Pardesiyon ki Zindagi(Part: 2)
Pardesiyon ki Zindagi" एक ऐसी दिल छू लेने वाली कहानी है जो हर उस इंसान की हकीकत बयां करती है जो अपनों की खुशियों के लिए खुद को खो देता है। यह कहानी 'नदीम' नाम के एक साधारण लेकिन बहादुर इंसान की है, जिसने अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी ज़िंदगी परदेस में गुजार दी।
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हर ख़त में छिपी उसकी उम्मीद, हर जवाब में दबी उसकी कुर्बानी – सब कुछ रुला देने वाला है। यह कहानी सिर्फ नदीम की नहीं, हर उस बेटे, भाई, पति और बाप की है जो दिन-रात मेहनत करता है, मगर घर लौटने की ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो पाती। अगर आपने कभी अपनों को दूर जाते देखा है, या खुद परदेस में तन्हा समय बिताया है, तो यह कहानी आपके दिल को छू जाएगी। इसे ज़रूर पढ़ें और दूसरों तक पहुंचाएं।"
हर इंसान की ख्वाहिश:
हर इंसान अपने घर की चौखट पर सुकून चाहता है, माँ के हाथ का खाना, बच्चों की हँसी, और पत्नी की मुस्कान और हर इंसान अपने जीवन में खुशहाल ज़िंदगी और अपने परिवार की बेहतरी के लिए मेहनत करता है, लेकिन जब यह मेहनत अपने घर-देश से दूर परदेस की धूल-धूप में करनी पड़े, तो वह इंसान बाहर से जितना हँसता है, अंदर से उतना ही टूटता जाता है।
मगर कुछ लोग इन सबको पीछे छोड़, उस परदेस की तरफ बढ़ जाते हैं जहाँ सिर्फ अकेलापन, काम और आँसू उनका इंतज़ार करते हैं।
यह कहानी है "नदीम" नाम के एक मेहनती इंसान की, जिसने अपने परिवार के लिए अपना देश, अपना घर और अपनी ज़िंदगी तक कुर्बान कर दी।जिसने हँसते हुए घर छोड़ा था… पर लौटते वक़्त उसके चेहरे पर सिर्फ थकान थी।
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यह कहते हुए उसने मां के आँचल में सिर छिपाया था। लेकिन किसे पता था कि मां की गोद की वो आख़िरी नींद होगी और वो विदाई बरसों की जुदाई में बदल जायेगी।
बेटा, घर कच्चा है। बरसात में गिर जाएगा। थोड़ा और रुक जा… बस एक पक्का घर बना ले, फिर आ जाना। मरम्मत का खर्चा बहुत है। काश, छोटा सा पक्का घर होता… तुम जानते हो यहां के हालात, वापस आकर खर्च नहीं उठा पाओगे।"
जवाब पढ़ कर ख़ामोश हो गया और सोचा की कोई बात नहीं और कुछ साल गुज़ारा कर लूं फिर सब ठीक हो जाएगा! नदीम ने गहरी साँस ली… और फिर से समय को आगे धकेल दिया।
पहला कदम: उम्मीदों से भरी विदाई
घर से परदेस के लिए निकलते वक्त का मंज़र, उसके इर्द गिर्द घर के सभी लोग मौजूद है ! सभी को इसके घर से दूर जाने का ग़म है!"अम्मी, मैं जल्दी लौटूंगा। बस कुछ साल की बात है। आप सबके लिए अच्छा घर बनाऊंगा।"फिर हम सभी साथ ही रहेगें।
यह कहते हुए उसने मां के आँचल में सिर छिपाया था। लेकिन किसे पता था कि मां की गोद की वो आख़िरी नींद होगी और वो विदाई बरसों की जुदाई में बदल जायेगी।
पहला ख़त: एक साधारण सी तमन्ना – घर लौटने की।
नदीम अपने घर परिवार को संभालने और उनके अखराजात को पूरा करने के लिए क़र्ज़ लेकर परदेस का रुख करता है! और फिर देखते देखते चार साल का वक्त गुजर जाता है।"प्यारे अब्बू और अम्मी! आज मुझे परदेस आए चार साल हो गए हैं। कर्ज़ चुका चुका हूं, अब बड़ी रकम नहीं बची। थक गया हूं परदेस की धूल से, लेकिन हौसला है कि वतन जाकर कोई नौकरी कर लूंगा। मुझे अब परदेस अच्छा नहीं लगता, मैं अपने घर में रहना चाहता हूं।"
मगर जवाब क्या आता है?
बेटा, घर कच्चा है। बरसात में गिर जाएगा। थोड़ा और रुक जा… बस एक पक्का घर बना ले, फिर आ जाना। मरम्मत का खर्चा बहुत है। काश, छोटा सा पक्का घर होता… तुम जानते हो यहां के हालात, वापस आकर खर्च नहीं उठा पाओगे।"
जवाब पढ़ कर ख़ामोश हो गया और सोचा की कोई बात नहीं और कुछ साल गुज़ारा कर लूं फिर सब ठीक हो जाएगा! नदीम ने गहरी साँस ली… और फिर से समय को आगे धकेल दिया।
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लेकिन जवाब में एक और ज़रूरत सर उठा लेती है:
वक्त गुजरते गए और देखते देखते 12 साल का ज़माना गुज़र गया और बहन की शादी भी हो गई अच्छे घराने में! उसने फिर एक खत लिखा:
लेकिन अब पत्नी ज़हरा की चिंताएं सामने आती हैं:
दूसरा ख़त: आठ साल की थकान और एक नई ख्वाहिश
"अब थक चुका हूं, घर की बहुत याद आती है… घर बन चुका है, कर्ज़ भी खत्म हो गया है। बस अब बच्चों के साथ रहना चाहता हूं।"
लेकिन जवाब में एक और ज़रूरत सर उठा लेती है:
"बेटा, बहन ज़ैनब अब बड़ी हो गई है। शादी करनी है। कुछ सोचा उसके लिए?"तू तो जानता है, लड़की की शादी में कितना खर्च होता है।"
तीसरा ख़त: बारह साल बाद, बीमारी और तन्हाई
वक्त गुजरते गए और देखते देखते 12 साल का ज़माना गुज़र गया और बहन की शादी भी हो गई अच्छे घराने में! उसने फिर एक खत लिखा:
"अब तो बीमारी ने घेर लिया है। खुद खाना बनाना, खुद इलाज कराना… लेकिन बहन की शादी हो गई, आप दोनों का हज हो गया, कोई कर्ज़ भी नहीं बचा। अब घर आना चाहता हूं।"
लेकिन अब पत्नी ज़हरा की चिंताएं सामने आती हैं:
"आपके छोटे भाई को ज़्यादा प्यार मिल रहा है,और ऐसा लग रहा है कि हमें रहने के लिए वो घर नहीं मिलेगा। हम बच्चों को लेकर कहां जाएंगे? अभी अपना घर बनाना बाकी है कुछ हमारे और बच्चों के मुस्तक़बिल के बारे में सोचें!"
आख़िरी पड़ाव: सोलह साल बाद की रिहाई
वक्त गुजरने लगा, चार साल और गुज़र गए , अपना जाती घर भी हो गया और बच्चे भी पढ़ रहे हैं! उसे चाहत हुई घर जाने की तो उसने एक खत लिखा
और पत्नी एक बार फिर कहती है:
खत पढ़ कर कुछ लम्हों के लिए गहरी सोच में डूब गया! ऐसा लगा जैसे आँखों के सामने अंधेरा छा गया,कभी खत की तरफ देखता तो कभी अपने बीमार जिस्म की तरफ़! फ़िर फ़ैसला किया कि ठीक है और कुछ साल रुक जाता हूं ताकि फीस का इंतेज़ाम भी ही जाएगा और बेटा की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी!
और फ़िर बीस साल का वक्त गुजर चुके हैं। बेटे की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है लेकिन नदीम अब एक थका हुआ बूढ़ा है। हाथ कांपते हैं, आँखों में चमक नहीं, दिल में कोई उम्मीद नहीं। वह खुद को एयर पोर्ट की तरफ़ घसीट रहा था।
अब उसके पास बस एक बीमार शरीर, एक सूना चेहरा और जेब में पड़ा एक "बंद खत" है — वो पहला खत, जिसे उसने कभी खोला ही नहीं था।
अब वह खुद भी नहीं जानता कि वह जी रहा है या बस साँसें ले रहा है…
"शरीर जवाब देने लगा है, अब रिटायरमेंट का वक्त आ गया है। घर बन गया है, सब कुछ दे सका हूं। अब थक चुका हूं,घर लौटकर आराम करना चाहता हूं "
और पत्नी एक बार फिर कहती है:
"आप सोच-समझकर फैसला लीजिएगा मैं भला क्या कर सकती हूँ ? कहां से उसके फ़ीस का इंतज़ाम होगा। "फैसला सोच-समझकर लेना… अभी बहुत ज़रूरी है तुम्हारा यहीं रहना।"
खत पढ़ कर कुछ लम्हों के लिए गहरी सोच में डूब गया! ऐसा लगा जैसे आँखों के सामने अंधेरा छा गया,कभी खत की तरफ देखता तो कभी अपने बीमार जिस्म की तरफ़! फ़िर फ़ैसला किया कि ठीक है और कुछ साल रुक जाता हूं ताकि फीस का इंतेज़ाम भी ही जाएगा और बेटा की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी!
बीस साल बाद – एक बंद ख़त,एक थका हारा इंसान
और फ़िर बीस साल का वक्त गुजर चुके हैं। बेटे की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है लेकिन नदीम अब एक थका हुआ बूढ़ा है। हाथ कांपते हैं, आँखों में चमक नहीं, दिल में कोई उम्मीद नहीं। वह खुद को एयर पोर्ट की तरफ़ घसीट रहा था।
अब उसके पास बस एक बीमार शरीर, एक सूना चेहरा और जेब में पड़ा एक "बंद खत" है — वो पहला खत, जिसे उसने कभी खोला ही नहीं था।
अब वह खुद भी नहीं जानता कि वह जी रहा है या बस साँसें ले रहा है…
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इस कहानी में क्या सीखा जा सकता है?
- परदेस कमाई का नाम है, लेकिन हर कमाई में इंसान थोड़ा-थोड़ा मरता है।
- हर वो इंसान जो अपनी धरती से दूर है, वो सिर्फ़ पैसे नहीं भेजता — वो अपना वक़्त, अपनी सेहत और अपने जज़्बात भी कुर्बान करता है।
- परदेस कमाई का ज़रिया हो सकता है, मगर हमेशा की राहत नहीं।
- हर इंसान के जज़्बात होते हैं, पर कई बार उनका गला 'फर्ज़' घोंट देता है।
- परिवार की मांगें कभी खत्म नहीं होतीं, एक ख़त्म होती है तो दूसरी आ जाती है,लेकिन इंसान की ताक़त और उम्र खत्म हो जाती है।
Conclusion:
कई सारे Pardesiyon ki Zindagi नदीम से मिलती जुलती होगी। नदीम की कहानी तो ख़त्म हो गई, लेकिन आज भी लाखों लोग ऐसे हैं जो परदेस में रहकर अपनी खुशियों को पीछे छोड़ चुके हैं। उन्होंने अपने घरवालों के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया, लेकिन अपने लिए कुछ नहीं बचाया। उनके चेहरे पर मुस्कान तो होती है, लेकिन दिल में थकान, आँखों में आंसू, और दिल में एक चुप सी उम्मीद होती है — जो शायद कभी पूरी न हो पाए।
दुआ:
ऐ खुदा! हर परदेशी के दिल को सुकून दे, हर मां को उसके बेटे का दीदार करवा, और जो लोग कुर्बानी दे रहे हैं उन्हें दुनिया और आख़िरत दोनों में उसका इनाम अता फरमा।
आमीन।
या अल्लाह परदेस में कमाने वाले तमाम परदेसियों के लिए आसानी का मुआमला कर ! आमीन
या अल्लाह परदेस में कमाने वाले तमाम परदेसियों के लिए आसानी का मुआमला कर ! आमीन
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FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q1: यह कहानी किसके बारे में है?
A: यह कहानी "नदीम" नाम के एक मेहनती इंसान की है, जो अपने परिवार की बेहतरी के लिए परदेस चला जाता है और वहाँ अपनी पूरी ज़िंदगी की कुर्बानी दे देता है।
Q2: इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
A: यह कहानी बताती है कि परदेस की कमाई तो हो जाती है, लेकिन इंसान अपनी भावनाएं, सेहत और ज़िंदगी धीरे-धीरे खो देता है।
Q3: क्या यह एक सच्ची घटना पर आधारित है?
A: यह एक काल्पनिक लेकिन हकीकत के बेहद करीब कहानी है, जो हजारों प्रवासियों की ज़िंदगी से मिलती-जुलती है।
Q4: इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
A: हमें प्रवासियों को सिर्फ पैसे कमाने वाली मशीन नहीं, इंसान समझना चाहिए — जिनकी भी एक ज़िंदगी, एक दिल और एक घर लौटने की ख्वाहिश होती है।
Q5: इस लेख का उद्देश्य क्या है?
A: इस लेख का मक़सद उन अनगिनत पर्देसियों के दर्द को आवाज़ देना है जिन्हें अक्सर भुला दिया जाता है।:
FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q1: यह कहानी किसके बारे में है?
A: यह कहानी "नदीम" नाम के एक मेहनती इंसान की है, जो अपने परिवार की बेहतरी के लिए परदेस चला जाता है और वहाँ अपनी पूरी ज़िंदगी की कुर्बानी दे देता है।
Q2: इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
A: यह कहानी बताती है कि परदेस की कमाई तो हो जाती है, लेकिन इंसान अपनी भावनाएं, सेहत और ज़िंदगी धीरे-धीरे खो देता है।
Q3: क्या यह एक सच्ची घटना पर आधारित है?
A: यह एक काल्पनिक लेकिन हकीकत के बेहद करीब कहानी है, जो हजारों प्रवासियों की ज़िंदगी से मिलती-जुलती है।
Q4: इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
A: हमें प्रवासियों को सिर्फ पैसे कमाने वाली मशीन नहीं, इंसान समझना चाहिए — जिनकी भी एक ज़िंदगी, एक दिल और एक घर लौटने की ख्वाहिश होती है।
Q5: इस लेख का उद्देश्य क्या है?
A: इस लेख का मक़सद उन अनगिनत पर्देसियों के दर्द को आवाज़ देना है जिन्हें अक्सर भुला दिया जाता है।:
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