Ramzan ki taiyari/रमज़ान की तैयारी
हमें रमज़ान से पहले ही Ramzan ki taiyari शुरु कर देनी चाहिए ताकि इस माह की हम भरपूर फ़ायदा उठा सकें इन शा अल्लाह.
Ramzan ki taiyari |
माह ए रमज़ान की अज़मत और बरकत बिलाशुबाह अज़ीम है लेकिन ऐसा नहीं के इस महीने की रहमते बरकते हर ग़ाफिल और सोये हुए शख़्स के हिस्से मैं आ जाये, अगर एक अच्छे इंसान की तरह मेहनत और कोशिश करेंगे तो रमज़ान की रह़मतें, बरकतें और मग़फिरत समेट सकेंगे.लिहाज़ा हमे कुछ तैयारी रमज़ान से पहले और बाक़ी मेहनत रमज़ान मैं करनी होगी इन शा अल्लाह ! रमज़ान के दिनों में हमें हर वक्त चलते फिरते और ख़ास तौर पर नमाज़ो के बाद ज़िक्र ओ अज़कार और दुआओं का एहतमाम करना चाहिए! और अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला से यह उम्मीद रखें के "अल्लाह तआ़ला हमें इस रमज़ान से भरपूर फ़ायदा उठाने की तौफ़ीक अता फ़रमाए"
इन शा अल्लाह तआला
शिर्क, रियाकारी, झूठ, गिबत वग़ैराह से पाकीज़गी
एक बात अच्छी तरह से समझ लें के नापाकियो के साथ अल्लाह तआ़ला से बंदे का दुरुस्त ताल्लुक़ क़ायम नही हो सकता लिहाज़ा अपने पिछले गुनाहों पर सच्ची तौबा के साथ माआ़फ़ी माँग कर ख़ुद को हर तरह की निजात, ख़ास तौर पर ख़ुद को शिर्क, रियाकारी, झूठ, गि़बत वग़ैराह से साफ़ सुथरा करें ताकि अल्लाह तआ़ला से दिल का रास्ता हमवार हो।तौबा करने का एक बेहतरीन तरीक़ा मौजूद है :
हज़रत अबु बकर सिद्धीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते हैं, के मैंने रसूल अल्लाह ﷺ को फ़रमाते हुए सुना है "कोई आदमी जब गुनाह करता है फ़िर वज़ू कर के नमाज़ पढ़ता है और अल्लाह तआ़ला से तौबा इस्तग़फार करता है तो अल्लाह तआ़ला उसे ज़रूर मआ़फ़ फ़रमा देता है, फ़िर रसूल अल्लाह ﷺ ने यह आयत तिलावत फ़रमाई "वह लोग जिनसे कोई फ़हश काम हो जाता है या किसी गुनाह का इरतक़ाब करके वह अपने ऊपर ज़ुल्म कर बैठते हैं तो उन्हें फ़ौरन अल्लाह तआ़ला याद आ जाता है और वह उससे गुनाहों की माआ़फ़ी तलब करते हैं क्योंकि अल्लाह तआ़ला के सिवा और कौन है जो गुनाह मआ़फ़ कर सके और वह लोग जान बुझकर अपने किए पर असरार नही करते।"(आल ए इमरान आयत नंबर 135, अल तिर्मिज़ी : 333)
ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ के साथ दो रकाअत नफ़िल नमाज़ पढ़े अल्लाह तआ़ला से ख़ूब दिल के साथ अपने गुनाहों की माआ़फ़ी मांगे, म्यूज़िक, यूट्यूब के फ़ितनो से ख़ुद को ख़ुद बचाए
तो आयें आने वाली रहमतों बरकतो और बख़्शिश को समेटने के लिए Ramzan ki taiyari पूरी रखें!
अल्लाह तआ़ला से दुआ़ और उम्मीद है के यह रमज़ान हम सब के लिए बाइस निजात और रह़मतों और बरकतों से भरपूर हो। इन शा अल्लाह तआ़ला
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रमज़ान से पहले रमज़ान की तैयारी
ख़ुश नसीब हैं वह लोग जिनकी ज़िंदगी मैं माह ए रमज़ान आ रहा है, और वह रग़बत और मुहब्बत से रह़मतें और बरकतें समेटने के लिए अपनी कोशिश शुरू कर चुके हैं।
ज़हनी सकूंन की ज़रूरत:जिस दिल मैं नफ़रत, बुग़्ज़, इन्तेक़ाम, किना, हस्द जैसे मोज़ू अमराज़ हों ऐसे लोग ज़हनी सकूंन से मह़रूम होते हैं। और जब तक ज़हनी सकूंन हासिल ना हो इबादत मैं मज़ा नही आता, नेकीयों का शौक नही बढ़ता।
लिहाज़ा ज़हनी सकूंन हा़सिल करने के लिए दिल को अज़ीयत देने वाले नफ़रत, गुस्सा, हस्द और इन्तेक़ाम लेने की आग से साफ सुथरा कर लें दिल को इन चीजों से पाक कर लें! क्योंकि जिन दिलों में ये सब मौजूद हों भला उन दिलों में अल्लाह की मोहब्बत कैसे हो सकती है ?
लिहाज़ा!अपनी मुहब्बत अल्लाह तआ़ला से और मज़बूत करें और मुहब्बत तब मज़बूत होती है जब हम क़ुर्बानी देना सीख जाते हैं और यह आप अच्छी तरह जानते हैं की मुहब्बत हमेशा क़ुर्बानी माँगती है
अना की क़ुर्बानीवक़्त की क़ुर्बानीमाल की क़ुर्बानीनींद की क़ुर्बानी
रमज़ान से पहले करने के काम
1️⃣जिन पर ग़ुस्सा है उन्हें मआ़फ़ कर दें, और जो आप पर ग़ुस्सा है उनसे माआ़फ़ी मांग लें2️⃣जिन अपनों से आप नाराज़ हैं, नफ़रत करने लग गए हैं, हस्द का शिकार हैं उनकी तरफ़ सुलह़ का पैग़ाम भेज दें....
यह तो बड़ा ही मुश्किल काम है लेकिन आप को करना है क्योंकि इस रह़मत वाले महीने में आप को अल्लाह को राज़ी करना है! जब आप को अपनी मग़फि़रत करवानी है और अल्लाह से उम्मीद है कि मआ़फ़ कर देगा तो आप भी दूसरों को माफ करना सीखें ताकि अल्लाह की रज़ा हासिल हो!
मुश्किल है लेकिन कर गुज़रे क्योंकि आप कर सकते हैं निकाल फेंकिये अपने दिलों से नफ़रत, हसद और उन कड़वाहट को जो रिश्तों के बीच आ रहा है.
और अगर अल्लाह तआला और रसूल अल्लाह ﷺ से सच्ची मुहब्बत है तो अपनी नाराज़गी, गुस्सा तीन दिन से आगे न ले कर जायें,क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीन दिन से ज़्यादा रिश्ते को तोड़े रखने से मना फ़रमाया है !
रसूल अल्लाह ﷺ का बताया हुआ तरीक़ा अपनाये
सलाम मैं पहल करें और वो कैसे होगा? हाथ बढ़ाये मुसाफ़ा कर लें और अगर यह मुश्किल है तो मुंह से बोल देंअस्सलामु अलयकुम वराहमतुल्लाही व बरकातुहू
यह भी नही कर सकते तो लिख कर सलाम भेज दें
और ध्यान दें۔۔۔
अब इसके बआ़द "जिन से नाराज़गी है " उनसे जवाब का इंतज़ार नही करना... क्योंकि आप ने अल्लाह तआ़ला और रसूल अल्लाह ﷺ से मुहब्बत की वजह से यह सुलह़ का पैग़ाम भेज कर रिश्तेदारी, हमसायगी और दोस्ती..... वग़ैराह का हक़ अदा किया है.... तो इसका बेहतरीन बदला भी अल्लाह तआ़ला से ही चाहिये ना ।इन शा अल्लाह तआ़ला।
अब.... क़ुर्ब के रिश्ते हों.... या दूर के रिश्ते.... वह जवाब दें.... या..... ना दें
आप बस फ्रेश हो जायें और ख़ुद को मज़बूत करें, बहादुर बनायें.....
तो आइये..... आने वाली रहमतों बरकतो और बख़्शिश को समेटने के लिए अपनी तैयारी.... पूरी रखें
अल्लाह तआ़ला से दुआ और उम्मीद है कि आने वाला रमज़ान हम सब के लिए बाइस निजात और रह़मतों और बरकतों से भरपूर हो । आमीन या रब्बुल आलमीन
चुस्त और दुरुस्त रहना
अगर आप यह ख़्वाहिश रखते हैं के आप रमज़ान मैं इबादत और दूसरे मुआ़मलात को अच्छे अंदाज़ मैं सर ए अंजाम दे सके और इन्जॉय भी कर सके, तो इसके लिए अपने आपको चुस्त और दुरुस्त रखने की ज़रूरत है और चुस्त और दुरुस्त रहने के लिए आपको अपने खाने पीने और सोने जागने के रूटीन को बेहतर करना होगा। रमज़ान से पहले अपनी ज़हनी, जिस्मानी और रूहानी सेहत को बेहतर करने की भरपूर कोशिश शुरू कर दें।और आप यह कर सकते हैं (इन शा अल्लाह तआला)
अगर आपने अपने सोने जागने के औक़ात बेहतरीन कर लिए तो यक़ीन जानें, आप सिर्फ़ एक हफ़्ते मैं.....(इन शा अल्लाह तआला) चुस्त और दुरुस्त हो जाओगे।
नींद के बेहतरीन औक़ात और फ़ायदे
- इशा के बाद 9 से रात 12 बजे तक सोना: इन औक़ात के दौरान सोना सबसे ज़्यादा फ़ायदे मंद है।
- एक इंसान अपनी नींद का 80% इन औक़ात मैं पूरा कर सकता है। इन औक़ात मैं नींद के लिए बरकत है इस वक़्त की नींद
- 1 घंटे की नींद 3 घंटे की नींद के बराबर हैं ,इस वक़्त के दौरान (दिमाग़ का गलेन्ड) pineal gland एक हार्मोन पैदा करता है जिस का नाम melatonin है यह सिर्फ़ इस सुरत मैं पैदा करता है अगर सोने के दौरान कमरे मैं तारीकी हो।Melatonin हार्मोन हमे सोने मैं मदद देता है।
- रात के दूसरे पहर की नींद: रात 12 से 2 बजे तक सोना
- इन औक़ात के दोरान सोने से इंसान की 20% की गहरी नींद पूरी हो जाती है। इसके बाद का सोना
- फ़ायदेमंद नही......(चुकीं इंसान अपनी 100% नींद पूरी कर चुका होता है)
- इन औक़ात मैं सोना 1 घंटे नींद = 1 घंटे नींद रात का आख़िरी पहर
- रात 2 बजे से 5 बजे तक यानी फ़ज्र से पहले के औक़ात : यह वक़्त सोने के लिए मुनासिब नही
दिन का सोना (फ़ज्र के बाद)
यह फ़ायदेमन्द नही है क्योंकि दिन के वक़्त तीन घंटे की नींद = 1 घंटे की नींद के बराबर है(इस वक़्त सोने मैं बरकत नही यह नींद सारा दिन काहिली सुस्ती और तवज्जो मैं कमी का बाइस बनती है)
फ़ज्र की नमाज़ से तुलू आफ़ताब तक का वक़्त इन औक़ात मैं Pineal gland
दूसरा हार्मोन ख़ारिज करता है जिसका नाम है seretonium'.
यह हार्मोन इन औक़ात मैं सिर्फ़ इसी सुरत ख़ारिज होता है। जब इंसान जाग रहा हो।।
इस वक़्त रोशनी के साथ साथ हल्की फुलकी ज़हनी वरज़िश भी हो।
(फ़ज्र की नमाज़ वक़्त पर अदा करना और अल्लाह का ज़िक्र करना)
यह वक़्त है ज़िक्र व अज़कार का और ग़ौर व फ़िक्र करने और दिन को होने वाले कामों की मंसूबा बंदी और तरजीहात तेय करने का....
वरज़िश और वाॅल्क वग़ैराह को तुलू आफ़ताब के बआ़द करें तो बेहतरीन है।
इंसानी दिमाग़ मैं Pineal gland से melatonin हार्मोन का ख़ारिज होना.... 40 साल बाद कम होता जाता है....
और 50 साल की उम्र मैं यह इख़राज रुक जाता है इस वक़्त इंसान का जिस्म इस हार्मोन को ही इस्तेमाल करता है जो ग़ुज़िश्ता सालो मैं जिस्म मैं महफ़ूज़ हुआ था
अब अगर कोई इंसान अलज़ाइमर जैसी दिमाग़ी इमराज़ का शिकार होता है तो इसका मतलब यह है के वह ज़िंदग़ी भर देर से सोया करता था.....!
मतलब इसकी सोने जागने की रुटीन बेहतरीन नही थी
Conclusion :
और रमज़ान के महीने में मिलने वाली बेशुमार नेकियों को समेट लें और अपने गुनाहों की बख़्शिश करवा कर अपने रब को राज़ी कर लें तभी हम रमज़ान की रहमते, बरकते और मग़फिरत समेट सकेंगे!
Frequently Asked Questions:
: इफ़्तार या रोज़ा खोलते वक्त बिस्मिल्लाह पढ़ कर रोज़ा खोलना चाहिए और इफ़्तार के बआ़द यह दुआ पढ़नी चाहिए! नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रोज़ा खोलते थे तो यह दुआ पढ़ते थे:ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابتَلَّتِ العُروقُ ، وَثَبَتَ الْأجْرُ إِنْ شَاءَ اللهُज़हा-बज़्ज़मओ वब्बतल्लतिल उरूक़ो व सब-तल अज्रो इन शा अल्लाह"प्यास चली गई, रगें तर होगईं और यदि अल्लाह तआला ने चाहा तो नेकी भी मिलेगी इंशॉल्लाह
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