🕋 Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi?
अक्सर लोगों के ज़ेहन में यह सवाल उठता है और अक्सर पूछा भी जाता है Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi? —अगर वाक़ई अल्लाह या ईश्वर ही दुनिया का ख़ालिक (Creator) है, सर्वशक्तिमान है, तो सबको एक ही मज़हब में क्यों पैदा नहीं किया? सब लोग एक ही दीन पर क्यों नहीं? क्यों कोई मुस्लिम है, कोई हिंदू, कोई ईसाई, कोई यहूदी और कोई नास्तिक?
यह सवाल सिर्फ़ आम इंसान ही नहीं, बल्कि फ़िलॉसफ़र्स और स्कॉलर्स ने भी अलग-अलग अंदाज़ में उठाया है।
इस आर्टिकल Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi? में हम इस सवाल का जवाब क़ुरआन, हदीस और दूसरे धर्मग्रंथों के हवाले से देंगे, और देखेंगे कि असल में यह मसला इम्तिहान, हिदायत और इंसान की आज़ादी से जुड़ा हुआ है।हदीस और अक़्ल (तर्क) से साफ़ मिलता है कि इसमें अल्लाह की एक बहुत बड़ी और गहरी हिकमत है।
शुरुआत में पूरी इंसानियत एक ही रास्ते
इस आयत में अल्लाह बता रहा है कि इंसानों का यह बँटना, यह इख़्तिलाफ़, यह अलग-अलग अक़ीदे बनाना — यह उनकी अपनी पसंद और फैसलों का नतीजा है, न कि अल्लाह की पैदाइशी तफ़रीक़।
“…और अगर तेरे रब की तरफ़ से पहले ही एक बात तय न कर दी गई होती…”
इस जुमले का मतलब यह है कि अल्लाह ने इस दुनिया को एक इम्तिहान बनाया है और इंसान को मोहलत दी है। अगर अल्लाह चाहता तो शुरू ही में उन तमाम इख़्तिलाफ़ात का फैसला कर देता और हर किसी को ज़बरदस्ती एक ही रास्ते पर डाल देता — लेकिन ऐसा करना इम्तिहान का मक़सद खत्म कर देता।
यानी अल्लाह ने इंसान को आज़ादी दी, ताकि वह सच और झूठ के बीच खुद फैसला करे। यही इंसान की असली जिम्मेदारी है — अपने दिल, अपनी समझ और अल्लाह की हिदायत की रोशनी में सही रास्ता चुनना।
इंसान को आज़ादी-ए-इख़्तियार (Free Will) दी गई है
अल्लाह ने इंसान को दुनिया में कठपुतली या मजबूर बंदा बनाकर नहीं भेजा, बल्कि उसे सोचने समझने की अक़्ल और अच्छे बुरे चुनाव करने की आज़ादी देकर इस दुनियां में भेजा।📖 अल्लाह फ़रमाता है:इंसान को दो रास्ते दिखाए गए
अगर अल्लाह चाहता तो पूरी इंसानियत को एक ही मज़हब में रख देता:
"और अगर तुम्हारा रब चाहता तो ज़मीन के सभी लोग एक ही ईमान वाले हो जाते, तो क्या तुम लोगों को मजबूर करोगे कि वे ईमान ले आएं?"(सूरह यूनुस 10:99)
वज़ाहत: ये किसी इंसान के बस की बात नहीं की किसी पर ज़ोर ज़बरदस्ती करे की वो ईमान लाए। यह केवल अल्लाह की इच्छा पर निर्भर हैहिदायत सिर्फ़ उस तक पहुँचती है जो चाहे
क़ुरआन कहता है:
"अल्लाह उसी को हिदायत देता है जो उसकी तरफ़ रुजू करे।"(सूरह अश-शूरा 42:13)
जिसके साथ अल्लाह भलाई का इरादा करता है, उसे दीन की समझ देता है।" (बुख़ारी: 71, मुस्लिम: 1037)
यानी अगर कोई इंसान सच्चाई की तलाश करे, तो अल्लाह उसे रास्ता दिखाता है। लेकिन जो दुनिया के लालच, परंपरा या जिद में रहे, वह हक़ से दूर रहता है।📖 अल्लाह ने सबको एक ही उम्मत क्यों नहीं बनाया?
अल्लाह तआला कुरआन में फ़रमाता है:अगर अल्लाह चाहता तो सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, ताकि वह तुम्हारी आज़माइश करे उस में जो उसने तुम्हें दिया है।
तुम में से हर एक के लिए हमने एक शरीअत और तरीका तय किया है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन जो आदेश उसने तुम्हें दिए हैं उनमें वह तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अच्छे कामों में आगे बढ़ो, तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौट कर जाना है, फिर जिन बातों में तुम में मतभेद था, वह तुम्हें बता देगा।(सूरह अल-मायदा: 48)
वज़ाहत/व्याख्या:
यह आयत इंसानों के लिए परीक्षा और अच्छे कर्मों के महत्व को स्पष्ट करती है। अल्लाह ने विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग शरीअत रखी ताकि इंसान अपनी मेहनत और अच्छे कर्मों के जरिए परीक्षा में सफल हो। अंततः, सभी मतभेदों की सच्चाई सामने आएगी।
अल्लाह अलग-अलग लोगों को अलग माहौल, मज़हब और हालात में पैदा करता है, ताकि हर इंसान सच को तलाश करे और अपने इख़्तियार से सही रास्ता चुने।
इससे साफ़ मालूम हुआ कि इंसान को अलग-अलग माहौल और हालात में पैदा करना अल्लाह की हिकमत और इम्तेहान का हिस्सा है।
अगर तुम्हारा रब चाहता तो सब लोगों को एक ही उम्मत बना देता, लेकिन वे अलग-अलग ही रहेंगे, सिवाय उन लोगों के जिन पर तुम्हारे रब ने रहमत की। और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया।"📚 (हूद: 118-119)
🔍 वज़ाहत:मतलब यह कि इंसानों में सोच और अमल का फर्क रहना अल्लाह की मर्ज़ी और क़ुदरत का हिस्सा है। यह फर्क इंसान के इम्तेहान को असली बनाता है।
और यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही समुदाय बना देता, लेकिन वह जिसे चाहता है गुमराह रहने देता और जिसे चाहता है मार्गदर्शन देता है। और जो काम तुम करते हो, उस दिन उनके बारे में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा।सूरा नहल (16:93)
व्याख्या:यह आयत यह दर्शाती है कि अल्लाह प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता देता है कि वह मार्गदर्शन पाये या गुमराह रहे। इंसानों के कर्मों का हिसाब जरूर लिया जाएगा। यहाँ अल्लाह की न्यायप्रियता और इंसानों की ज़िम्मेदारी का संतुलन दिखाया गया है।
आयत:
व्याख्या:
यह आयत स्वतंत्र चुनाव और अल्लाह के न्याय को दर्शाती है। हर व्यक्ति के पास विकल्प है कि वह ईमान लाए या इंकार करे। जो लोग अत्याचार और नाफ़रमानी करते हैं, उनके लिए दोज़ख की आग तय है। यह हमें चेतावनी देती है कि नाफ़रमानी के परिणाम गंभीर और निश्चित हैं।
अल्लाह ने इंसान को मजबूर नहीं किया बल्कि उसे आज़ादी दी, ताकि वह अपनी पसंद से हक़ को अपनाए।
आयत
और यदि तुम्हारा पालनहार चाहता, तो जितने लोग धरती में हैं, सब ईमान ले आते। तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन हो जाएँ?और किसी व्यक्ति के लिए यह सामर्थ्य नहीं है कि अल्लाह के आदेश के बिना ईमान लाए, और जो लोग अक़्ल का इस्तेमाल नहीं करते, उन पर वह कुफ़्र और अपमान की गंदगी डाल देता है। सूरा यूनुस (10:99-100)
व्याख्या:यह आयत सिखाती है कि ईमान लाने की शक्ति इंसान के पास नहीं है, यह केवल अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। कोई भी इंसान दूसरों पर ईमान लाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। अल्लाह अपने नियमों और न्याय के अनुसार गुमराह और नाफ़रमान लोगों के लिए सज़ा तय करता है।
🕋 हदीस का बयान
हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है, फिर उसके मां-बाप उसे यहूदी, ईसाई या मज़ूसी बना देते हैं।"📚 (सहीह बुखारी: 1358, सहीह मुस्लिम: 2658)
हर इंसान अल्लाह की तौहीद और हक़ की पहचान की फितरत लेकर आता है, लेकिन माहौल और परवरिश उसका रुख़ बदल सकते हैं। जो इंसान सच की तलाश करता है, वह अपने असली रास्ते को पा सकता है।पिछली उम्मतें और किताबों का तज़किरा
क़ुरआन के मुताबिक़, हर क़ौम में पैग़म्बर भेजे गए:और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा, (यह कहकर) कि अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत से बचो।"
(सूरह अन-नहल 16:36)
लेकिन वक्त के साथ बहुत सी क़ौमें अपनी आसल तालीम से हट गईं। यही कारण है कि आज अलग-अलग धर्म मौजूद हैं।
हिंदू ग्रंथों में भी यह तालीम है कि अलग युगों में अलग अवतार और ऋषि आए, लेकिन लोगों ने उनके संदेश में मिलावट कर ली।
भागवत गीता (अध्याय 4, श्लोक 7-8) में कृष्ण कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, मैं अवतार लेता हूं — यानी यह भी वही सिलसिला है।
🌟 हिकमत (Wisdom)
आज़ादी-ए-इख़्तियार (Free Will)
हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है, फिर उसके मां-बाप उसे यहूदी, ईसाई या मज़ूसी बना देते हैं।"📚 (सहीह बुखारी: 1358, सहीह मुस्लिम: 2658)
🔍 वज़ाहत:इम्तेहान का मक़सद
अगर सबको जबरदस्ती एक ही धर्म में डाल दिया जाता, तो इम्तिहान का मक़सद ही खत्म हो जाता हदीस में भी आता है कि दुनिया ख़ैर और शर के बीच का चुनाव है, और उसी के हिसाब से आख़िरत में इनाम या सज़ा है।
सच की तलाश का इनाम
जो इंसान अपनी फितरत और अक़्ल से सच ढूँढ कर अपनाता है, उसका दर्जा और बढ़ जाता है, क्योंकि उसने सिर्फ़ विरासत में नहीं पाया बल्कि कोशिश करके पाया।
ज़िंदगी असल में एक टेस्ट है
कोई अमीर पैदा होता है, कोई गरीब; कोई मुसलमान घर में, कोई गैर-मुसलमान घर में — लेकिन इन हालात में इंसान का असली इम्तेहान यह है कि वह सच की तलाश करे और उस पर चले।
एक आसान मिसाल
सोचो, एक स्कूल में टीचर सबको पहले ही 100 में 100 नंबर दे दे — तो मेहनत, पढ़ाई और इम्तेहान का क्या मतलब रह जाएगा?इम्तेहान तभी मायने रखता है जब सबको अलग-अलग सवाल, अलग माहौल और बराबर मौक़ा मिले।
दुनिया का यह इम्तेहान भी बिल्कुल ऐसा ही है।, जिसमें सबको अलग-अलग सवाल और हालात दिए जाते हैं।
असली नतीजा आख़िरत में होगा
क़ुरआन साफ़ कहता है:"फिर तुम सबका लौटना मेरे ही पास है, तब मैं तुम्हें बता दूंगा जो तुम किया करते थे।"
(सूरह आल-इमरान 3:55)
इसलिए आज की दुनिया में अलग-अलग धर्म होना इम्तिहान की निशानी है, न कि अल्लाह या ईश्वर के अस्तित्व के खिलाफ़ कोई सबूत।
यह दुनिया इम्तिहान का मैदान है,
क़ुरआन के मुताबिक़, अल्लाह ने इंसान को इसलिए पैदा किया कि वह इबादत करे और अपने अमल से साबित करे कि वह हक़ का क़ायल है:मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।"
(सूरह अज़-ज़ारियात 51:56)
हदीस में भी आता है कि दुनिया ख़ैर और शर के बीच का चुनाव है, और उसी के हिसाब से आख़िरत में इनाम या सज़ा है।
(Conclusion):
अल्लाह या ईश्वर ने दुनिया बनाई, इसमें कोई शक नहीं — यह सभी आसमानी और प्राचीन ग्रंथ मानते हैं।अलग-अलग धर्मों का होना इंसान की Free Will, इम्तिहान, और वक्त के साथ तालीम में तब्दीली का नतीजा है।असल मक़सद यह है कि इंसान खुद तलाश करे, सच को पहचाने, और अपने अमल से साबित करे।
अल्लाह की हिकमत यह है कि इंसान को अलग-अलग हालात और मज़हब में पैदा करके उसे आज़ादी दी जाए, ताकि वह खुद सच को पहचानकर अपनाए।
अगर सबको एक जैसा बना देता, तो न इम्तेहान होता, न इनाम, न सज़ा — और न ही इंसान की असल क़ीमत सामने आती।
💡 असल सवाल यह नहीं कि हम किस मज़हब में पैदा हुए हैं, बल्कि यह कि हमने सच की तलाश में क्या किया।
📚 (सूरह अल-कहफ़: 29) — "जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ्र करे।"
पाठकों के लिए नसीहत
सवाल उठाना बुरा नहीं, लेकिन जवाब तलाशना ज़रूरी है। अगर आप सच्चाई के मुंतज़िर हैं, तो दिल और दिमाग खोलकर किताब-ए-हयात (Qur'an / अपने धर्मग्रंथ) पढ़ें, तर्क और हक़ीक़त का सामना करें। अल्लाह ने हर इंसान को सच तक पहुँचने की क़ाबिलियत दी है — फर्क सिर्फ़ इतना है कि कौन वाक़ई उसे ढूंढना चाहता है और कौन परंपराओं के पर्दे में रहना पसंद करता है।🕋 اگر اللّٰہ / ایشور نے دنیا بنائی ہے تو سب ایک دین کے کیوں نہیں؟
✍ مصنف: محب طاہری | 🕋 اسلامی مضمون | عقیدہ | تقدیر
![]() |
| Haq ka rasta roshan hai, batil ka andhera gehra |
ابتدا میں تمام انسان ایک ہی عقیدہ رکھنے والے
ابتدا میں تمام انسان ایک ہی عقیدہ رکھنے والے، ایک ہی رب کو ماننے والے اور ایک ہی راستے پر چلنے والے تھے۔ سب کی فطرت حق پر تھی اور دین ایک ہی تھا۔ لیکن جب وقت گزرا تو لوگوں نے اپنی خواہشات، نفسانی میلان، دنیاوی مفاد اور شیطانی وسوسوں کے زیرِ اثر مختلف راستے اختیار کر لیے۔ کسی نے اللہ کی ذات کے بارے میں نئی باتیں گھڑ لیں، کسی نے عبادت کے طریقے بدل دیے، اور یوں رفتہ رفتہ مختلف عقائد، مسالک اور مذاہب وجود میں آ گئے۔آیت میں اللہ تعالیٰ یہ فرما رہا ہے کہ انسانوں کا یہ بٹ جانا اور ان کا مختلف نظریات میں پڑ جانا ان کی اپنی پسند اور خود ساختہ راستوں کا نتیجہ ہے، نہ کہ اللہ کی طرف سے ابتدا ہی سے کوئی تقسیم مقرر کی گئی تھی۔
“…اور اگر آپ کے رب کی طرف سے ایک بات پہلے ہی طے نہ ہو چکی ہوتی…”
اس جملے سے مراد یہ ہے کہ اللہ نے اس دنیا کو امتحان گاہ بنایا ہے اور انسان کو ڈھیل اور مہلت دی ہے۔ اگر اللہ چاہتا تو آغاز ہی میں ان تمام اختلافات کا فیصلہ کر دیتا اور سب کو ایک ہی راستے پر چلنے پر مجبور کر دیتا، مگر ایسا ہوتا تو امتحان، اختیار اور ذمہ داری کا اصل مقصد ختم ہو جاتا۔
یعنی اللہ نے انسان کو اختیار دیا ہے تاکہ وہ خود حق اور باطل میں فرق کرے، غور و فکر کرے اور اپنی مرضی و فیصلے سے صحیح راستہ اختیار کرے۔ یہی انسان کی آزمائش ہے۔
🌿 انسان کو آزادیِ اختیار (Free Will) دی گئی ہے
🌙 ہدایت صرف اسی کو ملتی ہے جو طلب کرتا ہے
"اللہ اسی کو ہدایت دیتا ہے جو اس کی طرف رجوع کرتا ہے۔"(سورۃ الشورٰی 42:13)
"جس کے ساتھ اللہ بھلائی کا ارادہ کرتا ہے، اسے دین کی سمجھ عطا فرماتا ہے۔"
(بخاری 71، مسلم 1037)
یعنی جو انسان سچائی کی تلاش کرے، اللہ اسے راہ دکھاتا ہے۔مگر جو ضد، تقلید یا دنیا کی لالچ میں رہے، وہ حق سے محروم رہ جاتا ہے۔
📖 اللہ نے سب کو ایک ہی امت کیوں نہیں بنایا؟
📖 مختلف قوموں کا امتحان
📖 آزاد مرضی اور جواب دہی
📖 ایمان لانے پر زبردستی نہیں
🕋 حدیث کا بیان
📜 سابقہ امتیں اور پیغمبر
🌟 اللہ کی حکمت
📚 مثال کے طور پر
🌈 دنیا امتحان کا میدان ہے
📖 قرآن کا پیغام
🕊 خلاصہ (Conclusion)
اللہ کی حکمت یہ ہے کہ انسان کو مختلف حالات اور مذاہب میں پیدا کر کے اسے آزادی دی جائے تاکہ وہ خود حق کو پہچان کر اپنائے۔ اگر سب کو ایک جیسا بنا دیتا، تو نہ امتحان ہوتا، نہ انعام، نہ سزا — اور نہ ہی انسان کی اصل قدر ظاہر ہوتی۔💡 اصل سوال یہ نہیں کہ ہم کس مذہب میں پیدا ہوئے ہیں، بلکہ یہ کہ ہم نے حق کی تلاش میں کیا کیا۔📚 (سورۃ الکہف: 29) — "جو چاہے ایمان لائے اور جو چاہے کفر کرے۔"
🤲 نصیحت برائے قارئین


0 Comments
please do not enter any spam link in the comment box.thanks