Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi?

अल्लाह ने इंसान को सिर्फ़ रोबोट की तरह प्रोग्राम करके नहीं भेजा। बल्कि अल्लाह ने इंसान को सोचने, चुनने और सही-गलत में फर्क करने की ताकत दी ताकी वो अल्लाह या ईश्वर तक पहुंचने के लिए सही तरीके या रास्ते को पहचान सके। 

🕋 Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi?

अगर अल्लाह ने दुनिया बनाई है तो सब मुसलमान क्यों नहीं? और अगर ईश्वर ने दुनिया बनाई है तो सब हिंदू क्यों नहीं?
 लेखक: Mohib Tahiri |🕋 islamic article|Aqeedah|Taqdeer | Islamic path 🕰 Updated:4 Dec 2025

Islamic path showing Allah ka banaya imtihan jahan insaan ko haq aur batil ke darmiyan ikhtiyar diya gaya hai.
Allah chahta to sab ek mazhab me hote, lekin usne har insaan ko apni raah chunne ka ikhtiyar diya.”


अक्सर लोगों के ज़ेहन में यह सवाल उठता है और अक्सर पूछा भी जाता है Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi? —अगर वाक़ई अल्लाह या ईश्वर ही दुनिया का ख़ालिक (Creator) है, सर्वशक्तिमान है, तो सबको एक ही मज़हब में क्यों पैदा नहीं किया? सब लोग एक ही दीन पर क्यों नहीं? क्यों कोई मुस्लिम है, कोई हिंदू, कोई ईसाई, कोई यहूदी और कोई नास्तिक?
यह सवाल सिर्फ़ आम इंसान ही नहीं, बल्कि फ़िलॉसफ़र्स और स्कॉलर्स ने भी अलग-अलग अंदाज़ में उठाया है।
इस आर्टिकल Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi? में हम इस सवाल का जवाब क़ुरआन, हदीस और दूसरे धर्मग्रंथों के हवाले से देंगे, और देखेंगे कि असल में यह मसला इम्तिहान, हिदायत और इंसान की आज़ादी से जुड़ा हुआ है।हदीस और अक़्ल (तर्क) से साफ़ मिलता है कि इसमें अल्लाह की एक बहुत बड़ी और गहरी हिकमत है


शुरुआत में पूरी इंसानियत एक ही रास्ते

क़ुरआन में अल्लाह सुब्हान व ताआला फरमाता है:
शुरू में सारे इंसान एक ही उम्मत (समुदाय) थे, बाद में उन्होंने अलग-अलग अक़ीदे और मसलक (पंथ)  बना लिये , और अगर तेरे रब की तरफ़ से पहले ही एक बात तय न कर ली गई होती तो जिस चीज़ में वो आपस में इख़्तिलाफ़ कर रहे हैं, उसका फ़ैसला कर दिया जाता। (सुरह: युनुस 19)

शुरुआत में पूरी इंसानियत एक ही रास्ते, एक ही पहचान और एक ही ख़ुदा को मानने वाली थी। यानी सभी लोग एक ही तरह का अकीदा रखते थे और हक़ (सच) पर थे। वक़्त गुज़रने के साथ लोगों ने अपनी ख़्वाहिशों, नफ़्स और दुनियावी फ़ायदों की वजह से अलग-अलग राहें इख़्तियार कर लीं। किसी ने खुदा के बारे में नई बातें जोड़ दीं, किसी ने उपासना (इबादत) के तौर-तरीकों को बदल दिया, और फिर ये तफ़र्रुक़ (विभाजन) धीरे-धीरे अलग-अलग मज़हबों, पंथों और फ़िरकों की शकल में उभर आया।

इस आयत में अल्लाह बता रहा है कि इंसानों का यह बँटना, यह इख़्तिलाफ़, यह अलग-अलग अक़ीदे बनाना — यह उनकी अपनी पसंद और फैसलों का नतीजा है, न कि अल्लाह की पैदाइशी तफ़रीक़।

“…और अगर तेरे रब की तरफ़ से पहले ही एक बात तय न कर दी गई होती…”

इस जुमले का मतलब यह है कि अल्लाह ने इस दुनिया को एक इम्तिहान बनाया है और इंसान को मोहलत दी है। अगर अल्लाह चाहता तो शुरू ही में उन तमाम इख़्तिलाफ़ात का फैसला कर देता और हर किसी को ज़बरदस्ती एक ही रास्ते पर डाल देता — लेकिन ऐसा करना इम्तिहान का मक़सद खत्म कर देता।
यानी अल्लाह ने इंसान को आज़ादी दी, ताकि वह सच और झूठ के बीच खुद फैसला करे। यही इंसान की असली जिम्मेदारी है — अपने दिल, अपनी समझ और अल्लाह की हिदायत की रोशनी में सही रास्ता चुनना।

इंसान को आज़ादी-ए-इख़्तियार (Free Will) दी गई है

अल्लाह ने इंसान को दुनिया में कठपुतली या मजबूर बंदा बनाकर नहीं भेजा, बल्कि उसे सोचने समझने की अक़्ल और अच्छे बुरे चुनाव करने की आज़ादी देकर इस दुनियां में भेजा। 

📖 अल्लाह फ़रमाता है:इंसान को दो रास्ते दिखाए गए

🔘हमने इंसान को रास्ता दिखा दिया—चाहे वह शुक्रगुज़ार बने या नाशुक्रा।📖 सूरह दहर /अल-इन्सान76:3
🔘 हमने उसे दो रास्ते दिखा दिए — एक नेकी का और दूसरा बुराई का"📖 (सूरह अल बलद 90:10)
🔘 और इंसान के लिए वही है जिसकी उसने कोशिश की"📖 (सूरह नज्म 53:40)
यानी अल्लाह ने हक़ और बातिल, सही और ग़लत दोनों रास्ते बता दिए, अब यह इंसान के अख्तियार में  है कि वह किसे चुनता है।

अगर अल्लाह चाहता तो पूरी इंसानियत को एक ही मज़हब में रख देता:

क़ुरआन कहता है:

"और अगर तुम्हारा रब चाहता तो ज़मीन के सभी लोग एक ही ईमान वाले हो जाते, तो क्या तुम लोगों को मजबूर करोगे कि वे ईमान ले आएं?"(सूरह यूनुस 10:99)

वज़ाहत: ये किसी इंसान के बस की बात नहीं की किसी पर ज़ोर ज़बरदस्ती करे की वो ईमान लाए। यह केवल अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है

हिदायत सिर्फ़ उस तक पहुँचती है जो चाहे

क़ुरआन कहता है:


"अल्लाह उसी को हिदायत देता है जो उसकी तरफ़ रुजू करे।"(सूरह अश-शूरा 42:13)

हदीस में भी आता है:

जिसके साथ अल्लाह भलाई का इरादा करता है, उसे दीन की समझ देता है।" (बुख़ारी: 71, मुस्लिम: 1037)

यानी अगर कोई इंसान सच्चाई की तलाश करे, तो अल्लाह उसे रास्ता दिखाता है। लेकिन जो दुनिया के लालच, परंपरा या जिद में रहे, वह हक़ से दूर रहता है।

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हर इंसान अल्लाह की तौहीद और हक़ की पहचान की फितरत लेकर आता है, लेकिन माहौल और परवरिश उसका रुख़ बदल देते हैं। जो इंसान सच की तलाश करता है, वह अपने असली रास्ते को पा सकता है।

📖 अल्लाह ने सबको एक ही उम्मत क्यों नहीं बनाया?

अल्लाह तआला कुरआन में फ़रमाता है:

अगर अल्लाह चाहता तो सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, ताकि वह तुम्हारी आज़माइश करे उस में जो उसने तुम्हें दिया है।

आयत:

तुम में से हर एक के लिए हमने एक शरीअत और तरीका तय किया है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन जो आदेश उसने तुम्हें दिए हैं उनमें वह तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है। अच्छे कामों में आगे बढ़ो, तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौट कर जाना है, फिर जिन बातों में तुम में मतभेद था, वह तुम्हें बता देगा।(सूरह अल-मायदा: 48)


वज़ाहत/व्याख्या:

यह आयत इंसानों के लिए परीक्षा और अच्छे कर्मों के महत्व को स्पष्ट करती है। अल्लाह ने विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग शरीअत रखी ताकि इंसान अपनी मेहनत और अच्छे कर्मों के जरिए परीक्षा में सफल हो। अंततः, सभी मतभेदों की सच्चाई सामने आएगी।
अल्लाह अलग-अलग लोगों को अलग माहौल, मज़हब और हालात में पैदा करता है, ताकि हर इंसान सच को तलाश करे और अपने इख़्तियार से सही रास्ता चुने।
इससे साफ़ मालूम हुआ कि इंसान को अलग-अलग माहौल और हालात में पैदा करना अल्लाह की हिकमत और इम्तेहान का हिस्सा है।


आयत:

अगर तुम्हारा रब चाहता तो सब लोगों को एक ही उम्मत बना देता, लेकिन वे अलग-अलग ही रहेंगे, सिवाय उन लोगों के जिन पर तुम्हारे रब ने रहमत की। और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया।"📚 (हूद: 118-119)

🔍 वज़ाहत:
मतलब यह कि इंसानों में सोच और अमल का फर्क रहना अल्लाह की मर्ज़ी और क़ुदरत का हिस्सा है। यह फर्क इंसान के इम्तेहान को असली बनाता है।


आयत:

और यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही समुदाय बना देता, लेकिन वह जिसे चाहता है गुमराह रहने देता और जिसे चाहता है मार्गदर्शन देता है। और जो काम तुम करते हो, उस दिन उनके बारे में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा।सूरा नहल (16:93)

व्याख्या:
यह आयत यह दर्शाती है कि अल्लाह प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता देता है कि वह मार्गदर्शन पाये या गुमराह रहे। इंसानों के कर्मों का हिसाब जरूर लिया जाएगा। यहाँ अल्लाह की न्यायप्रियता और इंसानों की ज़िम्मेदारी का संतुलन दिखाया गया है।

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 आयत:

और कह दो कि लोगों! यह क़ुरआन तुम्हारे पालनहार की ओर से सत्य है, तो जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ़्र करे। हमने ज़ालिमों के लिए जहन्नम की आग तैयार कर रखी है, जिसकी दीवारें उन्हें घेरे रहेंगी। और यदि वे पुकारेंगे तो ऐसे खौलते हुए पानी से उनकी मदद की जाएगी, जो पिघले हुए तांबे की तरह गर्म होगा और उनके चेहरों को झुलसा देगा। यह पीने का पानी भी बुरा है और ठहरने की जगह भी बुरी है।सूरा कहफ़ (18:29)

व्याख्या:

यह आयत स्वतंत्र चुनाव और अल्लाह के न्याय को दर्शाती है। हर व्यक्ति के पास विकल्प है कि वह ईमान लाए या इंकार करे। जो लोग अत्याचार और नाफ़रमानी करते हैं, उनके लिए दोज़ख की आग तय है। यह हमें चेतावनी देती है कि नाफ़रमानी के परिणाम गंभीर और निश्चित हैं।

अल्लाह ने इंसान को मजबूर नहीं किया बल्कि उसे आज़ादी दी, ताकि वह अपनी पसंद से हक़ को अपनाए।

आयत

और यदि तुम्हारा पालनहार चाहता, तो जितने लोग धरती में हैं, सब ईमान ले आते। तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो कि वे मोमिन हो जाएँ?और किसी व्यक्ति के लिए यह सामर्थ्य नहीं है कि अल्लाह के आदेश के बिना ईमान लाए, और जो लोग अक़्ल का इस्तेमाल नहीं करते, उन पर वह कुफ़्र और अपमान की गंदगी डाल देता है। सूरा यूनुस (10:99-100)

व्याख्या:
यह आयत सिखाती है कि ईमान लाने की शक्ति इंसान के पास नहीं है, यह केवल अल्लाह की इच्छा पर निर्भर है। कोई भी इंसान दूसरों पर ईमान लाने के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकता। अल्लाह अपने नियमों और न्याय के अनुसार गुमराह और नाफ़रमान लोगों के लिए सज़ा तय करता है।

अगर अल्लाह सबको एक ही धर्म में पैदा करता, तो फिर इम्तिहान का मक़सद ही खत्म हो जाता।

🕋 हदीस का बयान

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है, फिर उसके मां-बाप उसे यहूदी, ईसाई या मज़ूसी बना देते हैं।"📚 (सहीह बुखारी: 1358, सहीह मुस्लिम: 2658)

हर इंसान अल्लाह की तौहीद और हक़ की पहचान की फितरत लेकर आता है, लेकिन माहौल और परवरिश उसका रुख़ बदल सकते हैं। जो इंसान सच की तलाश करता है, वह अपने असली रास्ते को पा सकता है।

पिछली उम्मतें और किताबों का तज़किरा

क़ुरआन के मुताबिक़, हर क़ौम में पैग़म्बर भेजे गए:

और हमने हर उम्मत में एक रसूल भेजा, (यह कहकर) कि अल्लाह की इबादत करो और ताग़ूत से बचो।"
(सूरह अन-नहल 16:36)


लेकिन वक्त के साथ बहुत सी क़ौमें अपनी आसल तालीम से हट गईं। यही कारण है कि आज अलग-अलग धर्म मौजूद हैं।
हिंदू ग्रंथों में भी यह तालीम है कि अलग युगों में अलग अवतार और ऋषि आए, लेकिन लोगों ने उनके संदेश में मिलावट कर ली।

भागवत गीता (अध्याय 4, श्लोक 7-8) में कृष्ण कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, मैं अवतार लेता हूं — यानी यह भी वही सिलसिला है।


🌟 हिकमत (Wisdom)

आज़ादी-ए-इख़्तियार (Free Will)

रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:

हर बच्चा फ़ितरत पर पैदा होता है, फिर उसके मां-बाप उसे यहूदी, ईसाई या मज़ूसी बना देते हैं।"📚 (सहीह बुखारी: 1358, सहीह मुस्लिम: 2658)

🔍 वज़ाहत:
अल्लाह ने इंसान को सिर्फ़ रोबोट की तरह प्रोग्राम करके नहीं भेजा।अल्लाह ने इंसान को सोचने, चुनने और सही-गलत में फर्क करने की ताकत दी। मजबूरी से ईमान लाना असल ईमान नहीं होता।

इम्तेहान का मक़सद

अगर सबको जबरदस्ती एक ही धर्म में डाल दिया जाता, तो इम्तिहान का मक़सद ही खत्म हो जाता हदीस में भी आता है कि दुनिया ख़ैर और शर के बीच का चुनाव है, और उसी के हिसाब से आख़िरत में इनाम या सज़ा है।

अलग-अलग हालात ही इंसान के असली इम्तेहान को साबित करते हैं।

सच की तलाश का इनाम

जो इंसान अपनी फितरत और अक़्ल से सच ढूँढ कर अपनाता है, उसका दर्जा और बढ़ जाता है, क्योंकि उसने सिर्फ़ विरासत में नहीं पाया बल्कि कोशिश करके पाया।

ज़िंदगी असल में एक टेस्ट है

कोई अमीर पैदा होता है, कोई गरीब; कोई मुसलमान घर में, कोई गैर-मुसलमान घर में — लेकिन इन हालात में इंसान का असली इम्तेहान यह है कि वह सच की तलाश करे और उस पर चले।


 एक आसान मिसाल

सोचो, एक स्कूल में टीचर सबको पहले ही 100 में 100 नंबर दे दे — तो मेहनत, पढ़ाई और इम्तेहान का क्या मतलब रह जाएगा?

इम्तेहान तभी मायने रखता है जब सबको अलग-अलग सवाल, अलग माहौल और बराबर मौक़ा मिले।
दुनिया का यह इम्तेहान भी बिल्कुल ऐसा ही है।, जिसमें सबको अलग-अलग सवाल और हालात दिए जाते हैं।

असली नतीजा आख़िरत में होगा

क़ुरआन साफ़ कहता है:

"फिर तुम सबका लौटना मेरे ही पास है, तब मैं तुम्हें बता दूंगा जो तुम किया करते थे।"
(सूरह आल-इमरान 3:55)


इसलिए आज की दुनिया में अलग-अलग धर्म होना इम्तिहान की निशानी है, न कि अल्लाह या ईश्वर के अस्तित्व के खिलाफ़ कोई सबूत।

यह दुनिया इम्तिहान का मैदान है,

क़ुरआन के मुताबिक़, अल्लाह ने इंसान को इसलिए पैदा किया कि वह इबादत करे और अपने अमल से साबित करे कि वह हक़ का क़ायल है:

मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।"
(सूरह अज़-ज़ारियात 51:56)

अगर सबको जबरदस्ती एक ही धर्म में डाल दिया जाता, तो इम्तिहान का मक़सद ही खत्म हो जाता।
हदीस में भी आता है कि दुनिया ख़ैर और शर के बीच का चुनाव है, और उसी के हिसाब से आख़िरत में इनाम या सज़ा है।

 (Conclusion):

अल्लाह या ईश्वर ने दुनिया बनाई, इसमें कोई शक नहीं — यह सभी आसमानी और प्राचीन ग्रंथ मानते हैं।
अलग-अलग धर्मों का होना इंसान की Free Will, इम्तिहान, और वक्त के साथ तालीम में तब्दीली का नतीजा है।असल मक़सद यह है कि इंसान खुद तलाश करे, सच को पहचाने, और अपने अमल से साबित करे।

अल्लाह की हिकमत यह है कि इंसान को अलग-अलग हालात और मज़हब में पैदा करके उसे आज़ादी दी जाए, ताकि वह खुद सच को पहचानकर अपनाए।
अगर सबको एक जैसा बना देता, तो न इम्तेहान होता, न इनाम, न सज़ा — और न ही इंसान की असल क़ीमत सामने आती।

💡 असल सवाल यह नहीं कि हम किस मज़हब में पैदा हुए हैं, बल्कि यह कि हमने सच की तलाश में क्या किया।
📚 (सूरह अल-कहफ़: 29) — "जो चाहे ईमान लाए और जो चाहे कुफ्र करे।"


पाठकों के लिए नसीहत

सवाल उठाना बुरा नहीं, लेकिन जवाब तलाशना ज़रूरी है। अगर आप सच्चाई के मुंतज़िर हैं, तो दिल और दिमाग खोलकर किताब-ए-हयात (Qur'an / अपने धर्मग्रंथ) पढ़ें, तर्क और हक़ीक़त का सामना करें। अल्लाह ने हर इंसान को सच तक पहुँचने की क़ाबिलियत दी है — फर्क सिर्फ़ इतना है कि कौन वाक़ई उसे ढूंढना चाहता है और कौन परंपराओं के पर्दे में रहना पसंद करता है।
اللّٰہ نے انسان کو صِرف روبوٹ کی طرح پروگرام کرکے نہیں بھیجا بلکہ اللّٰہ نے انسان کو سوچنے , چُننے اور صحیح غلط میں فرق کرنے کی صلاحیت دی تاکہ وہ اللہ تک پہنچنے کے لئے صحیح طریقے یا راستے کو پہچان سکے
اگر اللہ چاہتا تو سب کو مسلمان یا ہندو پیدا کرتا، لیکن ایسا نہیں — کیوں؟

🕋 اگر اللّٰہ / ایشور نے دنیا بنائی ہے تو سب ایک دین کے کیوں نہیں؟

✍ مصنف: محب طاہری | 🕋 اسلامی مضمون | عقیدہ | تقدیر

Ek raasta jo do hisso me bata hai, ek taraf roshni aur Islam ka rasta, doosri taraf andhera — insani choice ka paigham.
Haq ka rasta roshan hai, batil ka andhera gehra


اکثر لوگوں کے ذہن میں یہ سوال آتا ہے کہ Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi ،اگر واقعی اللہ یا ایشور ہی دنیا کا خالق (Creator) ہے، قادرِ مطلق ہے، تو سب کو ایک ہی مذہب میں کیوں پیدا نہیں کیا؟"کوئی مسلمان ہے، کوئی ہندو، کوئی عیسائی، کوئی یہودی اور کوئی دہریہ؟یہ سوال صرف عام انسان ہی نہیں بلکہ فلسفیوں اور اسکالروں نے بھی مختلف انداز میں اٹھایا ہے۔
اس مضمون “Agar Allah/ishwar ne Duniya Banayi hai to Sabhi ek Dharm ke kyun nahi” میں ہم قرآن، حدیث اور دوسرے مذاہب کے متون کی روشنی میں اس سوال کا جواب سمجھیں گے۔حقیقت یہ ہے کہ یہ معاملہ امتحان (Test)، ہدایت (Guidance) اور انسان کی آزادیِ اختیار (Free Will) سے جڑا ہوا ہے۔
حدیث اور عقل دونوں سے واضح ہے کہ اس میں اللہ کی گہری حکمت پوشیدہ ہے۔آئیے تفصیل سے سمجھیں

ابتدا میں تمام انسان ایک ہی عقیدہ رکھنے والے

ابتدا میں تمام انسان ایک ہی عقیدہ رکھنے والے، ایک ہی رب کو ماننے والے اور ایک ہی راستے پر چلنے والے تھے۔ سب کی فطرت حق پر تھی اور دین ایک ہی تھا۔ لیکن جب وقت گزرا تو لوگوں نے اپنی خواہشات، نفسانی میلان، دنیاوی مفاد اور شیطانی وسوسوں کے زیرِ اثر مختلف راستے اختیار کر لیے۔ کسی نے اللہ کی ذات کے بارے میں نئی باتیں گھڑ لیں، کسی نے عبادت کے طریقے بدل دیے، اور یوں رفتہ رفتہ مختلف عقائد، مسالک اور مذاہب وجود میں آ گئے۔

آیت میں اللہ تعالیٰ یہ فرما رہا ہے کہ انسانوں کا یہ بٹ جانا اور ان کا مختلف نظریات میں پڑ جانا ان کی اپنی پسند اور خود ساختہ راستوں کا نتیجہ ہے، نہ کہ اللہ کی طرف سے ابتدا ہی سے کوئی تقسیم مقرر کی گئی تھی۔
“…اور اگر آپ کے رب کی طرف سے ایک بات پہلے ہی طے نہ ہو چکی ہوتی…”
اس جملے سے مراد یہ ہے کہ اللہ نے اس دنیا کو امتحان گاہ بنایا ہے اور انسان کو ڈھیل اور مہلت دی ہے۔ اگر اللہ چاہتا تو آغاز ہی میں ان تمام اختلافات کا فیصلہ کر دیتا اور سب کو ایک ہی راستے پر چلنے پر مجبور کر دیتا، مگر ایسا ہوتا تو امتحان، اختیار اور ذمہ داری کا اصل مقصد ختم ہو جاتا۔
یعنی اللہ نے انسان کو اختیار دیا ہے تاکہ وہ خود حق اور باطل میں فرق کرے، غور و فکر کرے اور اپنی مرضی و فیصلے سے صحیح راستہ اختیار کرے۔ یہی انسان کی آزمائش ہے۔

🌿 انسان کو آزادیِ اختیار (Free Will) دی گئی ہے

اللہ نے انسان کو دُنیا میں مجبور بندہ بنا کر نہیں بھیجا، بلکہ اسے عقل، شعور دی اور انتخاب کی آزادی عطا  فرمائی اور پھر دُنیا میں بھیجا۔ 

📖 قرآن کہتا ہے:
"اور ہم نے انسان کو راستہ دکھا دیا، اب چاہے وہ شکر گزار بنے یا ناشکرا۔"(سورۃ الدھر 76:3)
یعنی اللہ نے حق و باطل دونوں راستے واضح کر دیے — اب انسان خود طے کرے گا کہ کس کو اختیار کرے۔

اگر اللہ چاہتا تو سب کو ایک ہی ایمان پر رکھ دیتا۔

📖 قرآن کہتا ہے:
"اور اگر تیرا رب چاہتا تو زمین کے سب لوگ ایمان لے آتے، تو کیا تم لوگوں کو مجبور کرو گے کہ وہ ایمان لے آئیں؟"(سورۃ یونس 10:99)

یہ آیت ہمیں یہ سکھاتی ہے کہ ایمان اختیار کرنے کی طاقت انسان کے پاس نہیں بلکہ یہ اللہ کی مرضی پر منحصر ہے۔ کوئی بھی انسان دوسروں پر ایمان لانے کے لیے زبردستی نہیں کر سکتا۔ اللہ کی ہدایت ہر شخص کے لیے الگ ہوتی ہے اور جو لوگ نافرمان یا بے عقل ہیں، ان کے اعمال پر اللہ انہیں سزا دیتا ہے۔


🌙 ہدایت صرف اسی کو ملتی ہے جو طلب کرتا ہے

اللّٰہ ہدایت اُسے ہی دیتا ہے جو ہدایت کے طلبگار ہوتے ہیں, جنہیں آخرت کی فکر رہتی ہے

📖 قرآن کہتا ہے:
"اللہ اسی کو ہدایت دیتا ہے جو اس کی طرف رجوع کرتا ہے۔"(سورۃ الشورٰی 42:13)

حدیث:
"جس کے ساتھ اللہ بھلائی کا ارادہ کرتا ہے، اسے دین کی سمجھ عطا فرماتا ہے۔"
(بخاری 71، مسلم 1037)

یعنی جو انسان سچائی کی تلاش کرے، اللہ اسے راہ دکھاتا ہے۔مگر جو ضد، تقلید یا دنیا کی لالچ میں رہے، وہ حق سے محروم رہ جاتا ہے۔

📖 اللہ نے سب کو ایک ہی امت کیوں نہیں بنایا؟

اور قرآن میں اللّٰہ تعالیٰ فرماتا ہے:

"تم میں سے ہر ایک کے لیے ہم نے ایک شریعت اور ایک طریقہ مقرر کیا۔اور اگر اللہ چاہتا تو تم سب کو ایک ہی امت بنا دیتا،لیکن اس نے تمہیں اس لیے الگ الگ بنایا تاکہ تمہیں آزمائے اس چیز میں جو تمہیں دی گئی۔ پس نیکیوں میں ایک دوسرے سے سبقت لو۔آخر تم سب کو اللہ ہی کی طرف لوٹنا ہے،پھر وہ تمہیں ان باتوں کا فیصلہ بتا دے گا جن میں تم اختلاف کرتے تھے۔"(سورۃ المائدہ: 48)

وضاحت:
یہ آیت انسانوں کے لیے آزمائش کی اہمیت پر روشنی ڈالتی ہے۔ اللہ نے مختلف امتوں کے لیے مختلف شریعتیں مقرر کیں تاکہ انسان اپنی کوشش اور نیک اعمال کے ذریعے امتحان میں کامیاب ہو۔ اختلافات کے باوجود سب کو اللہ کی طرف لوٹنا ہے اور آخر میں ہر بات کی حقیقت ظاہر ہو جائے گی۔اللہ نے ہر قوم کو الگ حالات دیے تاکہ انسان اپنی کوشش اور عمل سے کامیابی حاصل کرے۔

📖 مختلف قوموں کا امتحان

اگر تیرا رب چاہتا تو سب لوگوں کو ایک ہی امت بنا دیتا، مگر وہ مختلف ہی رہیں گے — سوائے ان کے جن پر تیرے رب نے رحم فرمایا۔"(ہود: 118-119)

وضاحت:
یعنی سوچ اور عمل میں فرق اللہ کی مشیت کا حصہ ہے۔یہی فرق امتحان کو حقیقت بناتا ہے۔


📖 آزاد مرضی اور جواب دہی

اگر اللہ چاہتا تو تم سب کو ایک ہی جماعت بنا دیتا،لیکن وہ جسے چاہتا ہے گمراہ رہنے دیتا ہے اور جسے چاہتا ہے ہدایت دیتا ہے،اور تمہارے اعمال کے بارے میں ضرور پوچھا جائے گا۔"(نحل 16:93)

وضاحت:
یہ آیت اس بات کی طرف اشارہ کرتی ہے کہ اللہ ہر شخص کو آزاد چھوڑتا ہے کہ وہ ہدایت حاصل کرے یا گمراہ رہے۔ انسان کے اعمال کا حساب ضرور لیا جائے گا۔ یہاں ہمیں اللہ کی حکمت اور انسان کی ذمہ داری کا توازن سمجھایا گیا ہے۔:
اللہ نے انسان کو اختیار دیا ہے — مگر اس اختیار کا حساب بھی ہوگا۔

📖 ایمان لانے پر زبردستی نہیں

اور اللّٰہ فرماتا ہے:

اور کہہ دو، اے لوگو! تمہارے رب کی طرف سے حق آچکا ہے،اب جو چاہے ایمان لائے اور جو چاہے انکار کرے۔ہم نے ظالموں کے لیے جہنم تیار کر رکھی ہے۔"(کہف 18:29)

وضاحت:
یہ آیت آزادیِ انتخاب اور اللہ کے انصاف کی وضاحت کرتی ہے۔ ہر شخص کے پاس انتخاب ہے کہ وہ ایمان لے یا انکار کرے۔ جو لوگ ظلم و ستم کرتے ہیں اور ہدایت کو نظر انداز کرتے ہیں، ان کے لیے دوزخ کی آگ تیار ہے۔ یہ ہمیں خبردار کرتی ہے کہ نافرمانی کے نتائج بہت سنگین ہیں اور قیامت میں سزا یقینی ہے۔
یہ آیت انسان کی آزادی اور انجام دونوں کو واضح کرتی ہے۔

🕋 حدیث کا بیان

رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:

"ہر بچہ فطرت پر پیدا ہوتا ہے، پھر اس کے والدین اسے یہودی، عیسائی یا مجوسی بنا دیتے ہیں۔"
📚 (صحیح بخاری: 1358، صحیح مسلم: 2658)

وضاحت: ہر انسان اللہ کی توحید اور حق کی پہچان کی فطرت لے کر آتا ہے، لیکن ماحول اور پرورش اس کا رخ بدل سکتے ہیں۔ جو انسان حق کی تلاش کرتا ہے، وہ اپنے اصل راستے کو پا سکتا ہے۔

📜 سابقہ امتیں اور پیغمبر

قرآن میں فرمایا گیا:

"ہم نے ہر امت میں ایک رسول بھیجا کہ وہ اللہ کی عبادت کرے اور طاغوت سے بچے۔"(نحل 16:36)

اسی طرح ہندو متون میں بھی بیان ہے کہ مختلف یُگوں میں مختلف اوتار اور رِشی آتے رہے،مگر وقت کے ساتھ لوگوں نے ان کے پیغام میں تبدیلیاں کر دیں۔
بھگوت گیتا (باب 4، شلوک 7-8) میں شری کرشن کہتے ہیں:
"جب جب دھرم کمزور ہوتا ہے، میں اوتار لیتا ہوں۔"یعنی یہی تسلسل وحی اور رہنمائی کا بیان ہے۔

🌟 اللہ کی حکمت

اللہ نے انسان کو سوچنے، سمجھنے، پہچاننے کی صلاحیت دی ہے۔اگر سب ایک دین میں ہوتے تو امتحان کا مفہوم ہی ختم ہو جاتا۔دنیا خیر و شر کے انتخاب کا میدان ہے۔جو حق کو پہچان کر اپنائے گا وہ کامیاب، اور جو انکار کرے گا وہ خسارے میں رہے گا۔

آزادیِ اختیار: مجبوری سے ایمان لانا اصل ایمان نہیں ہوتا۔
امتحان کا مقصد: مختلف حالات ہی انسان کے حقیقی امتحان کو ثابت کرتے ہیں۔
حق کی تلاش کا انعام: جو انسان اپنی فطرت اور عقل سے حق کی تلاش کرتا ہے، اس کا مقام بڑھ جاتا ہے۔


📚 مثال کے طور پر

سوچیں، ایک اسکول میں اگر ایک استاد سب بچوں کو امتحان سے پہلے ہی 100 میں سے 100 نمبر دے دے — تو محنت، پڑھائی اور امتحان کا کیا مطلب رہ جائے گا؟ دنیا بھی ایک امتحان ہے، جس میں سب کو مختلف سوالات اور حالات دیے جاتے ہیں۔

بالکل اسی طرح اگر سب کو ایک ہی مذہب میں پیدا کیا جاتا،تو ایمان، عمل اور امتحان کا مقصد ختم ہو جاتا۔


🌈 دنیا امتحان کا میدان ہے

قرآن کہتا ہے:
"میں نے جنّ و انسان کو صرف اپنی عبادت کے لیے پیدا کیا۔"(ذاریات 51:56)
یہ دنیا زبردستی ایمان کی نہیں، بلکہ اختیار کے امتحان کی جگہ ہے۔انعام اور سزا کا فیصلہ آخرت میں ہوگا۔

📖 قرآن کا پیغام

"پھر تم سب میری طرف لوٹو گے،
اور میں تمہیں بتاؤں گا جو تم کیا کرتے تھے۔"
(آل عمران 3:55)

🕊 خلاصہ (Conclusion)

اللہ نے دنیا بنائی، اس میں کوئی شک نہیں۔مگر مختلف مذاہب کا وجود انسان کی آزادی، امتحان، اور وقت کے ساتھ تعلیم میں تبدیلی کا نتیجہ ہے۔اللہ نے انسان کو مختلف ماحول میں پیدا کیا تاکہ وہ خود تلاش کرے اور حق کو پہچانے۔اگر سب ایک جیسے ہوتے تو نہ امتحان ہوتا، نہ جزا و سزا،اور نہ انسان کی اصل قدر ظاہر ہوتی۔

اللہ کی حکمت یہ ہے کہ انسان کو مختلف حالات اور مذاہب میں پیدا کر کے اسے آزادی دی جائے تاکہ وہ خود حق کو پہچان کر اپنائے۔ اگر سب کو ایک جیسا بنا دیتا، تو نہ امتحان ہوتا، نہ انعام، نہ سزا — اور نہ ہی انسان کی اصل قدر ظاہر ہوتی۔
💡 اصل سوال یہ نہیں کہ ہم کس مذہب میں پیدا ہوئے ہیں، بلکہ یہ کہ ہم نے حق کی تلاش میں کیا کیا۔📚 (سورۃ الکہف: 29) — "جو چاہے ایمان لائے اور جو چاہے کفر کرے۔"


🤲 نصیحت برائے قارئین

سوال کرنا برا نہیں —مگر سچائی کی تلاش ضروری ہے۔قرآن اور اپنے مذہبی متون کو کھول کر پڑھو،عقل و انصاف سے غور کرو،
کیونکہ اللہ نے ہر انسان کو حق پہچاننے کی صلاحیت دی ہے۔اللّٰہ نے آسمانی کتابیں نازل کی, کئی سارے نبی اور رسول بھیجے انسانوں کی رہنمائی کے لئے۔ فرق صرف اتنا ہے کہ کوئی حق کو تلاش کرتا ہے،اور کوئی روایتوں کے پردے میں چھپ جاتا ہے۔

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Author
इस्लामी ब्लॉगर और दीन की बातों को आम करने में मदद करें। मक़सद है सही दीन और इल्म को लोगों तक पहुंचाना।

insani imtihan yehi hai ke Allah ne hidayat ka rasta dikha diya hai, ab har insan par hai ke woh kaunsa mazhab chunta hai.


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल / عام سوالات)

सवाल 1 (हिंदी): अगर अल्लाह चाहता तो सबको एक ही मज़हब में पैदा कर देता, फिर ऐसा क्यों नहीं किया?
जवाब: अल्लाह ने इंसान को आज़ादी-ए-इख़्तियार (Free Will) दी है ताकि वह खुद सच को तलाश कर अपनाए। अगर सबको एक जैसा बना देता तो इम्तेहान का मक़सद खत्म हो जाता।
سوال 1 (اردو): اگر اللہ چاہتا تو سب کو ایک ہی مذہب میں پیدا کر دیتا، پھر ایسا کیوں نہیں کیا؟
جواب: اللہ نے انسان کو آزادیِ اختیار دی ہے تاکہ وہ خود حق کی تلاش کرے اور اسے اپنائے۔ اگر سب کو ایک جیسا بنا دیتا تو امتحان کا مقصد ختم ہو جاتا۔
सवाल 2 (हिंदी): क्या अलग-अलग मज़हब में पैदा होना इंसाफ़ है?
जवाब: हाँ, क्योंकि हर इंसान को सच की तलाश का मौका दिया गया है और अल्लाह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता।
سوال 2 (اردو): کیا مختلف مذاہب میں پیدا ہونا انصاف ہے؟
جواب: جی ہاں، کیونکہ ہر انسان کو حق کی تلاش کا موقع دیا گیا ہے اور اللہ کسی پر ظلم نہیں کرتا۔
सवाल 3 (हिंदी): कुरआन में इस बारे में क्या कहा गया है?
जवाब: कुरआन (सूरह मायदा 48, सूरह हूद 118-119) में बताया गया है कि अल्लाह चाहता तो सबको एक ही उम्मत बना देता, लेकिन उसने अलग-अलग पैदा किया ताकि इंसान का इम्तेहान हो।
سوال 3 (اردو): قرآن میں اس بارے میں کیا کہا گیا ہے؟
جواب: قرآن (سورۃ المائدہ 48، سورۃ ہود 118-119) میں بتایا گیا ہے کہ اللہ چاہتا تو سب کو ایک ہی امت بنا دیتا، لیکن اس نے مختلف پیدا کیا تاکہ انسان کا امتحان ہو۔
सवाल 4 (हिंदी): क्या माहौल और परवरिश इंसान के मज़हब को बदल सकते हैं?
जवाब: हाँ, हदीस के मुताबिक हर बच्चा फितरत पर पैदा होता है, लेकिन उसके मां-बाप और माहौल उसका मज़हब बदल सकते हैं।
سوال 4 (اردو): کیا ماحول اور پرورش انسان کے مذہب کو بدل سکتے ہیں؟
جواب: جی ہاں، حدیث کے مطابق ہر بچہ فطرت پر پیدا ہوتا ہے، لیکن اس کے والدین اور ماحول اس کا مذہب بدلتے ہیں۔

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