं।
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     साथ ही, इसी महीने में ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) मनाई जाती है जो हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अज़ीम कुर्बानी की याद को ताज़ा करती है।

    1. ज़ुल-हिज्जा की फज़ीलत

    हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:

    “ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिन ऐसे हैं कि अल्लाह के नज़दीक इन दिनों में किया गया अमल सबसे प्यारा है।”
    (बुख़ारी: 969)

    इन दस दिनों में रोज़ा, नमाज़, तसबीह, तिलावत, सदक़ा और तमाम नेकी के कामों का बहुत बड़ा अज्र है। खासतौर पर 9 ज़ुल-हिज्जा (यौमे अराफ़ा) का रोज़ा पिछले और अगले साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनता है।

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    2. हज – इस्लाम का पांचवां स्तंभ

    हज इस्लाम के पांच बुनियादी अरकान में से एक है, जो हर उस मुसलमान पर फ़र्ज़ है जो शरई तौर पर इसके लिए क़ाबिल हो। हज के दौरान मुसलमान एक ही लिबास (एहराम) में, एक ही मक़ाम पर अल्लाह की बारगाह में सर झुकाते हैं। हज, इस्लामी भाईचारे, बराबरी और तौहीद का आलमी पैग़ाम है।

    "और लोगों के लिए अल्लाह के घर का हज करना फ़र्ज़ है, जो उस तक पहुँचने की ताक़त रखता हो।"
    (कुरआन – सूरह आले इमरान: 97)


    3. कुर्बानी – ख़ालिस नीयत की पहचान

    10 ज़ुल-हिज्जा को ईद-उल-अज़हा के दिन मुसलमान अल्लाह की राह में जानवर की कुर्बानी करते हैं, जो हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और उनके बेटे हज़रत इस्माईल (अ.स.) की आज़माइश की यादगार है। कुर्बानी में सबसे अहम चीज़ है नीयत और तक़वा।

    "अल्लाह को न तो जानवरों का गोश्त पहुँचता है और न उनका खून, बल्कि उसे तो सिर्फ़ तुम्हारा तक़वा पहुँचता है।"
    (कुरआन – सूरह हज्ज: 37)

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    4. इबादत और नेकियों का बेहतरीन मौका

    ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिन इबादत, तौबा, इस्तेग़फ़ार और नेकियों के लिए बेहतरीन मौका हैं। इन दिनों में:

    • पाँच वक़्त की नमाज़ की पाबंदी
    • कुरआन की तिलावत
    • रोज़े रखना (खासतौर पर 9 ज़ुल-हिज्जा का रोज़ा)
    • ज़िक्र और तस्बीह (जैसे – अल्लाहु अकबर, अल्हम्दुलिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाह)
    • सदक़ा और खैरात

    इन अमलों से इंसान के दिल में तौहीद, सब्र और शुक्र का जज़्बा पैदा होता है।


     🌙 अशरा-ए-ज़ुल-हिज्जा में ज़्यादा पढ़े जाने वाले अज़कार:




    🔹 لَا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ
    ला इला हा इल्लल्लाह
    👉 “अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।”

    🔹 سُبْحَانَ اللّٰهِ
    सुब्हानल्लाह
    👉 “अल्लाह पाक है।”

    🔹 الْـحَمْدُ لِلّٰهِ
    अल्हम्दु लिल्लाह
    👉 “सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं।”

    🔹 اللّٰهُ أَكْبَرُ
    अल्लाहु अकबर
    👉 “अल्लाह सबसे बड़ा है।”

    🔹 اللّٰهُ أَكْبَرُ، اللّٰهُ أَكْبَرُ، اللّٰهُ أَكْبَرُ، لَا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ، وَاللّٰهُ أَكْبَرُ، اللّٰهُ أَكْبَرُ، وَلِلّٰهِ الْـحَمْدُ
    अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इला हा इल्लल्लाह, 
    वल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल्लाहिल हम्द
    👉 “अल्लाह सबसे बड़ा है… अल्लाह ही के लिए सारी तारीफ़ें हैं।”

    🔹 سُبْحَانَ اللّٰهِ، وَالْـحَمْدُ لِلّٰهِ، وَلَا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ، وَاللّٰهُ أَكْبَرُ
    सुब्हानल्लाह, वल्हम्दु लिल्लाह, व ला इला हा इल्लल्लाह, व अल्लाहु अकबर
    👉 “अल्लाह पाक है, सारी तारीफ़ें उसी के लिए हैं, अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, और अल्लाह सबसे बड़ा है।”

    🔹 اللّٰهُ أَكْبَرُ كَبِيرًا، وَالْـحَمْدُ لِلّٰهِ كَثِيرًا، وَسُبْحَانَ اللّٰهِ بُكْرَةً وَأَصِيلًا
    अल्लाहु अकबर कबीरन, वल्हम्दु लिल्लाहि कसीरन, व सुब्हानल्लाहि बुक्रतन व असीला
    👉 “अल्लाह बहुत बड़ा है, और बहुत ज़्यादा तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं, और अल्लाह पाक है सुबह-शाम।”

    🕋 यौमे अरफ़ा (9 ज़ुल-हिज्जा) की खास दुआ


    🔹 لَا إِلٰهَ إِلَّا اللّٰهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ، وَلَهُ الْـحَمْدُ، وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

    ला इला हा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीक लह, लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु, व हुव अला कुल्लि शयिन क़दीर
    👉 “अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वो अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत है, और उसी के लिए सारी तारीफ़ें हैं, और वह हर चीज़ पर क़ादिर है।”


    ✅ नतीजा (Conclusion)

    Dhul Hijjah Haj, Qurbani aur ibadat ka Maheena है, यह महीना हमें खुदा से क़रीब होने का बेहतरीन मौका देता है। यह महीना हमें इबादत, तौहीद, कुर्बानी और इताअत का पैग़ाम देता है। हम सबको चाहिए कि इस महीने की बरकतों को समझें, अपने दिल को साफ करें और अल्लाह की रज़ा हासिल करने की कोशिश करें। यही वह वक़्त है जब हम अपनी ज़िंदगी की रुख़ को नेकियों की तरफ़ मोड़ सकते हैं।

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    दुआ है कि अल्लाह तआला हम सबको ज़ुल-हिज्जा की फज़ीलतों से भरपूर फ़ायदा उठाने की तौफीक़ अता फ़रमाए। आमीन।


    ✅ FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवालात):

    1. ज़ुल-हिज्जा क्या है और इसकी क्या अहमियत है?
    ज़ुल-हिज्जा इस्लामी साल का आखिरी महीना है जिसमें हज और ईद-उल-अज़हा जैसे अज़ीम इबादात अदा की जाती हैं। पहले दस दिन बहुत फज़ीलत वाले होते हैं।

    2. क्या सिर्फ हाजी के लिए ज़ुल-हिज्जा के अमल हैं?
    नहीं, ज़ुल-हिज्जा के पहले दस दिन हर मुसलमान के लिए नेकियों का खज़ाना हैं, चाहे वो हज पर जाए या न जाए।

    3. अराफा के दिन का रोज़ा रखने का क्या सवाब है?
    रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि अराफा के दिन का रोज़ा एक पिछले साल और एक आने वाले साल के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनता है। (सहीह मुस्लिम)

    4. कुर्बानी किस पर वाजिब है?
    हर उस मुसलमान पर जो मालदार हो (निसाब के बराबर माल रखता हो), कुर्बानी वाजिब है।

    5. क्या कुर्बानी का गोश्त ग़ैर-मुस्लिम को दिया जा सकता है?
    जी हाँ, अगर वो ग़ैर-मुस्लिम पड़ोसी, ज़रूरतमंद या भुखा है, तो उसे भी कुर्बानी का गोश्त दिया जा सकता है।



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