Salam, Namaz ka Khaatma/सलाम, नमाज़ का खात्मा

""हमें रसूलुल्लाह की नमाज़ का ख़त्म होना मालूम नहीं होता था मगर तकबीर (अल्लाहु अकबर सुनने) के साथ।" (सहीह मुस्लिम: 583)"

Salam, Namaz ka Khaatma/सलाम, नमाज़ का खात्मा

Salam ke Baad ke Masnoon adaab aur Dua
Salam, Namaz ka Khaatma


इस्लाम एक मुकम्मल दीन है जो इंसान की ज़िन्दगी के हर पहलू की रहनुमाई करता है। नमाज़, जो कि इस्लाम का दूसरा रुक्न है, उसमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें न सिर्फ नमाज़ के दौरान बल्कि नमाज़ के बाद भी कुछ मस्नून आदाब और दुआओं की तालीम दी है।

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    नमाज़ के समाप्ति के बाद के अज़कार और दुआएँ दीन-ए-इस्लाम की रूहानी तालीमात में एक अहम मक़ाम रखती हैं। यह अज़कार न सिर्फ़ इबादतों की तकमील का ज़रिया बनते हैं बल्कि रूहानी ताक़त, मग़फ़िरत और क़ुर्ब-ए-इलाही के हासिल करने में भी मददगार साबित होते हैं। नबी अकरम ﷺ की सुन्नत में नमाज़ के बाद मख़सूस अज़कार और दुआएँ मौजूद हैं, जिन पर अमल करके हम अपनी इबादतों को और ज़्यादा असरदार और बाबरकत बना सकते हैं। इस मज़मून Salam, Namaz ka Khaatma में हम सही हदीसों की रोशनी में इन अज़कार और दुआओं का ज़िक्र करेंगे।

    नमाज़ का खात्मा 

    आख़िरी तशह्हुद में सलाम फेरने के बाद  नबी ﷺ  थोड़ा बुलंद आवाज़ से अल्लाह अकबर कहते थे फिर इस्तिग़फ़ार पढ़ते थे। 
    ◐ अब्दुल्लाह बिन अब्बास फ़रमाते हैं कि"मैं नबी ﷺ की नमाज़ का ख़ात्मा तकबीर (अल्लाहु अकबर) से पहचान लेता था।" (बुखारी: 842)


    ◐ एक रिवायत में है कि "हमें रसूलुल्लाह की नमाज़ का ख़त्म होना मालूम नहीं होता था मगर तकबीर (अल्लाहु अकबर सुनने) के साथ।" (सहीह मुस्लिम: 583)

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    नमाज़ के बाद के अज़कार 


    ◐ आपﷺ  नमाज़ (पूरी करके) खत्म करने के बाद तीन दफ़ा इस्तिग़फ़ार करते 
    (أسْتَغْفِرُاﷲَ، أسْتَغْفِرُاﷲَ،أسْتَغْفِرُاﷲََ) 
    और फ़रमाते 
    (اَللّٰھُمَّ أنْتَ السَّلَامُ وَمِنْکَ السَّلَامُ تَبَارَکْتَ ذَا الْجَلَالِ وَالإکْرَامِ)
    (सहीह मुस्लिम: 591)"
    या इलाही! तू अस्सलाम है और तेरी ही तरफ़ से सलामती है। ऐ जलाल और इकराम वाले! तू बड़ा ही बाबरकत है।"
    यह सुन्नत हमें सिखाती है कि नमाज़ के बाद इस्तिग़फार करना अल्लाह से अपनी कोताहियों की माफ़ी माँगने का ज़रिया है, ताकि अगर नमाज़ में कोई कमी रह गई हो तो अल्लाह उसे माफ़ फरमा दे।

    ◐ आप दर्ज़ ज़ैल दुआएँ भी पढ़ते थे:
    (لَا اِلٰہَ إلاَّ اﷲُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیْکَ لَہٗ، لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ، وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ، اَللّٰھُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَیْتَ،وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا یَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْکَ الْجَدُّ
    (सहीह बुखारी: 844, सहीह मुस्लिम: 593)
    "अल्लाह के सिवा कोई माबूद (बरहक) नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं है, उसी की बादशाहत है और सारी तारीफ़ उसी के लिए है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। या अल्लाह! जिसे तू दे, उसे कोई रोक नहीं सकता और जिससे तू रोक ले, उसे कोई दे नहीं सकता, किसी बुज़ुर्गी वाले को उसकी बुज़ुर्गी तेरे अज़ाब से नहीं बचा सकती।"


    ◐ आपने मुआज़ को नसीहत करते हुए फ़रमाया: ऐ मुआज़! हर नमाज़ के बाद यह ज़िक्र करना न छोड़ना।
    (اَللّٰھُمَّ !أَعِنِّیْ عَلٰی ذِکْرِکَ وَشُکْرِکَ وَحُسْنِ عِبَادَتِکَ) 
    (अबू दाऊद: 1522)
    "ऐ हमारे रब! अपने ज़िक्र, शुक्र और अच्छी इबादत के लिए मेरी मदद फ़रमा।"


    ◐ आपने फ़रमाया: जो शख़्स हर नमाज़ के बाद
     तैंतीस (33) दफ़ा तस्बीह (سبحان اللہ), तैंतीस (33) दफ़ा हम्द (الحمدللہ) और तैंतीस (33) दफ़ा तकबीर (اللہ اکبر) पढ़े और आख़िरी दफ़ा 
    "لَا اِلٰہَ إلَّا اﷲُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہُ لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ
    पढ़े तो उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, अगरचे वह (गुनाह) समंदर की झाग के बराबर (यानी बहुत ज़्यादा) हों। (सहीह मुस्लिम: 597)चौंतीस (34) दफ़ा "अल्लाहु अकबर" कहना भी साबित है। (सहीह मुस्लिम: 596)


    ◐ आपने अक़बा बिन आमिर को हुक्म फ़रमाया कि हर नमाज़ के बाद मुअव्विज़ात (वह सूरह जो "कुल अऊज़" से शुरू होती हैं) पढ़ें।
    दलील: " (अबू दाऊद: 1523)

    और वह मुअव्विज़ात यह हैं:

    {قُلْ ھُوَ اﷲُ أحَدٌ اَﷲُ الصَّمَدُ لَمْ یَلِدْ وَلَمْ یُوْلَدْ وَلَمْ یَکُنْ لَّہُ کُفُوًا أحَدٌ}"
    आप कह दीजिए कि वह अल्लाह तआला एक ही है, अल्लाह तआला बेनियाज़ है, न उससे कोई पैदा हुआ, न वह किसी से पैदा हुआ और न कोई उसका हमसर है।"

    {قُلْ أَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إذَا وَقَبَ وَمِنْ شَرِّ النَّفّٰثٰتِ فِیْ الْعُقَدِ وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إذَا حَسَدَ}
    "आप कह दीजिए कि मैं सुबह के रब की पनाह में आता हूँ हर उस चीज़ की बुराई से जो उसने पैदा की, और अंधेरी रात की बुराई से जब उसका अंधेरा फैल जाए और गिरह लगा कर उनमें फूँकने वालों की बुराई से और हसद करने वाले की बुराई से जब वह हसद करे।"


    {قُلْ أعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِ مَلِکِ النَّاسِ إلٰہِ النَّاسِ مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ الَّذِیْ یُوَسْوِسُ فِیْ صُدُوْرِ النَّاسِ مِنَ الْجِنَّۃِ وَالنَّاسِ}
    "आप कह दीजिए कि मैं लोगों के परवरदिगार की पनाह में आता हूँ, लोगों के मालिक की और लोगों के माबूद की, वसवसा डालने वाले पीछे हट जाने वाले की बुराई से, जो लोगों के सीने में वसवसा डालता है, चाहे वह जिन हो या इंसान।"


    आयतुल कुर्सी:

    ◐ आपने फ़रमाया: 

    "जिसने हर फ़र्ज़ नमाज़ के आख़िर में (सलाम के बाद) आयतुल कुर्सी पढ़ी वह शख़्स मरते ही जन्नत में दाख़िल हो जाएगा।"

    आयतुल कुर्सी के अल्फ़ाज़ ये हैं:

    {اَﷲُ لَا إلٰہَ إلَّا ھُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ لَاتَاْخُذُہُ سِنَۃٌ وَّلَا نَوْمٌ لَہُ مَا فِیْ السَّمٰوٰاتِ وَمَا فِیْ الاَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِیْ یَشْفَعُ عِنْدَہُ إلَّا بِإذْنِہِ یَعْلَمُ مَا بَیْنَ أیْدِیْھِمْ وَمَا خَلْفَھُمْ وَلَا یُحِیْطُوْنَ بِشَئٍ مِّنْ عِلْمِہِ إلَّا بِمَا شَائَ وَسِعَ کُرْسِیُّہُ السَّمٰوٰاتِ وَالاَرْضِ وَلاَ یَؤُدُہُ حِفْظُھُمَا وَھُوَ الْعَلِیُّ الْعَظِیْمُ}


    "अल्लाह तआला ही मअबूद बरहक़ है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं जो ज़िंदा और सबका थामने वाला है जिसे न ऊँघ आए न नींद। उसकी मिल्कियत में ज़मीन व आसमान की तमाम चीज़ें हैं। कौन है जो उसकी इजाज़त के बग़ैर उसके सामने शफ़ाअत कर सके। वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है और वे उसके इल्म में से किसी चीज़ का एहाता नहीं कर सकते मगर जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी की वुसअत ने ज़मीन व आसमान को घेर रखा है। वह अल्लाह तआला उनकी हिफ़ाज़त से न थकता है और न अक़ता है। वह तो बहुत बुलंद और बहुत बड़ा है।"

    ◐ इब्न ज़ुबैर कहते हैं कि नबी हर नमाज़ के बाद यह पढ़ते थे:

    لَا إلٰہَ إلَّا اﷲُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہُ ، لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ إلَّا بِاﷲِ، لَا إلٰہَ إلَّا اﷲُ وَلَا نَعْبُدُ إلَّا إیَّاہُ ، لَہُ النِّعْمَۃُ وَلَہُ الْفَضْلُ وَلَہُ الثَّنَائُ الْحَسَنُ لَا إلٰہَ إلاَّ اﷲُ مُخْلَصِیْنَ لَہُ الدِّیْنَ وَلَوْکَرِہَ الْکَافِرُوْنَ
    (सहीह मुस्लिम: 594)


    "कोई मअबूद इबादत के लायक़ नहीं मगर अल्लाह, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की बादशाहत है और उसी के लिए सब तारीफ़ है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। गुनाह से बचने की ताक़त न इबादत करने की क़ुव्वत है मगर अल्लाह की तौफ़ीक़ से, नहीं है कोई मअबूद (बरहक़) मगर अल्लाह, हम सिर्फ़ उसी की इबादत करते हैं और एहसान, बड़ाई और अच्छी तारीफ़ उसी के लिए है, नहीं है कोई मअबूद (बरहक़) मगर अल्लाह, हम दीन में उसके लिए ख़ालिस हैं अगरचे काफ़िर लोग इसे बुरा क्यों न समझें।"

    ◐ इनके अलावा जो दुआएँ क़ुरआन-हदीस से साबित हैं, उनका पढ़ना अफ़ज़ल है चूँकि नमाज़ अब मुकम्मल हो चुकी है। लिहाज़ा, अपनी ज़ुबान में दुआ माँगी जा सकती है। और दोनों हथेलियाँ अपने चेहरे पर फेर लेते थे।

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    फर्ज़ नमाज़ के बाद सामूहिक दुआ

    Salam ke Baad ke Masnoon adaab aur Dua
    Salam, Namaz ka Khaatma



    नमाज़ के बाद सामूहिक दुआ का कोई सबूत नहीं है। शरीअत की क़ौली और फ़ैली तशरीहात अहादीस की किताबों और उनकी शरहों में महफ़ूज़ हैं, जिनके ज़रिए एक तालिब-ए-हक़ आसानी से मक़सद तक पहुँच सकता है। ख़ास तौर पर नमाज़ एक अज़ीम फ़रीज़ा है, जिसकी तमाम जुज़इयात का अमली नमूना हर वक़्त आप ﷺ ख़ुद थे और सहाबा-ए-किराम की एक बड़ी जमात आपकी इक्तिदा में पाँचों वक़्त की नमाज़ें पढ़ती थी। उन्होंने हर लिहाज़ से नमाज़ के मसाइल की वज़ाहत में कोई कसर नहीं छोड़ी, मगर उनसे किसी एक फ़र्द ने भी नमाज़ के बाद सामूहिक दुआ का ज़िक्र तक नहीं किया।

    फिर मुहद्दिसीन-ए-इज़ाम, जिनकी हदीसी ख़िदमात रोशन दिन की तरह वाज़ेह हैं, जिन्होंने एक-एक फ़रमान-ए-नबवी से बेशुमार मसाइल का इस्तिंबात व इस्तिख़राज़ किया, उन्होंने भी कभी किसी रिवायत से फर्ज़ नमाज़ के बाद सामूहिक दुआ के वुजूद या इस्तिहबाब का मसला अख़्ज़ नहीं किया। यहाँ तक कि सामूहिक दुआ के क़ाइलीन ने जिन रिवायात को अपने इस्तिदलाल की बुनियाद बनाया है, वे भी ज़ख़ीरा-ए-हदीस में मौजूद और मुहद्दिसीन के सामने थीं। लेकिन इसके बावजूद जब आप आइम्मा मुहद्दिसीन के अबवाब व तराजिम को देखें, तो आपको सामूहिक दुआ के फर्ज़ या इस्तिहबाब पर अदना सी झलक भी नज़र नहीं आएगी।

    इंफ़िरादी दुआ करना:

    नवाफ़िल के बाद इंफ़िरादन हाथ उठाकर तवील दुआ करना मस्नून है।

    दुआ के लिए इज्तिमा बदअत है, अलबत्ता किसी दूसरे मक़सद के लिए इज्तिमा हो तो उसमें सामूहिक दुआ जाइज़ है।

    Conclusion:


    नमाज़ के बाद के अज़कार और दुआएँ इस्लामी तालीमात का एक अहम जुज़ हैं, जो इंसान के रूहानी सफ़र को ताक़त देते हैं। नबी अकरम ﷺ के बयान किए गए अज़कार और दुआएँ न सिर्फ़ मग़फ़िरत, हिफ़ाज़त और क़ुर्ब-ए-इलाही का ज़रिया हैं, बल्कि बंदे के दिल में सुकून और इत्मिनान भी पैदा करते हैं। हमें चाहिए कि इन मस्नून अज़कार को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएँ और नमाज़ के बाद इन्हीं के ज़रिए अल्लाह तआला का ज़िक्र और शुक्र अदा करें।अल्लाह हमें सही मायनों में अपने दीन पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन।
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    سلام, نماز کا خاتمہ

    نماز کے اختتام کے بعد کے اذکار اور دعائیں دینِ اسلام کی روحانی تعلیمات میں ایک اہم مقام رکھتی ہیں۔ یہ اذکار نہ صرف عبادات کی تکمیل کا ذریعہ بنتے ہیں بلکہ روحانی تقویت، مغفرت اور قربِ الٰہی کے حصول میں بھی مددگار ثابت ہوتے ہیں۔ نبی اکرم ﷺ کی سنت میں نماز کے بعد مخصوص اذکار اور دعائیں موجود ہیں، جن پر عمل پیرا ہو کر ہم اپنی عبادات کو مزید مؤثر اور بابرکت بنا سکتے ہیں۔ اس مضمون میں ہم صحیح احادیث کی روشنی میں ان اذکار اور دعاؤں کا تذکرہ کریں گے۔

    نماز کا اختتام


    ◐ عبداللہ بن عباس فرماتے ہیں کہ
    ’’میں نبی کی نماز کا اختتام تکبیر (اللہ اکبر) سے پہچان لیتا تھا۔‘‘(بخاری:۸۴۲)
    ◐ایک روایت میں ہے کہ
    ’’ما کنا نعرف انقضاء صلوٰۃ رسول اﷲ إلا بالتکبیر‘‘›
    ’’ہمیں رسول اللہ کی نماز کا ختم ہونا معلوم نہیں ہوتا تھامگر تکبیر(اللہ اکبر سننے)کے ساتھ ۔‘‘ (صحیح مسلم:۵۸۳)

    نماز کے بعد اذکار اور دعائیں


    ◐ آپﷺ  نماز (پوری کرکے) ختم کرنے کے بعد تین دفعہ استغفار کرتے
     (أسْتَغْفِرُاﷲَ، أسْتَغْفِرُاﷲَ،أسْتَغْفِرُاﷲََ)
     اور فرماتے
    ( اَللّٰھُمَّ أنْتَ السَّلَامُ وَمِنْکَ السَّلَامُ تَبَارَکْتَ ذَا الْجَلَالِ وَالإکْرَامِ) (صحیح مسلم:۵۹۱)
    ’’یاالٰہی! تو السلام ہے اور تیری ہی طرف سے سلامتی ہے ـ اے جلال اور اکرام والے! تو بڑا ہی بابرکت ہے۔‘‘
    ◐ آپ درج ذیل دعائیں بھی پڑھتے تھے:
    (لَا اِلٰہَ إلاَّ اﷲُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیْکَ لَہٗ، لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ، وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ، اَللّٰھُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَیْتَ،وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا یَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْکَ الْجَدُّ ) (صحیح بخاری:۸۴۴، صحیح مسلم:۵۹۳)
    ’’اللہ کے سوا کوئی معبود (برحق) نہیں وہ اکیلا ہے اس کا کوئی شریک نہیں ہے اسی کی بادشاہت ہے اور ساری تعریف اسی کے لئے ہی ہے اور وہ ہر چیز پر قادر ہے۔ یااللہ! جس کو تو دے اسے کوئی روک نہیں سکتا اور جس سے تو روک دے اسے کوئی دے نہیں سکتا کسی بزرگی والے کو اس کی بزرگی تیرے عذاب سے بچا نںیے سکتی۔‘‘
    ◐ آپ نے معاذ کو نصیحت کرتے ہوئے فرمایا: اے معاذ! ہرنما زکے بعد یہ ذکر کرنانہ چھوڑنا۔
    (اَللّٰھُمَّ !أَعِنِّیْ عَلٰی ذِکْرِکَ وَشُکْرِکَ وَحُسْنِ عِبَادَتِکَ) (ابوداود:۱۵۲۲)
    ’’اے ہمارے رب! اپنے ذکر ،شکر اور اچھی عبادت کے لئے میری مدد فرما۔‘‘
    ◐ آپ نے فرمایا:جو شخص ہر نماز کے بعد 
    تینتیس (۳۳)دفعہ تسبیح (سبحان اللہ) تینتیس(۳۳) دفعہ حمد (الحمدللہ) اور تینتیس (۳۳)دفعہ تکبیر (اللہ اکبر) پڑھے اور آخری دفعہ 
    ’’لَا اِلٰہَ إلَّا اﷲُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہُ لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ‘‘ پڑھے تو اس کے گناہ معاف کردیئے جاتے ہیں اگرچہ وہ (گناہ) سمندر کی جھاگ کے برابر (یعنی بہت زیادہ) ہوں۔(صحیح مسلم:۵۹۷)
    چونتیس (۳۴)دفعہ’ اللہ اکبر‘ کہنا بھی ثابت ہے۔ (صحیح مسلم:۵۹۶)

    ◐ آپ نے عقبہ بن عامر کو حکم فرمایا کہ ہر نماز کے بعد معوذات (وہ سورتیں جو قل أعوذ سے شروع ہوتی ہیں) پڑھیں۔
    دلیل : عن عقبۃ بن عامر قال:’’أمرنی رسول اللہ أن أقرأ بالمعوذات دبر کل صلاۃ‘‘÷
    (ابوداود:۱۵۲۳)
    اور وہ معوذات یہ ہیں:
    {قُلْ ھُوَ اﷲُ أحَدٌ اَﷲُ الصَّمَدُ لَمْ یَلِدْ وَلَمْ یُوْلَدْ وَلَمْ یَکُنْ لَّہُ کُفُوًا أحَدٌ} 
    ’’آپ کہہ دیجئے کہ وہ اللہ تعالیٰ ایک ہی ہے، اللہ تعالیٰ بے نیاز ہے نہ اس سے کوئی پیدا ہوا نہ وہ کسی سے پیدا ہوا اور نہ کوئی اس کا ہمسر ہے۔‘‘
    {قُلْ أَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ وَمِنْ شَرِّ غَاسِقٍ إذَا وَقَبَ وَمِنْ شَرِّ النَّفّٰثٰتِ فِیْ الْعُقَدِ وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إذَا حَسَدَ}
    ’’آپ کہہ دیجئے کہ میں صبح کے رب کی پناہ میں آتا ہوں ہر اس چیز کی برائی سے جو اس نے پیدا کی ہے اور اندھیری رات کی برائی سے جب اس کا اندھیرا پھیل جائے اور گرہ لگا کر ان میں پھونکنے والیوں کی برائی سے (بھی) اور حسد کرنے والے کی برائی سے بھی جب وہ حسد کرے۔‘‘
    {قُلْ أعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِ مَلِکِ النَّاسِ إلٰہِ النَّاسِ مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ الَّذِیْ یُوَسْوِسُ فِیْ صُدُوْرِ النَّاسِ مِنَ الْجِنَّۃِ وَالنَّاسِ}
    ’’آپ کہہ دیجئے کہ میں لوگوں کے پروردگار کی پناہ میں آتا ہوں لوگوں کے مالک کی (اور) لوگوں کے معبود کی (پناہ میں) وسوسہ ڈالنے والے پیچھے ہٹ جانے والے کی برائی سے جو لوگوں کے سینوں میںوسوسہ ڈالتا ہے خواہ وہ جن ہو یا انسانــ۔‘‘

    آیۃ الکرسی:


    ◐ آپ نے فرمایا: (من قرأ آیۃ الکرسی فی دبر کل صلوٰۃ مکتوبۃ، لم یمنعہ من دخول الجنۃ إلا أن یموت)
    ’’جس نے ہر فرض نماز کے آخر میں (سلام کے بعد) آیت الکرسی پڑھی وہ شخص مرتے ہی جنت میں داخل ہوجائے گا۔‘‘
    آیۃ الکرسی کے الفاظ یہ ہیں:
    {اَﷲُ لَا إلٰہَ إلَّا ھُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ لَاتَاْخُذُہُ سِنَۃٌ وَّلَا نَوْمٌ لَہُ مَا فِیْ السَّمٰوٰاتِ وَمَا فِیْ الاَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِیْ یَشْفَعُ عِنْدَہُ إلَّا بِإذْنِہِ یَعْلَمُ مَا بَیْنَ أیْدِیْھِمْ وَمَا خَلْفَھُمْ وَلَا یُحِیْطُوْنَ بِشَئٍ مِّنْ عِلْمِہِ إلَّا بِمَا شَائَ وَسِعَ کُرْسِیُّہُ السَّمٰوٰاتِ وَالاَرْضِ وَلاَ یَؤُدُہُ حِفْظُھُمَا وَھُوَ الْعَلِیُّ الْعَظِیْمُ}
    ’’اللہ تعالیٰ ہی معبود برحق ہے جس کے سوا کوئی معبود نہیں جو زندہ اور سب کا تھامنے والا ہے جسے نہ اونگھ آئے نہ نیند اس کی ملکیت میں زمین و آسمان کی تمام چیزیں ہیں کون ہے جو اس کی اجازت کے بغیر اس کے سامنے شفاعت کرسکے وہ جانتا ہے جو ان کے سامنے ہے اور جو ان کے پیچھے ہے اور وہ اس کے علم میں سے کسی چیز کا احاطہ نہیںکرسکتے مگر جتنا وہ چاہے اس کی کرسی کی وسعت نے زمین و آسمان کو گھیر رکھا ہے وہ اللہ تعالیٰ ان کی حفاظت سے تھکتا اور نہ اکتاتا ہے وہ تو بہت بلند اور بہت بڑا ہے۔‘‘

    ◐ ابن زبیر کہتے ہیں کہ نبی ہرنما زکے بعد یہ پڑھتے تھے:
    لَا إلٰہَ إلَّا اﷲُ وَحْدَہُ لَا شَرِیْکَ لَہُ ، لَہُ الْمُلْکُ وَلَہُ الْحَمْدُ وَھُوَ عَلٰی کُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ إلَّا بِاﷲِ، لَا إلٰہَ إلَّا اﷲُ وَلَا نَعْبُدُ إلَّا إیَّاہُ ، لَہُ النِّعْمَۃُ وَلَہُ الْفُضْلُ وَلَہُ الثَّنَائُ الْحَسَنُ لَا إلٰہَ إلاَّ اﷲُ مُخْلَصِیْنَ لَہُ الدِّیْنَ وَلَوْکَرِہَ الْکَافِرُوْنَ
    (صحیح مسلم:۵۹۴)
    ’’کوئی معبود عبادت کے لائق نہیں مگر اللہ ، اس کا کوئی شریک نہیں اسی کی بادشاہت ہے اور اسی کے لئے سب تعریف ہے اور وہ ہر چیز پر قادر ہے۔ گناہ سے بچنے کی طاقت نہ عبادت کرنے کی قوت ہے مگراللہ کی توفیق سے، نہیں ہے کوئی معبود (برحق) مگر اللہ، ہم صرف اسی کی عبادت کرتے ہیںاور احسان بزرگی اور اچھی تعریف اسی کے لئے ہے، نہیں ہے کوئی معبود(برحق) مگر اللہ، ہم دین میں اس کے لئے خالص ہیں اگرچہ کافر لوگ اسے برا کیوں نہ سمجھیں۔‘‘
    ◐ ان کے علاوہ جو دعائیں قرآن حدیث سے ثابت ہیں ان کا پڑھنا افضل ہے چونکہ نماز اب مکمل ہوچکی ہے۔ لہٰذا اپنی زبان میں دعا مانگی جاسکتی ہے۔ اور دونوں ہتھیلیاں اپنے چہرے پرپھیر لیتے تھے۔

    فرض نماز کے بعد اجتماعی دعا

    نماز کے بعد اجتماعی دعا کا کوئی ثبوت نہیں ہے۔ شریعت کی قولی و فعلی تشریحات کتب ِاحادیث اور ان کی شروح میں محفوظ ہیں جن کے ذریعے ایک طالب ِحق بآسانی مطلوبہ مقاصد سے آگاہی حاصل کرسکتا ہے۔ بالخصوص نما زایک عظیم فریضہ ہے جس کی جملہ جزئیات کا عملی نمونہ ہمہ وقت آپﷺخود تھے اور صحابہ کرام کی ایک بڑی جماعت آپ کی اقتدا میں پانچوں وقت نمازیں پڑھتی تھی۔ اُنہوں نے ہر اعتبار سے نماز کے مسائل کی وضاحت میں کوئی کسر نہیں چھوڑی۔ مگر ان سے کسی ایک فرد نے بھی نماز کے بعد اجتماعی دعا کاذکر تک نہیں کیا۔ پھر محدثین عظام جن کی حدیثی خدمات اظہر من الشمس ہیں جنہوں نے ایک ایک فرمانِ نبوی سے بے شمار مسائل کا استنباط واستخراج کیا، کبھی کسی نے کسی روایت سے فرض نماز کے بعد اجتماعی دعا کا وجوب یا استحباب کا مسئلہ اَخذ نہیں کیا۔ یہاں تک کہ اجتماعی دعا کے قائلین نے جن روایات کو اپنے استدلال کی بنیاد بنایا ہے، وہ بھی ذخیرئہ حدیث میں موجود اور محدثین کے سامنے تھیں۔ لیکن اس کے باوجود آپ ائمہ محدثین کے ابواب و تراجم کو اٹھا کر دیکھیں، آپ کو اجتماعی دعا کے فرض یا استحباب پرادنیٰ سی جھلک بھی نظر نہیں آئے گی۔

    انفرادی دعاء کرنا:


    5۔نوافل کے بعد انفراداً ہاتھ اٹھا کر طویل دعا مسنون ہے۔
    6۔دعا کے لئے اجتماع بدعت ہے، البتہ کسی دوسرے مقصد کے لئے اجتماع ہو تو اس میں اجتماعی دعا جائز ہے۔ والله الهادي

    اختتامی کلمات

    نماز کے بعد کے اذکار اور دعائیں اسلامی تعلیمات کا ایک اہم جزو ہیں جو انسان کے روحانی سفر کو تقویت دیتے ہیں۔ نبی اکرم ﷺ کے بیان کردہ اذکار اور دعائیں نہ صرف مغفرت، حفاظت اور قربِ الٰہی کا ذریعہ ہیں بلکہ بندے کے دل میں سکون اور اطمینان بھی پیدا کرتے ہیں۔ ہمیں چاہیے کہ ان مسنون اذکار کو اپنی زندگی کا حصہ بنائیں اور نماز کے بعد انہی کے ذریعے اللہ تعالیٰ کا ذکر اور شکر ادا کریں۔ اللہ ہمیں صحیح معنوں میں اپنے دین پر عمل کرنے کی توفیق عطا فرمائے۔ آمین

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    FAQs:



    सवाल 1: क्या हर नमाज़ के बाद विशेष दुआओं का पढ़ना जरूरी है?

    उत्तर: हर नमाज़ के बाद कुछ विशेष दुआएं और ज़िक्र पढ़ना बहुत लाभकारी है, लेकिन यह वाजिब नहीं है। ये दुआएं नबी ﷺ की सुन्नत हैं और हमें इन्हें पढ़ने से फज़ीलत मिलती है। उदाहरण के तौर पर, "أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ" (मैं अल्लाह से माफी मांगता हूँ) और "اللَّهُمَّ أَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلاَمُ" जैसी दुआएं हमें पढ़नी चाहिए।


    सवाल 2: क्या नमाज़ के बाद एकजुट होकर दुआ करना सही है?

    उत्तर: नमाज़ के बाद एकजुट होकर दुआ करना इस्लामिक सुन्नत से साबित नहीं है। शरिया में नमाज़ के बाद दुआ व्यक्तिगत रूप से की जाती है और इसे एकजुट होकर करना कोई सटीक परंपरा नहीं है। हां, अगर कोई विशेष उद्देश्य हो तो सामूहिक दुआ की जा सकती है, लेकिन यह एक अलग मामला है।


    सवाल 3: क्या आयतुल कुरसी को हर नमाज़ के बाद पढ़ना चाहिए?

    उत्तर: हां, नबी ﷺ ने आयतुल कुरसी को हर फर्ज नमाज़ के बाद पढ़ने की सलाह दी है। इसे पढ़ने से इंसान की सुरक्षा और अल्लाह की मदद प्राप्त होती है। जो व्यक्ति नमाज़ के बाद आयतुल कुरसी पढ़ता है, वह जल्दी जन्नत में प्रवेश करेगा, जैसा कि हदीस में आया है।


    सवाल 4: क्या "मुअव्विज़ात" को हर नमाज़ के बाद पढ़ना चाहिए?

    उत्तर: हाँ, नबी ﷺ ने "मुअव्विज़ात" (कुल आम, फलक और नास) को हर नमाज़ के बाद पढ़ने की सलाह दी है। यह तीन सूरतें शैतान से बचाव और सुरक्षा प्रदान करती हैं।


    सवाल 5: क्या किसी अन्य भाषा में दुआ करना ठीक है?

    उत्तर: नमाज़ के बाद दुआ के लिए अरबी में की जाने वाली दुआएं सबसे ज्यादा फज़ीलत रखती हैं, लेकिन अगर कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा में दुआ करता है, तो भी अल्लाह उससे सुनता है। दुआ का मकसद अल्लाह से बातचीत और अपनी ज़रूरतों का इज़हार करना है, न कि किसी विशेष भाषा का पालन करना।

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