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Zuban: Ek Khamosh Tabaahi /ज़ुबान:एक ख़ामोश तबाही

“लफ्ज़ों की चोट तलवार से भी गहरी होती है”"ज़ुबान एक तलवार की तरह है। इसी लिए कहा जाता है पहले सोचो फिर बोलो क्योंकि अगर ज़ुबान का इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए तो यह इज्ज़त, मोहब्बत और बरकत लाती है। लेकिन अगर इसे बे-लगाम छोड़ दिया जाए , बग़ैर सोचे समझे बोला जाए तो यह घरों को उजाड़ देती है۔"

Zuban:Ek Khamosh Tabaahi /ज़ुबान एक ख़ामोश तबाही 

Zuban ka ghalt istemal
Zuban: Ek Khamosh Tabaahi 



इंसान की सबसे ताक़तवर और सबसे नाज़ुक नेमतों में से एक है उसकी ज़ुबान। यह वही ज़ुबान है जो दिलों को जीत भी सकती है और तोड़ भी सकती है। एक मीठा लफ़्ज़ किसी का दिन संवार सकता है, तो एक तल्ख़ बात किसी का जीवन बर्बाद कर सकती है।
हम अकसर यह समझते हैं कि जुल्म केवल हाथ से किया जाता है, लेकिन असल में सबसे गहरा जुल्म कभी-कभी ज़ुबान से होता है। वो जुल्म जो नज़र नहीं आता लेकिन सीधा दिल पर वार करता है।
आज के दौर में जब रिश्ते नाज़ुक हो चुके हैं और घरों में बेचैनी बढ़ रही है, उसकी एक बड़ी वजह है — ज़ुबान का गलत इस्तेमाल। यही ज़ुबान जब गुस्से, तानों, और बद्दुआओं की ज़द में आ जाए, तो वह Zuban: Ek Khamosh Tabaahi बन जाती है — जो किसी को मारती नहीं, लेकिन अंदर ही अंदर तोड़ देती है।

इस लेख में हम जानेंगे कि ज़ुबान किस तरह रिश्तों को बनाती और बिगाड़ती है, और इसको सही तरीके से इस्तेमाल करने की इस्लामी तालीमात क्या हैं। क्यूँकि कभी-कभी चुप रह जाना, सबसे हिकमत वाला जवाब होता है।

Noteअक्सर गुस्से या जज़्बात में कही गई बातें दिल में बैठ जाती हैं! इंसान माफ़ी मांग लेता है ,उसे माफ़ भी कर दिया जाता है लेकिन उसका असर कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में रह जाता है ! इस लिए कुछ बोलने से पहले हज़ार बार सोच लिया करें नहीं तो रिश्तों से मोहब्बत ख़त्म हो जाती है और हमें पता भी नहीं चलता है!

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ज़ुबान का गलत इस्तेमाल:


Zuban: Ek Khamosh Tabaahi है जिसका गलत इस्तेमाल  या तल्ख़ी रिश्तों में ऐसी दरार डाल देती है जो वक़्त के साथ गहरी होती जाती है। यह मोहब्बत को धीरे-धीरे खत्म कर देती है और आख़िर में रिश्ते बर्बादी की तरफ़ चल पड़ते हैं। ज़ुबान का सही इस्तेमाल कितना ज़रूरी है, और गलत इस्तेमाल कितना नुकसानदेह हो सकता है आज हम इसी से मुतल्लिक इस लेख Zuban: Ek Khamosh Tabaahi है में पढ़ेंगे और अपने ज़ुबान का सही इस्तेमाल करेंगे इन शा अल्लाह!

ज़ुबान की गलती से घर की बरबादी:


इंसान की ज़ुबान छोटी सी होती है, मगर इसके असरात बहुत बड़े हो सकते हैं। यह ज़ुबान रिश्ते बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है। यही ज़ुबान दिलों को जोड़ती भी है और तोड़ती भी। खासतौर पर घर के माहौल में जब ज़ुबान का गलत इस्तेमाल होता है, तो वह पूरे खानदान के चैन और सुकून को तबाह कर देती है। 
घर, जो मोहब्बत और सुकून की जगह होती है, वहाँ अगर ज़ुबान का इस्तेमाल गलत हो तो वह जन्नत से जहन्नुम बन जाता है।
 घर में जब ज़ुबान से निकले अल्फ़ाज़ तल्ख़, अपमानजनक या तानों से भरे होते हैं, तो प्यार की जगह नफ़रत, और सुकून की जगह बेचैनी घर कर जाती है।

> "एक प्यारा घर मोहब्बत और एहतराम से चलता है, मगर ज़ुबान की बदतमीज़ी उसे जहन्नुम बना देती है।"

ज़ुबान का ज़हर: जब अल्फ़ाज़ आग बन जाएं


कई बार गुस्से में, मज़ाक में या झुंझलाहट में बोले गए अल्फ़ाज़ ऐसे ज़ख़्म छोड़ जाते हैं जो बरसों तक नहीं भरते। बीवी हो या शौहर, माँ-बाप हों या बच्चे—जब ज़ुबान तल्ख़ हो जाए, तो प्यार और मोहब्बत का रिश्ता नफ़रत और दूरी में बदल जाता है।

> "गुस्से या मज़ाक में बोले गए अल्फ़ाज़ सालों तक न भरने वाले ज़ख़्म छोड़ जाते हैं। ग़लत अल्फ़ाज़ रिश्तों की जड़ें काट देते हैं।"

"एक हंसता-खेलता घर, प्यार और इज़्ज़त की बुनियाद पर खड़ा होता है। लेकिन जब ज़ुबान से निकले अल्फ़ाज़ ताना, तजलील (ज़िल्लत), या बद्दुआ बन जाएं, तो वह घर जहन्नुम जैसा बन जाता है। रिश्ते कमजोर पड़ने लगते हैं, बच्चों पर बुरा असर पड़ता है, और बरकतें उठ जाती हैं।

क़ुरान में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है:

> "और मेरे बन्दों से कह दो कि वह बात करें जो सबसे बेहतर हो।"(सूरतुल इसरा: 53)
> "और लोगों से अच्छा (भला) कहा करो।"(सूरतुल बक़रह: 83)
> "इंसान कोई बात ज़ुबान से नहीं निकालता, मगर उसके पास एक निगरान (फ़रिश्ता) होता है जो उस पर निगरानी रखे होता है।"
(सूरत क़ाफ़: 18)
इस आयत में अल्लाह तआला हमें हुक्म दे रहे हैं कि हम हर किसी से अच्छी बात करें, चाहे वो हमारे घर वाले हों या बाहर के लोग। हमारी हर बात रेकॉर्ड हो रही है, इसलिए ज़ुबान से कुछ भी बोलने से पहले सोचना चाहिए।

>  "हर उस शख़्स के लिए हलाकत है जो ताना देता है और पीठ पीछे बुराई करता है।"
(सूरतुल हमज़ह: 1)
 ताना देने, मज़ाक उड़ाने और बुराई करने वाले लोग अल्लाह की नज़र में हलाकत के हक़दार हैं।
"जब तुम उसे अपनी ज़ुबानों से ले लेते हो..."(सूरतुल नूर: 15)
 ग़ीबत, अफवाह या इल्ज़ाम बिना तहकीक के ज़ुबान से बोल देना एक बड़ा गुनाह है

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नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया:

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है:
> "बंदा अल्लाह की रज़ामंदी वाली एक बात कह देता है, जिसे वह मामूली समझता है, मगर उसी बात से अल्लाह उसे बुलंद दर्जे अता फरमाता है। और बंदा एक ऐसी बात कह देता है जिससे अल्लाह नाराज़ हो जाता है, और वह जहन्नुम में गिरा दिया जाता है।"
(सहीह बुखारी,(सहीह मुस्लिम: 2988)

> "क्या लोगों को उनकी ज़ुबानों की कमाई की वजह से मुँह के बल जहन्नुम में नहीं डाला जाएगा?"**  
(तिर्मिज़ी, हदीस 2616) 
 बहुत से लोग सिर्फ़ ज़ुबान के गुनाहों की वजह से जहन्नुम में जाएंगे।

रसूलुल्लाह ﷺ ने एक मर्तबा सहाबा से पूछा:
> "क्या तुम जानते हो सबसे बड़ा दिवालिया कौन है?"
सहाबा ने अर्ज़ किया: "जिसके पास माल और दौलत न हो।"
आप ﷺ ने फ़रमाया:
"वो शख़्स जो क़ियामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात लाकर आएगा लेकिन उसने किसी को गाली दी होगी, किसी पर इल्ज़ाम लगाया होगा, किसी का माल खाया होगा... फिर उसके नेकियाँ उन लोगों को दे दी जाएँगी और अगर नेकियाँ खत्म हो गईं तो उनके गुनाह उस पर डाल दिए जाएँगे और फिर उसे जहन्नुम में फेंक दिया जाएगा।"
(सहीह मुस्लिम: 2581)

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का यह फ़रमाना कि > "जो अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता है, उसे चाहिए कि वह अच्छी बात कहे या खामोश रहे।"
(सहीह बुख़ारी: हदीस 6136)
और अल्लाह तआला का यह फ़रमान कि "इंसान जो बात भी ज़बान से निकालता है तो उसके (लिखने के लिए) एक चौकीदार फ़रिश्ता तैयार रहता है।"
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया "मेरे लिए जो शख़्स दोनों जबड़ों के दरमियान की चीज़ (ज़बान) और दोनों टांगों के दरमियान की चीज़ (शर्मगाह) की ज़िम्मेदारी दे दे, मैं उसके लिए जन्नत की ज़िम्मेदारी ले लूंगा।"(बुख़ारी 6474)

ये हदीस हमें साफ़ बताती है कि बेवजह, तल्ख़ या नुक़सानदेह बातें करने से बेहतर है कि इंसान खामोश रहे।

"अक्सर गुस्से या जज़्बात में कही गई बातें दिल में बैठ जाती हैं! इंसान माफ़ी मांग लेता है ,उसे माफ़ भी कर दिया जाता है लेकिन उसका असर कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में रह जाता है ! इस लिए कुछ बोलने से पहले हज़ार बार सोच लिया करें नहीं तो रिश्तों से मोहब्बत ख़त्म हो जाती है और हमें पता भी नहीं चलता है!


घर का सुकून ज़ुबान से जुड़ा है

Zuban rishton ki barbadi ki wajah
Zuban: Ek Khamosh Tabaahi



एक हंसता-खेलता घर, प्यार और इज़्ज़त की बुनियाद पर खड़ा होता है। लेकिन जब ज़ुबान से निकले अल्फ़ाज़ ताना, तजलील (ज़िल्लत), या बद्दुआ बन जाएं, तो वह घर जहन्नुम जैसा बन जाता है। रिश्ते कमजोर पड़ने लगते हैं, बच्चों पर बुरा असर पड़ता है, और बरकतें उठ जाती हैं।
घर का अमन, मोहब्बत और बरकत—ये सब कुछ ज़ुबान की हिफ़ाज़त से ही मुमकिन है।

> "जब ज़ुबान तल्ख़ हो जाए, तो दिलों में मोहब्बत की जगह डर और नफ़रत घर कर जाती है।"

ज़ुबान की हिफ़ाज़त क्यों ज़रूरी है?


ज़ुबान अल्लाह की दी हुई एक ऐसी नेमत है, जो इंसान के किरदार और अक़्ल का आईना होती है। लेकिन अगर यही ज़ुबान बे लगाम हो जाए, तो यह सबसे क़रीबी रिश्तों को भी तबाह कर सकती है।

अल्फ़ाज़ तालीम के लिए होने चाहिए, तौहीन के लिए नहीं।

जो बातें सीखाने और समझाने के लिए कही जाएं, वे नसीहत बनती हैं। लेकिन जब वही बातें किसी की तौहीन, तजलील या दिल तोड़ने के लिए कही जाती हैं, तो ज़ख़्म छोड़ जाती हैं जो सालों तक नहीं भरते।

गुस्से में निकले लफ़्ज़, अकसर पछतावे का सबब बनते हैं।

जो बात एक लम्हे के ग़ुस्से में कही जाती है, वो पूरी ज़िंदगी का सुकून छीन लेती है। बाद में चाहे सौ बार माफ़ी माँगी जाए, पर अल्फ़ाज़ की चुभन दिलों में बैठ जाती है।

अक्सर जुदाई एक लफ़्ज़ से शुरू होती है।

कितने रिश्ते सिर्फ एक गलत, तल्ख़ या अपमानजनक लफ़्ज़ की वजह से टूट जाते हैं। कई बार तलाक़ जैसे बड़े फैसले भी, ज़ुबान से निकली एक गैर-ज़िम्मेदार बात की वजह से हो जाते हैं।

इसलिए ज़रूरी है कि इंसान सोच-समझ कर बोले।

क्यूँकि ज़ुबान के ज़रिए ही मोहब्बत पैदा होती है, और ज़ुबान ही नफ़रत का बीज बो देती है। जो जुबान अल्लाह की याद, इंसानों की इज़्ज़त और रिश्तों की हिफ़ाज़त के लिए इस्तेमाल हो, वही जुबान जन्नत की राह बन सकती है।

 क्या करें? — ज़ुबान की बेहतरी के लिए अमली कदम:


- गुस्से में खामोशी इख्तियार करें
- रोज़ दुआ करें:
> اللَّهُمَّ احْفَظْ لِسَانِي مِنَ الزَّلَلِ وَقَلْبِي مِنَ الْخَطَايَا
"ए अल्लाह! मेरी ज़ुबान को फिसलने से और मेरे दिल को गुनाहों से महफूज़ रख।"

- बातचीत में नरमी और मोहब्बत रखें
- बच्चों के सामने कभी तल्ख़ अल्फ़ाज़ न कहें
- सलीका और समझदारी से बात करें

एक असरदार दुआ इसे ज़रूर पढ़ा करें:


> "اللَّهُمَّ احْفَظْ لِسَانِي مِنَ الزَّلَلِ وَقَلْبِي مِنَ الْخَطَايَا"

“ए अल्लाह! मेरी ज़ुबान को फिसलने से और मेरे दिल को गुनाहों से महफूज़ रख।”

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नसीहत आमेज़ बातें 

  • हर बात कहने की नहीं होती:
  • हमेशा सोच कर बोलें। कभी-कभी चुप रहना ही सबसे बेहतर जवाब होता है।
  • रिश्तों में नरमी ज़रूरी है:
  • बीवी हो या शौहर, बच्चों से हो या बड़ों से—नरम लहज़ा दिल जीत लेता है।
  • अहंकार से बचें:
  • अक्सर लोग अपनी "बात सही है" के घमंड में दूसरों के जज़्बात कुचल देते हैं।
  • मज़ाक में भी हद होनी चाहिए:
  • मज़ाक के नाम पर ताने और तौहीन रिश्तों को खा जाती है।

Conclusion:

Zuban: Ek Khamosh Tabaahi और एक तलवार की तरह है। अगर इसका इस्तेमाल सोच-समझकर किया जाए तो यह इज्ज़त, मोहब्बत और बरकत लाती है। लेकिन अगर इसे बे-लगाम छोड़ दिया जाए तो यह धीरे धीरे  रिश्ते, घर, और दिल—सब कुछ उजाड़ देती है।  
घर की फिज़ा को महफूज़ रखने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी ज़ुबान की हिफाज़त करें और हर बात को मोहब्बत, समझदारी और इखलाक के साथ कहें।
इसलिए, ज़ुबान को क़ाबू में रखना ही सबसे बड़ी समझदारी है।


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FAQs:


Q1: क्या गुस्से में बोली गई तल्ख़ बातों का असर वाकई इतना बड़ा होता है?
जी हां! गुस्से में कही गई बातें अक्सर दिलों में बैठ जाती हैं और माफ़ी मांगने के बाद भी उनका असर रह जाता है।

Q2: मैं बहुत जल्दी गुस्से में बोल जाता हूँ, क्या करूँ?
वुज़ू करें, खामोशी इख्तियार करें, और रसूलुल्लाह (ﷺ) की ये हदीस याद रखें:
"गुस्सा शैतान से है, और शैतान आग से है, और आग को पानी से बुझाया जाता है। जब तुम्हें गुस्सा आए तो वुज़ू कर लो।"

Q3: बच्चों को डांटना भी ज़रूरी होता है, तो कैसे पेश आएं?
डांटना ज़रूरी हो सकता है, लेकिन सलीका और नरमी के साथ समझाना ज़्यादा असरदार होता है। कठोर अल्फ़ाज़ उनकी खुद-एतमादी तोड़ देते हैं।

Q4: क्या सिर्फ बीवी या बच्चों को बोलने से फर्क पड़ता है?
नहीं! हर रिश्ते में ज़ुबान का असर होता है—मां बाप हो, शौहर हो, सास-ससुर हों, भाई-बहन या दोस्त—हर जगह मीठी ज़ुबान रिश्तों को मजबूत बनाती है।

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