Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log

समाज को खुश करना नामुमकिन है। लोग हमेशा कोई न कोई कमी निकाल ही लेंगे। इसलिए दूसरों की बातों में उलझने के बजाय हमें वही करना चाहिए जो हमारे लिए सही हो।ज़िन्दगी आपकी है, तो फैसले भी आपके होने चाहिए!

🕌 Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log

✍️ लेखक: Mohib Tahiri | 🕋 motivational article|Samaj Aur Alochna|हमारे समाज की दोहरी सोच 🕰 अपडेटेड:7 Nov 2025
 
“हमारे समाज की दोहरी सोच – आलोचना और सामाजिक रवैये पर प्रेरणादायक हिंदी लेख”
लोगों की राय कभी खत्म नहीं होती — इसलिए अपने रास्ते पर डटे रहो।"

हम ऐसे समाज में रहते हैं जहाँ हर व्यक्ति दूसरों के काम में दख़ल देना और उनकी आलोचना करना अपना हक़ समझता है।— जो कभी भी किसी को पूरी तरह स्वीकार नहीं करता। चाहे आप अच्छा करें या बुरा, लोग हर हाल में बोलने का कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं। यह हकीकत सिर्फ शब्दों की नहीं, बल्कि हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है।

 लोगों की अक्सरीयत ऐसी है जिनको तनक़ीद (आलोचना) किए बग़ैर सकून ही नहीं मिलता। चाहे आप कुछ भी कर लें, लोग अपनी राय ज़रूर देंगे — और यही बात इस तस्वीर में दिखाया गया है कि लोगों की राय कभी खत्म नहीं होती, चाहे आप कुछ भी कर लें। यह तस्वीर हमारे समाज के उस रवैये को बखूबी दर्शाती है, जो हमेशा दूसरों के कामों पर आलोचना करने,टिप्पणी करने के लिए तैयार रहता है। इस लेख Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log में चार अलग-अलग हालात दिखाए गए हैं, और हर बार देखने वालों की राय बदल जाती है — मगर एक बात हमेशा एक जैसी रहती है: किसी भी हाल में लोगों को खुश नहीं किया जा सकता।

1️⃣ दोनों व्यक्ति गधे पर सवार

तस्वीर के पहले हिस्से में एक मर्द और औरत गधे पर बैठे कहीं जा रहे थे। 
देखने वाले कहते हैं —
देखो! कैसे लोग हैं? “दोनों एक साथ गधे पर सवार हैं, बेचारे जानवर पर ज़ुल्म हो रहा है!”
यह हमारे समाज की वो सोच है जो दूसरों के मामलों में बिना वजह दखल देती है। जो हर बात में टोकना जानती है, मगर समझना नहीं।लोग खुद भले उस हालात से कभी न गुज़रे हों, मगर दूसरों की आलोचना करना अपना हक़ समझते हैं।

2️⃣ दोनों पैदल और गधा खाली

दूसरे दृश्य में मर्द और औरत गधे को साथ लेकर पैदल चल रहे हैं।
लोग फिर कहते हैं —

“क्या मूर्ख लोग हैं! सवारी होते हुए भी खुद पैदल चल रहे हैं!”
यह रवैया बताता है कि लोग हर हालत में बोलने के लिए कोई न कोई वजह ढूंढ लेते हैं, चाहे आप सही ही क्यों न हों। यही समाज का रवैया है — अगर आप कुछ सही भी कर लें, तब भी आलोचना आपका पीछा नहीं छोड़ती

लोगों की राय पर चलने वाला कभी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच सकता। दुनिया की सोच को बदलना हमारे बस में नहीं, लेकिन खुद को मजबूत रखना हमारे हाथ में है।

3️⃣ मर्द सवार और औरत पैदल

तीसरे हिस्से में मर्द गधे पर बैठा है और औरत पैदल चल रही है।
अब टिप्पणी आती है —
क्या ज़माना आ गया है! खुद आराम से सवार है और बीवी को पैदल चला रहा है!”
यहाँ हमारी सोच की दोहरापन साफ़ नज़र आता है — हर हाल में गलती निकालना ही लोगों का काम बन चुका है।यहां समाज की मुनाफ़िक़त (दोहरी सोच) साफ़ झलकती है। अगर मर्द बैठ जाए, तो भी गलत, और अगर न बैठे, तब भी गलत।

4️⃣ औरत सवार और मर्द पैदल

आखिरी हिस्से में औरत गधे पर बैठी है और मर्द पैदल चल रहा है।
अब टिप्पणियाँ बदल जाती हैं:
यह कैसा आदमी है! बीवी तो गधे पर बैठी है और खुद पैदल चल रहा है! सवारी है तो दोनों एक साथ बैठ कर जा सकते हैं।
यह बताता है कि लोग कभी भी संतुष्ट नहीं होते। चाहे आप कुछ भी करें, आलोचना ज़रूर होगी।यह वही सोच है जो हर हाल में दूसरे को गलत साबित करने पर अड़ी रहती है, चाहे सच्चाई कुछ भी हो। यानी किसी भी हालत में लोग खुश नहीं होते — न खुद कुछ करते हैं, न दूसरों को चैन से जीने देते हैं।

हमारे समाज की असलियत

यह तस्वीर सिर्फ एक व्यंग्य नहीं, बल्कि हमारे समाज का आईना है।
लोग हर वक्त दूसरों के कामों पर उंगली उठाने के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें आलोचना में सुकून और दूसरों की गलती में सन्तोष मिलता है।
ऐसे में जो इंसान हर राय पर ध्यान देगा, वह कभी अपने फैसले पर अडिग नहीं रह सकेगा।

💭 सीख और संदेश

इस पूरी कहानी का सार यही है कि —

लोगों की राय पर चलने वाला कभी अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच सकता।
दुनिया की सोच को बदलना हमारे बस में नहीं, लेकिन खुद को मजबूत रखना हमारे हाथ में है।
जो व्यक्ति दूसरों की राय से ऊपर उठकर अपने सिद्धांतों पर चलता है, वही सच्चे मायनों में आत्मनिर्भर और सफल बनता है।


💡 निष्कर्ष (Conclusion)

यह तस्वीर हमारे समाज की कड़वी हकीकत बयान करती है — कि लोग हमेशा दूसरों पर उंगली उठाने में व्यस्त रहते हैं। हर कोई अपने नज़रिए से दूसरों को गलत ठहराना चाहता है।लोग हर काम में बोलेंगे, चाहे आप अच्छा करें या बुरा।

यह दुनिया हर हाल में बोलती रहेगी —कभी तारीफ़ के बहाने, तो कभी ताने के ज़रिए।इसलिए बेहतर यही है कि हम अपने दिल की सुनें, अपनी राह चुनें और अपनी ज़िंदगी अपने नियमों से जिएं
क्योंकि जो सबको खुश करने चला, वो खुद कभी खुश नहीं रह पाया।

हमें इस लेख Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log से यही सीख मिलती है कि —
लोगों की बातों की परवाह छोड़कर वही करो जो तुम्हारे लिए बेहतर है। क्योंकि दुनिया की राय कभी खत्म नहीं होती, और सबको खुश करना नामुमकिन है। ये लेख Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log कैसा लगा अपनी राय comment box में ज़रूर दें। 

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🌿 पसंद अपनी, ज़िंदगी अपनी, फैसले भी अपने होने चाहिए।55555

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

Q1: इस तस्वीर से क्या सबक़ मिलता है?
👉 यह कि दुनिया के लोग कभी खुश नहीं होते, इसलिए हमें वही करना चाहिए जो सही और हक़ पर हो।

Q2: क्या लोगों की बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए?
👉 अगर आपका इरादा नेक है, तो लोगों की बातों की परवाह नहीं करनी चाहिए। अल्लाह के नज़दीक नीयत ही असल मायने रखती है।

Q3: इस लेख का असली संदेश क्या है?
👉 समाज की दोहरी सोच से बचना और अपने जीवन को अपने सिद्धांतों पर जीना।


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🕌 معاشرہ اور تنقید: ہر کام میں نقص نکالنے والے لوگ

Hamare samaj Aur Dusron ki Raaye
Tanqeed aur hamara Muashara 

ہم ایک ایسے معاشرے میں رہتے ہیں جہاں ہر شخص دوسرے کے عمل پر تنقید کرنے کے لیے تیار بیٹھا ہے۔ — جو کبھی بھی کسی کو مکمل طور پر قبول نہیں کرتا۔ آپ اچھا کریں یا بُرا، لوگ ہر حال میں کچھ نہ کچھ کہنے کا بہانہ ضرور ڈھونڈ لیتے ہیں۔ یہ حقیقت صرف الفاظ تک محدود نہیں، بلکہ ہماری روزمرّہ زندگی کا حصہ بن چکی ہے۔

لوگوں کی اکثریت ایسی ہے جنہیں تنقید کیے بغیر سکون ہی نہیں ملتا۔ آپ کچھ بھی کر لیں، لوگ اپنی رائے ضرور دیں گے — اور یہی بات اس تصویر میں نمایاں کی گئی ہے کہ لوگوں کی رائے کبھی ختم نہیں ہوتی، چاہے آپ کچھ بھی کر لیں۔یہ تصویر ہمارے معاشرے کے اُس رویّے کو بخوبی ظاہر کرتی ہے جو ہمیشہ دوسروں کے عمل پر تنقید اور تبصرہ کرنے کے لیے تیار رہتا ہے۔ اِس تحریر Muashra Aur TanqeedHar Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log میں چار مختلف حالات دکھائے گئے ہیں، اور ہر بار دیکھنے والوں کی رائے بدل جاتی ہے — مگر ایک بات ہمیشہ یکساں رہتی ہے: کسی بھی حال میں لوگوں کو خوش نہیں کیا جا سکتا۔


لوگوں کی باتوں کی پروا چھوڑ کر وہی کرو جو تمہارے لیے بہتر ہے۔ کیونکہ دنیا کی رائے کبھی ختم نہیں ہوتی، اور سب کو خوش کرنا ناممکن ہے۔

1️⃣ دونوں شخص گدھے پر سوار

تصویر کے پہلے حصے میں ایک مرد اور عورت گدھے پر بیٹھے ہیں۔
دیکھنے والے کہتے ہیں —

“دو لوگ ایک ساتھ سوار ہیں، بےچارے جانور پر ظلم ہو رہا ہے!”
یہ ہمارے معاشرے کی وہ سوچ ہے جو دوسروں کے معاملات میں دخل اندازی کیے بغیر نہیں رہ سکتی۔
لوگوں کے نزدیک ہر بات پر تنقید کرنا ہی عقل مندی ہے۔لوگ خود چاہے اس حال سے کبھی نہ گزرے ہوں، مگر دوسروں پر تنقید کرنا اپنا حق سمجھتے ہیں۔

2️⃣ دونوں پیدل اور گدھا خالی

دوسرے منظر میں مرد اور عورت گدھے کو ساتھ لے کر پیدل چل رہے ہیں۔
لوگ پھر کہتے ہیں —

کیا بیوقوف لوگ ہیں! سواری ہوتے ہوئے بھی خود پیدل چل رہے ہیں!”
یہ منظر اس حقیقت کو ظاہر کرتا ہے کہ لوگ ہمیشہ دوسروں کے فیصلوں پر اعتراض کرتے ہیں، چاہے وہ درست ہی کیوں نہ ہوں۔ لوگ ہر حالت میں کچھ نہ کچھ کہنے کے لیے وجہ ڈھونڈ لیتے ہیں، یہی معاشرے کا رویّہ ہے — اگر آپ کچھ صحیح بھی کر لیں، تب بھی تنقید آپ کا پیچھا نہیں چھوڑتی۔
 


3️⃣ مرد سوار اور عورت پیدل

تیسرے حصے میں مرد گدھے پر بیٹھا ہے اور عورت پیدل چل رہی ہے۔
اب تبصرہ آتا ہے —

کیا زمانہ آ گیا ہے! خود آرام سے سوار ہے اور بیوی کو پیدل چلا رہا ہے!”
یہاں ہماری سوچ کا دوہرا پن صاف نظر آتا ہے — ہر حال میں غلطی نکالنا ہی لوگوں کا کام بن چکا ہے۔
یہاں معاشرتی منافقت (دوغلی سوچ) کھل کر سامنے آتی ہے۔اگر مرد بیٹھ جائے تو بھی غلط، اور اگر نہ بیٹھے، تب بھی غلط۔


4️⃣ عورت سوار اور مرد پیدل

آخری حصے میں عورت گدھے پر بیٹھی ہے اور مرد پیدل چل رہا ہے۔
اب تبصرے بدل جاتے ہیں —

یہ کیسا آدمی ہے! بیوی تو گدھے پر بیٹھی ہے اور خود پیدل چل رہا ہے! سواری ہے تو دونوں ایک ساتھ بیٹھ کر جا سکتے ہیں!”
یہ بتاتا ہے کہ لوگ کبھی بھی مطمئن نہیں ہوتے۔چاہے آپ کچھ بھی کریں، تنقید ضرور ہوگی۔
یہ وہی سوچ ہے جو ہر حال میں دوسرے کو غلط ثابت کرنے پر تُلی رہتی ہے، چاہے سچائی کچھ بھی ہو۔
یعنی کسی بھی حالت میں لوگ خوش نہیں ہوتے — نہ خود کچھ کرتے ہیں، نہ دوسروں کو چین سے جینے دیتے ہیں۔ 


🌿 ہمارے معاشرے کی حقیقت

یہ تصویر صرف ایک طنز نہیں بلکہ ہمارے معاشرے کا آئینہ ہے۔
لوگ ہر وقت دوسروں کے کاموں پر انگلی اٹھانے کے لیے تیار رہتے ہیں۔
انہیں تنقید میں سکون اور دوسروں کی غلطی میں تسکین ملتی ہے۔
ایسے میں جو انسان ہر رائے پر دھیان دے گا، وہ کبھی اپنے فیصلے پر قائم نہیں رہ سکے گا۔

اس پوری کہانی کا خلاصہ یہی ہے کہ —
جو لوگ دوسروں کی رائے پر چلتے ہیں، وہ کبھی اپنی منزل تک نہیں پہنچ پاتے۔
دنیا کی سوچ کو بدلنا ہمارے بس میں نہیں، لیکن خود کو مضبوط رکھنا ہمارے اختیار میں ہے۔
جو شخص دوسروں کی رائے سے بلند ہو کر اپنے اصولوں پر چلتا ہے، وہی سچّے معنوں میں خود مختار اور کامیاب ہوتا ہے۔


لہٰذا ہمیں چاہیے کہ ہم لوگوں کی باتوں کی پرواہ کیے بغیر وہ کریں جو درست اور بہتر ہو۔ کیونکہ سب کو خوش کرنا ناممکن ہے۔

💡 نتیجہ (Conclusion):

یہ تصویر ہمارے معاشرے کی ایک کڑوی حقیقت کو بیان کرتی ہے —کہ لوگ ہمیشہ دوسروں پر انگلی اٹھانے میں مصروف رہتے ہیں۔ہر کوئی اپنے زاویے سے دوسروں کو غلط ثابت کرنا چاہتا ہے۔لوگ ہر کام میں بولیں گے، چاہے آپ اچھا کریں یا بُرا۔

یہ دنیا ہر حال میں بولتی رہے گی —کبھی تعریف کے بہانے، تو کبھی طعنے کے ذریعے۔اس لیے بہتر یہی ہے کہ ہم اپنے دل کی سنیں، اپنی راہ چنیں اور اپنی زندگی اپنے اصولوں کے مطابق گزاریں۔
کیونکہ جو سب کو خوش کرنے چلا، وہ خود کبھی خوش نہیں رہ پایا۔

ہمیں اس تحریر Muashra Aur Tanqeed– Har Kaam Mein Nuqs Nikalne Wale Log سے یہی سبق ملتا ہے کہ —
لوگوں کی باتوں کی پروا چھوڑ کر وہی کرو جو تمہارے لیے بہتر ہے۔کیونکہ دنیا کی رائے کبھی ختم نہیں ہوتی، اور سب کو خوش کرنا ناممکن ہے۔

🌿 پسند اپنی، زندگی اپنی، فیصلے بھی اپنے!

FAQs (اکثر پوچھے جانے والے سوالات)

Q1: اس تصویر سے کیا سبق ملتا ہے؟
A: یہ کہ دنیا کے لوگ کبھی مطمئن نہیں ہوتے، اس لیے ہمیں اپنے عمل کو صحیح نیت سے کرنا چاہیے، نہ کہ دوسروں کی رائے کے مطابق۔

Q2: کیا دوسروں کی باتوں کی پرواہ نہ کرنا درست ہے؟
A: اگر آپ حق اور سچ پر ہیں، تو لوگوں کی باتوں کی پرواہ نہیں کرنی چاہیے۔ اللہ کے نزدیک آپ کی نیت اہم ہے، نہ کہ دنیا کی رائے۔

Q3: اس مضمون کا اصل پیغام کیا ہے؟
A: معاشرتی دوغلے پن سے بچنا، اور اپنی زندگی اپنے اصولوں کے مطابق گزارنا۔



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