Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ?/क्या क़ुरआन अल्लाह का कलाम है?

खुद क़ुरआन की गवाही  कि यह अल्लाह का कलाम है"और यदि तुम को इस (क़ुरआन) में कुछ संदेह हो जो हमने अपने बन्दे (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर उतारा है, तो तुम इसके समान कोई सूरह ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।" (सूरह अल-बक़राह 2:23)"

Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ?/क्या क़ुरआन अल्लाह का कलाम है?

Quranic miracles
Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai 


कई गैर मुस्लिमों का यह सवाल है की Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ? और कईयों का दावा है की क़ुरान अल्लाह का कलाम ही नही है !आज इसी से मुतल्लिक पढ़ेंगे और दलील की रोशनी में जानेंगे की Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ?

📖 Table of Contents

    क़ुरआन पाक इस्लाम की बुनियादी किताब है, जिसे अल्लाह तआला ने अपने आख़िरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया। यह किताब इंसानों की रहनुमाई, दुनिया और आख़िरत की कामयाबी के लिए उतारी गई है। यह दावा किया जाता है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, और इस दावे के हक़ में कई मज़बूत दलीलें मौजूद हैं। आइए, इन दलीलों को तफ़सील से देखते हैं।

     खुद क़ुरआन की गवाही

    क़ुरआन खुद अपने बारे में बयान करता है कि यह अल्लाह का कलाम है और उसे किसी इंसान ने नहीं लिखा।

     अल्लाह का खुला चैलेंज:

    अल्लाह फ़रमाता है:
    > "और यदि तुम को इस (क़ुरआन) में कुछ संदेह हो जो हमने अपने बन्दे (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर उतारा है, तो तुम इसके समान कोई सूरह ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।"
    (सूरह अल-बक़राह 2:23)

    यह एक खुली चुनौती है कि कोई भी इंसान, जिन्न या पूरी इंसानियत मिलकर भी क़ुरआन जैसी कोई किताब या सूरह नहीं बना सकती।
    और अलहुम्दु लिल्लाह आज तक इस चुनौती को कोई न पूरा कर पाया और न ही कोई कर पाएगा !



     किसी और के कलाम जैसा नहीं

    > "और यह क़ुरआन किसी और का कलाम नहीं, बल्कि अल्लाह की तरफ़ से उतारा गया है।"
    (सूरह यूसुफ़ :2)

    यह बयान साफ़ तौर पर बताता है कि क़ुरआन किसी इंसान, फ़रिश्ते या नबी का लिखा हुआ नहीं, बल्कि सीधे अल्लाह का उतारा हुआ कलाम है।

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    क़ुरआन अल्लाह ही का दिव्य कलाम है

     सूरह अन-निसा (4:82) जिसमें अल्लाह तआला इंसानों को यह सोचने और समझने की दावत देता है कि अगर कुरआन वास्तव में अल्लाह की ओर से न होता, तो इसमें बहुत सी विसंगतियाँ (contradictions) और असंगत बातें होतीं।

    >"क्या ये लोग क़ुरआन पर ग़ौर नहीं करते? अगर ये अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ़ से होता तो इसमें बहुत कुछ बे-मेल बयान पाया जाता।"

    यह आयत कुरआन की सत्यता और दिव्य (Divine) प्रकृति पर एक तर्क पेश करती है। इसका मतलब यह है कि कुरआन पूरी तरह से संगत (consistent) और सामंजस्यपूर्ण (harmonious) है, जिसमें कोई विरोधाभास नहीं मिलता। अगर यह किसी इंसान की बनाई हुई किताब होती, तो उसमें गलती या असमानता पाई जाती।

    इस आयत का संदेश यही है कि जो लोग कुरआन पर शक करते हैं, उन्हें इसे गहराई से पढ़ना और समझना चाहिए, क्योंकि इसमें हर पहलू से सत्यता और तर्कसंगति (logical consistency) मौजूद है।

    "क़ुरआन का सबसे बड़ा चमत्कार है! अगर यह किसी इंसान का लिखा होता, तो इसमें गलतियाँ होतीं, क्योंकि कोई भी इंसान पूर्ण नहीं होता। लेकिन क़ुरआन में एक भी गलती नहीं है, बल्कि इसमें दी गई बातें समय के साथ और भी स्पष्ट होती जा रही हैं।,

    क़ुरआन: अल्लाह का दिव्य कलाम और सबसे बड़ी दलील

    Qur'an aur Science
    Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai 



    क़ुरआन का ऐसे नबी पर उतरना, जो उम्मी थे (जो किसी इंसान से पढ़े-लिखे न थे)

    नबी मुहम्मद ﷺ का उम्मी (अशिक्षित) होना उनकी नबुव्वत के दिव्य चमत्कारों में से एक है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि उनका ज्ञान और मार्गदर्शन किसी इंसान से प्राप्त नहीं था, बल्कि वह केवल और केवल अल्लाह की ओर से था। यह तथ्य क़ुरआन की प्रामाणिकता और सत्यता को और अधिक मजबूत कर देता है।

    > "अल्लाह तआला फ़रमाता है:"(ऐ नबी!) तुम इससे पहले कोई किताब नहीं पढ़ते थे और न अपने हाथ से लिखते थे, अगर ऐसा होता तो असत्यवादी लोग शक में पड़ सकते थे।" (अल-अंकबूत: 48)

    अल्लाह की हिकमत और सत्यता की स्पष्टता

    "यदि नबी ﷺ शिक्षित होते, तो संदेह करने वालों को यह कहने का अवसर मिल जाता कि उन्होंने यह ग्रंथ स्वयं लिखा है। लेकिन अल्लाह ने उनकी नबुव्वत को हर संदेह से परे रखने के लिए उन्हें उम्मी रखा। यह स्वयं अल्लाह की हिकमत थी कि कोई भी उनकी सत्यता पर संदेह न कर सके।,

    नबी ﷺ का अशिक्षित होना कोई कमी नहीं, बल्कि अल्लाह की हिकमत और एक महान चमत्कार था

    • यदि नबी ﷺ शिक्षित होते, तो संदेह करने वालों को यह कहने का अवसर मिल जाता कि उन्होंने यह ग्रंथ स्वयं लिखा है या किसी अन्य धार्मिक ग्रंथ से लिया है। लेकिन अल्लाह ने उनकी नबुव्वत को हर संदेह से परे रखने के लिए उन्हें उम्मी रखा। यह स्वयं अल्लाह की हिकमत थी कि कोई भी उनकी सत्यता पर संदेह न कर सके।

    • जब क़ुरआन नाज़िल हुआ, तो उस समय के बड़े-बड़े विद्वान, कवि और पढ़े-लिखे लोग स्तब्ध रह गए। वे सोचने लगे कि "यह व्यक्ति, जो न पढ़ सकता है और न लिख सकता है, इतनी प्रभावशाली और शुद्ध भाषा में यह दिव्य संदेश कैसे प्रस्तुत कर रहा है? यह कलाम इतनी अद्भुत शैली और वाकपटुता से कैसे भरा हुआ है?" यह उनके लिए एक गूढ़ रहस्य था।

    सुब्हान अल्लाह! यह क़ुरआन अल्लाह की सच्ची किताब है, और नबी ﷺ सच्चे रसूल हैं


     इल्मी और वैज्ञानिक दलीलें

    क़ुरआन में कई ऐसी बातें मौजूद हैं, जो उसके अल्लाह के कलाम होने का सुबूत देती हैं।

     क़ुरआन की भाषा और शैली: क़ुरआन की भाषा और उसका साहित्यिक अंदाज़ ऐसा है, जिसे कोई भी इंसान नहीं बना सकता। यह बात अरब के सबसे बड़े साहित्यकारों ने भी मानी।

     अरब के माहिर कवियों की गवाही

    जब क़ुरआन उतरा, तो अरब में कविता और साहित्य का शिखर दौर था। लेकिन किसी भी माहिर शायर, लेखक या बुद्धिजीवी ने क़ुरआन जैसी किताब नहीं लिखी। मशहूर अरब शायर वलीद बिन मुग़ीरा ने कहा:

    > "यह कोई इंसानी कलाम नहीं हो सकता।"
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    भविष्यवाणियाँ जो सच साबित हुईं

    क़ुरआन में कई ऐसी बातें कही गईं, जो बाद में बिल्कुल सच साबित हुईं।

     रोमन साम्राज्य की जीत

    > "रोम हार गया, लेकिन कुछ ही वर्षों में वह फिर जीत जाएगा।"
    (सूरह अर-रूम 30:2-4)

    इतिहास गवाह है कि रोमियों को फ़ारसियों ने हराया, लेकिन सात साल बाद वे फिर जीत गए, ठीक वैसे ही जैसा क़ुरआन ने कहा था।


    क़ुरआन का हिफ़ाज़ती निज़ाम


    क़ुरआन एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है, जिसे लाखों लोगों ने अपने सीने में महफूज़ किया और इसे 1400 सालों से बिना किसी बदलाव के उसी शक्ल में रखा गया है।
    > "निःसंदेह हम ही ने इस किताब को उतारा है और हम ही इसके रक्षक हैं।"
    (सूरह अल-हिज्र 15:9)

    आज तक कोई भी इंसान इसमें एक हरफ़ (अक्षर) की भी तबदीली नहीं कर पाया, जबकि दूसरी धार्मिक किताबों में बहुत से बदलाव हुए हैं।

    अब भी कोई संदेह है कि Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ? 

    इन सभी दलीलों से साफ़ होता है कि क़ुरआन अल्लाह का ही कलाम है। इसका इल्मी, साहित्यिक और ऐतिहासिक अंदाज़ किसी भी इंसान की ताक़त से बाहर है। इसीलिए, मुसलमान क़ुरआन को अल्लाह की ओर से नाज़िल किया गया एक सच्चा और सुरक्षित ग्रंथ मानते हैं।

    अल्लाह हमें क़ुरआन को समझने, अमल करने और इसकी हिदायत पर चलने की तौफ़ीक़ दे। आमीन।
    अगर अब भी कोई संदेह है तो आइए अब कुछ विज्ञानिक चमत्कार भी देखे !

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    क़ुरआन में विज्ञानिक चमत्कार – अल्लाह के कलाम होने की और दलीलें

    "क़ुरआन मुख्य रूप से हिदायत (Guidance) की किताब है। इसमें विज्ञान का उल्लेख सिर्फ़ इसलिए किया गया है ताकि इंसान यह समझ सके कि यह अल्लाह का ही कलाम है। क़ुरआन का असली उद्देश्य इंसान को सही राह दिखाना, नैतिकता सिखाना और अल्लाह की बंदगी की तरफ़ बुलाना है।,


    Qur'an ka moajazah
    Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai 



    क़ुरआन सिर्फ़ एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि इल्म और हिकमत का ख़ज़ाना भी है। इसमें बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख किया गया है, जो बाद में आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रमाणित हुए। ये बातें साबित करती हैं कि क़ुरआन इंसानी सोच का नतीजा नहीं हो सकता, बल्कि यह अल्लाह का उतारा हुआ कलाम है। आइए, कुछ और महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दलीलों पर नज़र डालते हैं।

    वैज्ञानिक तथ्य जो हाल ही में साबित हुए

    क़ुरआन में ऐसे बहुत से वैज्ञानिक इशारे दिए गए हैं, जो आधुनिक विज्ञान के विकसित होने के बाद साबित हुए।

    इंसान की पैदाईश जमे खून से

    भ्रूण का विकास:
    > "हमने इंसान को एक जमे हुए ख़ून (अलक़) से पैदा किया।"
    (सूरह अल-अलक़ 96:2)

    आज विज्ञान ने साबित कर दिया है कि भ्रूण (Embryo) शुरुआती दौर में बिल्कुल "जमे हुए ख़ून" (Clinging Clot) जैसा होता है।

     पहाड़ों की जड़ें और उनका संतुलन

    आज के भूगर्भ वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि पहाड़ों की जड़ें गहरी होती हैं और वे पृथ्वी को स्थिर रखने में मदद करते हैं। क़ुरआन ने 1400 साल पहले इस तथ्य को बता दिया था:
    > "क्या हमने धरती को फ़रश नहीं बनाया? और पहाड़ों को खूंटों की तरह नहीं गाड़ा?"
    (सूरह अन-नबाः 78:6-7)

    विज्ञान बताता है कि पहाड़ों की जड़ें पृथ्वी के भीतर गहरी होती हैं, जिससे वे उसे संतुलित रखते हैं।

     समुद्र की गहराइयों में अंधेरा और लहरें

    गहरे समुद्रों में अंधकार और पानी की परतों के भीतर छुपी लहरों का जिक्र विज्ञान ने हाल ही में खोजा है, जबकि क़ुरआन में यह पहले ही बयान किया जा चुका है:
    > "या फिर (काफ़िरों के कर्म) उन अंधेरों की तरह हैं जो एक गहरे समुद्र में हों, जिसे लहरों ने ढांप रखा हो, जिनके ऊपर और लहरें हों और उनके ऊपर बादल हों – यह एक के ऊपर एक अंधेरा है।"
    (सूरह अन-नूर 24:40)

    आज वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि गहरे समुद्रों में सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती और वहां पूर्ण अंधकार होता है। इसके अलावा, सतही लहरों के नीचे भी गहरी पानी की धाराएं होती हैं, जिन्हें वैज्ञानिक "Internal Waves" कहते हैं।

     इंसान के मस्तिष्क (ब्रेन) का निर्णय केंद्र

    आज विज्ञान बताता है कि इंसान के मस्तिष्क का अगला भाग (Frontal Lobe) उसके निर्णय लेने और झूठ बोलने का केंद्र है। क़ुरआन में इसे पहले ही उल्लेख किया गया:

    > "हम उसे पेशानी के बालों से पकड़ लेंगे, झूठी और गुनहगार पेशानी।"
    (सूरह अल-अलक़ 96:15-16)



    आधुनिक न्यूरोसाइंस (Neuroscience) के अनुसार, मस्तिष्क का फ्रंटल लोब ही सोचने, योजना बनाने और सत्य या झूठ का निर्णय करने के लिए ज़िम्मेदार होता है।

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    Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai 


     उंगलियों के निशान (Fingerprint Identification)

    क़ुरआन कहता है कि क़यामत के दिन अल्लाह इंसान की उंगलियों तक को दोबारा पैदा करेगा:

    > "क्या इंसान यह समझता है कि हम उसकी हड्डियों को इकट्ठा नहीं करेंगे? बल्कि हम उसकी उंगलियों के पोर-पोर तक को दोबारा बना देंगे।"
    (सूरह अल-क़ियामह 75:3-4)

    आज विज्ञान ने साबित किया है कि हर इंसान के उंगलियों के निशान (Fingerprints) अलग-अलग होते हैं, और इन्हें पहचान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह बात 1400 साल पहले कोई इंसान नहीं जान सकता था।

     ब्रह्मांड की उत्पत्ति और "बिग बैंग" सिद्धांत

    आधुनिक विज्ञान का "बिग बैंग थ्योरी" कहता है कि पूरा ब्रह्मांड एक बिंदु से फैला और विस्तार हुआ। क़ुरआन इसी की पुष्टि करता है:
    > "क्या उन लोगों ने नहीं देखा जिन्होंने इनकार किया कि आसमान और ज़मीन दोनों जुड़े हुए थे, फिर हमने उन्हें अलग किया?"
    (सूरह अल-अंबियाः 21:30)

    यह वैज्ञानिक सिद्धांत 20वीं सदी में विकसित हुआ, जबकि क़ुरआन ने इसे 1400 साल पहले बयान कर दिया था।

    ब्रह्मांड का विस्तार (Expanding Universe)

    आधुनिक खगोल विज्ञान कहता है कि ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। यह सिद्धांत सबसे पहले एडविन हबल (Edwin Hubble) ने 1929 में दिया था। लेकिन क़ुरआन ने इसे पहले ही बता दिया था:

    > "हमने आसमान को अपने हाथों से बनाया और हम इसे लगातार फैला रहे हैं।"
    (सूरह अज़-ज़ारियात 51:47)

    यह सिद्धांत आज के वैज्ञानिकों के "Expanding Universe" सिद्धांत से मेल खाता है, जिसे आधुनिक विज्ञान ने 20वीं सदी में खोजा।

    यह एक और प्रमाण है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, क्योंकि उस समय कोई भी इंसान इस तथ्य को नहीं जानता था।

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    जीवन का स्रोत – पानी

    विज्ञान कहता है कि हर जीवित प्राणी में पानी अनिवार्य रूप से मौजूद होता है। क़ुरआन ने इस तथ्य को सदियों पहले स्पष्ट कर दिया:

    > "और हमने हर जीवित चीज़ को पानी से पैदा किया। क्या वे ईमान नहीं लाते?"
    (सूरह अल-अंबियाः 21:30)

    आज के वैज्ञानिक इस तथ्य को पूरी तरह स्वीकार करते हैं कि बिना पानी के जीवन संभव नहीं।

    नतीजा: क्या क़ुरआन सचमुच अल्लाह का कलाम है?

    ये सभी वैज्ञानिक दलीलें इस बात को साबित करती हैं कि क़ुरआन किसी इंसान का लिखा हुआ नहीं हो सकता। जिन वैज्ञानिक तथ्यों को इंसान ने हाल ही में खोजा, उन्हें क़ुरआन 1400 साल पहले ही बयान कर चुका था। यह इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि क़ुरआन अल्लाह का उतारा हुआ कलाम है, जो हर दौर के लिए हिदायत और सत्य की निशानी है।

    "अल्लाह हमें क़ुरआन को समझने, अमल करने और इसकी हिदायत पर चलने की तौफ़ीक़ दे। आमीन।"
    "क़ुरआन 📖 में कई ऐसी बातें हैं जो किसी भी इंसान के बस की बात नहीं हो सकतीं, जैसे भविष्यवाणियाँ, वैज्ञानिक चमत्कार और भाषा का अनूठा अंदाज़। खुद क़ुरआन भी इस बात की चुनौती देता है कि कोई इसके जैसी किताब नहीं ला सकता (सूरह अल-बक़राह 2:23)।


    (Conclusion):

    इन तमाम वैज्ञानिक और तार्किक दलीलों से यह साबित होता है कि क़ुरआन कोई इंसानी रचना नहीं है, बल्कि यह अल्लाह तआला का उतारा हुआ सच्चा और महफ़ूज़ कलाम है। जिन वैज्ञानिक तथ्यों को आधुनिक विज्ञान ने हाल ही में खोजा, उन्हें क़ुरआन 1400 साल पहले ही स्पष्ट कर चुका था। क़ुरआन का साहित्यिक चमत्कार, भविष्यवाणियों की सच्चाई और इसका सुरक्षित रहना यह बताता है कि यह केवल अल्लाह का ही वचन हो सकता है। ये लेख पढ़ने के बाद अब ये सवाल करना कि Kya Qur'an Allah ka Kalaam hai ? अज्ञानता के सिवा और कुछ नहीं!

    अब यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम क़ुरआन को सिर्फ़ पढ़ने और सुनने तक सीमित न रखें, बल्कि इसे समझें, इसकी शिक्षाओं पर अमल करें और इसे अपनी ज़िंदगी का मार्गदर्शन बनाएं। यह किताब न केवल हमारी दुनिया की बेहतरी के लिए है, बल्कि यह आख़िरत में भी हमारी सफलता की कुंजी है।

    "अल्लाह हमें क़ुरआन की हिदायत को अपनाने और उसके अनुसार अपनी ज़िंदगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।"

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    FAQs:


    सवाल 1: क्या क़ुरआन को एक इंसान (मुहम्मद ﷺ) ने लिखा था?

    जवाब: नहीं, क़ुरआन नबी मुहम्मद ﷺ की अपनी लिखी हुई किताब नहीं है। इसमें कई ऐसी बातें हैं जो किसी भी इंसान के बस की बात नहीं हो सकतीं, जैसे भविष्यवाणियाँ, वैज्ञानिक चमत्कार और भाषा का अनूठा अंदाज़। खुद क़ुरआन भी इस बात की चुनौती देता है कि कोई इसके जैसी किताब नहीं ला सकता (सूरह अल-बक़राह 2:23)।


    सवाल 2: अगर क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, तो इसमें कोई भी वैज्ञानिक गलती क्यों नहीं है?

    जवाब: यही तो क़ुरआन का सबसे बड़ा चमत्कार है! अगर यह किसी इंसान का लिखा होता, तो इसमें गलतियाँ होतीं, क्योंकि कोई भी इंसान पूर्ण नहीं होता। लेकिन क़ुरआन में एक भी गलती नहीं है, बल्कि इसमें दी गई बातें समय के साथ और भी स्पष्ट होती जा रही हैं।


    सवाल 3: क्या क़ुरआन के वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख सिर्फ़ मुसलमान ही मानते हैं?

    जवाब: नहीं, कई ग़ैर-मुस्लिम वैज्ञानिक भी क़ुरआन में दिए गए वैज्ञानिक तथ्यों की सटीकता से हैरान हैं। मशहूर फ्रांसीसी डॉक्टर मौरिस बुकायल (Maurice Bucaille) ने अपनी किताब "The Bible, The Quran and Science" में लिखा कि क़ुरआन के वैज्ञानिक तथ्यों में कोई विरोधाभास नहीं है और यह बिल्कुल विज्ञान के अनुरूप है।


    सवाल 4: अगर क़ुरआन में विज्ञान का ज़िक्र है, तो क्या यह केवल वैज्ञानिक किताब है?

    जवाब: नहीं, क़ुरआन मुख्य रूप से हिदायत (Guidance) की किताब है। इसमें विज्ञान का उल्लेख सिर्फ़ इसलिए किया गया है ताकि इंसान यह समझ सके कि यह अल्लाह का ही कलाम है। क़ुरआन का असली उद्देश्य इंसान को सही राह दिखाना, नैतिकता सिखाना और अल्लाह की बंदगी की तरफ़ बुलाना है।


    सवाल 5: अगर क़ुरआन सच्चा है, तो इसे सभी लोग क्यों नहीं मानते?

    जवाब: हक़ (सत्य) को मानने के लिए खुले दिल और ईमानदारी की ज़रूरत होती है। बहुत से लोग अपनी जिद, ग़लतफ़हमी, या दुनियावी फायदों की वजह से इसे स्वीकार नहीं करते। ठीक वैसे ही जैसे कई लोग सूरज के चमकने के बावजूद उसे न देखने की ज़िद करते हैं। अल्लाह फ़रमाता है: "निःसंदेह, अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत देता है।" (सूरह अन-नूर 24:46)

    "अल्लाह हमें हिदायत दे और क़ुरआन को हमारी ज़िंदगी का मार्गदर्शन बनाए। आमीन।"

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